कपड़ा उद्योग जैसा नहीं है दूसरा कोई उद्योग- महेश पाटोदिया एम.डी., पाटोदिया विविंग मिल्स प्रा. लि.

केंद्र सरकार और राज्य सरकार की जो योजना है वैसी योजनाएं पहले कभी नहीं बनी। इतनी बढ़िया योजनाएं सरकार ला रही है मगर उसे अमल में लाने में अड़चन आ रही है। सरकार ने अनेक प्रकार की सहुलियते देकर अपना काम कर दिया है। उद्योग-व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी, इलेक्ट्रिसिटी, निर्यात में सुविधाएं, ब्याज दर में कमी आदि सरकार की तरफ से ठोस पहल की गई है लेकिन सरकारी बाबूओं की ओर से बहुत तकलीफ है, इसका समाधान होना चाहिए।

 

वस्त्र परंपरा के संबंध में आपके क्या विचार है?

सदियों से भारत में वस्त्र परंपरा चली आ रही है, हमारे दैनिक जीवन में कपड़ों का बड़ा महत्व है। कपड़ों की एक पूरी व्यवस्था है और बिना कपड़ों के तो व्यवस्था चल ही नहीं सकती अत: जब तक यह मानव सृष्टि है तब तक वस्त्र परम्परा का नित नूतन अविष्कार और विकास होता रहेगा। इसलिए वस्त्र उद्योग हमेशा दुनिया में प्रगति पथ पर आगे बढ़ता रहेगा।

वस्त्र उद्योग से आप कब से जुड़े हुए हैं?

1971 से मैं कपड़ा उद्योग से जुड़ा हुआ हूं। मेरे पिताजी 1958 में मालेगांव आए थे। उन्होंने कपड़ा उद्योग में कदम रखा और उनके साथ में 1971 से मैं भी कपड़ा उद्योग से जुड़ा। पहले हमारी कपड़े की पावर लूम थी, हम कपड़ा बनाते थे। फिर 1980 में यार्न उद्योग शुरू किया। यार्न  का उद्योग हमने बड़े स्तर पर चलाया, फिर हमने स्पिनिंग मिल चलाने का काम शुरू किया। यह काम करते करते हमें लगा कि हमें जिनिंग का भी काम शुरू करना चाहिए क्योंकि उसके लिए बड़ी मात्रा में कॉटन की आवश्यकता पड़ती थी तो हमने जिनिंग का उद्योग चालू किया। इसे चालू करने के बाद हमें लगने लगा कि हमारे पास सब कुछ हो गया है तो हमें कपड़ा बनाने के लिए लूम लगाना चाहिए तो हमने ओटो लूम लगाई। यह लूम लगाने के बाद हमारे आसपास से जुट के कपड़े की डिमांड आने लगी तो हमने जुट का कपड़ा बनाना चालू कर दिया। कॉटन भी चला रहे थे और अब जुट भी चालू कर दिया। जुट का काम करते-करते उसमें लगने वाला यार्न  वह हमको कोलकाता, बांग्लादेश से मंगवाना पड़ता था। उसमें हमें बड़ी असुविधा होती थी। फिर हमने सोचा कि क्यों ना हम अपनी स्पिनिंग मिल लगा ले, अब हमने जुट की स्पिनिंग मिल लगाने का भी तय कर लिया है। अब आगामी एक माह में हमारे यहां जुट की स्प्रिंग मिल चालू हो जाएगी। कपड़ा उद्योग में मेरा यह सहयोग और योगदान रहा है। मालेगाव में कपड़ा उद्योग के हर क्षेत्र में हमने काम किया। हर काम को एक ऊंचाई पर ले जाकर उसमें सफलता पाई। वस्त्र उद्योग में पिछले 50 सालों से रहने के कारण मेरा आकलन है कि वस्त्र उद्योग के जैसा कोई अन्य उद्योग नहीं है।

आप गत 50 सालों से वस्त्र उद्योग में हो आपका वस्त्र द्योग के संदर्भ में आकलन क्या है?

वस्त्र उद्योग से जुड़ने के बाद मेरा अखिल भारतीय स्तर पर अच्छे-अच्छे उद्योगपति और व्यापारी से संपर्क रहा। जब मैं स्पिनिंग मिल का यार्न  बेचता था, उस के माध्यम से पूरे भारतवर्ष में स्पिनिंग मिल के मालिकों से मेरा संपर्क हुआ। हम सभी मिलकर आपसी सहयोग से काम करते रहे। मिस मैनेजमेंट की वजह से सारी दिक्कतें आ रही है। मेरा अनुभव यह रहा कि इस धंधे में से लोग पैसा जिससे मैंने ज्यादा कमाया तो वही काम ध्यान देकर करना चाहिए, जिससे मेरी कमाई हो रही है। इन्हीं बातों पर मेरा हमेशा उनको सुझाव रहता था मगर जो प्लानिंग होनी चाहिए थी वह कभी नहीं रहती थी। हिंदुस्थान में कपड़ा उद्योग में जिन लोगों ने प्लानिंग के साथ काम किया है, वह लोग कहां से कहां पहुंच गए। कपड़ा उद्योग में कोस्टिंग, बिजली और कर्मचारी यह तीन बाते महत्वपूर्ण है। वर्कर कब टिकता है अपने पास?, जब अपना मैनेजमेंट अच्छा होता है। जो हम प्रोडक्ट बनाते हैं उसकी क्वालिटी यदि हम उसकी क्वालिटी ए ग्रेड की बनाते है तो जो वर्कर हमारे यहां काम करता है उसको मेहनत कम करनी पड़ती है और वह टिका रहता है। यदि हमने ए ग्रेड का बेहतरीन प्रोडक्ट बनाया तो सामने वाले को माल लेना ही पड़ता है। जब हम पूरी निष्ठा से काम करते हैं तो उससे जुड़ने का अन्य लोग भी प्रयास करते हैं और जितना ज्यादा लोग जुड़ेंगे उतना प्रॉफिट ऑफ मार्जिन अपना बढ़ेगा। यह हमेशा मैंने उन लोगों को बताया। मैंने भी उन्हें कभी निराश नहीं किया और ना ही कभी उन्हें मिस गाइड किया।

कपड़ा उद्योग के अनेक क्षेत्रों में आपने काम किया है, वर्तमान समय में आप किन-किन क्षेत्रों में काम कर रहे हैं?

प्रमुख रूप से मैं जिनिंग चलाता हूं, जिनिंग से जो धागा तैयार होती है उससे मैं स्पिनिंग चला रहा हूं, स्पिनिंग मिल से जो धागा बनता है उसकी में ट्रेडिंग करता हूं। उससे मैं कपड़ा बनाता हूं, फिर उसे बेचता हूं। मेरे पास बहुत ज्यादा जमीन नहीं है वर्ना मैं खेती भी करता और अधिक मात्रा में कपड़ा का उत्पादन करने हेतु खेती में कपास भी लगाता।

आपके कार्य की विशेषता क्या है?

मैं एक बात जानता हूं, मैंने यह बात पहले भी कहा, अब स्पष्ट करता हूं। मैंने अगर 100 लगाए तो साल में मुझे 50 मिलना चाहिए। दूसरी बात जो प्रोडक्ट मैंने बनाया है, उसे लोगों ने लेना ही चाहिए। लोगों को लगना चाहिए कि वह प्रोडक्ट के बिना मेरा काम नहीं चलेगा। तीसरी बात, मैं बहुत ही निष्ठा पूर्वक काम करता हूं। मैंने किसी को सुबह के समय 100 में माल बेचा और शाम के समय दूसरे को मैं 99 रूपये में माल बेचा तो सुबह वाले के लिए भी मैं 99 का ही भाव लगाता हूं। यानी की एक दिन में मैं 2 भाव की दुकानदारी नहीं करता हूं। इसलिए लोगों का मुझ पर बड़ा विश्वास है। क्वालिटी का तो मैं इतना ध्यान रखता हूं कि अगर किसी कारण से क्वालिटी खराब बन गई तो मैं सामने वालों से बोलता हूं कि भाई ऐसा-ऐसा बना हुआ है, यह सैंपल ले लो और इसका क्या भाव देना चाहिए वह दे दो। मैं क्वालिटी के अंदर कहीं समझौता नहीं करता हूं। क्वालिटी ही मेरा ब्रांड है और यही मेरी विशेषता है, इसलिए मैं क्वॉलिटी मेंटेन करता हूं।

कोरोना संकट काल में आपके सामने कौन सी कठिनाई आई?

कठिनाइयां कुछ भी नहीं है, यह कठिनाइयां लोगों की बनाई हुई उपज है। मैं मालेगांव की बात बताता हूं, बाहरी लोगों से संपर्क नहीं हो पाया, कोरोना के कारण मैंने संपर्क को कम कर दिया है इसलिए मैं बाहर के बारे में नहीं बता सकता लेकिन मालेगांव के अंदर कोरोना काल  स्वर्णिम अवसर बन गया। बीते 10 सालों में इतनी अच्छी मार्जिन के साथ काम मालेगाव में कभी नहीं हुआ। इतना अच्छा काम चला मालेगांव में। इसलिए मुझे नहीं लगता कि कोरोना की वजह से कोई कठिनाई हुई होगी। मैं आपको फिर कहता हूं कि कपड़ा उद्योग जो है वह समुद्र की गहराई जैसा है। जैसे समुद्र की गहराई का थाह पाना मुश्किल है, वैसे ही कपड़े की गहराई भी हर कोई नहीं समझ सकता है, कपड़े में इतनी बड़ी गहराई है। बस उस गहराई को जानने के लिए प्रयत्न करना पड़ता है। निष्ठा पूर्वक परिश्रम करना पड़ता है। वह किसी को करना नहीं है तो वह लोग तो शिकायतें ही करेंगे।

वर्तमान समय में मालेगांव वस्त्र उद्योग किस स्थिति से गुजर रहा है?

मैंने कहा ना कि बहुत अच्छी स्थिति में है, कोई तकलीफ नहीं है। उसका कारण मैं बताता हूं। मालेगांव के लोग बैंक से लोन नहीं लेते हैं। खुद के फंडिंग से काम करते है। या जहां जरूरत होती वहां पर वह उधार लेते हैं। कपड़ा बनाते समय वह अपनी क्वालिटी पर बहुत अधिक ध्यान देते हैं। मालेगांव में जो कपड़ा बनता है वह कपड़ा पूरे हिंदुस्थान में और कहीं नहीं बनता है। इसलिए इस कपड़े की डिमांड हमेशा बनी रहती है। यहां से अहमदाबाद, जयपुर आदि जगह पर कपड़ा जाता है। कपड़े की डिमांड बारहों महीने रहती है, उसमें से 2 महिना ऐसा होता है जिसमें नुकसान भी होता है लेकिन वह तो हर उद्योग धंधे में होता है। उतना रिस्क तो उठाना ही पड़ता है। कुल मिलाकर यहां का काम सबसे बेहतरीन है।

मालेगांव वस्त्र उद्योग से जुड़े उद्योगपति-व्यापारी राष्ट्रीय बैंकों से कर्ज क्यों नहीं लेते हैं?

देखिये, राष्ट्रीय बैंकों की सबसे बड़ी तकलीफ क्या है? उनकी कोई निष्पक्ष व्यवस्था नहीं है। जो आदमी उनको खुश करता है उनका तो वह काम करते हैं, जो उनको खुश नहीं करता उसका वह काम नहीं करते। वह बहुत परेशान करते हैं, उसके लिए सरकार को यह करना चाहिए कि बैंको की कार्यप्रणाली पारदर्शी बना देनी चाहिए। अभी मोदी जी की जो भी योजनाएं आ रही है, वह बहुत अच्छी आ रही है। यदि कोई उनकी योजना पर टीका टिप्पणी करता है तो उसमें तो मैं कुछ नहीं कर सकता मगर उनकी योजना बेहतरीन है। जैसे कि मोदी जी ने 1 लाख करोड़ बांटा, 40 करोड़ आदमी को पैसा बांटा तो किसी भी व्यक्ति को किसी अधिकारी के पास जाना नहीं पड़ा, उन के चक्कर नहीं लगाने पड़ें। किसी ने शिकायत नहीं की कि मोदी जी मुझे यह अधिकारी पैसा नहीं दे रहा है। उन्होंने सीधे लोगों के बैंक खाते में जमा कर दिया। सरकार की जितनी योजनायें सीधे इंटरनेट से लिंक हो गई है, इस तरह की लिंक बैंकों की भी बननी चाहिए। मान लो कि यदि आपको बैंको से कुल मिलाकर 25 कागजपत्र चाहिए तो 25 कागजपत्र आपको देने ही चाहिए। मैं उसके विरोध में नहीं हूं मगर बिना मतलब परेशान करना यह ठीक नहीं है। इसके वजह से बहुत लोग परेशान होते हैं। फिर लोग कहते कि छोड़ो यार बैंकों के चक्कर काटने के बजाय अपने पैसों से या अन्य जगह से पैसे लेकर काम चलाओ।

क्या केंद्र सरकार की योजनायें अमल में आ रही है?

मैं आपको बताता हूं यदि वस्त्र उद्योग की सही बात सही तरीके से लोगों के पास पहुंचे तो कपड़ा उद्योग जैसा कोई दूसरा उद्योग धंधा नहीं है। केंद्र सरकार और राज्य सरकार की जो योजना है वैसी योजनाएं पहले कभी नहीं बनी। इतनी बढ़िया योजनाएं सरकार ला रही है मगर उसे अमल में लाने में अड़चन आ रही है। सरकार ने अनेक प्रकार की सहुलियते देकर अपना काम कर दिया है। उद्योग-व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी, इलेक्ट्रिसिटी, निर्यात में सुविधाएं, ब्याज दर में कमी आदि सरकार की तरफ से ठोस पहल की गई है लेकिन सरकारी बाबू की ओर से बहुत तकलीफ है, इसका समाधान होना चाहिए। इसके समाधान के लिए कई जगह पर आयोजन होना चाहिए, चर्चा सत्र होना चाहिए, उस चर्चा के माध्यम से सरकार तक सारी बातें पहुंचनी चाहिए।

उद्योग को बढ़ावा देने हेतु सरकार को कौन से अहम् कदम उठाने चाहिए?

जैसे महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, गुजरात कोटन ग्रोवर्स राज्य है, जितने भी कोटन ग्रोवर्स राज्य है, उसमें हर राज्य में पांच से सात प्रकार के प्रोजेक्ट लग सकते हैं। किसान की जो रेट कम मिलने की समस्याएं है, वह इससे खत्म हो जाएगी, किसानों को रेट अच्छे मिलेंगे। सरकार को उद्योग व्यवसाय को बढ़ावा देने के लिए इलेक्ट्रिसिटी बिल फिक्स कर देना चाहिए। सरकार को 3 रुपये पर यूनिट इलेक्ट्रिसिटी बिल फिक्स कर देना चाहिए। केंद्र सरकार बिजली ढाई रूपये में राज्य सरकार को देती है। फिर राज्य सरकार किसी को 3 रु. में देती है तो किसी को 4 रु. में देती है, किसी को 7 रु. में देती है तो किसी को 9-11 रु. में देती है। यह सब उनकी मनमर्जी है। इसके अलावा मजदूरों के लिए कोई ठोस नीति बनानी चाहिए, जिसमें वर्कर और उद्योगपति दोनों का हित हो ताकि दोनों के बिच का तालमेल भी बना रहे और आपस में उनमें किसी तरह का संघर्ष भी न हो। पिछले 15 सालों से व्यापारी सिंगल विंडो का विषय रखते आये है। मैंने सरकार से मांग की है कि सिंगल विंडो की व्यवस्था करे। अन्य जरुरी मामलों में भी दीर्घकालिक राष्ट्रीय नीति बनाने की आवश्यकता है।

क्या भारत का निर्यात विश्व में बढ़ सकता है?

जिन देशों में अपना माल निर्यात नहीं होता है उन देशों में निर्यात करने के लिए हमारे उद्योगपतियों को सरकार द्वारा प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए, जिससे हमारे देश का निर्यात व्यापक रूप से बढे। चीन क्या करता है? चीन बहुत बड़े रूप में अपने माल का उत्पादन करता है, इसलिए उसके माल का मूल्य बहुत कम आता है, अच्छी क्वालिटी बनती है। नई टेक्नोलोजी का उपयोग करने से अच्छा माल कम समय में तैयार होता है। इस ओर सरकार को ध्यान देना चाहिए। जो आज 3 से 4 % निर्यात कर रहे हैं, यह निर्यात 10-12% तक जा सकता है। हमारे लिए अच्छी बात यह है कि अब लोग चीन का माल लेना पसंद नहीं कर रहे है। आज पूरी दुनिया भारत को सम्मान एवं प्राथमिकता दे रही है। यदि हमने इस तरफ कदम बढ़ाए तो दुनिया स्वागत करने को आतुर है, इसका लाभ हमें निर्यात में होगा।

क्या कोरोना के कारण आपके सामने समस्या आई?

कोरोना के कारण मेरे सामने समस्या ही नहीं आई। समस्या नहीं थी ऐसी कोई बात नहीं थी। समस्या तो थी लेकिन मैंने चिंतन किया, कुल मिलाकर जितनी समस्याएं थी उसे मैंने नोट डाउन किया। उस पर मैंने 2 दिनों तक मंथन किया, कुछ विशेषज्ञ लोगों से इस संदर्भ में चर्चा की और फिर इस सारी समस्याओं का समाधान निकाला। उस समय जो चीज करना संभव नहीं था उसे मैंने नहीं किया, उसे छोड़ दिया। जिस चीज में मुनाफा नहीं होगा वह काम क्यों करना? मैं क्यों करूं? इसलिए वह काम मैंने छोड़ दिया। उदाहरण के रूप में मेरे पास यार्न  बनता था जिसे मैं बुरहानपुर, मालेगाव और इनचलकर में बेचता था। ट्रांसपोर्ट और पेमेंट की व्यवस्था नहीं थी इसलिए मैंने तत्काल निर्णय लिया कि केवल मालेगांव का ही माल बनाना चाहिए। मैंने बुरहानपुर और इनचलकर का माल बनाना बंद कर दिया। माल तो मेरा मालेगांव में ही था, मेरे पास ही था, इसलिए मुझे यकीन था कि आज नहीं तो कल 4 दिन में यह माल बिक जाएगा और आज वर्तमान समय की स्थिति यह है कि हमारे कपड़े की बहुत डिमांड है। कुछ समय में यह डिमांड और अधिक बढ़ेगी। हम जिन चलाते थे तो कोरोना के समय में मेरे आसपास के सभी जीने बंद थी लेकिन मेरी जीन चालू थी। मेरे लूम भी चले, मेरे लूम में जो कपड़ा बनता था उसे आस पास के व्यापारी ही ले लेते थे। यहां पर कोलकाता से माल आना बंद हो गया था इसलिए मेरा माल बिकता रहा। मैंने योजनाबद्ध तरीके से अपने काम को अंजाम दिया इसलिए मुझे समस्या नहीं आई।

मालेगांव का कपड़ा उद्योग नीचे की ओर गिरता जा रहा है, इसमें कितनी सच्चाई है?

देखिए मैं सही बात बताऊंगा, यह सब गलत बात है, ऐसा कुछ भी नहीं है। मालेगांव की उद्योग इंडस्ट्री बहुत अच्छी है और वह निरंतर विकास एवं प्रगति की ओर नित नई ऊंचाइयों को छू रही है। हम लोग आधुनिकता की ओर नहीं गए। पहले से अब मालेगांव की जीवन शैली में बहुत सुधार हुआ है। यह बात अवश्य है कि नई टेक्नोलॉजी के मामले में मालेगांव का विकास नहीं हुआ है। यह बात बिल्कुल सत्य है और मालेगांव वाले लोग करना भी नहीं चाहते हैं। इस दिशा में लोगों ने प्रयास किया था लेकिन वे इसमें सफल नहीं हुए इसलिए उन्होंने उसे छोड़ दिया और परम्परागत तरीके से ही वह व्यापार करना पसंद करते है।

आप अपने संस्थाओं का परिचय दीजिए?

हमारी संस्था का नाम है पटोदिया जिनिंग मिल प्रा. लि., पटोदिया जुट इंडस्ट्री प्रा. लि., कुल मिलाकर हमारा 300 करोड़ के आसपास का सेल है। इन्हीं के माध्यम से हम व्यापार उद्योग करते हैं।

आगामी 5 वर्षों में आप अपने उद्योग व्यापार को किस ऊंचाई पर ले जाना चाहते हैं और उसकी क्या कार्य योजना है?

2006 में मैंने टैक्सटाइल पार्क बनाने की कोशिश की थी, जब अंतिम चरण में काम आ गया तो मालेगांव में बम ब्लास्ट हो गया, मेरा काम रुक गया। फिर मैंने वह काम छोड़ दिया लेकिन मेरे दिल में वह कसक आज भी है। 150 एकड़ जमीन, मालेगांव से थोड़ी दूरी पर है। मेरा मानस यह है कि 3 हजार करोड़ का प्रोजेक्ट मैं एक ग्रुप बनाकर बनाऊं ऐसी मेरी इच्छा आज भी है। सरकार यदि हमें कुछ मदद करेगी तो बात बन जायेगी। हमें सरकार से कोई भी अनुचित मदद नहीं चाहिए। सरकार से हम बस इतनी मदद चाहते हैं कि हम जो काम करना चाहते हैं, उसमें बिना मतलब जो रुकावटें आती है, अड़चनें आती है, वह परेशानी नहीं आए, इतनी मदद हम सरकार से चाहते है। यदि ऐसा हो गया तो 3 हजार करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट हम डेढ़ साल में खड़ा कर देंगे।

टैक्सटाइल पार्क बनाने से उद्योग जगत को क्या लाभ मिलता है?

50 लोगों का एक ग्रुप बनाकर 50 से 70 एकड़ जमीन लेकर वहां पर टैक्सटाइल पार्क की स्थापना की जाती है। इसके लिए सरकार 50 करोड़ रु. देती है। यानी कि 50 करोड रु. आप डालो और फिर 50 करोड़ रु. सरकार देती है। सब लोग मिलकर टैक्सटाइल पार्क बनाओ और अच्छी क्वालिटी के कपड़े बनाकर उसका निर्यात करो। सरकार की यही मंशा होती है कि हमारे देश का निर्यात बढ़े इसलिए सरकार उद्योग जगत को सब्सिडी देकर प्रोत्साहन देती है।

आपके जीवन में ऐसा कौन सा टर्निंग पॉईंट आया जिसने आपकी जिंदगी बदल दी?

जिंदगी कांटो भरा सफर है, सभी को संघर्ष करना पड़ता है, संकटों का भी सामना करना पड़ता है और यह सिलसिला चलता रहता है। मैंने अपने पिताजी से कुछ महत्वपूर्ण बातें सीखी हैं। ईमानदारी, सच्चाई, विश्वासघात नहीं करना, अच्छा माल बनाना आदि अच्छी बातों को मैंने अंगीकार किया, सदाचार का पालन किया। जिसके बाद से ही मैं उद्योग धंधे में आगे बढ़ता गया। मुझे लगता है कि मेरे पिताजी से मिली सीख से ही मेरी जिंदगी बदल गई, यही मेरी जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट था। जीवन में संकट, तकलीफ परेशानी तो रोज आती है लेकिन उसका समाधान भी है।

उद्योग जगत से जुड़े लोगों को आप क्या संदेश देना चाहते हैं?

जीवन में प्रगति करनी है तो झूठ मत बोलो, सच्चाई से काम करो, किसी के साथ विश्वासघात मत करो, जो भी माल आप बनाओ, ए ग्रेड का बनाओ, अच्छा बनाओ। लोगों का भला सोचो, जो तुम्हारा बुरा करता है उसके लिए तुम आंख बंद कर लो तो भगवान तुम्हें एक नई ऊंचाई पर ले जायेंगे।

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