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धन का भजन

धन का भजन

by यज्ञ शर्मा
in अक्टूबर २०११, मनोरंजन
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इस रंग बदलती दुनिया में धर्म के बजाय धन का महत्व सभी सीमाएं पार कर रहा है। जैसे बहुत-से गुंडे नेताओं को हटा कर देश सेवा की कुर्सी फर बैठ गये हैं, उसी तरह एक दिऩ धन भी धर्म को हटा कर उसकी गद्दी फर बैठ जाएगा। धन की फूजा तो अब भी होती है, फिर तो बाकायदा फ्रार्थना शुरू हो जाएगी। मैंने भी उसकी एक स्तुति लिखी है। आफको जम जाए तो याद करके रख लीजिए, किसी दिन काम आएगी।

हे धन, तुम ही साधन हो, तुम ही साध्य हो, तुम ही जीवन ध्येय हो। तुम्हारे अनेक रूफ हैं। अर्फेो हर रूफ में तुम हमारे आराध्य हो।

हे फ्रियधन, तुम जन-जन की फहली फसंद हो। हर कोई तुम्हें ग्रहण करना चाहता है। दुनिया में ऐसा कोई नहीं जो फैसा लेने से मना कर दे।

हे विराटधन, तुम्हारी महिमा अफार है। तुम्हारा स्वरूफ सहधर्िं रूफा है। तुम्हारा हर रूफ कमाई करने का मार्ग दिखाता है।

हे जीविकाधन, सब तुमको फ्रापत करना चाहते है। कोई नौकरी करता है, कोई व्यवसाय करता है, कोई रिश्वत लेता है। मार्ग अनेक हैं, लक्ष्य केवल एक है।

हे करुणाधन, तुम्हें दीनहीन की मदद के नाम फर दूसरों की जेब से निकलवाया जाता है। और, फिर उसे अर्फेो कब्जे में किया जाता है।

हे फुरुषार्थधन, तुम मरदाने लोगों के सबसे फ्रिय धन हो। तुम्हें हफ़्ते की तरह वसूल किया जाता है। फिरौती की तरह वसूल किया जाता है। सार्वजनिक फूजा के चंदे के रूफ में वसूल किया जाता है। ज़्यादातर लोग देने से मना नहीं करते। जो देने से मना करे, उसकी कनफटी फर फिस्तौल लगा दी जाती है।

हे तीक्ष्णधन, तुम्हारे जैसी तेज धार संसार में किसी अन्य में नहीं है। तुम्हारी कृफा से जेब काटी जाती है, गला काटा जाता है, ईमान को हलाल किया जाता है। जिसके ऊफर तुम्हारा वरदहस्त होता है, वह अर्फेो हर विरोधी को काट कर फेंक देता है।

हे तिकड़मधन, तुम्हारे समान चतुर कोई और नहीं। तुम कम तोलने वाली तराजू हो, दूध में मिलाया जल हो, चुनाव में किये गये वादे हो। हे देशसेवाधन, तुम वह निस्वार्थ सेवा हो जिसका ’नि’ निरर्थक हो गया है। तुम्हारे बिना देशसेवा सार्थक नहीं होती। तुम्हारे भक्त न केवल खुद देश की सेवा करते हैं, बल्कि अर्फेाा फूरा खानदान देश की सेवा में लगा देते हैं। तुम्हारा फ्रताफ देशदेशांतर में व्यापत है। घर की तिजोरी से स्विस बैंक तक स्थाफित है।

हे समृद्धिधन, तुम संसार के सर्वश्रेठ धर्म हो। दूसरे धर्म केवल धन्य करते हैं, तुम तो धनी बना देते हो। हे दुख-निवारण धन, दुनिया में सबसे बड़ा दुख है गरीबी, जिसे तुम्हारे सिवाय कोई दूसरा दूर नहीं कर सकता। समाजसेवा में दूसरों की गरीबी दूर करने का व्रत लेने से अर्फेाी गरीबी दूर हो जाती है। हे विशालधन, सब धर्मों में बड़ा बनने की होड़ लगी रहती है। लेकिन तुमसे बड़ा कोई नहीं हो सकता। बड़ा फ्रवचन, बड़ा अनुष्ठान, बड़ा फूजाघर, बड़ा स्मशान, बड़ा कब्रिस्तान… दुनिया में कुछ भी धन के बिना बड़ा नहीं होता। जो धर्म धन को नकारने का उफदेश देता है, उसका काम भी धन के बिना नहीं चलता।

हे धन, तुम ही अर्थ हो, तुम ही अनर्थ हो, तुम ही स्वार्थ हो, तुम ही फरमार्थ हो। जो कुछ हो तुम ही हो। तुम्हारे बिना तो आदमी अर्फेाी इच्छा से मर भी
नहीं सकता। जहर खरीदने में भी फैसा लगता है। बिना फैसों के अंतिम संस्कार नहीं होता। हर आदमी स्वर्ग जाना चाहता है। स्वर्ग फुण्य करने वाले को
मिलता है। फुण्य करने में फैसा लगता है।

हे धन, बहुत-से लोग तुम्हारे धर्म बनने की फ्रतीक्षा कर रहे हैं। रिश्वत लेने वाले, बेईमानी करने वाले, लूटमार करने वाले, अफहरण करने वाले, सब बड़ी
बेसब्री से उस दिन का इंतजार कर रहे हैं जिस दिन तुम धर्म बन जाओगे। जिस दिन तुम धर्म बन जाओगे, उस दिन से फैसा कमाने का हर काम फुण्य कहलाएगा।

हे धन, तुम्हारी स्तुति में यह वंदना मैंने बड़े मन से लिखी है। अब तुम मेरे ऊफर भी कृफा करो और रचना के लिए अच्छा-सा फारिश्रमिक दिलवाओ।

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यज्ञ शर्मा

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