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देश हार्डवेयर में भी जल्द आत्मनिर्भर बन सकता है

देश हार्डवेयर में भी जल्द आत्मनिर्भर बन सकता है

by pallavi anwekar
in आत्मनिर्भर भारत विशेषांक २०२०, विशेष, साक्षात्कार
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‘हिंदी विवेक’ द्वारा आरंभ ‘आत्मनिर्भर भारत’ वेब शृंखला के अंतर्गत एक विशेष भेंटवार्ता हैं भारत में सुपर कंप्यूटर के जनक प्रसिद्ध वैज्ञानिक श्री विजय भटकर से। उनसे आईटी के क्षेत्र में हुए तेज बदलावों, और अगले लक्ष्यों समेत कंप्यूटर हार्डवेयर के क्षेत्र में भी तेजी लाने पर विस्तृत बातचीत हुई। उनका कहना है कि सॉफ्टवेयर में हमने बाजी मार ली है, लेकिन हार्डवेयर में बहुत कुछ करना बाकी है। हम आत्मविश्वास दृढ़ करें तो अगले तीन-चार साल में ही इस क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बन सकते हैं। उनके विचारों के कुछ सम्पादित महत्वपूर्ण अंश यहां प्रस्तुत हैं-
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भारत में कंप्यूटर के क्षेत्र में आप कई वर्षों से काम कर रहे हैं। जब कंपयूटर भारत में आया था तब से लेकर आजतक हुए परिवर्तनों पर आपके क्या विचार हैं?

1947 में ही कंप्यूटर की आर्किटेक्चर बनी थी। 1947 में ही ट्रांजिस्टर का आविष्कार हुआ था। भारत की स्वतंत्रता के साथ ये दो बातें भी बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। भारत कंप्यूटर, आईटी और सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में बहुत आगे बढ़ चुका है। कंप्यूटर के जनक माने जाने वाले अरन ट्यूरिक का जन्म उनकी माता की कोख में भारत में हुआ था। उनके पिता उड़ीसा में रेलवे में चीफ इंजिनियर थे। उस समय वे भारत आए थे। कंप्यूटर की कल्पना युग परिवर्तन की कल्पना थी। हर जगह अब कंप्यूटर से काम होता है। आज बहुचर्चित मोबाइल भी एक छोटा कंप्यूटर है। कंप्यूटर का जो आर्किटेक्चर तैयार किया था उसके पीछे अमेरिका के वैज्ञानिक न्यूमन थे। उन्होने आर्किटेक्चर और मैथमेटिक के क्षेत्र में बड़ा काम किया है। भारत ने अभी सबसे ज्यादा नाम कंप्यूटर क्षेत्र में किया है। वैसे तो भारत ने लगभग हर क्षेत्र में सफलता हासिल की है लेकिन कंप्यूटर के क्षेत्र में भारत का नाम सभी जगहों पर लिया जाता है। इसकी शुरुआत सी-डैक (सेटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस कंप्यूटिंग) से होती है। जब 1988 में सी-डैक की स्थापना हुई थी तो हमने एक ऐसा कोर्स तैयार किया था जिससे सुपर कंप्यूटर बनाना था। सुपर कम्प्यूटर के लिए मैन पावर चाहिए थी लेकिन उस समय कंप्यूटर आईटी की नाम भी नहीं था। 1991 में कंप्यूटर की स्पेलिंग भी नहीं आती थी किसी को, बहुत की कम जगह पर इसकी पढ़ाई होती थी। हमारे लिए पहली बात यह समझनी थी कि आखिर कंप्यूटर की टेक्नोलॉजी क्या है, इसे हमें समझना है। इस टेक्नोलॉजी की एक विशेषता रही जो मुझे समझी, जब मैं सी-डैक का कार्यकारी निदेशक बना, कि यह सिर्फ एक टेक्नोलॉजी नहीं है। यह एक ऐसा विचार है मानवजाति में, जिसमें सब कुछ बदल जाएगा। हम इसे टेक्नोलॉजी से इसे जोड़ लेते हैं लेकिन टेक्नोलॉजी सिर्फ टेक्नोलॉजी नहीं है।

यह एक विचार है जैसे वैज्ञानिक आइंस्टीन के विचार थे। उसका पहला विचार है हमारी सांख्य दर्शन संस्कृति में पाया जाता है, इसका इतना महत्व है। पूरा ब्रह्मांड सिर्फ दो बातों से तैयार होता है। पहला है पुरुष और प्रकृति। यह सांख्य का विचार है। वही दूसरा विचार यह है कि ब्रह्मांड में कंप्यूटर या कोई भी चीज हो या हमारे ब्रह्मांड में कोई भी संख्या हो, जितने भी नंबर है जैसे 1,2,3,4,5,6 कितने भी बड़े नंबर हो लेकिन सबका रिप्रजेंटेशन सिर्फ 0 और 1 से हो सकता है। भारत का यह विचार है जो किसी को नहीं पता था कि बड़ी से बड़ी संख्या को भी 0 और 1 से रिप्रजेंट किया जा सकता है। कपिल मुनि का विचार सबसे महत्वपूर्ण है। संख्या ही नहीं हमारे अक्षर की जो बारह खड़ी है, वह भी किसी भी भाषा को रिप्रजेंट कर सकती है। जो कुछ भी ब्रह्मांड में दिखता है, उस सब को हम शून्य और एक से रिप्रजेंट कर सकते हैं। यह प्रकृति की भाषा है। इसे बायनरी भाषा भी बोला गया है। यह लोगों को समझना बहुत ही महत्वपूर्ण है कि हम कंप्यूटर को जहां भी देखते हैं, कंप्यूटर में हम जो भी देखते हैं, कोई भी फील्ड हो, पत्रकारिता हो, साहित्य तैयार करना हो, चित्रकारी करना हो, एनिमेशन तैयार करना हो, इसमें सिर्फ दो नंबरों का इस्तेमाल होता है- जीरो और एक, यही कंप्यूटर का सिक्रेट है।

भारत में परमाणु आयोग की स्थापना हुई थी। डॉक्टर भाभा के अंतर्गत, जिसके बाद इस आयोग की शुरुआत हुई थी डॉक्टर विक्रम साराभाई के अंतर्गत, और इलेक्ट्रनिक्स की शुरुआत प्रोफेसर जी के मेनन के अंतर्गत होती है। मैं सन 1972 में आईटी में पीएच डी कर रहा था। इसके बाद इलेक्ट्रॉनिक्स कमीशन की जो कोर कमेटी बनी थी उसमें मैं सदस्य था। तब से इलेक्ट्रॉनिक्स की प्लानिंग शुरू हुई थी। सन 1971 में अमेरिका में माइक्रो प्रोसेसर यानी एक फूल चिप वाला कंप्यूटर इंटेल में तैयार किया गया था और मैं उसमें काम कर रहा था। तब मुझे लगा था कि यदि हमें आगे बढ़ना है तो अभी जो यह आविष्कार हुआ है माइक्रो प्रोसेस का उसे लेकर हमें आगे बढ़ना होगा। इसके बाद हमने कलर डिवीजन बनाया और फिर कलर टेलिविजन बनाया। उसके बाद राजीव गांधी ने देश की कमान संभाली। उनकी कंप्यूटर में बहुत रुचि थी और उस दौरान जो कंप्यूटर को लेकर नीति बनी थी। उसमें हमारे सहयोगी साथी ने बड़ा योगदान दिया था।

सन 1988 में हमने सुपर कम्यूटर बनाने के लिए सी-डैक की स्थापना की थी। उस दौरान राजीव गांधी ने मुझसे सवाल किया था कि क्या हम सुपर कंप्यूटर बना सकते हैं? मैंने जवाब दिया था कि देखा तो मैंने भी नहीं है लेकिन जो हमने चित्र देखे हैं उसके आधार पर हम बना सकते हैं। मैंने इलेक्ट्रांस में काम किया है। कंप्यूटर बनाया है। लेकिन सुपर कम्यूटर की बात आई तो मैंने अपनी आंतरिक प्रेरणा से कहा कि हम बना सकते हैं। राजीव गांधी ने पूछा था कि सुपर कंप्यूटर बनाने में कितना समय लगेगा? हमने कहा कि कम से कम तीन साल। हालांकि, मैं खुद निश्चित नहीं था कि हम 3 साल में बना सकते हैं या नहीं। लेकिन मैंने सोचा कि 4 या 5 साल बहुत ज्यादा होगा। हमें तीन साल में हर हाल में तैयार करना होगा। राजीव गांधी ने पूछा कि इसे तैयार करने में कितनी राशि खर्च होगी? हमने कहा कि उस समय अमेरिका से एक सुपर कंप्यूटर खरीदने पर करीब 35 करोड़ का खर्च होता था और हमने भी उतनी ही रकम में सुपर कंप्यूटर तैयार करने को कहा ताकि टेक्नोलॉजी पूरी तरह से मौजूद होगी।

यह हमारा आत्मविश्वास था। आजकल आत्मनिर्भरता की बात तेजी से चल रही है; लेकिन आत्मनिर्भर होने के लिए पहले आत्मविश्वास होना चाहिए कि हम कर सकते हैं। भारत में उस समय सैम पित्रोदा आए थे, जो राजीव गांधी के मिशन के मुख्य बने। उन्होंने बताया कि टेलिकॉम की सब टेक्नोलॉजी हम भारत में तैयार करेंगे। सैम पित्रोदा जब मेरे पास आए और कहा कि भारत के सामने एक नया अवसर आ रहा है और वह है वाई2के (ध2घ) यानी ईयर 2000 और उसके लिए कई सॉफ्टवेयर इंजीनियर लगने वाले हैं। दुनिया में जितने भी सॉफ्टवेयर तैयार हुए हैं। उन्हें फिर से लिखना होगा और तैयार करना होगा और इसके लिए सैकड़ों हजारों नहीं बल्कि लाखों सॉफ्टवेयर इंजीनियर तैयार करने होंगे। जिसके बाद हमने एक ऐसी प्रणाली तैयार की जिसके तहत कोई भी इंजीनियर मात्र 6 महीने में सौफ्टवेयर इंजीनियर बन जाएगा; हालांकि इस बात को दुनिया के लोग नहीं मान रहे थे कि एक मैकेनिकल इंजीनियर सॉफ्टवेयर इंजीनियर कैसे बनेगा? लेकिन हमने कहा कि अगर इंजीनियर हमारा लॉजिक समझता है तो उसे हम सॉफ्टवेयर इंजीनियर बना सकते हैं। उन्होंने हमसे 20 सॉफ्टवेयर इंजीनियर भी लिए। जब टीसीएस ने हमारे इंजीनियर लेने शुरू किए तो बाद में और भी सॉफ्टवेयर कंपनिया हमारे इंजीनियर्स लेने लगीं।

उस समय आपको जो जिम्मेदारियां लेनी पड़ी थीं, उनकी तुलना में आज की जिम्मेदारियां कितनी अलग और कठिन हैं और इसमें कितना विकास हुआ है?

इस क्षेत्र के विकास को लेकर मैं सिर्फ एक ही उदाहरण देना चाहूंगा कि जब अटल जी प्रधानमंत्री थे तो उन्होंने हमारे सामने एक प्रश्न रखा था कि भारत किस क्षेत्र में सबसे आगे निकल सकता है? जिस पर हमने जवाब दिया था कि आईटी क्षेत्र में भारत कुछ बड़ा कर सकता है। भारत पहले आईटी की स्पेलिंग भी नहीं जानता था; लेकिन हमने उसमें कड़ी मेहनत की है और लाखों इंजीनियर्स तैयार किए, जिससे भारत का आईटी निर्यात बढ़ा है। जिसके बाद वाजपेयीजी ने कहा कि खढ ळी खपवळर’ी ीेोीीेुं और फिर इसी नारे साथ वह आगे बढ़े।

आईटी के क्षेत्र में आज जहां भारत खड़ा है क्या वह आत्मनिर्भर है या फिर आत्मनिर्भर बनने के लिए और क्या करना चाहिए?
किसी भी देश को आत्मनिर्भर होने के लिए पहले मैन पॉवर तैयार करना होगा और एक समय था जब भारत में सबसे ज्यादा सॉफ्टवेयर इंजीनियर तैयार हो रहे थे। सॉफ्टवेयर लिखने के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता में हम आगे थे। भारत का सन 1998 में 5 बिलियन डॉलर का सॉफ्टवेयर निर्यात था। जिस पर अटल जी ने पूछा था कि क्या इसे अगले 10 सालों में 50 बिलियन डालर किया जा सकता है? फिर इसके लिए तमाम बैठकें हुईं, जिनमें मैं भी शामिल था। प्रधानमंत्री अटल जी ने कहा कि अगर हम सरकार की नीति में परिवर्तन करें तो हम इसे 50 बिलियन डॉलर तक पहुंचा सकते हैं। इसके बाद एक नीति तैयार की गई और आईटी टास्क फोर्स बनाया गया, जिसका मैं भी सदस्य था और हमने भारत के आईटी निर्यात को 50 बिलियन डॉलर तक पहुंचा दिया और भारत दुनिया के टॉप 500 कंपनी को सॉफ्टवेयर देने लगा। भारत के सॉफ्टवेयर इंजीनियर जैसे ही तैयार होते थे, अमेरिका चले जाते थे। आज भारत का इस क्षेत्र में कुल टर्नओवर 180 बिलियन डॉलर है। भारत ने सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में बड़ा मुकाम हासिल किया है लेकिन यह हार्डवेयर के क्षेत्र में पीछे रह गया। क्योंकि उसके अनुरूप कोई पॉलिसी नहीं तैयार हो पाई थी। इसके लिए भारत को हार्डवेयर बाहर से आयात करना पड़ता था।

अगर भारत को कंप्यूटर हार्डवेयर के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनना है तो हमें कौन से कदम उठाने होंगे?

कंप्यूटर हार्डवेयर को तैयार करने में बहुत बड़ी राशि लगती है और भारत का निवेश अभी कम है। वर्तमान में एक हार्डवेयर प्लांट यानी फैब को तैयार करने में करीब 10 बिलियन डॉलर्स का निवेश करना पड़ता है जो भारत में नहीं हो पाया है। कंप्यूटर की ज्याादातर फैब चीन, ताइवाान, जापान, सिंगापुर में स्थापित हैं। भारत और ताइवान की दोस्ती अच्छी है। इसलिए भारत इसका डिजाइन तैयार करेगा और ताइवान की फैक्ट्री में तैयार किया जाएगा। नई नीति के तहत सभी डिजाइन भारत तैयार करेगा और उसे ताइवान में तैयार किया जाएगा। भारत का एपल फोन का डिजाइन पास हो चुका है; लेकिन इसका नुआओ अमेरिका के पास है। इसका उत्पादन चीन और ताइवान में करते हैं। अभी के जो सर्वर्स हैं, सुपर कंप्यूटर के हार्डवेयर और उसके चिप्स के पार्ट भारत में तैयार होंगे और बाद में वह डिजाइन हम बाहर के देशों को निर्यात करेंगे। आत्मनिर्भरता के लिए भारत के पास उसकी डिजाइन होनी चाहिए। फिलहाल भारत हार्डवेयर के क्षेत्र में अभी पीछे है।

भारत में नए अनुसंधान कम होते हैं; जबकि बनीबनाई चीजों का हम बखूबी उपयोग कर लेते हैं। क्या इन्फोर्मेशन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी ऐसी बात देखने को मिलती है?

आईटी के क्षेत्र में हम सॉफ्टवेयर के क्षेत्र में कर पाए लेकिन हम बाकी क्षेत्रों में नहीं कर पाए; क्योंकि हमारा बजट हमेशा से कम रहा है। यह हमारी जीडीपी का 0.6 प्रतिशत है, जबकि बाकी देशों की बात करें तो चीन का 3 प्रतिशत है जबकि कुछ देश जीडीपी की तुलना में 6 प्रतिशत तक खर्च कर रहे हैं। इसलिए भारत सरकार को इस पर विचार करना होगा और बाकी चीजों के साथ साथ इस पर भी खर्च बढ़ाना होगा। कोरोना सकंट के कारण अभी हमारी प्राथमिकता इससे निपटने में है। भारत जैसे विशाल देश में मूलभूल सुविधाएं ही प्राथमिकताओं में शामिल हैं। इसलिए अनुसंधान के लिए अलग से बजट बहुत कम मिलता है। मैं खुद चेयरमैन हूं लेकिन मैं किसी को दोष नहीं दे सकता। मुझे विश्वास है कि सरकार इस ओर भी ध्यान देगी और अनुसंधान के लिए प्रर्याप्त बजट आगे देगी लेकिन इसके लिए थोड़ा वक्त लगेगा।

कोरोना महामारी के दौरान जो लोगों की दिनचर्या है उसमें आईटी ने बड़ी जगह बना ली है। आने वाले समय में हमें आईटी की तरफ से अभी कौन से बदलाव देखने को मिलेंगे?

कोविड महामारी के दौरान आईटी ने लोगों के जीवन में बहुत बड़ा सहयोग दिया है। मोबाइल और लैपटॉप की वजह से लोग एक दूसरे शहर में रहने के बाद भी एक दूसरे से कनेक्टेड हैं और सभी काम कर पा रहे हैं। इसके साथ ही शिक्षा में भी इसका योगदान तेजी से बढ़ रहा है। भारत सरकार की तरफ से डिजिटल इंडिया और आत्मनिर्भर भारत को तेजी से बढ़ाया जा रहा है। पहले हम चीन सहित दूसरे देश के एप का इस्तेमाल करते थे लेकिन अब देश में इसका निर्माण हो रहा है जिससे भारत हर क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो रहा है।

भारत सरकार आईटी को लेकर हमेशा सकारात्मक रही है। फिर ऐसे में आईटी को इसका कितना फायदा मिला है?

प्रधानमंत्री मोदी ने ई-गवर्नेंस की बात की थी, डिजिटल इंडिया सहित तमाम टेक्नोलॉजी की बात की थी और इन सभी क्षेत्रों में तेजी से काम हो रहा है। पीेएम मोदी के आने के बाद हम ई-गवर्नेंस के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हुए हैं और दुनिया को भी सप्लाई कर रहे हैं। यह सब पहले भी था लेकिन उस पर काम नहीं हो रहा था जो मोदी के आने के बाद तेजी से बढ़ा है।

ऐसा कहा जा रहा है कि भारत में 5जी आने के बाद काफी कुछ प्रमुख बदलाव देश को देखने को मिल सकता है तो हम जानना चाहते हैं कि वे बदलाव क्या होंगे?

हमें बैंडविथ की स्पीड बहुत कम मिलती है जिससे हम कुछ काम करने में सफल नहीं होते। हम चाहते हैं कि हमारा सब काम मोबाइल पर हो जाए लेकिन ऐसा नहीं हो पाता। 5जी के बाद हमें इतनी स्पीड मिलेगी कि हम टीवी चैनेल्स, वीडियो कांफ्रेसिंग सहित सभी काम मोबाइल पर शुरू कर सकते हैं। 5जी आने के बाद जो ग्रामीण क्षेत्र इसके संपर्क में नहीं हैं उन्हें भी जोड़ा जाएगा और सभी काम मोबाइल के माध्यम से पूरे किए जाएंगे।

भारत सरकार द्वारा नई शिक्षा नीति तैयार की गई है। क्या आपको लगता है कि पाठ्यक्रम में आईटी से संबंधित अध्याय जोड़े जाने चाहिए?

अभी तक देश की शिक्षा नीति सिर्फ परीक्षा के हिसाब से रखी गई थी। छात्र जब से स्कूल जाता है तब उस पर सिर्फ परीक्षा का दबाव होता है मानो हम सिर्फ परीक्षा के लिए ही पढ़ते हैं। यदि हमें आविष्कार करना है तो हमें खुद समझना होगा, खुद बनाना होगा, इनोवेशन को बढ़ावा मिले इस दृष्टि से भी पढाई होनी चाहिए। लर्निंग बाई डूइंग की पद्धति पर अब आगे की पढ़ाई होगी। मुझे लगता है कि नई शिक्षा नीति से बदलाव आएगा और छात्रों को नई दिशा मिलेगी जो देश के हित में होगा।

भटकर जी, आपने भी कंप्यूटर की शिक्षा हासिल नहीं की थी। फिर भी आप इस क्षेत्र से जुड़े रहे तो क्या जो लोग आईटी की पढ़ाई नहीं किए हैं वे भी इस क्षेत्र में काम कर सकते हैं?

नई शिक्षा नीति में आईटी को जोड़ दिया गया है। हमारा तीन महीने का कोर्स है चड उखढ जिसके माध्यम से आप बेसिक तैयारी कर सकते हैं। अलग अलग इंस्टिट्यूट द्वारा हमने करोड़ों लोगों को तैयार किया है और डिजिटल इंडिया की वजह से इसको बल भी मिला है। स्मार्ट सिटी, स्मार्ट टेक्नोलॉजी जैसी चीजों के लिए हमने काफी काम किया है लेकिन हमें और भी काम करना बाकी है। आईओटी और 5जी बैंड्सविथ के आने के बाद इस क्षेत्र में रोजगार भी तेजी से पैदा होगा।

जब परम कम्यूटर बना था उसके बाद से लेकर अभी तक आपने एक एक कर लक्ष्य तय किया और उसे पूरा किया। लेकिन क्या आपने आने वाले एक या दो साल के लिए कोई लक्ष्य तैयार किया है कि देश को कहां पहुंचाना है?

कंप्यूटर की जो टेक्नोलॉजी तैयार हो रही है वह एक हजार गुणा 10 साल में होगी। 1991 में हमने एक बिलियन ऑपरेशन, और फिर 2001 में हमने एक ट्रिलियन ऑपरेशन तक लक्ष्य तय किया और अभी जो तैयार किया वह 1000 ट्रिलियन यानी वन पेटा ऑपरेशन प्रति सेंकेंड तैयार किया गया है। अभी जो 2023 का जो लक्ष्य है वह है वन एग्झास्ट सुपर कंप्यूटर, इसकी शुरुआत अमेरिका से हुई है। चीन, जापान एवं अन्य विकसित देश इस सुपर कंप्यूटर को बनाने में जुटे हुए हैं और हमने भी यही लक्ष्य तय किया है। हम आने वाले समय में दुनिया का सबसे पावरफुल सुपर कंप्यूटर बनाएंगे। आने वाले समय में स्वदेशी तकनीक से दुनिया का सबसे तेज सुपर कंप्यूटर बनाने में भारत भी चुनिन्दा देशों में शामिल होगा।

आत्मनिर्भर भारत की आपकी संकल्पना क्या है? अभी भारत आईटी क्षेत्र में आत्मनिर्भर है क्या?

भारत अभी आईटी के हार्डवेयर क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं है क्योंकि इसे हम देश में नहीं तैयार करते हैं। कंप्यूटर की एक चिप होती है। वह भी बनाने के लिए देश के पास फंड नहीं है। लेकिन हमने डिजाइन तैयार करने का काम शुरु किया है और उसका उत्पादन ताइवान में किया जाएगा। देश चाहता है कि चीप और हार्डवेयर का स्वामित्व हमारे पास हो, जो हमारा उद्देश्य है। क्योंकि, हम दुनिया को सॉफ्टवेयर तो दे रहे हैं लेकिन बाकी क्षेत्रों में पीछे हैं।

कुल मिलाकर आत्मनिर्भर को आप अपने शब्दों में कैसे बयां करेंगे?

आत्मविश्वास के बाद देश आत्मनिर्भर भी बनेगा और प्रधानमंत्री की कोशिश के बाद यह संभव होना शुरू हो चुका है लेकिन इसके लिए करीब 3 से 4 साल का समय लग सकता है।
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