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ऐसी रिमझिम में ओ सजन

ऐसी रिमझिम में ओ सजन

by शशांक दुबे
in जुलाई - सप्ताह तिसरा, मनोरंजन, विशेष
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साधना पर फिल्माए ये दो गीत- तुम बिन सजन और बरखा बहार आई- हिन्दी सिनेमा और बरसात की युति की उत्कृष्ट देन है, जिन्हें आनेवाली पीढ़ियां सुनती रहेंगी, गुनती रहेंगी और गुनगुनाती रहेंगी।
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यदि किसी भी फिल्म रसिक से ठंड़, गर्मी और बरसात के मौसमों में से उसके पसंदीदा मौसम का नाम चुनने को कहा जाए, तो सौ में से निन्यानवे लोग बरसात को ही चुनेंगे। कारण साफ है, जब ठंड़ की बात चलती है तो प्याली में उफनती चाय, गुनगुनी धूप और मफ़लर की गर्मी के संग-संग हाड़ तोड़, कंपकंपाती, दांतों को किटकिटाने पर मजबूर कर देने वाली ठंड भी हमारे सामने या जाती है। जब गर्मी की बात चलती है तो ठंडे-ठंडे हरे-भरे नीम तले किसी के मुस्कुराने की छवियां ही नहीं दिखतीं, बल्कि पसीने की टपकती बूंदें, उमस, बेचैनी, धूप में पैरों पर पड़ते छाले जैसे कठिन दृश्य दिखलाई पड़ते हैं। लेकिन जब बरसात की बात चलती है तो फिल्म दर्शक के सामने बादलों का घुमड़ना, फुहार में भीगे नायक-नायिका के चेहरे का दमकना, हवा की सनसनाती आवाज और मयूर के संग नाचते मन-मयूर के कई दृश्य और आवाज़ें परिकल्पित हो उठते हैं। इसीलिए बरसात का मौसम सिनेमा के भीतर गीत और साहित्य के भीतर कवित्त खोजने वाले हर संवेदनशील इंसान को लुभाता है, भरमाता है, आकर्षित करता है।

हिन्दी सिनेमा और बरसात का संबंध तो सात दशक से भी ज्यादा पुराना है, जब राज कपूर अपनी फिल्म ‘बरसात’ के जरिए ‘बरसात में हमसे मिले तुम सजन’ जैसा लोकप्रिय गीत लेकर आए थे और मौसम को रजतपट पर उतारने की परंपरा शुरू की थी।

इसके बाद चाहे ‘श्री 420’ का ‘प्यार हुआ इकरार हुआ है’ गीत हो या ‘जैसे को तैसे’ का ‘अबके सावन में जी डरे’ गीत हो, चाहे ‘मोहरा’ का ‘टिप टिप बरसा पानी हो’ या ‘1942: अ लव स्टोरी’ का ‘रिमझिम रिमझिम’ गीत हो, हमारा बॉलीवुड बरसाती गानों से लबालब भरा रहा है।

सिनेमा में बरसात के दृश्यों की कल्पना करते वक्त अपने समय की हर दर्शक पीढ़ी को अपनी पसंदीदा नायिका पर फिल्माए गीत की याद आना स्वाभाविक है, लेकिन यदि इन सत्तर सालों के सिनेमाई सफर में किसी एक अभिनेत्री की कल्पना करने की कोशिश की जाए, जिसका खयाल आते ही बारिश में भीगा एक गरिमामय, सुंदर, स्मित मुस्कान सम्पन्न, श्वेत श्याम, मनमोहक, चित्ताकर्षक चेहरा नज़र आए, तो निश्चित ही वह हिन्दी सिनेमा की महान अभिनेत्री साधना का होगा। साधना पर साठ के दशक में बरसात पर इतने सुंदर दो गीत फिल्माए गए हैं कि लगभग पांच-छः दशक बीत जाने पर भी उन गीतों का जादू हर पीढ़ी के दर्शक पर तारी है और ‘छाया गीत’ या रेडियो एफ एम पर बरसात से जुड़े गीतों की श्रृंखला पेश करते वक्त शायद ही कोई एंकर इन गीतों का जिक्र करने से चूका हो।

एक गीत तो बिमल रॉय की ‘परख’ का है, जिसे साधना पर ही नहीं, बल्कि हिन्दी सिनेमा में किसी भी नायिका पर फिल्माए श्रेष्ठ गीतों में शामिल किया जाता है। इस गीत में गीतकार शैलेंद्र के भीतर बैठा रूमानी कवि, हिन्दी सिनेमा की सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ गायिका लता मंगेशकर का कंठ और अति मधुर संगीत के पर्याय रहे सलिल चौधरी की मेधा का साथ पाकर खिल उठा है और यह गीत इन्हीं के समुच्चय का सुपरिणाम है। सलिल दा को सिंफनी का उस्ताद माना जाता है और उनके ऑर्केस्ट्रा की विभिन्न परतें हमेशा एक रहस्यमयी वातावरण निर्मित करती रही हैं, लेकिन इस गीत में उन्होंने अपने को अंडरप्ले करते हुए निहायत ही सीधा सरल और मधुर गीत रचा है:

ओ सजना, बरखा बहार आई                         
रस की फुहार लाई, अंखियों में प्यार लाई
ओ सजना, बरखा बहार आई

तुमको पुकारे मेरे मन का पपिहरा
मीठी मीठी अगनी में, जले मोरा जियरा
ओ सजना, बरखा बहार आई

ऐसी रिमझिम में ओ सजन, प्यासे प्यासे मेरे नयन
तेरे ही, ख्वाब में, खो गए
सांवली सलोनी घटा, जब जब छाई
अंखियों में रैना गई, निन्दिया न आई
ओ सजना, बरखा बहार आई
रस की फुहार लाई, अंखियों में प्यार लाई
ओ सजना, बरखा बहार आई

दूसरा गीत प्रेमचंद की महत्वपूर्ण कृति ‘गबन’ पर ऋषिकेश मुखर्जी द्वारा निर्देशित फिल्म ‘गबन’ का है। शंकर जयकिशन हिंदी सिनेमा के पहले सेलिब्रिटी संगीतकार रहे हैं, जिनके नाम से ही फिल्में चल जाया करती थीं। उनके बाद लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, कल्याणजी आनंदजी, आर डी बर्मन से लेकर ने दौर के ए आर रहमान तक कई संगीतकार आए हैं, जिन्हें दर्शकों व संगीत प्रेमियों का भरपूर नेह मिला, लेकिन सफलता, कलात्मक सौन्दर्य, समग्र प्रस्तुति और लोक रुचि पर पकड़ के बहुविध आयामों पर शंकर जयकिशन ही खरे उतरे। उनकी फिल्मों के गीत प्रायः शैलेंद्र और हसरत जयपुरी लिखा करते थे। इनमें भी जीवन दर्शन की बात होती तो शैलेंद्र की मदद ली जाती और रूमानी बात कहनी हो तो, हसरत जयपुरी को याद किया जाता। ‘गबन’ के इस गीत में बरसते पानी के बीच प्रेमी के विरह में सिसकती नायिका और उतने ही शिद्दत से नायिका की अनुपस्थिति को महसूस करते नायक की विकलता को अद्भुत अभिव्यक्ति प्रदान की है। साधना के सौंदर्य और सुनील दत्त के गरिमामय व्यक्तित्व का संगम, हसरत की भेदती शायरी और शंकर जयकिशन की लहराती संगीत रचना का संगम, महान लता के सुरीलेपन और महान रफी के गहराई के संगम में एक बार जो श्रोता डूबता है तो गहरे, बहुत गहरे डूबता चला जाता है:


तुम बिन सजन बरसे नयन जब-जब बादल बरसे
मजबूर हम मजबूर तुम दिल मिलने को तरसे

नागिन सी ये रात अंधेरी बैठी है दिल को घेर के
रूठे जो तुम सब चल दिए मुख फेर के
तुम बिन सजन

ये दिल तेरे प्यार की ख़ातिर जग से बेगाना हो गया
एक ख़्वाब था सब लुट गया सब खो गया
तुम बिन सजन

प्यासे-प्यासे नैन हमारे रो-रो के हारे सजना
आठों पहर बरसे गगन इस अंगना
तुम बिन सजन

कहना न होगा, साधना पर फिल्माए ये दो गीत हिन्दी सिनेमा और बरसात की युति की उत्कृष्ट देन है, जिन्हें आनेवाली पीढ़ियां सुनती रहेंगी, गुनती रहेंगी और गुनगुनाती रहेंगी।

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