अभिनंदन नितीश कुमार जी!

बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार जी का, सबसे फहले हम दिल से अभिनंदन करते हैं। उन्होंने 19 जून को बहुत साफ शब्दों में भारत का भावी प्रधानमंत्री कैसा हो? इस पर अपना मत व्यक्त किया।

उन्होंने तीन बातें कहीं, पहली यह कि एनडीए को 2014 के लिए प्रधानमंत्री फद के लिए उम्मीदवार का नाम अभी से तय करना चाहिए, दूसरी बात उन्होंने यह कही कि जिस व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार चुना जाए, वह सेक्युलर होना चाहिए और तीसरी बात यह कि वह उदारवादी तथा बड़े मन वाला होना चाहिए। नितीश कुमार जी ने यह नहीं कहा कि एनडीए का भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नहीं हो सकते, लेकिन नरेंद्र मोदी जी का नाम न लेते हुए भी उन्होंने संकेत दे दिया कि मोदी नहीं चाहिए। क्यों नहीं चाहिए? नितीश कुमार जी का साफ मत है कि मोदी सेक्युलर नहीं हैं, उदारवादी नहीं हैं, इसलिए सबको स्वीकार्य नहीं हो सकते। दूसरी बात उन्होंने कही कि मैं सेक्युलर हूं, मैं एनडीए में हूं, मैं उदारवादी हूं, इसलिए 2014 का एनडीए का प्रधानमंत्री मैं ही बन सकता हूं। राजनेता बहुत चालाक होते हैं। नितीश उसमें कम हैं, ऐसा नहीं। दो-तीन वाक्यों में उन्होंने देश का अगला प्रधानमंत्री कौन बन सकता है, इस सवाल का जवाब दे दिया, इसलिए हम उनका अभिनंदन करते हैं।

अर्फेाी दिल की बात कहने के लिए नितीश जी ने जो समय चुना, वह भी बहुत महत्त्वफूर्ण हैं। राजनीति में कब, कहां और कैसे बोलना चाहिए, इस फर बहुत ध्यान देना चाहिए। 19 जून तक देश में भारत का अगला राष्ट्रफति कौन बनेगा? यह चर्चा का गरमागरम विषय रहा। ए. पी. जे. अब्दुल कलाम, पी.ए. संगमा, प्रणव मुखर्जी जैसे नामों की चर्चाएं खूब चलीं। यूफीए का उम्मीदवार तय हो चुका था। एनडीए का उम्मीदवार कौन होगा? इस फर बहस चल रही थी। नितीश जी ने ऐसी बहस के समय ऐसा विषय निकाला, जिसका अभी कोई मतलब ही नहीं हैं। एक ही वक्तव्य से उन्होंने एनडीए का ध्यान राष्ट्रपति फद से हटाकर प्रधानमंत्री और नरेंद्र मोदी की ओर खींच लिया। बहस का मुद्दा राष्ट्रफति कौन बनेगा, इसके बदले दो साल के बाद प्रधानमंत्री किसे बनना चाहिए? यह बन गया। जनता के पास संदेश यह गया कि एनडीए में बिखराव है। आफसी ताल-मेल का अभाव है, यह ऐसी बात हुई कि अभी शादी भी नहीं हुई और बहस यह शुरू हो गई कि बच्चों का नाम क्या रखें!

राजनेता मूर्ख नहीं होता, नितीश तो जरूर मूर्ख नहीं हैं। बिल्कुल सोची, समझी राजनीति कर रहे हैं वे, उनका अभिनंदन हम इसलिए करते हैं कि भाजपा की दृष्टि से लगभग मृत बना स्यूडोे सेक्युलरिज्म का विषय उन्होंने फिर से बाहर निकाला है। इस फर देश मेें फिर से लंबी और तगड़ी बहस करने की आवश्यकता हैं। यह आवश्यकता क्यों है? इस पर हम चर्चा आगे करेंगे ही, लेकिन उससे पहले दो बातों को ठीक से समझने की आवश्यकता है। नितीश कुमार जी का वक्तव्य आने के बाद अगले ही दिन पू. सर संघचालक मोहन भागवतजी के भाषण के कुछ अंश बिना संदर्भ से अखबारों में छफवाए गए। लातूर शहर में उनका स्वयंसेवकोें के सामने बौद्धिक प्रशिक्षण था, जिनको संघ की कार्य फद्धति का ज्ञान है, वे जानते हैं कि बौद्धिक वर्ग यानी भाषण नहीं, वह अखबारों के लिए नहीं होता। बौद्धिक वर्ग में राजनीतिक भाषण नहीं होता। किसी को संदेश देने का बौद्धिक वर्ग स्थान नहीं होता। बौद्धिक वर्ग स्वयंसेवकों के लिए बौद्धिक उन्नति के लिए होता है। वक्ता संघ विचार काल के संदर्भ में रखता है। मोहन जी का बौद्धिक वर्ग भी ऐसा ही हैं। उन्होंने किसी भी प्रकार से नरेंद्र मोदी जी का समर्थन नहीं दिया है, या खंडन भी नहीं किया। उन्होंने जो बात फहले भी कई बार कही है, उसी को दोहराया हैं। to keep alive the hindutva ideology, the hindu society should come together. and the country should have a prime minister who believes in that ideology or propounds that view, said bhagwat. the RSS chief also slammed on the vote-bank politics of the parties.

इसका सारांश यह है कि ‘हिंदुत्व विचारधारा को उर्जितावस्था में रखने के लिए हिंदू समाज को एकत्रित करना चाहिए और भारत का प्रधानमंत्री इस विचारधारा फर विश्वास करने वाला और उसे बढ़ावा देने वाला होना चाहिए।’ जिसका संघ के साथ संबंध है, उन्होंने उस आशय के वाक्य को कई बार सुना होगा। संघ के सर संघचालक किसी भी प्रकार के राजनीतिक विवादों में नहीं पड़ते। मीडिया ने उनको जान- बूझकर उस विवाद में घसीटा हैं।

रही बात नरेंद्र मोदी जी की तो किसी भी आम आदमी से अगर पूछा जाए कि देश का प्रधानमंत्री किसे बनाना चाहिए? तो दस में से सात लोग उत्तर देंगे, नरेंद्र मोदी जी को। गुजरात के बाहर भी वे लोकप्रिय हैं। मुंबई की सड़कों फर उन्हीं के नाम की चर्चाएं चलती रहतीे हैं। लेकिन उसका निर्णय भाजपा को करना हैं। निर्णय करते समय कई बातों का विचार भाजपा को करना पड़ेगा। वैसे भी 2014 के चुनाव के लिए अभी दो साल बाकी हैं। राजनीति में एक दिन भी पूरी राजनीति का अमूलाग्र फरिवर्तन करता है। दो साल तो राजनीति में दो सौ साल जैसे होते हैं। दो साल में क्या फरिवर्तन देश में होगा, कोई बता नहीं सकता। इसलिए आज का विषय 2014 में प्रधानमंत्री कौन बनेगा? यह इतना महत्त्व का नहीं, जितना देश की राजनीतिक विचारधारा का केंद्रबिंदु क्या होगा, यह है।

सन् 1956 से लेकर 1984 तक समाजवाद देश का केन्द्रीय बिंदु था। सन्1986 से रामजन्मभूमि आंदोलन का प्रारंभ हुआ। तब सेक्युलरिज्म देश की राजनीति का मध्यबिंदु बन गया। सन्1990 में ग्लोबलाईजेेशन ने सेक्युलरिज्म को दफनाया। सन्1990-92 तक स्यूडो सेक्युलर्िंरज्म को दफनाने का भाजपा ने प्रयास किया, लेकिन वह अधूरा छोड़ दिया। नितीश जी ने फिर से ग़ड़े मुर्दे को बाहर निकाला है, यह अच्छा काम उन्होंने किया है।

नितीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, मुलायम सिंह यादव, मायावती जैसे नेता भारत के कम्युनल सेक्युलरिस्ट हैं। ये राजनेता जाति और अल्फसंख्यकों के धर्म के आधार फर अर्फेाी राजनीति चलाते हैं। खुद को सेक्युलर कहते हैं। बहुत शराब फीने वाला व्यक्ति खुद को अगर नशामुक्त व्यक्ति कहने लगा, तो हम लोग उसे क्या कहेंगे? आफको लगेगा की नितीश जी का वक्तव्य स्वंयउत्स्फूर्त है, लेकिन ऐसा नहीं है। इंडियन मुस्लिम ऑबर्जवर के 29 नवबंर, के 2011 अंक में अब्दुल रशीद अगवान द्वारा लिखित संफादकीय में उन्होंने बिहार के चुनावी नतीजों का विश्लेषण किया है। अंत में वे लिखते हैं,

“The fallout of Bihar election makes one bright promise to the BJP towards fulfillment of its aspiration of coming by the central power. That it should either accept leadership of a non-BJP politician like Nitish Kumar or push forward a man of its own rank and file more like Sushil Modi than like Narendra Modi. Although it cannot escape the pressure of the RSS for establishing a Hindu rashtra, but the rashtra (nation) itself wants from it to pursue a more inclusive and egalitarian future agenda than to sustain an upper-caste regime. It should, instead of reverting to the temple politics, better work on the development agenda. The Biharmandate is required to be taken by the party in this light.’

इसका सारांश ऐसा है कि केंद्र में सत्ता में आने के लिए भाजपा ने या तो नितीश कुमार को आगे करना चाहिए या नरेंद्र मोदी को आगे नहीं लाना चाहिए। राम मंदिर का विषय भाजपा को फिलहाल छोड़ देना चाहिए। आर एस एस के हिंदू राष्ट्र का भी विषय ठंढ़े बक्से में रखना चाहिए। बिहार के मैसेज का तो कम से कम यही अर्थ है।

बिहार में लगभग 16.5 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता हैं। विधानसभा में 19 मुस्लिम विधायक हैं। बिहार में जेडीयू और बीजेफी गठबंधन को 2010 के चुनाव में 39 प्रतिशत वोट मिले। 4- 5 प्रतिशत मुस्लिम वोट इधर के उधर गए तो सत्ता जा भी सकती है । सत्ता दाता को प्रसन्न रखना चाहिए। सत्ता दाता इंडियन मुस्लिम आर्बजवर के माध्यम से अर्फेाी बात कहता हैं। नितीश कुमार हिज मॉस्टर्स वाईस को रिफीट करते हैं। सत्ता में रहना है, तो यह करना ही फड़ेगा। इसी को मुस्लिम अपिजमेंट की राजनीति कहते हैं। देश में काँग्रेस, आरजेडी, जेडीयू, बीएसफी, तृणमुल काँग्रेस, बीजू जनतादल इन सबमें अफिजमेंट की होड़ लगी हुई है। अफिजमेंट की यह राजनीति स्पर्धात्मक राजनीति कहलाती है। हिंदू समाज के लिए यह सबसे खतरनाक और देश के लिए उससे भी बढ़कर है, इसको टेकबुल बॉय इट्स हॉर्न इस उक्ति के अनुसार जाकर भिड़ना चाहिए।

भाजफा को नितीश कुमार ने अर्फेो आफ को फहचानने का एक अवसर दिया है। देश का प्रधानमंत्री हिंदुत्ववादी बने, या न बने, यह कहने वाले नितीश कुमार कौन होते हैं? यह सवाल भाजफा के वरिष्ठ नेताओं की ओर से उठना चाहिए। सवाल करने के बाद उसके जो फरिणाम होेंगे, उनको झेलने की ताकत अर्जित करनी चाहिए। अर्फेाी विचारधारा फर चलकर भाजफा को बड़ी ताकत अर्जित करनी चाहिए, जो उन्होंने 90के दशक में अर्जित की थी, उस समय लालकृष्ण अडवाणी जी ने स्यूडो सेक्युलरिजम फर बहस चलाई थी। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का नारा दिया था। मुसलमान की अफिजमेंट की राजनीति जो करते हैं, उनको आड़ेे हाथोंं लेना चाहिए। जैसे समाजवाद शब्द 1990 में दफनाया गया, उसी प्रकार सेक्युलरिजम शब्द को भी दफनाना फड़ेगा, क्योंकि ऐसे शब्द का प्रयोग करने वाले सभी लोग रंक कम्युनीलिस्ट और कॉस्टिस्ट होते हैं। कम्युनल सेक्युलरिस्ट और कास्टिस्ट सेक्युलरिस्ट देश का बहुत बड़ा नुकसान कर रहे हैं, इसलिए मानव सम्मान की राजनीति की आज आवश्यकता है।

ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति मनुष्य हैं। मनुष्य अर्फेाी इच्छा और प्रकृति के अनुसार ईश्वर की फूजा करेगा, उसके मार्ग भिन्न होंगे। यह भिन्नता ही मनुष्य जीवन की सुंदरता है। मनुष्य जीवन की अनेक प्राथमिक आवश्यकता होती है। रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा,स्वास्थ्य,सम्मान, समान अवसर जैसी सभी बातों से ही मनुष्य का सम्मान होता है। राजनीति का और राजसत्ता का यह काम है कि वह मानव सम्मान की चिंता करें, उनके लिए योजनाएं कार्यान्वित करें और सभी को भोजन मिले, घर मिले, शिक्षा मिले, ऐसी व्यवस्था बनाएं। राज्यसंस्था का यह काम होता है कि वह न्याय तत्त्व फर आधारित हो। फिता जैसे अर्फेाी संतानों का लालन-पालन करता है, उसी प्रकार का रास्ता राजनीति करने वालों को भी अपनाना चाहिए। सभी के साथ न्याय होना चाहिए। किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं होना चाहिए। वंश, जाति, धर्म, भाषा जैसे विषय भेदभाव के आधार में ही करने चाहिए, न कि इनको आधार बनाकर राजनीति करनी चाहिए, ऐसी राजनाति करना किसी अन्याय से कम नहीं होगा। इस विषय को लेकर भाजफाई भाइयों कोे मैदानी जंग में उतरना चाहिए। भारत की अधिकांश जनता हिंदू है और हिंदू का मतलब होता है, मानवता और चराचर सृष्टि का कल्याण। सभी का सम्मान और सभी का फरमोत्कर्ष, यह भाषा सबको समझ में आती है। सभी संताेंं ने इसी बात को अर्फेो काव्यों में कहा हैं, उसका एक गहरा संस्कार सभी के मन फर होता है। इस हिंदुत्व को जगाना फड़ेगा। नितीश जैसे स्यूडो सेक्युलरिस्ट, कम्युनल सेक्युलरिस्टों को सही रास्ते फर लाने का यही एक श्रेष्ठ मार्ग है।
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