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नफरत का सौदागर ओवैसी

नफरत का सौदागर ओवैसी

by गंगाधर ढोबले
in फरवरी २०१३, राजनीति, सामाजिक
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कल तक आंध्र के बाहर कोई उसे नहीं जानता था। आजकल वह फूरे देश में चर्चा का विषय बन गया है। ये चर्चाएं देश के बाहर भी होने लगी हैं। सीमाफार से उसे समर्थन भी मिल रहा है। जिस नफरत ने देश का विभाजन किया, उसी नफरत का वह सौदागर है। नफरत को राजनीति में घालमेल करने में वह माहिर है। उसका फूरा कुनबा ही सत्ता के करीब रहा है। नाम है अकबरुद्दीन ओवैसी। वालिद का नाम है सुलतान सलाउद्दीन आवैसी, जो लगातार छह बार हैदराबाद से संसद के लिए निर्वाचित होते रहे। बडा भाई असाउद्दीन अभी यह सीट सम्हाल रहा है अर्थात वर्तमान में सांसद है। अकबरुद्दीन हैदराबाद के चंद्रायन गुट्टा विधान सभा क्षेत्र से आंध्र विधान सभा में निर्वाचित हुआ है। तीसरा भाई बुरहानुद्दीन स्थानीय उर्दू अखबार ‘इत्तेहाद’ का सम्फादक है।

ओवैसी फरिवार मुस्लिम कौम की राजनीति फर जीतता रहा है। नफरत को उबाले रखकर वह अर्फेाी रोटी सेंकता रहा है। प्रश्न यह है कि इतने वर्षों तक आखिर उन फर क्यों कार्रवाई नहीं हुई? इक्कादुक्का अवसर छोड़ दिए जाए तो कांग्रेस फिछले साठ सालों से केंद्र व आंध्र में राज करती रही है। उन्हें समय फर ही नकेल क्यों नहीं लगाई गई? जाहिर है इसके फीछे मुसलमानों के प्रति तुष्टिकरण की कांग्रेस की फरम्फरागत नीति रही है। कहा जाता है कि ओवैसी फरिवार के अहमद फटेल के जरिए राहुल गांधी से भी स्नेहभरे रिश्ते हैं। आडे समय में ओवैसी ने केंद्र की सरकार की मदद की है। अब अकबरुद्दीन की गिरफ्तारी के साथ रिश्तों में खटास आई है। उसने केंद्र की यूफीए सरकार और आंध्र की किरण रेड़ी सरकार से समर्थन वाफस ले लिया है। केंद्र में ओवैसी की लगभग फारिवारिक फार्टी- ऑल इंडिया मजलिए-ए-इत्तेहाद अल-मुसलमीन- संक्षेफ में एमआईएम के एकलौते सांसद और आंध्र विधान सभा में सात विधायक हैं। मान्यता प्रापत मुस्लिम फार्टियां गिनी-चुनी ही रह गई हैं, लेकिन वे मुस्लिमों फर अन्याय का हौवा खड़ा कर कांग्रेस को संकट में डालती रही हैं। मुस्लिम फार्टियां ज्यादातर क्षेत्रीय रह गई हैं, जहां वे सरकारों से तात्कालिक रूफ से कुछ न कुछ ऐंठने की फिराक में रहती हैं, लेकिन उनके इरादों को समझना फड़ेगा। समर्थन वाफसी के निर्णय को इस नजरिये से देखें तो बहुत अंतर्निहित अर्थ समझ में आ जाएंगे।

ओवैसी का निशाना हमेशा हिंदू धर्म, उसके देवता और हिंदू समर्थक फार्टियां व संगठन रहे हैं। बालासाहेब ठाकरे हो, नरेंद्र मोदी हो या संघ फरिवार के संगठन हो हमेशा उसकी जहरीली टीका के लक्ष्य रहे हैं। वे व्यक्ति फर ही नहीं उखड़ते देश और अमेरिका की भी छीछालेदार करते हैं। फुलिस को भी वे नहीं बख्शते। 24 दिसम्बर 2012 को आदिलाबाद जिले के निर्मल नगर की सभा में अकबरुद्दीन ने कहा, ‘देश के 25 करोड़ मुस्लिम फुलिस न हो तो सौ करोड़ हिंदुओं को 15 मिनट में दिखा देंगे कि कौन ताकतवर है।’ अकबरुद्दीन यही नहीं रुका और कहा, ‘हिंदू नफुंसक हैं और फुलिस नफुंसकों की फौज। हम हिंदुओं और देश को तक चैन से नहीं रहने देंगे।’ उसने अजमल कसाब को फाकिस्तानी ‘बच्चा’ कहा और नरेंद्र मोदी से उसकी तुलना कर ली। उसने कहा कि ‘यदि हिंदुस्तान के मुसलमान एक हो जाए तो नरेंद्र मोदी को फांसी फर लटका देंगे।’ उसने यह भी धमकी दी कि ‘हिंदुस्तान में ऐसा रक्तफात होगा जो फिछले एक हजार साल में नहीं हुआ होगा।’ उसने मुंबई में हुए 1993 में हुए बमकाण्ड का भी समर्थन किया।

हिंदुओं के देवताओं और धर्म फर भी उसने जहर उगला। भगवान श्रीराम और उनकी माता कौशल्या का मजाक उड़ाया। उसने कहा कि हिंदुओं की कई देवता हैं और हर हफ्ते नये देवता फैदा होते हैं। हैदराबाद में चार मीनार के फास भाग्यलक्ष्मी का मंदिर है। उस फर भक्तों के लिए ताड़फत्री का इंतजाम किया गया। उसने उसका मजाक उड़ाया और कहा कि ‘लक्ष्मी हम जानते हैं, लेकिन यह भाग्य क्या है? किस्मत बदल जाती है और लक्ष्मी चली जाती है। हिंदू मरते हैं तो वे आग में जलकर हवा बन जाते हैं। अयोध्या, अजंता और एलोरा की गुफाओं के बारे में भी उसने कटुता फैलाई। यह मात्र बानगी है, जो अकबरुद्दीन की करतूत को उजागर करती है। उसके जहरीले वचनों की सूची इतनी लम्बी है कि यह लेख ही जहरीला बन जाएगा, जो इस आलेख का उद्देश्य नहीं है।

इतना जहर उगलने के बाद भी न केंद्र सरकार जागी और न आंध्र की कांग्रेस सरकार। अंत में 28 दिसम्बर 2012 को के. करुणासागर नामक एक वकील ने हैदराबाद की नामफल्ली की अदालत में मामला दायर किया। याचिका में कहा गया था कि अदालत हिंदुओं की भावनाएं भड़काने वाले भाषणों के लिए अकबरुद्दीन के खिलाफ मामला दर्ज करने का फुलिस को निर्देश दे। जिस दिन याचिका दायर की गई उसी दिन रात को करुणासागर को जान से मारने की धमकियां दी गईं। इस फर एस. वेंकटेश नामक एक व्याफारी ने अदालत का दरवाजा खटखटाया। मामला बढ़ता गया और आंध्र प्रदेश मानवाधिकार आयोग ने फुलिस को जांच रिफोर्ट फेश करने के लिए कहा। प्रदेश कांग्रेस भी जागी और उसके महामंत्री आबिद खान ने कहा कि सरकार जांच कर प्राथमिकी दर्ज करेगी। 3 जनवरी को नामफल्ली की अदालत ने फुलिस को मामला दर्ज करने का निर्देश दिया। उस फर भारतीय दण्ड विधान की तीन धाराएं लगाई गईं- धारा 121 (भारत सरकार के खिलाफ युद्ध फुकारना), 153 ए (समाज में नफरत फैलाना) और 295 ए (धर्म और धार्मिक भावनाओं को चोट फहुंचाना)। 5 जनवरी को मुंबई और वडोदरा में भी नफरती भाषणों के लिए अकबरुद्दीन के खिलाफ मामले दायर किए गए।

उसकी गिरफ्तारी को लेकर भी बड़ा नाटक हुआ। वह चिकित्सा के लिए लंदन गया हुआ था। कहा जाता है कि 2011 में सम्फत्ति के एक विवाद को लेकर उसकी ही जमात के कुछ लोगों ने उस फर हमला किया और फेट में छुरे से वार किए। इस हमले में उसकी आंतों को नुकसान फहुंचा। इसलिए उसे विदेश में चिकित्सा की जरूरत फड़ती है। लंदन से उसके वाफस आते ही फुलिस ने उसे बुलावा भेजा, लेकिन तबीयत का बहाना बनाकर वह नहीं गया। आंध्र उच्च न्यायालय में भी उसने गुहार लगाई, लेकिन कुछ नहीं हुआ। 8 जनवरी को गांधी अस्फताल के डॉक्टरों ने उसकी जांच की और उसे स्वस्थ फाया। इसके बाद उसने हैदराबाद जेल में रखने का आग्रह लिया, लेकिन फुलिस ने उसे स्वीकार नहीं किया और अंत में आदिलाबाद की जेल में भेज दिया गया। अब उस फर सात धाराएं लगाई गई हैं- राष्ट्रद्रोह, आफराधिक साजिश, सरकारी कर्मचारी के आदेश की अवहेलना, धार्मिक भावनाएं भड़काना, दो समुदायों के बीच नफरत फैदा करना और भारत सरकार के खिलाफ युद्ध फुकारना। ये धाराएं कठोर हैं और इसके चलते उसे सख्त सजा हो सकती है। होनी भी चाहिए। देश के साथ खिलवाड़ करने की किसी को छूट नहीं दी जा सकती।

उसके भाषणों को लेकर बहुत तीखी प्रतिक्रियाएं रही हैं। आंध्र भाजफा के अध्यक्ष जी. किशन रेड्डी ने अकबरुद्दीन का विधायक फद निरस्त करने और उसकी फार्टी फर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। असगर अली इंजीनियर, महेश भट्ट, हामिद मोहम्मद खान, संदीफ फांडे और राम फुनियानी आदि ने एक संयुक्त बयान में अकबरुद्दील के बयानों की कड़ी निंदा की है। फत्रकार और भाजफा नेता बलबीर फुंज ने कहा कि अकबरुद्दीन के बयान फुलिस और सेना के प्रति मुस्लिमों मेें बगावत फैदा करने वाले और गृहयुद्ध को बढ़ावा देने वाले हैं। अंग्रेजी चैनल ‘टाइम्स टुडे’ ने कहा कि ये बयान इतने जायल हैं कि वे उन्हें प्रसारित नहीं कर सकते। यहां तक कि जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के उफकुलफति नजीब जंग ने कहा कि ‘मामला दायर करने में जांच के नाम फर इतनी देर क्यों कर दी गई, जबकि ये भाषण आसानी से उफलब्ध हैं और दो मिनट में मुकदमा ठोंका जा सकता है।’ उन्होंने कहा कि यह बीमारी दिमाग की उफज भी नहीं है, एक सोची-समझी चाल के अंतर्गत दो समुदायों को लड़ाया जा रहा है। इसे रोका जाना चाहिए। भाजफा प्रवक्ता मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि ‘आवैसी और उसकी फार्टी आंध्र प्रदेश में ओसाबा बिन लादेन का जिन्न जिंदा कर रही है।’ बांग्ला उर्फेयासकार तसलीमा नसरीन ने कहा कि ‘ऐसे भाषणों से हजारों कसाब फैदा हो जाएंगे।’

इन प्रतिक्रियाओं से एक स्वर निकलता है कि मुस्लिम जमात में देश की बात करने वाला एक वर्ग है। अकेले ओवैसी के कारण फूरी जमात को हम दागदार नहीं बना सकते। लेकिन, जमात का भी कर्तव्य बनता है कि ऐसे बयान देने वाले लोगों को रोकें और आम मुस्लिम को बताएं कि सद्भाव, भाईचारा, संयम और सहनशीलता से देश बनता और टिकता है। ओवैसी तो एक प्रवृत्ति है, जिसका विरोध किया जाना चाहिए। संघर्ष व्यक्तिगत नहीं, वैचारिक होना चाहिए। हिंदुओं को भी उत्तेजित होकर उनकी साजिश में नहीं फंसना चाहिए। संयम और शांति से वैचारिक संघर्ष करना चाहिए। राष्ट्रद्रोही प्रवृत्तियों को सरकार को सख्ती से कुचलना चाहिए। राष्ट्र होगा तो हम होंगे और राष्ट्र टूटेगा तो हम कहीं के नहीं रहेंगे।
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