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नक्सली संगठन में महिलाओं की दुर्दशा, कुकर्म और मारपीट हर दिन की बात

नक्सली संगठन में महिलाओं की दुर्दशा, कुकर्म और मारपीट हर दिन की बात

by pallavi anwekar
in राजनीति, विशेष, सामाजिक
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नक्सलवाद की शुरुआत इसलिए हुई थी कि कुछ लोग सरकार की नीतियों से खुश नही थे और सरकार की नीतियों को किसानों विरोधी मानते थे। नक्सलवाद इसलिए ही पैदा हुआ कि वह किसानों की रक्षा करेगा और एक उन्हे हथियारों के बल पर उनका हक दिलाएगा। इस दल में महिलाओं ने भी जमकर हिस्सा लिया। जिसे भी समाज या सरकार से इज़्ज़त नहीं मिलती या फिर उन पर अत्याचार होता वह इस दल में शामिल हो जाता। नक्सलवाद की शुरुआत सन 1967 के आस-पास हुई थी। एक ऐसा दल दो पूरी तरह से हथियारों के बल पर सरकार से अपनी बात मनवाने की ताकत रखता था और कई बार इसे सफलता भी हाथ लगी थी। 
 
नक्सलवादी ग्रुप की शुरुआत इसलिए ही हुई थी कि सरकार जब भी किसानों या समाज के निचले वर्ग को सताएगी तब उसके खिलाफ यह लोग विद्रोह छेड़ देंगे लेकिन बदलते समय के साथ साथ इस दल की भी विचारधारा और मानसिकता बदलती गयी और यह लोग अब किसी की मदद के बजाय चोरी, डकैती, पैसे के लिए हत्या और लोकतंत्र विरोधी गतिविधियों जैसे काम में लग गये जिसके बाद इनमें भी आंतरिक फूट शुरु हो गयी और यह कई ग्रुप में बंट गये क्योंकि फायदे के मुताबिक हर नेता अपना दल बनाना शुरु कर दिया। नक्सलवादी ग्रुप में महिलाएं भी बड़ी संख्या में शामिल होती थी क्योंकि उन्हे ऐसा लगता था कि समाज से ज्यादा इज़्ज़त उन्हे नक्सलवादी नेता देंगे लेकिन उनका यह भ्रम अब टूटने लगा है और अब महिलाओं ने सरेंडर करना शुरु कर दिया है। 
 
नक्सलवाद और माओवाद में शामिल महिलाओं ने सरेंडर के बाद खुद अपनी दास्तां बयां की जिसे सुनकर किसी का भी दिल पसीज सकता है। इस संगठन में शामिल महिलाओं के साथ बहुत ही बड़े पैमाने पर अत्याचार होता है और उसकी शिकायत भी कहीं पर नहीं होती है। महिला नक्सलियों के साथ छेड़छाड़ होना तो आम बात होती है जिसे उन्हे हर दिन सहन करना पड़ता है। उन पर शादी के लिए भी दबाव बनाया जाता है और मना करने पर दल के सभी लोग उसके साथ कुकर्म करते है। जब भी कोई महिला नक्सली दल में शामिल होती है तो उसे पहले शादी या फिर शारीरिक संबंध के लिए तैयार किया जाता है और अगर वह इससे मना कर दे तो उस पर तरह तरह के दबाव बनाये जाते है जिसके सामने उसे टूटना ही पड़ता है या फिर आत्महत्या के अलावा उसके पास दूसरा कोई विकल्प नहीं होता है। 
माओवादी संगठनों में वही होता है जो दल का नेता चाहता है बाकी अलग से ना कोई नियम होता है और ना ही कोई कानून। किसी की मर्जी का कुछ भी नही होता है। हिंसा और पैसे के बल पर पूरे संगठन को चलाया जाता है और जिसके पास यह नहीं होता उसकी कोई इज़्ज़त नहीं होती है। एक नक्सली दंपति ने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण करने के बाद बताया कि दल में महिलाओं के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाता है। महिलाओं के लिए स्वास्थ्य को लेकर कोई भी व्यवस्था नही है अगर किसी भी महिला को कोई परेशानी है तो उसे उसके ही हाल पर छोड़ दिया जाता है और यहीं वजह रही कि उस दंपति ने नक्सलवादी ग्रुप को छोड़ दिया। 
 
महिला नक्सलियों के साथ शोषण की यह कोई पहली पुष्टि नही है इससे पहले भी कई महिला और पुरुष नक्सलियों ने इसका खुलासा किया है और यह बताया है कि दल में महिलाओं के साथ जोर ज़बरदस्ती हमेशा होती है रहती है और जो महिला इसके लिए तैयार नहीं होती है उसे तरह तरह से प्रताणित किया जाता है जिससे उसे आखिर में खुद को उन्हे सौंपना ही पड़ता है। इस साल मार्च में कुछ महिला नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया था उस दौरान उन्होने भी बताया था कि माओवादी संगठन में महिलाओं के साथ जानवरों जैसा बर्ताव किया जाता है और संगठन में कुकर्म और शारीरिक शोषण आम बात है और हर नक्सली महिला करीब इसके लिए तैयार रहती है। 
 
वर्ष 2010 में सरेंडर करने वाली महिला नक्सली शोभा मंडी और उमा उर्फ शिखा ने भी इस बात की पुष्टि की थी कि माओवादी संगठन में महिलाओं के साथ ज़बरदस्ती शारीरिक संबंध बनाए जाते है। इन्होने अपनी एक किताब में भी इसका जिक्र किया था और एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि उनके साथी कमांडर ने करीब 7 साल तक उनके साथ कुकर्म किया था और वह भी तब जब वह एक दल की नेता थी और करीब 30 माओवादियों की कमांडर थी। इस घटना से यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि महिला माओवादी की पोस्ट कितनी भी बड़ी क्यों ना हो फिर भी उसके साथ कुकर्म किया जाता है। माओवादी संगठन में पत्नियों की भी अदला-बदली और मारपीट आम बात है। दल में जितना बड़ा माओवादी नेता होता है वह उतनी ही ज्यादा महिलाओं के साथ शारीरिक संबंध बनाता है। 
 
कुछ सरेंडर करने वाले माओवादियों ने यह भी बताया है कि जब कभी दल के नेता को कोई महिला जो दल के बाहर की होती है और वह पसंद आ जाती है तो उसे दल में शामिल करने के लिए पहले पैसे के बल पर उसका नाम पुलिस रिकार्ड में दर्ज करवाया जाता है और फिर मदद के नाम पर उसे दल में शामिल कर दिया जाता है और फिर उसके साथ ही जबरदस्ती कुकर्म किया जाता है। जानकारी के मुताबिक ज्यादातर महिलाएं शौक से ही नक्सलवाद में शामिल होती है।   
 
माओवाद और नक्सवाद संगठन में महिलाओं के साथ होने वाले अत्याचार किसी से भी छुपे नही है लेकिन कोई भी मीडिया या संगठन इस पर खुल कर बात नही करता है। महिलाओं के हित के लिए सैकड़ो संगठन है जो महिला अत्याचार को रोकने की बात करते है लेकिन यह संगठन भी नक्सलियों के खिलाफ कोई बात नही करते है। महिला आयोग भी इस पूरी घटना पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है और सिर्फ कुछ राजनीतिक दलों के साथ मिलकर काम कर रहा है। 
 

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