आत्मनिर्भरता में मनोरंजन क्षेत्र की भूमिका

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आज भारत को आत्मनिर्भर बनाने की बात हो रही है। उसी स्वर्णिम गौरव शाली वैभव को वापस पाने की बात की जा रही है जब हमारे देश को सोने की चिड़िया कहा जाता था। इस स्वप्न को साकार करने में मनोरंजन जगत की अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है।

पति बेचारा….. कोरोना और बारिश का मारा

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“पत्नी ने भी झूठा गुस्सा दिखाते हुए एक गैस पर चाय का बर्तन और दूसरे पर कढ़ाई चढ़ा दी। साथ ही अपने भी वॉट्सएप्प ज्ञान का परिचय देते हुए पति को नसीहत भी दे डाली कि कल से रोटियां बनाना सीख लो क्योंकि मोदी जी ने कहा है कि जब तक देश के सारे मर्द गोल रोटियां बनाना नहीं सीख लेते तब तक लॉकडाउन नहीं खुलेगा।”

चटपटा नाश्ता

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गर्मियों के दिन हैं। बच्चों की छुट्टियां चल रही हैं। उन्हें शाम को भूख लग जाती है। कई बार शाम को मेहमान भी आ जाते हैं। हमेशा वही पोहा, उपमा, इडली, समोसा, वडा किसी को नहीं सुहाता। क्यों ना ऐसा चटपटा नाश्ता बनाया जाए जो नया हो बच्चों के साथ-साथ बड़ों को पसंद आए।

दाखिला अंग्रेजी स्कूल में

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“एक स्कूल में हम लोग गए तो शांत, सौम्य टीचर ने हमें ऐसे देखा जैसे अभी कह देगी कि जाओ जाकर कान पकड़ के बेंच पर खड़े हो जाओ। वैसे अगर वह ऐसा कह के भी एडमिशन दे देती तो हम पूरे दिन कान पकड़ कर बेंच पर खड़े होने को तैयार थे। बल्कि मुर्गा भी बन सकते थे।”

पी ले रे तू ओ मतवाला…

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१९३२ में 'मोहब्बत के आंसू' से अपना फ़िल्मी कैरियर शुरू करने वाले सहगल साहब को बड़ी पहचान मिली १९३५ में देवदास से. शरत बाबू के उपन्यास पर बनी यह फिल्म कुंदनजी की पहली बड़ी सुपरहिट फिल्म थी. फिर तो अगले ग्यारह साल के सुपरस्टार थे, सहगल बाबू. वैसे १९३४ में ही 'पूरन भगत' और चंडीदास' से ही लोगों को लग गया था कि बन्दे में पोटेंशियल है

वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी…

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बाजार की स्पर्धा ने मां-बाप और बच्चों के बीच दूरी पैदा कर दी है। बच्चे अकेले हो गए हैं। उनका अकेलापन मोबाइल, इलेक्ट्रानिक गेम और चैनल पूरा कर रहे हैं और हताशा में वे अनायास हिंसा को अपनाने लगे हैं। तितलियां अब भी गुनगुनाती हैं, आसपास मंडराती भी हैं, कागज भी है, कश्ती भी है, बारिश भी है; लेकिन बचपन खो गया है। कैसे लौटाये उस बचपन को? अखबारों में हमेशा की तरह खबरें पढ़ रहा था। ज्यादातर बेचैनी अखबारों से भी आती है। सामने आनेवाली खबर किस प्रकार से आपको बेचैन कर दे, कह नहीं सकते। ब्लू व्हेल गेम से सम्मोहित हो

पारंपरिक लोकनाट्य

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  उत्तर प्रदेश के इन लोकनाट्यों की चमक और आभा के कारण आज विश्व पटल पर हमारी एक विशेष पहचान है। ऐसे में हम सभी का यह कर्तव्य ही नहीं पूर्ण दायित्व है कि हम अपने इन अमूल्य लोकनाट्यों को संरक्षित कर प्रचार-प्रसार करते रहें। उत्तर प्रदेश भारत का एक ऐस

सौगात

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चिलचिलाती धूप के बाद पड़ने वाली बारिश की रिमझिम बूंदें तन के साथ मन को भी शीतल कर देती हैं॥ धरती की तपन और प्यास को तो यह बारिश बुझाती ही है, उदासीनता और अकर्मण्यता को भी दूर कर देती है॥

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