बच्चों की भावना पर ध्यान देना जरुरी

आज के गतिमान तथा ऐहिक की गर्त में खोए हुए तांत्रिक जगत में हम बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक चीजें, मोबाइल्स और कम्प्यूटर तुरन्त उपलब्ध करा देते हैं। लेकिन क्या उन्हीं चीजो के साथ आनेवाले अन्य संकटों को अनदेखा करने से बनेगा? फेसबुक, मोबाईल संदेशों के माध्यम से बच्चे घरेलू संस्कारों की लक्ष्मण रेषा लाधकर दूरतक पहुँच जाते हैं। कच्ची उम्र में गैरजरूरी बातों की अनुभूति उन्हें मिलती है। ऐसे अवसरपर पालकों का जागरूक रहना बडा महत्त्व रखता है। हम सभी अपने बच्चों के हित में असीम संपत्ति जमा करते हैं। उस हेतु नौकरी करते हैं, कष्ट सहते हैं, फिर भी क्या उनकी भावनिक एवं शारीरिक गरजों की ओर ध्यान देते हैं? उनकी ओर ध्यान देने के लिए जरूरी समय क्या हमारे पास है? उसके अतिरिक्त क्या हम उनके बारे में भावुक हैं?

पालकों, जरा सुनिए तो-

माँ-बाप बनने का सपना तो बहुत सारे लोग देखते हैं। उसी में अपने जीवन की सार्थकता होती है, ऐसा आम लोगों का सामाजिक एवं सांस्कृतिक गतंव्य होता है। फिर भी बच्चों की परवरिश यह हम मानते हैं उतनी आसान बात नहीं है। वह एक जिम्मेदारी होती है। बच्चों का पालन बडी सावधानी से और विचारपूर्वक करना होता है। एक सक्षम एवं प्रभावशाली पालक बनने के लिए संवेदनक्षम तथा प्रगल्भ होना आवश्यक होता है। बच्चों की परवरिश जिस ढंग से की जाती है, उसका बडा भारी प्रभाव आगे चलकर उनके भविष्य पर होता है। पालकत्व की सकारात्मक अथवा नकारात्मक धारणा के फलस्वरूप बच्चों का समूचा जीवन बनता है। यह भी सही कि, परिपूर्ण अथवा आदर्श मातापिता कोई भी हो नहीं सकते। आखिर हम सब गलतियाँ करनेवाले लोग हैं। बहुत सी सामाजिक रूढियों को हम गृहीत मानक चलते हैं। इसी लिए बच्चों का पालन कैसे करें, इसे लेकर हम खास कुछ न सोचते बच्चों का पालन करते हैं। लेकिन एक अच्छा पालन माने बच्चों को हर तरहसे पोषक एवं सुरक्षित वायुमंडल में रखते आगे बढाना अभिप्रेत है। बच्चों को जीवन में से छोटी-छोटी बातों का अर्थ समझा देना, जैसे कि बडों का आदर करना, एक दूसरे की मदद करना, स्वयं अपनी एक विधायक प्रतिमा बनाना तथा अपने सम्मान की रक्षा करना आदि। जीवन के मूल्यों का अनुसरण करते अपना विकास करने बच्चों का मार्गदर्शन करना, यह उनके ऊपर प्रेम करने जितना ही महत्त्वपूर्ण होता है।

आज के गतिमान तथा ऐहिक की गर्त में खोए हुए तांत्रिक जगत में हम बच्चों को इलेक्ट्रॉनिक चीजें, मोबाइल्स और कम्प्यूटर तुरन्त उपलब्ध करा देते हैं। लेकिन क्या उन्हीं चीजों के साथ आनेवाले अन्य संकटों को अनदेखा करने से बने गा? फेसबुक, मोबाईल संदेशों के माध्यम से बच्चे घरेलू संस्कारों की लक्ष्मण रेषा लांधकर दूरतक पहुँच जाते हैं। गैरजरूरी बातों की अनुभूति कच्ची उम्र में ही उन्हें मिलती है। ऐसे अवसरपर पालकों का जागरूक रहना बडा महत्त्व रखता है। हम सभी अपने बच्चों के हित में असीम संपत्ति जमा करते हैं। उस हेतु नौकरी करते हैं, कष्ट सहते हैं, फिर भी क्या उनकी भावनिक एवं शारीरिक गरजों की ओर पर्याप्त ध्यान देते हैं? उनकी ओर ध्यान देने के लिए जरूरी समय क्या हमारे पास होता है? उसके अतिरिक्त क्या हम उनके बारे में भावुक हैं? बालक-पालक नाता असल में बडा ही संवेदनशील होना चाहिए, लेकिन आज उसे गृहीत माना जाता है। हम सभी को मनुष्य के नाते एक बात का ख्याल रखना चाहिए कि, अपने बच्चे, ये अपने बच्चे होने के पूर्व इस संसार में से एक स्वाधीन जीव हैं और ये स्वाधीन जीव अपना शारीरिक अस्तित्व लेकर जैसे जीते हैं, वैसे ही उनका अपना एक मानसिक अस्तित्व भी होता है। उस मानसिक अस्तित्व को पालक होने के नाते क्या सही माने में हम न्याय देते हैं? यह प्रश्न हर एक पालकको खुदसे पूछना चाहिए। बच्चे माने अपने हाथ में रास होनेवाले घोडे नहीं होते, जिससे हम उनकी बागडोर अपने हाथों रख सकें।

बच्चों को आगे बढने के सुनहरे मौके देने चाहिए इससे कोई असहमत न होंगे। फिर भी हमें बच्चों को उनके जीवन में अग्रसर होने जैसे उनकी मदद करनी चाहिए, वैसे ही वे गलत बर्ताव न करें या गलत रास्ते से आगे न बढें, इसकी ओर भी ध्यान देना होगा। आज बच्चों को आधुनिक युग में जितना आगे बढना है, उतना ही उन्हें बहाव के साथ बहते जाने से खुद को बचाना है। इस गतिमान जगत में वे अगर अपने आप को सम्हाल न सके तो बहुत सारी मानसिक एवं आचरण की समस्याएँ खडी हो सकती हैं। इसीलिए बच्चों को नाते रिश्तों के महत्त्व का एहसास होना चाहिए। शिक्षा की महत्ता का एहसास होना चाहिए। बच्चों के पालन पोषण का कोई एकाध शास्त्रीय तत्त्व शायद हमारे हाथ न लगे। जादू की कोई डंडी घुमाकर यह बननेवाला नहीं है। फिर भी संवेदनशील माता-पिता को अपना बालक सही रास्ते पर से आगे बढ रहा है या नहीं, इसका भान होना चाहिए। बदलते जमाने की और जमाने के अनुरूप बदलनेवाले बच्चों की जरूरतों का सही भान पालकों को होना यह आज की गरज है।

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