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बैंक शेयरों में उछाल की उम्मीद

बैंक शेयरों में उछाल की उम्मीद

by डॉ वसंत पटवर्धन
in आर्थिक, जुलाई २०११, सामाजिक
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दुनिया की अर्थनीति में मुद्रा और मंडी का बहुत महत्व है और भारत की अर्थनीति उससे अलग नहीं रह सकता। यूरोप के कई देशों में स्थिति हाथ से बाहर निकल गयी है। यूनान जैसे देशों को अतंरराष्ट्रीय मुद्रा निधि ने ज्यादा ऋण देने का प्रबंध किया है। लेकिन उससे फर्क नहीं पड़ेगा। जब तक लोगों की क्रयशक्ति नहीं बढ़ेगी और उत्पादन नहीं बढ़ेगा, तब तक मुद्रास्फीति का संकट गहरा ही होता जायेगा। यूरोप में यह संकट गहराता ही जा रहा है।

भारत जैसी उभरती अर्थव्यवस्था को इसी संकट के साथ एक और संकट झेलना पड़ रहा है। यहां महंगाई कम न होने का कारण यह है कि रिजर्व बैंक ने अपनी रेपो दर और रिवर्स रेपो दर में हर छह हफ्ते बाद वृद्धि करने का सिलसिला चला रखा है। पिछले 15 महीनों में 10 बार इस तरह वृद्धि की जा चुकी है। इसका अर्थव्यवस्था की गति पर बहुत विपरीत असर पड़ रहा है।

औद्योगिक क्षेृ की रफतार कम हो रही है। ामकान और वाहन ऋण महंगे होते जा रहे हैं। शेयर बाजार में गिरावट आ रही है। जून 2011 की तिमाही का प्रदर्शन अच्छा नहीं होगा। सब से खराब प्रदर्शन पेपर, मीडिया और टेलीकॉम क्षेत्र का होगा। जब तक केंद्र सरकार आर्थिक सुधार के बारे में जल्दी कुछ नहीं सोचेगी तब तक अर्थ-व्यवस्था की रफ्तार में गति तेज नहीं हो सकती। आखिरकार ब्याज-दर बढ़ानें की भी कोई सीमा होनी चाहिए। लेकिन रिजर्व बैंक की एक ही लक्ष्य है- वह है महंगाई का मुकाबला इसमें वह पराभूत हो रहा है लेकिन वह यह जानने में असमर्थ है। अगर अगले छह महीनों में ब्याज दर बढ़ते जाएंगे तो उद्योग क्षेत्र का बहुत नुकसान होगा। ऐसे में वित्त मंत्रालय का मौद्रिक-नीति में कुछ हस्तक्षेप करना अनिवार्य है। लेकिन इस बारे में कोई भी स्पष्ट रूप से बोलता नजर नहीं आ रहा है यह दुर्भाग्य की बात है।

महंगाई की वजह मुद्रा-स्फीति या धन की तरलता नहीं है। खाद्यान्न उत्पादन की स्थिति इस साल काफी अच्छी नजर आ रही है। समस्या है तो सही वितरण की। व्यापारियों ने बाजार पर कब्जा कर रखा है। उनको लगता है कि लोग तो चीजें खरीद ही रहे हैं, ऐसे में कीमतें कम करने की जरूरत ही क्या है? और मंत्री सोचते हैं कि शासन चलाना है तो इन लोगों को सम्हालना ही होगा।

महंगाई के बावजूद मार्च 2011 में कंपनियों के नतीजे अच्छे रहे। पूरे साल, खास कर चौथी तिमाही के आंकड़े उत्साहजनक रहे। बाजार की अपेक्षाओं से वे बेहतर दिखायी दिये। इसके बावजूद शेयर बाजार की स्थिति में सुधार नहीं आया। इन नतीजों के आने से पहले ही अधिकतर विश्लेषक मानते थे कि स्थिति अच्छी नहीं होगी। लेकिन उनकी चिंता वाजिब नहीं थीं। करीब 2000 कंपनियों के नतीजों के अध्ययन से पता चलता है कि इनमें से 1460 कंपनियों ने र्लाभ में अच्छी बढ़त दर्ज की है। 1800 कंपनियों की बिक्री अच्छी थी, लेकिन 340 कंपनिया अपेक्षा के अनुरूप लाभ नहीं दिखा पाईं, मगर वे घाटे में भी नहीं थीं। टाटा स्टील, भेल, इंफोसिस, टीसीएस, एसबैंक, ऐक्सिस बैंक, इलाहाबाद बैंक, आइडीबीआइ, लार्सेन टुब्रो, ग्लेनमार्क फार्मा, एलआइसी हाउसिंग, टायटन इंडस्ट्रीज, बजाज ऑटो, बजाज फाइनांस जैसी कंपनियों का प्रदर्शन अच्छा रहा।

इन कंपनियों के कारोबार पर मुद्रा-स्फिति या ब्याज दरों का विपरीत असर नहीं हुआ, क्योंकि वे अपनी पूंजी की जरूरत को अंतरराष्ट्रीय बैंकों से ऋण लेकर पूरी कर सकते थे। कई कंपनियों ने बांड बेचकर या पुनर्भाग बिक्री से अपनी पूंजी की जरूरत को पूरा किया।

जहां तक मंडियों की बात है एक समय यहां पर अच्छे भाव उछले थे। सोने और चांदी के भाव आज आसमान छू रहे हैं। लौह कंपनियों को कोक, कोयला और लौह अयस्क के लिए ज्यादा दाम देने पड़े। फिर भी उन्होंने अच्छा मुनाफा दिखाया। ब्रेंट क्रूड महंगा होता जा रहा है। कुछ माह पहले कीमत प्रति बैरल 70 डालर थी, जो अब 115 डालर तक पहुंच गई है।
सरकार पेट्रोल की कीमतें बढ़ाती जा रही है। अब जल्दी ही डीजल और रसोई गैस सिलिंडर की बारी है। केरोसीन की सब्सिडी भी कम होगी। इससे सामानों की ढुलाई महेंगी होगी। इससे रिजर्व बैंक की परेशानी बढ़गी। रिजर्व बैंक यदि जुलाई और सितंबर में एक बार फिर रेपो और रिवर्स रेपो में बढ़ोतरी का सोाच रहा होगा तो हालात और बिगड़ जाएंगे।

अगर सरकार मुद्रा-स्फिति को काबू में रखना चाहती है तो संसद के मानसून सत्र में उसे आर्थिक सुधार लाने होंगे। जब तक सुधार नहीं आते तब तक मंडियां और शेयर बाजार सीमित दायरे में ही रहेंगे। बाजार की स्थिति अफवाहों से बिगड़ती है। मारिशस के साथ टैक्स संधि की बेबुनियाद बात फैलाई गई और जून के तीसरे सप्ताह में बीएसई शेयर सूचकांक को 500 अंकों से धराशायी करा दिया गया। ऐसी नकारात्मक बातें अर्थ-व्यवस्था की बुनियाद को कमजोर कर सकती हैं। इससे शेयर बाजार में जल्दी बढ़त नहीं आएगी। सरकार के विनिवेश के ताबूत ठण्डे पड़ जाएंगे। शेयर बाजार में गिरावट जारी रहेगी।

फिर भी निवेशकों को निराश नहीं होना चाहिए। टाटा स्टील, एलएण्डटी, टीसीएस, स्टेट बैंक, बजाज ऑटो, भेल, केर्न इंडिया जैसे चुनिंदा शेयरों में अब भाव कम है इसलिए निवेश अच्छा होगाा वर्तमान निचले स्तरों से तेजी आई तो सूचकांक दीवाली पर 19,500 के आसपास हो सकता है। निफ्टी का लक्ष्य 5750 होगा। टाटा स्टील ने अफ्रीकी खान में‡ रिवर्सडेल में‡ अपनी हिस्सेदारी रियोटिंटा को 5107 करोड़ रुपये में बेच दी है। इसमेंउसे 100 फीसदी का मुनाफा हुआ है। इस रकम को जमशेदपुर और उड़ीसा के कारखानों में लगाया जायेगा। यह हिस्सेदारी बेचने के बाद रियोटिंटो के साथ उसके संबंध अच्छे रहेंगे। अफ्रीका से उसे यूरोप के इस्पात कारखाने के लिए 2012 से लौह अयस्क मिलना शुरू हो जायेगा। जमशेदपुर कारखाने की उत्पादन क्षमता में विस्तार से टाटा के मुनाफे में वृद्धि होगी। वर्ष 2012-13 में कंपनी के प्रति शेयर अर्जन (ईपीएस) में 100 रुपये से ज्यादा की वृद्धि हो सकती है। इस तरह आज से दो वर्ष बाद टाटा स्टील के शेयरों का भाव 1,000 रुपये के ऊपर जा सकता है। उस समय प्रति शेयर लाभांश 16 रुपये हो सकता है। अगर आज कोई 560 रुपये का निवेश करता है, तो उसे 70 फीसदी का मुनाफा हो सकता है।

बैंकों के शेयरों पर रिजर्व बैंक की नीति का कोई असर नहीं होगा। वर्तमान ऋण-ब्याज दर वैसे ही रखने की रिजर्व बैंक की सोच है। मतलब ब्याज से होने वाली शुद्ध आय (नेट इंटरेस्ट इनकम) कम नहीं होगी। आज यदि कोई राष्ट्रीयकृत बैंकों के शेयरों में निवेश करता है तो दो साल में उसकी पूंजी दोगुनी होने की संभावना है। निम्न तालिका में कुछ बैंकों के शेयरों की स्थिति पेश की है, जिस पर गौर से सोचना चाहिए:

बैंक 20 जून 2011 31‡1-12 को शेयर का 30-6-12 को पी/ई रेशियो
का भाव संभावित पुस्तक मूल्य भाव लक्ष्य

इलाहाबाद बैंक 190 160 250 6.30
बैंक आफ बड़ौदा 858 422 1050 7.40
बैंक ऑफ इंडिया 408 267 490 9.00
कैनरा बैंक 506 340 700 6.70
ओरिएंटल बैंक 313 300 425 7 00
स्टेट बैंक आफ इंडिया 2170 1140 2700 15.2
पंजाब नेशनल बैंक 1050 610 1300 10.00

इन सातों बैंकों में थोड़ा-थोड़ा निवेश अच्छा रहेगा। अब बरसात का मौसम भी अच्छा है। अच्छी बारिश के आसार हैं। इस पृष्ठभूमि में दशहरा-दिवाली तक बाजार में सुधार आ सकता है। सूचकांकों में सुधार हो या न हो, लेकिन निवेशकों को श्रद्धा और सबूरी में विश्वास रखना चाहिए। भाव गिरता देख ज्यादा खरीदारी करने का लालच न करें। मुद्रा और मंडी दोनों पर नजर रखें।

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