हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
लाखों हिंदुओं का बलिदान और 76 युद्ध –

लाखों हिंदुओं का बलिदान और 76 युद्ध –

by रामेन्द्र सिन्हा
in अगस्त-सप्ताह एक, अध्यात्म, सामाजिक
2

1528 में बाबर द्वारा अयोध्या में श्री राम मंदिर तोड़कर निर्माण की गई मस्जिद के विरोध में हिंदुओं का आंदोलन आरंभ हो गया था। इन पांच सौ वर्षों में अबतक हिंदुओं ने मंदिर की मुक्ति के लिए कोई 76 युद्ध लड़े और कई आंदोलन भी हुए। इनमें लाखों हिंदुओं का बलिदान हुआ। इन बलिदानों व आंदोलनों के कारण ही आज भगवान श्री राम भव्य मंदिर बन रहा है।

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और गोरक्षपीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ ने सत्य ही कहा, ‘भाव-विभोर कर देने वाली इस बेला की प्रतीक्षा में पांच शताब्दियां व्यतीत हो गईं। दर्जनों पीढ़ियां अपने आराध्य का मंदिर बनाने की अधूरी कामना लिए भावपूर्ण सजल नेत्रों के साथ ही इस धराधाम से परमधाम में लीन हो गईं, किंतु प्रतीक्षा और संघर्ष का क्रम सतत जारी रहा।’ बस दो दिन और! श्री राम मंदिर निर्माण के लिए उलटी गिनती प्रारंभ हो चुकी है। राम जन्मभूमि मुक्ति के लिए पिछले 500 वर्षों में लाखों हिंदू धर्मावलंबियों का बलिदान और इस आंदोलन में अपना जीवन होम कर देने वालों का योगदान व्यर्थ नहीं गया। दरअसल, सन् 1528 में बाबर के सेनापति मीर बांकी द्वारा मंदिर को तोड़ कर मस्जिद बनाई गई, तभी राम जन्मभूमि मुक्ति आंदोलन का शंखनाद भी कर दिया गया था। इस दौरान 76 युद्ध लड़े गए और तीन लाख से अधिक हिंदु धर्मावलंबियों ने अपना बलिदान दिया।

अयोध्या में 1949 में रामलला के प्राकट्य के बाद राम मंदिर आंदोलन को धार मिली। यह भी कैसा संयोग है कि उस शुभ घड़ी पर तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर महंत दिग्विजयनाथ जी महाराज कुछ साधु-संतों के साथ संकीर्तन कर रहे थे। फिर 1989 में जब मंदिर निर्माण हेतु प्रतीकात्मक भूमिपूजन हुआ तो पहला फावड़ा तत्कालीन गोरक्षपीठाधीश्वर एवं श्री राम जन्भूमि मुक्ति यज्ञ समिति के आजीवन अध्यक्ष महंत अवेद्यनाथ जी महाराज, साथ ही परमहंस रामचंद्रदास जी महाराज ने चलाया। योगी आदित्यनाथ के साथ यह परंपरा अब भी जारी है।

हरिद्वार के संत सम्मेलन में कार सेवकों को कार सेवा हेतु 30 अक्टूबर, 1990 को अयोध्या कूच करने का आह्वान किया गया। कार सेवकों में जोश भरने के लिए लालकृष्ण आडवाणी ने 25 सितंबर को गुजरात के सोमनाथ मंदिर से ऐतिहासिक रथयात्रा शुरु की थी। इसे मध्य भारत होते हुए अयोध्या तक पहुंचना था लेकिन 23 अक्टूबर को बिहार-उप्र की सीमा पर तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने उन्हें गिरफ्तार करा लिया। तब तक देशभर से लगभग 6 लाख हिंदू श्रद्धालु अयोध्या की ओर चल पड़े थे। उधर, उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने अयोध्या के चप्पे-चप्पे पर पुलिस द्वारा नाकाबंदी करवा दी। अयोध्या से गुजरने वाली ट्रेनें-बसें रोक दी गईं, सड़कें तक खोद दी गईं, संचार व्यवस्था ठप कर दी गई और 30 अक्टूबर को अयोध्या का शेष विश्व से संपर्क काट दिया गया।

मुलायम सिंह ने घोषणा की कि अयोध्या में कार सेवक तो क्या कोई परिंदा भी पर नहीं मार सकता। लेकिन लाखों कार सेवकों को अयोध्या में प्रवेश से वे रोक नहीं पाए। सुबह साढ़े आठ बजे जब पहला जत्था राम जन्मभूमि की तरफ चला तो पुलिस ने उसे खदेड़ लिया। ये लोग हनुमानगढ़ी के सामने आकर बैठ गए। पुलिस वाहनों की किल्लत के बीच उनकी गिरफ्तारी की समस्या से जूझ रही थी कि विश्व हिंदू परिषद के तत्कालीन महामंत्री और अशोक सिंघल के नेतृत्व में दूसरा जत्था आ गया। उनके साथ थे उ.प्र. पुलिस के पूर्व पुलिस महानिरीक्षक श्री श्रीशचन्द्र दीक्षित।

बौखलाए प्रशासन ने निहत्थे कार सेवकों पर लाठी बरसाना प्रारंभ कर दिया। श्री अशोक सिंघल के सिर पर भी लाठी पड़ी, रक्त की धार बह चली। उनके मुख से निकले ‘जय श्री राम’ के घोष ने कार सेवकों के पौरुष को जगा दिया। 64 वर्षीय श्रीशचन्द्र दीक्षित ढ़ांचे के बाहर बनी आठ फीट ऊंची दीवार और उस पर लगी कंटीले तारों की बाड़ पार कर कब और कैसे रामलला के सामने जा पहुंचे, वे भी नहीं समझ सके। करीब 11 बजे ड्राइविंग जानने वाला रामप्रसाद नाम का एक साधु सुरक्षा बल की उस बस को अपने काबू में करने में कामयाब हो गया, जिसमें पुलिस हिरासत में लिए गए कार सेवकों को भरा जा रहा था। साधु लोहे के तीन फाटक तोड़ते हुए बस को विवादित ढांचे के करीब तक ले जा पहुंचा। इसके बाद तो जैसे कार सेवकों के सैलाब को रोकना असंभव हो गया। कार सेवकों को कवर देने के लिए तंग गली की छतों से महिलाएं पुलिस वालों पर पथराव कर रही थीं। सशस्त्र सुरक्षा बलों की लाचारी के बीच तीनों गुंबदों पर कार सेवकों ने भगवा झंडे लहरा दिए थे। तब कार सेवकों पर अंधाधुंध फायरिंग हुई।

दरअसल, सरयू नदी के डेढ़ किलोमीटर लंबे पुल पर सवेरे छः बजे हजारों की संख्या में कार सेवक जमा हो गए थे। प्रशासन ने पुल पर भीड़ हटवाने के लिए तब गोली चलवाई। मंदिर परिसर में गुंबद के उपर चढ़े कार सेवकों पर और नींव खुदाई के समय भी फायरिंग हुई। मानस भवन तिराहे पर आनंद भवन के सामने भी फायरिंग हुई। यहां साधुओं ने मोर्चा संभाला हुआ था। गुंबद पर झंडा फहराते हुए दो कार सेवक गोली से शहीद हुए। तीन नींव खोदते हुए शहीद हुए। 30 घायल हुए, जिसमें 19 की हालत गंभीर थी। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, फायरिंग में 5 कार सेवक मारे गए जबकि कार सेवकों का कहना था कि उप्र सरकार ने मृतकों का जो आंकड़ा दिया है, वह हकीकत की तुलना में बेहद कम है। उधर, अयोध्या में कार सेवा कार्यक्रम को लेकर देश के अलग-अलग हिस्सों में भड़की हिंसा में 25 लोग मारे गए और 16 शहरों में कर्फ्यू लगा दिया गया। अशोक सिंघल ने दावा किया कि गोलीकांड में कम से कम 20 लोग मारे गए जबकि 24 लोग घायल हुए। हिंसा में कुल 700 रामभक्त घायल हुए थे। सिंघल ने रामभक्तों को बधाई देते हुए आवाहन किया कि कार सेवक जो भी जहां हैं, वे अब अयोध्या आकर दो दिन तक कार सेवा करके ही घर लौटें। कार सेवा का काम जारी रहेगा। लेकिन अगले 48 घंटों तक अयोध्या में एक बेचैन करने वाली शांति कायम रही।

गोरक्षपीठ से हुई श्रीराम मंदिर आंदोलन की शुरुआत

उप्र के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जिस गोरक्षपीठ के महंत हैं, उसी से अयोध्या के श्रीराम मंदिर आंदोलन की शुरुआत हुई थी। योगी के गुरु महंत अवैद्यनाथ और अवैद्यनाथ के गुरु महंत दिग्विजयनाथ का इस आंदोलन में खास योगदान रहा है। दिग्विजयनाथ के निधन के बाद उनके शिष्य ने आंदोलन को आगे बढ़ाया। माना जाता है कि छह दिसंबर 1992 को अयोध्या में विवादित ढांचा ढहाने का प्लान उनकी देखरेख में तैयार किया गया था। मंदिर के लिए विश्व हिंदू परिषद ने 1989 में इलाहाबाद (वर्तमान प्रयागराज) में जिस धर्म संसद का आयोजन किया, उसमें अवैद्यनाथ के भाषण ने ही इस आंदोलन का आधार तैयार किया। धर्म संसद के तीन साल बाद दिसंबर 1992 में बाबरी मस्जिद का ढांचा ढहा दिया गया। महंत अवेद्यनाथ ने 1984 में देश के सभी पंथों के शैव-वैष्णव आदि धर्माचार्यों को एक मंच पर लाकर श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति यज्ञ समिति का गठन किया। वह आजीवन अध्यक्ष चुने गए। महंतजी के नेतृत्व में सात अक्टूबर 1984 को अयोध्या से लखनऊ के लिए धर्म यात्रा निकाली गई। लखनऊ के बेगम हजरत महल पार्क में ऐतिहासिक सम्मेलन हुआ, जिसमें 10 लाख लोगों ने हिस्सा लिया। 1986 में जब फैजाबाद के जिला जज ने हिंदुओं को प्रार्थना करने के लिए विवादित मस्जिद के दरवाजे पर लगा ताला खोलने का आदेश दिया था तो ताला खोलने के लिए वहां पर महंत अवैद्यनाथ मौजूद थे।

22 सितंबर 1989 को अवैद्यनाथ की अध्यक्षता में दिल्ली में विराट हिंदू सम्मेलन हुआ, जिसमें नौ नवंबर 1989 को जन्मभूमि पर शिलान्यास कार्यक्रम घोषित किया गया। तय समय पर एक दलित के साथ फावड़ा चला करके उन्होंने आंदोलन को सामाजिक समरसता से जोड़ा। हरिद्वार के संत सम्मेलन में तो उन्होंने 30 अक्टूबर 1990 को मंदिर निर्माण की तिथि घोषित कर दी। निर्माण शुरू कराने के लिए जब वह 26 अक्टूबर को दिल्ली से अयोध्या के लिए रवाना हुए तो पनकी में गिरफ्तार कर लिए गए। 23 जुलाई 1992 में मंदिर निर्माण के लिए अवैद्यनाथ की अगुवाई में एक प्रतिनिधि मंडल तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिंह राव से मिला। बात नहीं बनी तो 30 अक्टूबर 1992 को दिल्ली में हुए पांचवें धर्म संसद में छह दिसंबर 1992 को मंदिर निर्माण के लिए कार सेवा शुरू करने का निर्णय ले लिया गया। कार सेवा का नेतृत्व करने वालों में अवैद्यनाथ भी शामिल रहे। उसके बाद तो गोरखनाथ मंदिर जन्मभूमि आंदोलन का प्रमुख केंद्र बन गया।

12 सितंबर 2014 को महंत अवैद्यनाथ जी के ब्रह्मलीन होने के बाद जिम्मेदारी योगी आदित्यनाथ ने संभाली। वे अनेकों बार कहते सुने गए कि उनके कामों में भव्य मंदिर का निर्माण भी शामिल है। 2017 में सारी राजनीतिक कयासबाजियों के बीच योगी ने मुख्यमंत्री पद संभाला। श्रीराम मंदिर के संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हुए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा, ‘प्रधानमंत्री के कारण ही देश और दुनिया लगभग पांच शताब्दी बाद इस शुभ मुहूर्त की अनुभूति कर पा रही है। 5 अगस्त, 2020 को भूमिपूजन और शिलान्यास न केवल मंदिर का है वरन् एक नए युग का भी है। यह नया युग प्रभु श्रीराम के आदर्शों के अनुरूप नए भारत के निर्माण का है।’

2 नवंबर को कार सेवक रामलला के दर्शन कर अपने-अपने घरों को लौटने के लि, तैयार थे। प्रातः 11 बजे दिगम्बरी अखाड़े से परमहंस रामचन्द्रदास, मणिराम छावनी से महंत नृत्यगोपालदास और सरयू के तट से बजरंग दल के संयोजक श्री विनय कटियार तथा श्रृंगारहाट से सुश्री उमा भारती के नेतृत्व में कार सेवकों के जत्थे राम जन्म भूमि की ओर बढ़े। विनय कटियार और उमा भारती के नेतृत्व में चल रहे निहत्थे कार सेवकों पर बर्बर लाठीचार्ज किया गया। दिगम्बरी अखाड़े की ओर से परमहंस रामचन्द्रदास के नेतृत्व में आ रहे काफिले पर पीछे से अश्रुगैस के गोले फेंके गए और कार सेवक कुछ समझ पाते इससे पहले ही बिना किसी चेतावनी के गोलियों की वर्षा होने लगी। इस गोलीकांड के बाद अयोध्या की सड़कें, मंदिर और छावनियां निहत्थे कार सेवकों के खून से सन गईं। अर्धसैनिक बलों की अंधाधुंध फायरिंग से अनगिनत लोग मारे गए, ढेर सारे घायल हुए। गली-कूचों में दौड़ा-दौड़ाकर कार सेवकों को निशाना बनाकर गोलियां दागी गईं।

30 अक्टूबर को मुख्य गुंबद पर भगवा फहराने वाले शरद कोठारी को दिगंबर अखाड़े के पास एक घर से बाहर खींचकर गोली मारी गई। उसका छोटा भाई रामकुमार कोठारी जब उसे बचाने के लिए आगे बढ़ा तो उसे भी गोलियों से भून दिया गया। अपने माता-पिता के ये दो ही पुत्र थे, जो कार सेवा के लिए कोलकाता से अनगिनत बाधाओं को पार करके पहुंचे थे। मूलतः वे राजस्थान के बीकानेर जिले के रहने वाले थे। करीब एक महीने बाद ही 12 दिसंबर को इनकी बहन की शादी होने वाली थी। जोधपुर के सीताराम माली का कसूर सिर्फ इतना था कि वह आंसू गैस का गोला उठाकर नाली में डाल रहा था, सी.आर.पी.एफ. की टुकड़ी ने बंदूक उसके मुंह पर रखकर गोली दागी। फैजाबाद के राम अचल गुप्ता की अखंड रामधुन बंद नहीं हो रही थी, सुरक्षा बलों ने उन्हें पीछे से गोली दागकर मार डाला। रामबाग में ऊपर से एक साधु आंसू गैस से परेशान लोगों के लिए बाल्टी से पानी फेंक रहा था। सुरक्षा बलों ने उसे भी निशाना बनाया। गोली लगते ही साधु छत से नीचे टपक गया। प्रशासन का यह ऑपरेशन इतना बर्बर और निर्मम था कि घायलों को उठाने तक की कार सेवकों को इजाजत नहीं थी, न ही पुलिस बल घायलों को खुद उठा रहे थे। घायल सड़कों पर तड़प रहे थे। फायरिंग के वक्त सी.आर.पी.एफ. के कुछ जवान रो रहे थे। कई ने अपनी बंदूक रख डंडा उठा लिया था। अंधाधुंध फायरिंग बिना मजिस्ट्रेट के आदेश के हुई। फायरिंग के बाद सी.आर.पी.एफ. ने जिला मजिस्ट्रेट राम शरण श्रीवास्तव से गोली चलाने के आदेश पर दस्तखत करवाए। गोली चलाने के आदेश पर जबरन दस्तखत कराने के खिलाफ जिलाधिकारी उसी रात छुट्टी पर चले गए। फैजाबाद के आयुक्त तक यह बताने की स्थिति में नहीं थे कि कितने राउंड गोली चलाई गई हैं। देर शाम तक अयोध्या में मरघट का सन्नाटा था। चौतरफा शोक और उत्तेजना थी। समूची अयोध्या पर पुलिस और कार सेवकों का कब्जा था। साधु-संत मंदिरों में कैद थे। मंदिरों के पट बंद थे। घंटे-घड़ियाल बंद हो गए थे। शाम का भोग कहीं नहीं लगा। चारों तरफ शोक था।

प्रतिक्रिया में देश के दूसरे हिस्सों में दंगों की शुरुआत हो चुकी थी। इनमें 54 लोगों के मारे जाने की खबर थी। संचार और संवाद की प्रक्रिया ठप और समूचे माहौल में सनसनी थी तो स्वाभाविक था कि सुनी-सुनाई जानकारी और अफवाहों पर आधारित समाचार उत्तेजना बढ़ा रहे थे। लेखक तब गोरखपुर से प्रकाशित होने वाले एक हिंदी दैनिक के विशेष सांध्य बुलेटिन का प्रभारी था। मुझे याद है कि तब गोरखपुर सहित इलाहाबाद, लखनऊ, वाराणसी आदि शहरों में अखबारों के सांध्य संस्करणों को सरकार ने जब्त कर लिया, खबरों पर रोक लग गई। हमारी गिरफ्तारी के वारंट थे। मेरे साथी पत्रकारों को चुन-चुन कर पुलिस ने लाठियों से बुरी तरह पीटा था। संयोग से मैं बुलेटिन लेकर जाने वाली गाड़ी से पहले ही देवरिया घर पहुंच गया था और एक मित्र पुलिस अधिकारी के टिप-ऑफ पर भूमिगत हो गया। दो दिन में ही प्रबंधन की सक्रियता से हम सबको इलाहाबाद उच्च न्यायालय से जमानत मिल गई। अखबार के मालिक और संपादक श्री रामचंद्र गुप्ता जी की दिलेरी की प्रशंसा तो करनी ही पड़ेगी, जबकि वह भी पुलिस प्रताड़ना के शिकार होकर मेडिकल कॉलेज में भर्ती थे।

1992 में विवादित ढांचे के पूर्णतः विध्वंस की पटकथा शायद लिखी जाने लगी थी। 30-31 अक्टूबर को धर्म संसद में कार सेवा की घोषणा की गई। नवंबर में उप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने अदालत में मस्जिद की सुरक्षा करने का शपथपत्र दिया। 30 नवंबर को लालकृष्ण आडवाणी मुरली मनोहर जोशी के साथ अयोध्या जाने की घोषणा कर चुके थे। आडवाणी के इस दौरे की जानकारी राज्य और केंद्र सरकार दोनों की थी। इस दौरान खुफिया एजेंसियां कार सेवकों के बढ़ते गुस्से के बारे में बता चुकी थी। और आखिरकार छः दिसंबर को विवादित ढांचे को ध्वस्त कर दिया गया। इस बार कोई पुलिस फायरिंग नहीं हुई और मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इसके कुछ घंटे बाद ही इस्तीफा दे दिया।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: #सबके_रामhindi vivekhindi vivek magazinehindu culturehindu faithhindu traditionreligiontradition

रामेन्द्र सिन्हा

Next Post
राम मंदिर का निर्माण राष्ट्र के आत्मविश्वास का पुनर्जागरण

राम मंदिर का निर्माण राष्ट्र के आत्मविश्वास का पुनर्जागरण

Comments 2

  1. Anonymous says:
    5 years ago

    इतिहास के इस पहलू से अवगत कराने हेतु आपका आभार।

    Reply

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0