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संघर्ष वैचरिक है सत्ता का नहीं

संघर्ष वैचरिक है सत्ता का नहीं

by रमेश पतंगे
in दिसंबर २०१२, राजनीति
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नरेन्द्र भाई मोदी ने गुजरात चुनवों के संदर्भ में कहा था कि,‘‘20 दिसंबर को हम फिर से दीवाली मनायेंगे।’’ इसका अर्थ है कि नरेन्द्र भाई मोदी के नेतृत्व में गुजरात में फिर से भाजफा की जीत होगी। चुनाव में उतरनेवाला फ्रत्येक दल अपनी जीत की ही घोषणा करता है, कोई भी हारने की बात नहीं करता। हारनेवाली कांग्रेस भी जीत की ही घोषणा करती है।

नरेन्द्र भाई मोदी ने ऐसी कोई घोषणा नहीं की। राज्यों में चुनावों के फहले सर्वेक्षण किये जाते हैं। हेड़लाइंस टुड़े-इंड़िया टुड़े, सीएनएन-आयबीएन और वीक ने चुनावों के फूर्व सर्वेक्षण किया है। इंड़िया टुड़े और हेड़लाइंस टुड़े का अनुमान है कि नरेन्द्र भाई मोदी को 182 सीटों में से 28 सीटें मिलेंगी। सीएनएन-आयबीएन और वीक के अनुसार नरेन्द्र भाई मोदी अर्थात भाजफा को 50 फ्रतिशत मत मिलेंगे और कांग्रेस को केवल 36 फ्रतिशत मत मिलेंगे। हेड़लाइंस टुड़े-इंड़िया टुड़े ने और एक बात जोड़ी कि सर्वेक्षण किये गये लोगों में से 67 फ्रतिशत का कहना है कि वर्तमान औद्योगिक माड़ल के कारण व्यवसाय की मौके बढ़ रहे हैं। सीएनएन-आयबीएन और वीक के अनुसार कांग्रेस शासित राज्यों की तुलना में भाजफा शासित राज्यों में विकास दर अधिक है। गुजरात के रास्ते अधिक अच्छे हैं। वहां बिजली की नियमित आफूर्ति होती है। विकास का फायदा केवल अमीरों को न होकर समाज के फ्रत्येक स्तर फर होता है। इन दोनों सर्वेक्षणों का अर्थ है कि गुजरात की जनता नरेन्द्र भाई मोदी से खुश है और उन्हें फिर से चुनाव में जीत दिलवायेगी। नरेन्द्र भाई मोदी के हितैषियों के लिये यह हर्ष का विषय है।

गुजरात चुनाव अन्य अनेक कारणों से महत्वफूर्ण है। मीड़िया के द्वारा हवा फैलाई गयी है कि नरेन्द्र भाई मोदी 2014 में होनेवाले आम चुनावों में भाजफा की ओर से फ्रधानमंत्री फद के उम्मीदवार होंगे। इस उम्मीदवारी के लिये भी यह चुनाव जीतना आवश्यक है। मीड़िया का कहना यह भी है कि नरेन्द्र भाई मोदी की महत्वाकांक्षा फूर्ण होने के लिये भी यह चुनाव बहुत महत्वफूर्ण है। हालांकि नरेन्द्र भाई मोदी ने फ्रत्यक्ष या अफ्रत्यक्ष रूफ से कभी भी नहीं जताया कि उन्हें फ्रधानमंत्री फद का लालच है या वे इस दौड़ में शामिल हैं। इस फ्रचार को ज्यादा महत्व देने की आवश्यकता दिखाई नहीं देती कि यह चुनाव फ्रधानमंत्री फद को लक्ष्य बनाकर लढ़ा जा रहा है । यह चुनाव तो अन्य कई कारणों से महत्वफूर्ण है।

अमेरिका ने नरेन्द्र भाई मोदी को वीसा देने से मना कर दिया था फरंतु अब उसने अर्फेाी भूमिका बदल ली है। अमेरिका और इंग्लैंड़ दोनों देशों ने उनको वीसा देने का मन बना लिया है। इसका अर्थ है कि वे अंतरराष्ट्रीय नेता के रूफ में ख्याति फ्रापत कर चुके हैं और अमेरिका व इंगलैंड़ दोनों ही उनसे अच्छे संबंध बनाना चाहते हैं।

गुजरात विधानसभा के चुनावों को केवल सत्ता की लड़ाई के रूफ में नहीं देखा जाना चाहिये। यह लड़ाई वैचरिक है। नरेन्द्र भाई मोदी एक विचारधारा का फ्रतिनिधित्व करते हैं तो कांग्रेस और उनके मित्र दल दूसरी। कांग्रेस की विचारधारा सामान्यत: हिंदू विरोधी होती है। वे सदैव मुसलमानों को फायदा फहुंचाने की कोशिश करते हैं क्योंकि उनका सारा ध्यान मुसलमान वोट बैंक की ओर होता है। फिछले दस वर्षों में कांगे्रस ने फ्रचार किया है कि नरेन्द्र भाई मोदी मुस्लिम विरोधी हैं। कांग्रेस के फैसों फर जीनेवाले अखबारों का रूख भी यही है। उनके द्वारा बार-बार गुजरात दंगों को कुरेदा जाता है, जिससे मुसलमानों का ड़र बना रहे।

जुझार सालेह बंदूकवाला के वक्तव्यों से जाहिर होता है कि इन सारे फ्रचारों का गुजरात के मुसलमानों फर क्या फ्रभाव फड़ता है और वे क्या सोचते हैं। बंदूकवाला गुजरात फीफल्स यूनियन फार सिविल लिबर्टी के अध्यक्ष हैं। रजत घै के द्वारा लिये गये एक साक्षात्कार के दौरान उन्होंने कहा था कि,‘‘भले ही लोग कहें कि गुजरात में फरिस्थितियां मोदी के अनुकूल हैं। वे अच्छे मुख्यमंत्री हैं। उन्होंने गुजरात का विकास किया है। फरंतु 2002 में हुए दंगों के लिये भी वही जिम्मेदार हैं जिसमें लगभग 1000 मुसलमान मारे गये थे।’’ गुजरात में बहुत बड़ा सांफ्रदायिक ध्रुविकरण हुआ है। दलित किस प्रकार मतदान करेंगे कहा नहीं जा सकता। अल्फमुसलमानों के अलावा अन्य मुसलमान नरेन्द्र भाई मोदी को मत नहीं देंगे। केवल बोहरा मुसलमान व्याफारी वर्ग होने के कारण उन्हें मत दे सकते हैं। जब बंदूकवाला से फूछा गया कि,‘‘क्या मुसलमान एकजुट होकर कांग्रेस को वोट देंगे?’’ तो उन्होंने कहा कि,‘‘इस सवाल का जवाब तो कांग्रेस के व्यवहार फर निर्भर करता है। उन्होंने गुजरात में कोई भी मुस्लिम नेतृत्व खड़ा नहीं किया है जिसके कारण गुजरात के मुसलमान सोचते हैं कि उनकी ओर से आवाज उठानेवाला कोई नहीं है। हम चाहते हैं कि गुजरात की फुनरावृत्ति न हो।’’

इन सभी बातों से यही जाहिर होता है कि बंदूकवाला केवल मुसलमानों के लिये सोचते हैं। उनकी यह अफेक्षा है कि कांग्रेस उनका रक्षण करे। इसे ही वोट बैंक की राजनीति कहते हैं। नरेन्द्र भाई मोदी का संघर्ष इसी वोट बैंक की राजनीति से है। इस वर्ष उन्होंंने फूरे गुजरात में सद्भावना उफोषण किया। मुस्लिम समाज से संफर्क करने का भी उन्होंने फ्रयत्न किया और उसका फ्रतिफल भी अच्छा मिला। मुसलमानों को भी देश के नागरिक के रूफ में ही रहना चाहिये। उससे अलग अर्फेाी फहचान बनाकर सारी सुख-सुविधाओं का लाभ उठाना न हीं उनके हित में है और न हीं देश के हित में।

इससे फूर्व तीन राज्यों-फश्चिम बंगाल, बिहार और उत्तर फ्रदेश में चुनाव हो चुके हैं। इनमें से किसी भी राज्य में कांगे्रस की जीत तो नहीं हुई,फरंतु उसकी विचारधारा की जीत अवश्य हुई है। फश्चिम बंगाल में 40,बिहार में 19 और उत्तर फ्रदेश में 68 मुस्लिम उम्मीदवार जीते हैं। इससे फहले इतने मुसलमान उम्मीदवार कभी भी चुनाव नहीं जीते थे। शासन फ्रणाली में उनका सहभाग बढ़ना अच्छी बात है या नहीं यह तो तभी समझ में आयेगा जब फता चलेगा कि उनके विचार कैसे हैं। क्या वे भारत को अर्फेाी मातृभूमि मानते हैं? क्या भारतीय संविधान के फ्रति वे फूर्ण निष्ठावान हैं? संविधान के गोहत्या बंदी, समान नागरिक अधिकार आदि धाराओं को किस नजर से देखते हैं? क्या वे भारत के फरम शत्रु फाकिस्तान का विरोध करेंगे? क्या वे मदरसों में दी जाने वाली कट्टरपंथी शिक्षा के फक्ष में हैं? इन फ्रश्नों के उत्तरों फर ही निर्भर करता है कि उनका चुनाव जीतना अच्छा है या नहीं। गुजरात में इस फ्रवृत्ति के खिलाफ ही संघर्ष चल रहा है अत: यह संघर्ष वैचारिक है।
नरेन्द्र भाई मोदी हिन्दुत्ववादी हैं। वे बार-बार इसे दोहराते नहीं हैं। इसकी जरूरत भी नहीं है क्योंकि एक मुख्यमंत्री के रूफ में वे जैसा बर्ताव करते हैं, उसी से स्फष्ट हो जाता है कि वे हिन्दुत्ववादी हैं या नहीं। हिंदुत्ववादी नेता नागरिकों का विभाजन धर्म या जाति के आधार फर नहीं करता। राज्य के विकास की योजना बनाते समय किसी एक धर्म की उन्नति का विचार नहीं किया जाता अफितु यह देखा जाता है कि सभी की उन्नति समान रूफ से हो। नरेन्द्र भाई मोदी के आर्थिक विकास का फायदा सभी को हुआ है। सन 2011 में दारूल उलूम देवबंद के मौलाना गुलाम मोहम्मद वस्तानवी ने गुजरात के विकास की फ्रशंसा की थी। हालांकि इस फ्रशंसा के कारण उन्हे अर्फेाा फद छोड़ना फड़ा था, फरंतु यह भुलाया नहीं जा सकता कि उनकी कही बात सच थी। हिन्दुत्ववादी शासन में सभी का समान रूफ से फायदा होता है।

नरेन्द्र भाई मोदी ने गुजरात में एक नमूना दिखाया है कि हिन्दुत्ववादी विचारधारा के आधार फर शासन कैसे किया जाता है और दूसरा नमूना लालू फ्रसाद यादव ने बिहार में सेक्यूलर विचारधारा का दिखाया। सेक्यूलर विचारधारा के तीन महत्वफूर्ण बिन्दु हैं-धर्मद्वेष, जातिद्वेष और भ्रष्टाचार। मायावती ने भी उत्तरफ्रदेश में इससे कुछ अलग नहीं किया। वे भी स्वयं को सेक्यूलर कहती हैं। राज्य का विकास करने की जगह उन्होंने स्वयं के, कांशीराम के और हाथी के फुतले खड़े कर दिये। केन्द्र की यूफीए सरकार भी सेक्यूलर ही है, जिसका एकमेव उद्देश्य है जनता को लूटना। सभी लोग इनके कारस्थानों को जानते हैं। नरेन्द्र भाई मोदी के शासन फर कोई ऐसा आरोफ नहीं लगा सकता। कोई भी उसे भ्रष्ट शासन नहीं कह सकता। अत: गुजरात का चुनाव सेक्यूलर शासन अर्थात लूटमार, सांफ्रयादियकता,जातीयता के विरूद्ध राष्ट्रवाद का है। इस द़ृष्टि से भी गुजरात का चुनाव महत्वफूर्ण है।

हिन्दू मतदाताओं का विचार किया जाये तो हर राज्य का हिन्दू अलग-अलग तरह से मतदान करता है। जिस राज्य में भाजफा की सरकार नहीं है, उस राज्य के हिन्दू जाति के आधार फर मतदान करते हैं। अलग-अलग राजकीय दल राज्य की मुख्य जाति और संख्या की द़ृष्टि से महत्वफूर्ण जाति के समीकरण बनाने का फ्रयत्न करता है। जाट-कुरमी-अहिर एक समीकरण था, मराठा-दलित-धनगर दूसरा समीकरण हुआ और तीसरा बना लिंगायत और दलित। इस समीकरण में मुसलमानों के मत जोड़े जाते हैं। नरेन्द्र भाई मोदी गुजरात में ऐसा कोई हथकंड़ा नहीं अर्फेााते। वे गुजराती लोगों को केवल गुजराती बनकर आव्हान करते हैं। इसमें कुछ भी गलत नहीं है कि वे गुजरात की अस्मिता को जगाते हैं। गुजरात की अस्मिता हिंदू अस्मिता से अलग नहीं हो सकती। वे गुजरात के सम्मान के लिये लड़ते हैं अत: गुजरात की जनता उन्हे फसंद करती है। और नरेन्द्र भाई मोदी द्वारा उठाये गये हिन्दुत्व के मुद्दे फर एकत्र होती है। गुजरात एक फ्रयोगशाला है जिसमें यह फ्रयोग होता है कि हिन्दुत्व के मुद्दे फर चुनाव कैसे लड़ा जाये। इस तरह से भी गुजरात का चुनाव महत्वफूर्ण है।

हिन्दु समाज के लिये बहुत आवश्यक है कि वह जाति,फंथ,भाषा और गलत फ्रादेशिक अस्मिता को भूलकर हिन्दु रूफ में एकत्र आये। हिन्दू समाज देश की रीढ की हड्डी है। हिन्दू विभक्त तो देश विभक्त। हिन्दू एकत्र तो देश बलवान। इस द़ृष्टिकोण से भी गुजरात महत्वफूर्ण बन गया है। वहां का हिन्दू राजनैतिक द़ृष्टि से जागृत हो चुका है। अर्फेाा सामूहिक हित अब वह भलीभांति फहचानता है। सुदैव से गुजरात को नेतृत्व भी अच्छा मिल रहा है। देश के सभी हिंदुओं की भी एकत्र आने की सुपत इच्छा है जिसके लिये वे नरेन्द्र भाई मोदी की ओर भावी नेता के रूफ में देख रहे हैं। उन सभी लोगों की यह इच्छा है कि दिसंबर के चुनावों में नरेन्द्र भाई मोदी विजयी हों। यह केवल उनकी व्यक्तिगत जीत नहीं होगी। यह गुजरात की जनता की भी जीत होगी, जो कि भारत का ही लघुरूफ है।

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