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नवरात्री: कोरोना काल में नारी की ममता और कर्तव्य का रुप

नवरात्री: कोरोना काल में नारी की ममता और कर्तव्य का रुप

by हिंदी विवेक
in कहानी, विशेष, साक्षात्कार, सामाजिक
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पौराणिक कथा के अनुसार जब एक राक्षस स्वर्ग और पृथ्वी में उत्पात मचाने लगा और उसे नियंत्रित करने के देवताओं के प्रयास विफल होने लगे तो नारी शक्ति यानी मां दुर्गा का आह्वान किया गया। मां दुर्गा ने 9 दिनों तक महिषासुर से युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध कर दिया। इस वर्ष शुरुआती 9 महीने कोरोना संक्रमण से संघर्ष में बीते और साल का दसवां महीना दुर्गा पूजा का है। यह आस्था का महापर्व है उम्मीद है जल्दी कोरोना पर विजय प्राप्त होगी और उम्मीद का आधार है नारी शक्ति, जो शुरुआत से ही कोरोना संक्रमण के खिलाफ संघर्ष में है संघर्ष कर रही है। नारी शक्ति ने अपने कर्म से उम्मीद की यह राह दिखाई है।

गोरखपुर की सिपाही आसिया बेगम लॉकडाउन के दौरान ड्यूटी के लिए निकलती थी तो पीछे मुड़कर नहीं देखती थी पर उनके अपनों की आंखें जरूर नम हो जाती थी। दरअसल सिपाही आसिया बेगम के दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। एक 6 साल का बेटा रिशु और 1 साल की बेटी फ्रूटी। बड़ा बेटा फिर भी थोड़ी समझदारी दिखाने लगा था पर छोटी बेटी को जब भी मां छोड़ती वह मचल जाती थी। वह मां के दूध के लिए रोती थी। पर मां आशिया उस वक्त उसे गोद तक में भी नहीं ले पाती थी। ड्यूटी के कारण उसे कई जगहों पर जाना होता था लिहाजा सावधानी बरतते हुए आशिया अपने बच्चों से दूर रहती थी। बच्ची मां के लिए बिलक बिलक कर रोती मगर मां ने खाकी वर्दी की जिम्मेदारी को प्राथमिकता में रखा। आसिया ने कहा कि बच्ची को परिवार के दूसरे लोग भी संभाल लेंगे पर अभी मेरी जरूरत बाहर हालात को संभालना है।

ऐसा ही कुछ हाल सिपाही रीना उपाध्याय का भी था। उनके दो बच्चे थे एक 3 साल की बेटी और 1 साल का बेटा। दोनों जब भी मां को देखते तो गोद में आने के लिए मचल जाते लेकिन रीना भी कर्म आगे मजबूर थी। रीना बताती हैं कि उनके लिए इस उम्र में के बच्चों को खुद से दूर रखना बहुत मुश्किल था पर लॉकडाउन के दौरान बिलखते बच्चों से मुंह मोड़ ना पड़ता था।

लंबे समय से चले आ रहे लॉकडाउन और लगातार सामने आ रही नकारात्मक खबरों ने अपनों की सलामती को लेकर मन में उलझाने बढ़ाई, तो महिलाएं चैन से कैसे बैठती? कुछ ऐसा ही चेन्नई के कन्नई नगर में रहने वाली महालक्ष्मी, हेमलता, ओसाना और वलार के साथ हुआ। इन महिलाओं को घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं, अब करें तो क्या करें? ऐसे में उन्होंने पुलिस से इजाज़त लेकर अपनी गली को करोना मुक्त करने का प्रयास किया। महालक्ष्मी बताती है जब हमें पता चला कि हमारे इलाके में एक व्यक्ति कोरोना से संक्रमित हो गया है तो वाकई हमारी नींद उड़ गई थी। घर में तो नीम, हल्दी व संक्रमण रोधी उत्पादों की मदद से सफाई चल रही थी पर जरूरी सामान लाने के लिए गली में निकले बिना कैसे काम चले। तब हम ने पुलिस से इजाजत ली और पानी में नीम के पीसे पत्ते, हल्दी पाउडर और संक्रमण रोधी उत्पाद डालकर मिश्रण तैयार किया और खुद झाड़ू लेकर गली की सफाई पर निकल पड़े।

लॉक डाउन की वजह से जब पटना की झुग्गी झोपड़ियों में भोजन के संकट की खबरें सामने आने लगी तो पटना की अमृता सिंह और पल्लवी सिन्हा ने स्लम एरिया में खाना और राशन सामग्री पहुंचाना शुरू कर दिया जिससे कोई भी भूखा ना रहे। आयुष विभाग में मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर वर्तिका की दो बेटियां हैं। दूसरी बच्ची का जन्म तो इसी वर्ष 23 अप्रैल को हुआ। गर्भावस्था के आखिरी महीने तक उन्होंने समाज को सेवा दी, डॉक्टर वर्तिका का कहना था कि परिस्थिति ही ऐसी थी कि अपने दर्द से बड़ा अपना फर्ज नजर आता था। इसी तरह आईएएस श्रीजना गुममाला की तस्वीर सुर्खियों में आई जब वे 22 दिन के बेटे के साथ ऑफिस में तैनात दिखी। राज्य के मुख्यमंत्री से बात करने के बाद श्रीजना गुममाला 6 महीने के मातृत्व अवकाश पर गयी और विशाखापट्टनम के नगर निगम आयुक्त की जिम्मेदारी संभाल ली।

दिल्ली में जब कोरोना संक्रमण का कहर बढ़ा तो सड़कों पर मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे के पास बुर्के में ढकी एक महिला ने सभी का ध्यान आकर्षित किया। इमराना सैफी नाम की यह महिला अपने साथ सैनिटाइजर टैंक लेकर घूमती थी। महिला ने अपने साथ तीन अन्य महिलाओं की टीम भी तैयार की थी।यह टीम आसपास के इलाकों के सभी धर्मों के इबादत स्थल में सैनिटाइजेशन का काम बिना हिचक कर रही थी। वहीं दिल्ली की 27 वर्षीय पैरामेडिकल स्टाफ रितिका के परिवार वालों ने उसे दो टूक में कह दिया था कि जॉब करो या परिवार चुनो। तुम्हारी जॉब की वजह से परिवार के स्वास्थ्य को खतरे में नहीं डाला जा सकता। उस वक्त रितिका ने पारिवारिक जीवन को दांव पर रखकर ड्यूटी को चुना था।

कोरोना संक्रमण का यह दौर बेशक कष्टकारी है पर यह भी सच है कि यह हमें जिंदगी के कई पाठ पढ़ा रहा है। हमने स्वच्छता, आत्मनिर्भरता, अनुशासन और किफायत की अहमियत समझी। रांची के हटिया रेलवे स्टेशन पर जब महिला एएसआई ने लॉकडाउन में घर लौटते हुए प्रवासी श्रमिक के बच्चे को दूध के लिए बिलखते देखा तो वह तुरंत स्कूटी उठाई और अपने बच्चे के लिए घर में रखा दूध बोतल में भरकर ले आयी। क्या देवी के नौ रूपों की तरह यह मां का दसवां रूप नहीं है! जीती जागती मां जो किसी को रोता नहीं देख सकती, कहीं कष्ट बर्दाश्त नहीं कर पाती। जो हमेशा अपना आंचल आंसू पोछने के लिए बढ़ाती है। जो सुख देने के लिए तत्पर रहती है।

मां दुर्गा का यह साक्षात रूप लॉकडाउन के दौरान वास्तविक जीवन में खूब दिखा। दरकार है तो बस इस रूप को पहचानने की, उनका सम्मान करने की, और कोशिश करने की कि यह सिलसिला थमें नहीं। तो क्यों नहीं इस बार हम माता के दसवें रूप यानी आसपास की नारी शक्ति को नमन करें। ओशो ने कहा है, मूर्ति तो महज एक सेतु है उसके गुणों को हम जितना अपने अंदर समाते जाएंगे उतना ईश्वर के साथ हमारी दूरी खत्म होती जाएगी। तो आइए इस साल मां के दसवें रूप की आराधना करें उनके काम को सम्मान दें। यह आराधना यकीन फलदायक होगी। बच्चों में संस्कार का निर्माण करेगी और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक मिसाल होगी।

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