संवेदनशील देशप्रेमी अटल जी

भारतीय राजनीति के आकाश पर राज करने वाले श्रद्धेय अटल बिहारी वाजपेयी एक ऐसे राजनेता हैं, जिनके प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने से प्रधानमंत्री की कुर्सी की शोभा बढ़ गई। आज तो ऐसे लोग प्रधानमंत्री, गृहमंत्री की कुर्सी पर बैठे हैं, जिससे न उनकी स्वयं की शोभा बढ़ती है, न कुर्सी की, न पद की। तात्पर्य यह है कि श्री अटल बिहारी वाजपेयी केवल भूतपूर्व प्रधानमंत्री ही नहीं हैैं, बल्कि एक अभूतपूर्व प्रधानमंत्री रहे हैं। अटल जी ने अपने कार्यकाल में भारत को विश्व में सम्मानजनक स्थान प्राप्त कराया। वे कभी अंतराष्ट्रीय कूटनीति के आगे झुके नहीं और देश का नाम विश्व स्तर पर रोशन हो, इसके लिए हमेशा प्रयास किए।

अटल जी की संवेदनशीलता के कुछ संस्मरण ऐसे हैैं जिसकी पृष्ठभूमि समझना आवश्यक है। सन् 1975 में जब आपातकाल लगाया गया और सभी बड़े नेता या तो भूमिगत हो गए या जेलों में बंद कर दिए गए, उस समय माननीय अटल जी को भी माननीय लालकृष्ण आडवाणी तथा स्व. मा. श्यामनन्दन मिश्र के साथ बंगलुरु में गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। जेल में अटल जी को पढ़ने के लिए रोज समाचार पत्र उपलब्ध कराए जाते थे। उस दिन के मुख्य समाचार पर अटल जी एक कुंडली लिखते थे। हिंदी के एक प्रसिद्ध कवि श्री गिरधर कविराय जो कुंडलियां लिखते थे, अटल जी ने भी खुद को भी कैदी कविराय संबोधित कर कुंडलियां लिखीं, जो ‘‘कैदी कविराय जी की कुंडलियां’’ के रूप में प्रकाशित हुईं।उक्त कुंडलियों में से दो कुंडलियों के संदर्भ के साथ प्रस्तुत हैं, जो अटल जी की संवेदनशील देशभक्ति का परिचायक है।

आपातकाल के दौरान कांग्रेस के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष देवकांत बरुआ ने कहा- ‘‘इंदिरा इज इंडिया, इंडिया इज इंदिरा’’ दूसरे दिन बरुआ जी का उक्त कथन समाचार पत्रों का मुख्य समाचार बना। इस समाचार को पढ़कर देशप्रेमी हृदय वाले अटल बिहारी का हृदय खौल गया, क्योंकि भारत (इंडिया) शाश्वत है, इंदिरा नश्वर है, भारत कल भी था, आज भी है और कल भी रहेगा और इससे भी बड़ी बात यह है कि ‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी’ यानी माता और मातृभूमि दोनों स्वर्ग से भी महान हैं, का उद्घोष करने वाली संस्कृति की तुलना एक नश्वर इंदिरा से कैसे हो सकती थी। माननीय अटल जी की लेखनी से उक्त संदर्भ में एक कुंडली का जन्म हुआ, जो इस तरह है-

‘‘इंदिरा इंडिया एक हैं, इति बरुआ महराज।
अकल घास चरने गई, चमचों के सरताज॥
चमचों के सरताज, किया अपमानित भारत,
एक मृत्यु के लिए, कलंकित भूत भविष्यत।
कह कैदी कविराय, स्वर्ग से जो महान है,
कौन भला उस भारत माता के समान है।’’

बरुआ की तरह ही आचार्य विनोबा भावे ने घोषणा की कि आपातकाल अनुशासन का पर्व है। दूसरे दिन उक्त कथन भी समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ और अटल जी ने उस पर कुंडली लिखी, जो इस प्रकार है-

अनुशासन पर्व है बाबा का उपदेश,
हवालात की हवा भी देती यह संदेश
देती यह संदेश राज डंडे से चलता है,
जज हज करने को जाये, रोज कानून बदलता।
कह कैदी कविराय, शोर है अनुशासन का,
लेकिन जोर दिखाई देता, दुस्शासन का।

उपरोक्त कुंडलियों की तरह मा. अटल जी ने तत्कालीन अनेक घटनाओं पर कुंडलियां लिखीं, जो उनकी संवेदनशील देशभक्ति की प्रतिमा को मुखरित करती है। 25 दिसंबर को इस महापुरुष के जन्मदिन पर परमात्मा के चरणों में कोटि-कोटि वंदन है कि हे परमात्मा अटल जी कोे स्वस्थ दीर्घायु जीवन प्रदान करें।
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