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भारत और हिन्दुत्व को बदनाम करने की साजिश का भंडाफोड

भारत और हिन्दुत्व को बदनाम करने की साजिश का भंडाफोड

by उमेश सिंह
in अगस्त-२०१२, राजनीति
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मुंबई में 26/11 के हमले को अंजाम देने की पाकिस्तानी साजिश के सूत्रधार लश्कर-ए-तैयबा के आतंकी जबीउद्दीन अंसाारी की गिरफ्तारी से हिन्दु आतंकवाद का राग आलापने वालों की कलई खुल गयी।

महाराष्ट्र के मालेगांव बम विस्फोट के मामले में साध्वी प्रज्ञा सिंह, कर्नल महाजन इत्यादि को गिरफ्तार करने के साथही कुछ राजनीतिक दलों के बडबोले नेता और मीडिया का एक वर्ग सुनियोजित तरीके से इसे हिन्दू आतंकवाद के रूप में प्रचारित करना शुरु कर दिया। गिरफ्तार किये गये लोगों को अजमेर बमकाण्ड और समझौता एक्सप्रेस बम विस्फोट से भी जोडकर देखा जाने लगा। केन्द्र सरकार के गृहमंत्री सहित अनेक नेताओं द्वारा हिन्दू आतंकवाद की संकल्पना प्रतिपादित करके एक तरह से देश भर में हुयी आतंकवादी गतिविधियों में पकड़े गये लोगों के अपराधों को छिपाने का प्रयास किया गया। एक तरफ तो वे कहते रहे कि आतंकवाद को किसी धर्म से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए, जबकि दूसरी ओर हर नयी आतंकवादी घटना के पीछे हिन्दू संगठनों को बदनाम करते रहे। इसी 21 जून, 2012 को सऊदी अरब ने लश्कर-ए-तैयबा के एक वांछित आतंकी, 30 वर्षीय सैयद जबीउद्दीन अंसारी को ढबोच लिया और दिल्ली भेज दिया। उसके अबू जंदाल अबू हमजा आदि कई नाम प्रचलित है। सैयद जबीउद्दीन अन्सारीसे की गयी पूछतांछ से जो तथ्य सामने आये हैं, उनसे न केवल मुंबई हमलों की साजिश का खुलासा हुआ, बल्कि तथाकथित और प्रचारित हिन्दू आतंकवाद की संकल्पना का भी भण्डाफोड हो गया है।

मुंबई हमले की साजिश पाकिस्तान की इन्टर सर्विसेस इंटेलीजेन्स (आईएसआई) ने रचा और लश्कर-ए-तैयबा ने उसे अंजाम दिया। उस घटना में 166 जाने गयीं। घटना के बाद आईएसआई द्वारा छोडे गये ऐसे संकेत मिले जिससे हमले के साजिश कर्ता के रूप में भारतीयों कोही फंसाया जा सके। मुंबई हमले का पूरा कर्ता-धर्ता अंसारी ही था। उसका जन्म महाराष्ट्र के बीड जिले के गवराई गांव में हुआ था। उसने 10 वीं तक की पढ़ाई के बाद इलेक्ट्रिक में आईटीआई किया। यहीं से उसका सम्पर्क स्टूडेन्ट इस्लामिक मूवमेंन्ट आफ इण्डिया (सिमी) से हुआ और व लश्कर से जुड़ गया। अन्सारी पहली बार पुलिस के रिकार्ड में तब आया, जब 2006 में औरंगाबाद में 43 किलो आरडीएक्स, 16 एके-47 राइफलें और 50 हथगोले की खेप महाराष्ट्र पुलिसने पकड़लिया। इसके बाद दबाव बढ़ने पर वह लश्कर-ए-तैयबा के सहयोग से पाकिस्तान भाग गया। सार्वजनिक तौर पर उसका नाम तब आया जब वर्ष 2007 में भारत सरकार ने पाकिस्तानी अधिकारियों को 50 सबसे वांछित भगोड़े आतंकवादियों की सूची सौंपा।

मुंबई के भौगोलिक नक्शे को अच्छी तरह जानने के कारण अन्सारी लश्कर-ए-तैयबा के लिए बहुत उपयोगी था। 26 नवम्बर, 2008 के मुंबई हमले के दौरान उसने ही आंतकियों को निर्देश दिया था तथा 13 फरवरी, 2010 को पुणे की जर्मन बेकरी में हुए विस्फोट की योजना में भी वह शामिल था। मई, 2010 में दिल्ली पुलिस की खुपिया एजेन्सीने एक आतंकी को फोन काल से अबू जंदाल का नाम सुना। पुलिस ने यह भी पता लगा लिया कि अबू जंदाल पाकिस्तान में है और वहां वह रियासत अली के नाम से रह रहा है। यह भी पुष्ट जानकारी मिली कि अबू जंदाल, रियासत अली, जफीउद्दीन अन्सारी अबू हफ्जा दर असल एक ही व्यक्ति हैं। पुलिस पर इसका इन्तजार करने लगी कि यह पाकिस्तान से बाहर कब जाता है। वर्ष 2011 के शुरूआत में पाकिस्तान ने उसे एक पासपोर्ट दिया और लश्कर की तरफ से सऊदी अरब भेज दिया, जहां वह पाकिस्तानी नागरिक के रूप में दम्माम के तेल बन्दरगाह पर किराये की टैक्सी देने का कारोबार करने लगा। अमेरिका की खुपिया एजेन्सियों ने सऊदी अरब को अन्सारी के आतंकी समार्कों के बारे में बताया और सऊदी अरब ने उस पर नजर रखना शुरू कर दिया। भारतीय अधिकारियों ने भी सऊदी अरब उसके भारतीय होने के सबूत और उसके रिश्तेदारों की डीएनए रिपोर्ट भेजा। सारे प्रमाण मिलने पर सऊदी अरबने अन्सारी को गिरफ्तार कर लिया। पाकिस्तान उसे अपना नागरिक बताता रही और उसे वापस भेजने की मांग करता रहा। किन्तु सऊदी अरब के अधिकारियो ने लम्बी पूछतांछ से पता लगा लिया कि वह सचमुच में लश्कर-ए-तैयबा का आतंकी और भारत का नागरी है और फिर अन्तरराष्ट्रीय कानून का पालन करते हुए ‘उसे भारत को सौंप दिया। अंसारी से दिल्ली पुलिस ने लम्बी पूछतांछ की। पूछतांछ से निकले तथ्य, रोंगटे खड़े कर देने वालें हैं।

अन्सारी के अनुसार मुंबई में 26 नवम्बर के हमलावरों को पाकिस्तान के अधिकारियों ने हिंदी सिखाया था। उन्हें भारत में सबसे हिल-मिलकर रहने और ‘नमस्ते’ कहकर अभिवादन करने, स्त्रियों का सम्मान करने और सामान्य ढंग से रहने को कहा गया था। आतंकियों अपने हाथ में लाल कलावा (रक्षा सूत्र) बांधा, जिसे लश्कर-ए-तैयबा के जासूस हेडली ने मुंबई के सिद्धि विनायक मन्दिर से खरीदा था। सभी दसों आतंकियों के पास हैदराबाद के अरुणोदय कालेज का फर्जी परिचय पत्र था। उन सबने अपना हिन्दू नाम रख लिया था। इस्माइल खान का नाम नरेश वर्मा, अजमल कसाब का समीर चौधरी था। अन्सारी ने यह भी बताया कि मुंबई हमले के समय सेना की तरह बनाये गये कमांड और नियंत्रण कक्ष से पूरे हमले पर नजर रखी जा रही थी। दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल के अधिकारियों के सामने अन्सारी की स्वीकारोक्ति के अनुसार पाकिस्तान का इरादा दोतरफा वार करने का था। एक तरह मुंबई को हिला देना और दूसरी तरफ मीडिया, नीति निर्माताओं और राजनेताओं के एक वर्ग के बीच इस तरह के घरेलू साजिश के सिद्धान्त को आगे बढ़ाने के लिए ‘सबूत’ फैलाना था जिससे लगे कि उस हत्याकाण्ड में हिन्दू आतंकियों का हाथ है।

घरेलू साजिश के सिद्धान्त को मानने और उसे प्रचलित करनेवाले भारतीय ही है। महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री ए. आर. अन्तुले ने हेमंत करकरे की मौत पर 18 दिसम्बर, 2008 को लोकसभा के बाहर कहा, ‘‘आंखों को जो कुछ दिखता है, उससे अलग कहीं कुछ और बात है।’’ करकरे मालेगांव बम विस्फोट मामले की जांच में लगे थे, जिसमें ले. कर्नल श्रीकान्त पुरोहित, साध्वी प्रज्ञा ठाकुर और स्वामी असीमानन्द को गिरफ्तार किया गया था। उर्दू मीडिया के एक बड़े वर्ग ने हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा का खूब प्रचार किया। उर्दू अखबार ‘रोजनामा राष्ट्रीय सहारा’ के समूह सम्पादक अजीज बनी इस हमले के लिए हिन्दू आतंकियों को जिम्मेदार ठहराया। 30 नवम्बर, 2008 को ‘उर्दू टाइम्स’ ने लिखा ‘‘यह संघ परिवार और मोसाद का संयुक्त आतंकी अभियान है।’’ 5 दिसम्बर को ‘रोजनाम राष्ट्रीय सहारा’ ने एक और खबर छाया, ‘‘काबिले यकीन कौन? दशहगत गर्द कसाब या शहीद करकरे’’ इसी तरह 6 दिसम्बर, 2008 को अखबार-ए-मशीक लिखता है, ‘‘मुंबई हमले के पीछे हिन्दू आतंकवादियों का हाथ।’’ सितम्बर, 2009 में महाराष्ट्र पुलिस के एक रिटायर्ड मुसलमान आईजी एस.एस.मुशरिफ ने अपनी पुस्तक ‘हू किल्ड करकरे?’ में आरोप लगाया कि 26 नवम्बर के हमलों के पीछे आदूबी और हिन्दू आतकंवादियों का हाथ था।

मुस्लिम वोटों की लालच में हिन्दू आतंकवाद के सिद्धान्त को भारत के राजनेताओंने भी जोर-शोर से उठाया। इसमें कांग्रेस के महासचिव श्री दिग्विजय सिंह सबसे आगे रहे। 6 दिसम्बर, 2010 को उन्होने बर्नी की एक पुस्तक ‘‘26/11 : आर एस एस की साजिश’’ का लोकार्पण करते हुए आरोप लगाया कि मुंबई हमलेकी घटना की योजना बनाने और उसे अंजाम देने में आर एस एस का हाथ है। उन्होंने यह भी दावा किया कि अपनी हत्या से पहले करकरे ने उनके पास फोन किया था और हिन्दू संगठनों से मिल रही धमकियों और दबावों की शिकायत की थी।

अन्सारी की गिरफ्तारी से अब जबकी मुंबई हमले की घरेलू साजिश और हिन्दू आतंकवाद के आरोप की कलई खुल गयी है, तो इसके सिद्धान्तकार बंगले झाकने लगे हैं और अपनी बात से हट गये हैं। श्री दिग्विजय सिंह ने खिसियाई बिल्ली खम्भा नोचे के अनुरूप कहा कि वे पहले ही अपने 26 नवम्बर की घटना के बारे में अपने बयान की सफाई दे चुके हैं। वे देश भर में जहां भी गये मीडिया से कन्नी काटते रहे। श्री ए. आर. अंतुले ने 27 नवम्बर के अपने बयान को एक ‘स्वाभाविक गलती’ याना और कहा, ‘‘हमले के बाद कई तरह की कहानियां सामने आ रही थी, खासकर करकरे की मौत से जुड़ी हुई।’’ मुशरिफ अब यह कहते हुए टिप्पणी करने से आनाकानी कर रहे है कि मामाला कोर्ट में है, इस पर कुछ कहना उचित नहीं है। अजीज बर्नी के आखबार ‘रोजनामा राष्ट्रीय सहारा’ ने अपनी खबर के लिए 29 जनवरी, 2010 को पहले पृष्ठ पर खेद प्रकाशित किया था। हेमंत करकरे की पत्नी श्रीमती कविता करकरे का मानना है कि यह मामला घरेलू साजिश का नहीं था।

मुंबई हमले से जुड़े सारे तथ्यों को उद्घाटन होने और उसमें पाकिस्तान का हाथ प्रमाणित होने के उपरान्त हिन्दू आतंकवाद की कांग्रेसी संकल्पना पूरी तरह ध्वस्त हो चुकी है। इसके पैरीकारों का चेहरा बेनकाब हो चुका हैं। उन्हें देश से माफी मांगनी चाहिइ। स्वामी असीमानन्द, साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर और ले. कर्नल श्रीकान्त पुरोहित के ऊपर लगे आरोपों को भी पुन: समीक्षा होनी चाहिए।

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