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रामलीला के मंचन में पीछे नहीं है महाराष्ट्र

रामलीला के मंचन में पीछे नहीं है महाराष्ट्र

by सुधीर जोशी
in अक्टूबर-२०१२, सामाजिक
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‘अनेकता में एकता भारतीय संस्कृति की विशेषता’ की कहावत को शब्दश: अंगीकार करते हुए महाराष्ट्र की राजधानी तथा भारत की आर्थिक राजधानी के रूप में ख्यात मुंबई नगरी में विभिन्न देवी-देवताओं को मानने वालों की संख्या जिस तरह से बढ़ रही है, उसके आधार पर यह कहना गलत नहीं होगा कि भारतीय जनमानस की ईश्वर के प्रति अटूट आस्था है, उसकी इसी आस्था का परिचय गोपाल काला, गणेशोत्सव, नवरात्र तथा दीपावली के मौके पर देखने को मिलता है। नवरात्र के मौके पर दांडिया, रास-गरबा पर झूमने लोगों का एक वर्ग है तो कुछ लोग ऐसे हैं, जो मर्यादा पुरुषोत्तम राम के पूरे जीवन को ‘रामलीला’ के रूप में मंचित करते हैं। मूलत: महाराष्ट्र की कला-संस्कृति से वास्ता न रखने के बावजूद मुंबई, ठाणे इन दोनों जिलों में नवरात्र के मौके पर जिस तरह से रामलीलाओं का मंचन किया जा रहा है, वह आने वाली पीढ़ी तक अबाधित रूप से चलता रहे, इसी तरह की कोशिश मुंबई/ठाणे में रामलीला का मंचन करने वाले लोगों की है।

कभी एक घर की छत से शुरू हुई रामलीला आज विशाल मैदान में हो रही है, इसका श्रेय चीरा बाजार में रहने वाले मटरूमल बाजोरिया को जाता है। जिस तरह से गुजराती परिवार के चाप्सी भाई नागड़ा के मुंबई में पहली बार सार्वजनिक तौर पर रास-गरबा, दांडिया का शुभारंभ किया, उसी तरह बाजोरिया ने ‘रामलीला’ को सार्वजनिक रूप प्रदान करने की सबसे पहली कोशिश की, उसके बाद समय-समय पर भगवान राम के प्रति आस्था रखने वाले ‘रामलीला मंचन’ के विस्तारीकरण कार्य में जुट गए और वर्तमान में स्थिति यह बन गई है कि रामलीला मुंबई की खास पहचान बनती जा रही है। रामचरित्र मानस पर आधारित ‘रामलीला’ के मंचन के दौरान समूची मुंबई अयोध्या जैसी दिखने लगती है और इस दौरान ऐसा लगता है कि समूचा भारत ही मुंबई में एकत्र हो गया है।

मर्यादा पुरुषोत्तम राम का चरित्र इतना अनुकरणीय है कि उन्हें हर काल में पूजा जाता आ रहा है और भविष्य में भी भगवान राम के प्रति भारतीय जनमानस की आस्था कम नहीं होगी। अयोध्या के राजा राम ने जिस तरह का जीवन जीया, उस तरह का जीवन सभी को जीना संभव नहीं है, उनके जन्म से लेकर राज्यभिषेक तक की कहानी को मंचित करने के पीछे मकसद यही है कि हर भारतीय उनके जीवन से प्रेरणा लेकर अपने जीवन यात्रा के सुख-दु:ख को अच्छी तरह से जान सके। वास्तव में रामलीला हमारी एक पुरातन सांस्कृतिक कला है, जो साहित्य और समाज से परिपूर्ण है इसमें मानव चरित्र के आदर्श का दर्शन और मानव जीवन की उत्कृष्टता के अनेक उदाहरण मिलते हैं, इसीलिए लंबा अरसा बीत जाने के बाद भी राम कथा भारतीय जन मानस पर अमिट छाप छोड़ने में सफल रही है।

भगवान राम के उदात्त, चरित्र को भारतीय जन मानस में ताजा रखने के उद्देश्य से 1964 में आदर्श रामलीला समिति की स्थापना की गई और इस रामलीला समिति ने महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में रहने वाले लोगों को भगवान श्री राम की प्रेरणादायी लीला का नमनाभिराम अवलोकन कराया। मुंबई और ठाणे जिलों में रामलीला का इतिहास बहुत पुराना नहीं है यदि इसके शुरूआत को चाल में हुई रामलीला से जोड़कर देखा जाए तो स्पष्ट होगा कि महाराष्ट्र में रामलीला के मंचन का इतिहास लगभग 60 वर्ष पुराना ही है। जहां तक मैदानों में रामलीला के मंचन की बात हैं तो जानकारों का दावा है कि मुंबई तथा ठाणे जिलों में रामलीला के मंचन को 55 वर्ष पूरे हो गये हैं।

राम-कृष्ण की जीवन-लीलाओं का सुदंर मंचन राम भक्तों के आकर्षण का केंद्र रहा है। विशाल मंच में गहन धार्मिक भव्यता से मनाए जाने वाले इस दस-दिवसीय रामलीला का उद्भव स्थल भले ही अयोध्या हो, परन्तु दस दिन तक गिरगांव चौपाटी समेत लगभग 40 स्थानों पर मंचित की जाने वाली रामलीलाओं को देखकर आम जनता को यह महसूस होने लगता है कि वे मुंबई या ठाणे में न होकर अयोध्या में ही आ गए हैं। उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, बिहार की तरह ही महाराष्ट्र में रामलीला का मंचन का विशिष्ट महत्त्व है। वर्ष में दो बार होने वाली नवरात्रों में से शारदीप नवरात्र, जिसे शाक्त नवरात्र के रूप में भी जाना जाता है। नवरात्र में नौ दिन आदिशक्ति माँ जगदंबे की आराधना विभिन्न देवी मंदिरों में तो होती ही है, पर इसके साथ ही साथ दांडिया, रास-गरबा नृत्य और रामलीला मंचन के कारण समूचा महाराष्ट्र राममय हो जाता है। गणेशोत्सव की तरह ही चालों से ही मुंबई में रामलीला का शुभारंभ हुआ। चीरा बाजार क्षेत्र स्थित सिंघानिया वाडी के लोगों के मन में अचानक एक दिन यह विचार आया कि देश के अन्य भागों की तरह ही मुंबई में भी रामलीला का मंचन किया जाए, अपने विचार को मूर्तरूप देने के लिए सिंघानिया वाडी के कुछ लोगों ने वाडी की छत पर रामलीला का मंचन किया। पहली बार भगवान राम के जीवन पर आधारित कार्यक्रम प्रस्तुत करने वाले मटरूमल बाजोरिया के प्रयासों की भूरि-भूरि प्रशंसा की गई और उसके बाद तो हर साल सिंघनिया वाडी की छत पर नवरात्र के अवसर पर भगवान राम के जीवन पर आधारित अनेक कार्यक्रम होने लगे। इस कार्यक्रम को देखने वालों की संख्या हर साल बढ़ती चली गई और देखते-देखते सिंघानिया वाडी की छत ‘रामलीला’ के आयोजन के लिए छोटी पड़ने लगी। लोगों की बढ़ती रुचि को ध्यान में रखकर मटरुमल बाजोरिया ने रामलीला का मंचन स्थल घर की छत से मैदान कर दिया और 1958-59 में स्थानीय कलाकारों, फिल्मी कलाकारों तथा कुछ शिक्षकों ने क्रांस मैदान में पहली बार रामलीला का मंचन कराया। क्रास मैदान में पहली बार रामलीला का मंचन स्थानीय लोगों के लिए बहुत बड़ा आयोजन था। रामलीला देखने के लिए उमड़ी भीड़ ने यह बता दिया कि बाजोरिया की यह कोशिश मुंबई में रामलीलला के मंचन के लिए एक मील का पत्थर ही साबित होगी और हुआ भी यही हर साल क्रास मैदान पर रामलीला देखने वालों की संख्या बढ़ती चली गई। भगवान राम के प्रति आदर रखने वाली श्री आदर्श रामलीला समिति की ओर से मंचित होने वाली रामलीला को देखने के लिए लोग इस कदर लालायित रहते थे कि रामलीला शुरू होने के घंटों पहले लोग मैदान में अपनी जगह सुरक्षित कर लेते थे।
जैसे-जैसे रामलीला देखने वालों की संख्या बढ़ती गई, वैसे-वैसे इसके आयोजन करने वालों की संख्या में भी वृद्धि होती चली गई। मुंबई तथा ठाणे जिलों में होने वाली रामलीला तथा रामलीला आयोजन समितियों के बारे में यही बात करें तो कई ऐसी समितियां है, जो काफी समय से रामलीला का मंचन करती आ रही है। मंहगाई तथा आधुनिकता के वर्तमान दौर में वंचित की जाने वाली रामलीला के स्वरूप में परिवर्तन तो काफी हुआ है, पर यह बात तो आज भी स्वीकार की जाती है कि राम का जीवन बहुत श्रेष्ठ व आदर्श था। आधुनिकता के दौर में की रामलीला का मंचन जारी रहना ही यह बताता है कि भगवान राम के जीवन से भारतीय जन-मानस कितना निकट से जुड़ा हुआ है। भगवान राम का आदर्श उनके समय में तो था ही, आज भी है और कल भी रहेगा। अगर हम मुंबई-ठाणे में होने वाली रामलीला मंचन समिति की ओर दृष्टि डालें तो एक ऐसी लंबी सूची तैयार हो जाएगी, जहां वर्तमान में रामलीला का मंचन किया जाता है। अखिल भारतीय मानस समिति (शहाड), आजाद कला निकेतन (ठाणे), नवयुवक उत्कर्ष मंडल (ठाणे), नवी मुंबई रामलीला समिति (वाशी), आदर्श रामलीला समिति (कल्याण), श्री रामलीला मंडल (उल्हासनगर-3), रामलीला मंडल पार्क साईड (विक्रोली), नागरिक सेवा समिति (काजूपाडा, भांडुप), रामलीला समिति (भांडुप), अवध रामलीला समिति (भांडुप), रामलीला महोत्सव (घाटकोपर), सार्वजनिक रामलीला समिति (पवई), नूतन रामलीला मंडल (हनुमान मंदिर, खार), श्री नारायण प्रचार समिति (जुहू), प्रभादेवी रामलीला मंडल (प्रभा देवी), श्री आदर्श रामलीला समिति (शिवाजी पार्क, दादर), श्री रामलीला प्रचार समिति (मालाड पश्चिम), श्री रामलीला समिति (मालाड, पूर्व), श्री रामलीला मंडल (मालाड, पूर्व), श्री रामलीला प्रचार समिति (मालाड, पश्चिम), श्री रामलीला मंडल (कुरार विलेज, मालाड), अखिल भारतीय सार्वजनिक रामलीला समिति (गोरेगांव), श्री कृष्ण रामलीला समिति (कृष्ण नगर, जोगेश्वरी), श्री रामलीला समिति (विरार), मानव विकास समिति (साकीनाका), महाराष्ट्र रामलीला सेवा समिति (साकीनाका), श्री मर्यादा पुरुषोत्तम रामलीला समिति (चेंबूर), देवदर्शन रामलीला समिति (चेंबूर), श्री आदर्श रामलीला समिति (चौपाटी), साहित्य कला मंच (आजाद मैदान), रामलीला सेवा केंद्र (क्रास मैदान), महाराष्ट्र रामलीला मंडल (आजाद मैदान) की ओर से रामलीला का मंचन कराया जाता आ रहा है। 1964 में आदर्श रामलीला समिति की स्थापना के बाद रामलीला का मंचन लगातार सफलता के सोपान चढ़ता चला गया। श्री आदर्श रामलीला समिति में संस्थापक सदस्यों में एस. वी. जपकर, विनोद गुप्ता, जुग्गीलस्त पोद्दार, जुगल किशोर बंसल, रमेश बैस का समावेश था। इस समिति के संस्थापक मंत्री के रूप में विनोद गुप्ता की नियुक्ति गई। शिवकुमार भुवालका तथा शोमनाथ मिश्र संस्थापक उपाध्यक्ष रहे। कई गणमान्य लोगों की देख-रेख में शुरू हुई रामलीला आज भी मंचित की जा रही है। क्रास मैदान, शिवाजी पार्क, गिरगांव चौपाटी में रामलीला का मंचन होना यही बताता है कि मायानगरी में रामलीला देखने वालों की कमी नहीं है। 1971 में क्रास मैदान, 1973 में कॉटन ग्रीन, 1976 में चेंबूर और 1977 में वडाला में रामलीला के मंचन का श्री गणेश हुआ।

राम का किरदार निभाने वाले को
मिलता है सबसे ज्यादा सम्मान

रामलीला के मंचन के लिए 1964 से ही उत्तर प्रदेश के मथुरा, फैजाबाद, आगरा, इलाहाबाद, वाराणसी जिलों के साथ-साथ मध्यप्रदेश, राजस्थान से रामलीला मंडलियों को मुंबई आमंत्रित किया जाने लगा था। इन मंडलियों के दक्ष कलाकार इतना उम्दा अभिनय करते थे कि देखने वाले दंग रह जाते थे। रामलीला कलाकारों की राजधानी कही जाने वाली मथुरा नगरी के कलाकार हर साल शारदीय नवरात्र के मौके पर होने वाली रामलीला में यहां आते हैं और अपनी कला से मुंबई वासियों को आनंदित कर देते हैं। मथुरा की सरजमीं से आए कलाकार ज्यादातर भगवान श्रीराम का अभिनय करते हैं। भगवान राम का किरदार निभाने वाले कलाकार को मिलता है सबसे ज्यादा सम्मान। लोग इन्हें भगवान श्रीराम का प्रतिरूप मानकर नमन करते हैं। 1999 में गिरगांव में मंचित की गई रामलीला में अनंत रामलीला मंडल के प्रमुख वैजनाथ चतुर्वेदी का सम्मान किया गया था। वैजनाथ चतुर्वेदी ने कई बार भगवान श्रीराम का किरदार निभाया है। वैजनाथ चतुर्वेदी ही ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने आधुनिकता की ओर बढ़ रही पीढ़ी के बीच रामलीला का कुशलतापूर्वक मंचन कैसे जारी रखा जा सकता है, इस बात की तरफ निरंतर ध्यान दिया, इसी कारण देश की आधुनिक नगरी में स्थान प्राप्त मुंबई में रामलीला का मंचन हर वर्ष बड़ी शान से किया जाता है। 1999 में ही शिवाजी पार्क में भी रामलीला का मंचन किया गया था। बदलते दौर में रामलीला पर आधुनिकता की छाया जरूर नजर आने लगी पहले कुछ हजार खर्च करके मंचित की जाने वाली राम लीला कालांतर में लाख रूपए खर्च करके होने लगी और आने वाले समय में रामलीला मंचन में करोड़ों की राशि खर्च होने लगे तो इसमें कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। चौपाटी में 1999 में श्री आदर्श रामलीला समिति की ओर से मंचित की गई रामलीला में अनंत रामलीला मंडल (मथुरा) के कलाकारों ने दर्शकों का मन जीत लिया था। मंडल के अध्यक्ष वैजनाथ चतुर्वेदी आदर्श रामलीला के मंचों से 1956 से जुड़े, उन्होंने इस मंच से भगवान राम के किरदार को निभाया है। श्री गोपाल रामलीला मंडल की ओर से लगभग पांच दशक से रामलीला का मंचन किया जा रहा है। आकाशवाणी कलाकार हर देव चतुर्वेदी के विशेष प्रयासों से शिवाजी पार्क रामलीला मंडल निरंतर प्रगति की ओर बढ़ता चला गया। हरदेव चतुर्वेदी को रामलीला के मंच पर केवट की भूमिका निभाने में विशेष रूचि रही हैं, इसीलिए उन्होंने इसी किरदार को सफलतापूर्वक निभाने में अपना पूरा दम-खम लगाया। हर देव चतुर्वेदी के सुपुत्र सुखदेव चतुर्वेदी भी मुंबई में रामलीला मंचन में अपना विशिष्ट स्थान बनाने में सफल रहे हैं। सुखदेव चतुर्वेदी को संगीत का अच्छा ज्ञान है। चतुर्वेदी परिवार के एक अन्य सदस्य किशन चतुर्वेदी शिवाजी पार्क रामलीला मंडल के प्रमुख कलाकार हैं। किशन चतुर्वेदी ऐसे कलाकार हैं, जिन्होंने रामलीला के मंच पर राम, सीता, भरत, शत्रुघ्न जैसे किरदारों को निभाया है। इस का आशय यह है कि किशन चतुर्वेदी हर किरदार को निभाने में पारंगत हैं। संतोष चतुर्वेदी रामलीला के हर किरदार को निभाकर हरफनमौला कलाकार होने का गौरव हासिल किया है। लगभग 38 वर्षों से विनोद चतुर्वेदी रामलीला के मंचों का हिस्सा बनते रहे हैं। इन्होंने भी राम, जानकी (सीता), कैकेई, जनक, विभीषण के किरदार को सफलता पूर्वक निभाया है। हनुमान की भूमिका में सुशील शर्मा ने एक खास पहचान बनाई है। ये हनुमान का किरदार निभाने में अपना पूरा अनुभव उड़ेल देते हैं। जबकि ‘रावण’ का किरदार निभाने वाले प्रमोद चौधरी भी अभिनय के मामले में किसी से कम नहीं है। रामलीला के मंचों पर महिला पात्र की भूमिका निभाने वाले ऋतेश भाटिया दर्शकों को यह अच्छी तरह समझाने में सफलता पाई है कि ‘मैं भी कम नहीं हूँ।’ इसके अलावा बाल कवि राजेश दक्ष, कन्हैयालाल शर्मा तथा दिनेश चतुर्वेदी श्री रामलीला मंचों पर अलग-अलग भूमिकाएं प्रस्तुत कर चुके हैं।

रामलीला मंचन के शुरूआती दौर में महानगर के अनेक विद्यालयों के विद्यार्थियों के लिए निबंध, भाषण तथा अंताक्षरी प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता था। धीरे-धीरे रामलीला मंचन का रुप बदला और निबंध, भाषण, अंताक्षरी प्रतियोगिता के स्थान पर भक्ति गीतों पर आधारित कार्यक्रम होने लगे। रामलीला समिति ने बदलते दौर की रफ्तार को देखते हुए कुछ परिवर्तन किए गए और समिति के रजत जयंती वर्ष के अवसर पर रामायण के प्रसंगों पर आधारित एकांकी नाटक, कक्षा पांच से कक्षा सात तक के विद्यार्थियों के लिए सामान्य ज्ञान स्पर्धा का आयोजन किया जाने लगा।

विजयादशमी के दिन बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में रावण के विशाल पुतलों का दहन चौपाटी तथा शिवाजी पार्क में किया जाता है। रावण के पुतलों के दहन को देखने आने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि होती जा रही है। राम की विजय तथा रावण की पराजय को दर्शाने वाली रामलीला से बहुत कुछ सीखा जा सकता है। आदर्श चरित्र, आदर्श पुत्र, आदर्श पति तथा आदर्श ‘राजा’ के रूप में मर्यादा पुरुषोत्तम राम का चरित्र सदैव आदर्श ही बना रहेगा।

रामलीला मंचन करने वाली समितियों की संख्या में आए दिनों वृद्धि होती जा रही हैं और रामलीला का मंचन करने वालों को बढ़ती भीड़ को नियंत्रित करना मुश्किल होता जा रहा है। रामलीला महोत्सव समिति घाटकोपर, मानव विकास समिति (साकीनाका), समेत अन्य रामलीला समितियों की कोशिश यही होती है कि हर बार रामलीला का मंचन सफलता पूर्वक होगा। भगवान राम तो भारतीय जनता की रगों- रगों में बसे हुए हैं, उनके प्रति आस्था का जो रूप पहले था, निश्चय ही आज वह नहीं दिखाई दे रहा, पर रामलीला का मंचन करने वाले का इस बात की प्रसन्नता है कि वे हर हाल में भगवान राम के आदर्श जीवन को राम लीला के तौर पर प्रस्तुत कर रहे हैं। रामलीला का यह मंचन यहां रहने वाले हर व्यक्ति को भाता है और इसीलिए इसे देखने वालों की भीड़ साल पर साल बढ़ती ही जा रही है।
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