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चंद लम्हों की दासतां…..

चंद लम्हों की दासतां…..

by pallavi anwekar
in फरवरी २०१३, फिल्म, सामाजिक
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विदेश में भारतीय लिबास पहने लंबे घने बालों वाली एक लडकी रंगोली बना रही है और पास ही लगभग उसी की उम्र का एक युवक बाल खेल रहा है। युवक की बाल का रंगोली पर गिरती है, वह बाल वापिस लेने आता है। दोनों की पहचान होती है, दोस्ती होती है। दोनो साथ घूमते हैं। लड़का लड़की के नृत्य और बालों की तारीफ करता है और लड़की उसकी बाइक की। दोस्ती परवान चढ़ती है और प्यार में तब्दील हो जाती है। दोनो को एक दूसरे को उपहार देना है। लडका साडी और नेकलेस खरीदता है और लड़की हेलमेट और बाइक प्लेट। कहानी का नाजुक और हृदयस्पर्शी मोड़ यह है कि हेलमेट खरीदने के लिये लड़की अपने बाल कटवाकर विग बनाने वाली कंपनी को बेच देती है और लड़का अपनी बाइक बेच देता है। कहानी पढकर कुछ याद आया? जी हां यह कहानी पंकज उदास की प्रसिद्ध गजल ‘और आहिस्ता कीजिये बाते’ की है। जैसे-जैसे गजल आगे बढ़ती है कहानी भी अपनी रोचकता बढ़ाती जाती है और वह सब कुछ बयां कर देती है जो एक फिल्म ढाई या तीन घंटे में कहती है। चंद लम्हों की ऐसी कई दास्तानों ने दर्शकों को भाव विभोर कर दिया था। लोग मंत्र मुग्ध होकर 5-6 मिनटों की इस कहानी और गीतों के मेल को देखते-सुनते रहते थे।

ये और इस तरह के कई अन्य गीतों और गजलों ने लोगों को हिन्दी फिल्मों के गीत तक भुला दिये थे। जगजीत सिंह की गजलों के एलबम, मिराज, मरासिम, सहर ने लोगों के दिलों को छू लिया था। ‘वो कागज की कश्ती…’ में एक लडकी(गायत्री जोशी) का फोटोग्राफी के दौरान गावों में घूमना, नैसर्गिक सौंदर्य को देखना, शहरी ताम-झाम से दूर गांव के लोगों का आपस में मेलजोल, बच्चों का बूढी दादी से कहानियां सुनना इत्यादि गांव की संस्कृति को बखूबी दर्शाता है।

जगजीत सिंह की ही ‘शाम से आंख में नमी सी है’ ऐसे युवा दंपत्ती (जिमि शेरगिल-सिमोन सिंह) की कहानी है जो एक दूसरे से बहुत प्रेम करते हैं, परंतु अपने-अपने कामों में व्यस्त हो जाने के कारण एक दूसरे को समय नहीं दे पाते। काम के दौरान ही पति(जिमि शेरगिल) को एक टूटी हुई फोटोफ्रेम देखकर याद करता है कि जब उसके पास वक्त था तो वह अपनी पत्नी को अपने हाथ से चूडियां पहनाता था। पत्नी(सिमोन सिंह) अपने दफ्तर के रास्ते को देखकर याद करती है कि पति ने इस रास्ते पर उसके लिये फूल बिछाये थे। उन दिनों को याद करके दोनों एक ही दिन बिना एक दूसरे को बताये दफ्तर से घर जल्दी लौटते हैं। अचानक ही एक दूसरे को सामने देखकर दोनों ही खुश हो जाते हैं और एक-दूसरे के साथ शाम गुजारते हैं।

जिंदगी में होनेवाली रोजमर्रा की घटनायें जिन्हें कोई खास अहमियत नहीं देता इन गीतों के माध्यम से सामने आई और लोगों ने भी इन्हें अपनी कहानी मान लिया।

ये कहानियां केवल गजलों तक ही सीमित नहीं रहीं। सोनू निगम द्वारा गाये गये ‘दीवाना’ के हर एक गीत की अपनी एक अलग कहानी है। ‘इस कदर प्यार है’ गीत दो ऐसे दोस्तों पर चित्रित हैं जो बचपन में साथ खेले-पढ़े और अलग हो गये। एक दिन दोनों की एक बस में मुलाकात होती है। लडका लडकी को दोनो की पुरानी तसवीर दिखाता है और विश्वास दिलाने की कोशिश करता है कि वही उसका हमसफर है।
आशा भोसले और जगजीत सिंह के रोमेंटिक गीत ‘जब सामने तुम आ जाते हो’ में प्रेम त्रिकोण का सुंदर चित्रण है। दो बहने एक ही लडके से प्रेम करती हैं जो कि एक बहिन का दोस्त भी है। जब उस बहिन को पता चलता है कि उसका सबसे अच्छा दोस्त उसकी बहिन से प्यार करता है, तो वह दोनों का मिलन करवा देती है। इस पूरी कहानी को कुछ ही पलों में समेटा और सहेगा गया है।

एक ऐसा ही खूबसूरत ताना-बना बुना गया था अदनान सामी और आशा भोसले के गीत ‘कभी तो नजर मिलाओ’ में सलिल अंकोला और अदिति गोवित्रीकर पर चित्रित दो गाने में सलिल की बहिन उसे अदिति के जन्मदिन पर उससे मिलवाती है। वे दोनों एक दूसरे को पसंद करते है जबकि सलिल की सगाई हो चुकी है। यह बात जब अदिती को पता चलती है तो वह उदास हो जाती है और उधर सलिल का भी शादी की तैयारी में मन नहीं लगता तब सलिल की बहिन और अदिती की सहेली उन दोनों की मन की व्यथा समझती है और दोनों को मिलवाती हैं।

ऐसा नहीं है कि इन गीतों में केवल प्रेम कथाओं का ही चित्रांकन किया गया है। फाल्गुनी पाठक के ‘मैने पायल है छनकाई’ में एक प्रतियोगिता दर्शायी गयी है, जिसमें कठपुतलियों का सुंदर उपयोग किया गया है। फाल्गुनी की खनकती मधुर आवाज पर कठपुतलियों का थिरकना मन को प्रफुल्लित कर देता है। अली हैदर ने ‘पुरानी जीन्स’ में कालेज के दिनों को याद किया है जिसमें पुराने दोस्तों का मजाक उडाना, ग्रुप मे गाना गिटार बजाना आदि का समावेश है। ए.आर. रहमान ने ‘मां तुझे सलाम’ में वन्दे मातरम को अलग अंदाज में पेश किया। मां और मातृभूमि की याद में उठनेवाली कसक इस गाने में दिखाई देती है।

इस तरह के गीतों के माध्यम से कई पुराने रूमानी गीतों को भी नयापन दिया गया जिसे आजकल ‘रीमिक्स’ कहा जाता है। आशा भोसले द्वारा गाया गया ‘दो लफ्जों की है दिल की कहानी’ गीत फिल्म में जितना रूमानी है, उतना ही इसमें भी लगता है क्यों कि धुन,बोल या साजों के साथ कोेई छेड़छाड़ नहीं की गयी है, केवल इसके साथ चलने वाली कहानी बदल गयी है।

आशा भोसले ने ही एक फिल्म में आशा पारेख के लिये एक गीत गाया था, बोल थे ‘पर्दे में रहने दो पर्दा न उठाओ’। यही गीत जब रीमिक्स रूप में आया तो अपने साथ एक राजकुमारी की कहानी लाया जो पहाड़ों में एक किले में कैद है। राजकुमारी की खासियत यह है कि उसकी चोटी बहुत लंबी है। वह राजकुमारी सात-आठ बार अपने हाथ में लपेटकर ही चलती है। उस राजकुमारी को कैद से आजाद कराने के लिये के लडका निकलता है, जिसे खुद आशा ही विभिन्न चिनहों के माध्यम से रास्ता बताती है। उन निशानियों के माध्यम से लड़का राजकुमारी को ढूंढ लेता है और उसे कैद से छुडा लेता है।

इन कहानियाों के साथ केवल शांत सुरीले और रूमानी गीत ही सफर नहीं करते बल्कि धूमधडाके वाले गीत भी इनका हिस्सा हैं। पलाश सेन के यूफोरिया बैण्ड द्वारा गाये गये ‘कभी आना तू मेरी गली’ के साथ भी एक कहानी चलती है। विद्या बालन और पलाश ेक दूसरे को चाहते हैं, परंतु यह बात दोनों ही एक दूसरे से नहीं कह पाते। इस बीच विद्या की शादी तय हो जाती है। शादी की सारी रस्मों और हुल्लड के साथ ही गाना आगे बढता है। फेरों के पहले ही विद्या के ससुरालवाले किसी बात पर अड जाते हैं। विद्या के पिता अपनी पगडी उनके सामने रखते हैं फिर भी वे शादी अधूरी छोडकर चले जाते हैं। उसी पगडी को पलाश थामता है और विद्या से शादी कर लेता है।

इन गीतों को ध्यान से देखा जाये तो कुछ बातें ध्यान में आती हैं कि कहानियां बिल्कुल गीतों के बोलों के अनुसार नहीं चलती परंतु फिर भी दर्शकों ने इन्हे एक दूसरे का पूरक माना। दूसरी बात यह कि ये गीत और कहानियां एक दूसरे के पूरक तो हैं परंतु एक दूसरे पर आश्रित नहीं हैं।आवाज बंद करके केवल कहानी भी देखी जा सकती है और अगर केवल गीतों को सुना जाये तो वे भी कर्ण मधुर ही लगेंगे।

इन गीतों की कहानियों मे दिखनेवाले किरदारों मे से कुछ आज छोटे और बड़े पर्दे की नामचीन हस्तियां हैं, जिन्होंने अपने करियर के शुरुवाती दौर में इनमें काम किया था। उदाहरणार्थ- विद्या बालन (कभी आना तू मेरी गली),जॉन अब्राहम (यूं मेरे खत का जवाब आया), जिमि शेरगिल (शाम से आंख में नमी सी है), बिपाशा बासु (तू! कब ये जानेगी), मिलिंद कुलकर्णी (मेड इन इण्डिया, इस कदर प्यार है) इत्यादि।

कहा जाता है कि हर पीढी की अपनी पसंद, अपना संगीत होता है। आज के ‘आइटम सांग्स’ की चकाचौंध में ये गीत कहीं खो गये हैं और एक पीढी आज भी उनका इन्तजार कर रही है।

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