हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
रणक्षेत्र व्यापक है

रणक्षेत्र व्यापक है

by रमेश पतंगे
in फरवरी २०१३, राजनीति, सामाजिक
0

कुछ पाकिस्तानी सैनिकों ने भारत की सीमा में प्रवेश कर भारत के दो सैनिकों की हत्या कर दी। लांसनायक हेमराज मथुरा के पास एक गांव का रहनेवाला था और सुबेदार सिंह राजस्थान का। इन दोनों जवानों की वीरतापूर्ण मौत ने पूरे देश को हिला दिया। भारत की सीमा में घुसकर भारतीय जवानों पर हमला करना एक प्रकार का आक्रमण ही है, जो कि पाकिस्तान ने जान-बूझ कर किया है। पाकिस्तान की ओर से भविष्य में भी ऐसे आक्रमण किये जाने की आशंका है। ऐसी आशंका क्यों है? इसके उत्तर के लिये पहले यह समझना जरूरी है कि आज अफगानिस्तान का प्रश्न कहां तक पहुंचा है।

अफगान युद्ध

ओबामा सरकार ने तय कर लिया है कि अफगानिस्तान से पीछे हटा जाये। सन 2014 तक अफगानिस्तान से नाटो सेना वापस बुलाने का निर्णय लिया गया है। इस वर्ष के अंत तक बीस हजार सैनिकों के ही अफगानिस्तान में रहने की उम्मीद है। अभी वहां हमीद करजई की सरकार है। अमेरिका की मदद से यह सरकार अब तक खड़ी है, परंतु वहां अभी भी तालिबानी नष्ट नहीं हुए है और वे एक के बाद एक आत्मघाती हमले सरकार पर कर रहे हैं। इन हमलों की जानकारी हमें विभिन्न समाचार पत्रों से मिलती रहती है। अमेरिका की सेना के अफगानिस्तान से हटने के बाद करजई की सरकार ज्यादा दिन वहां नहीं टिक पायेगी और फिर एक बार तालिबानियों की सरकार वहां स्थापित होगी।

जब अफगानिस्तान का रूस के खिलाफ जिहाद चल रहा था, तब पाकिस्तान ने तालिबानी तैयार किये थे। रूस की अफगानिस्तान से वापसी के बाद वहां तालिबान मुल्ला ओमर की सरकार चली। उसके पाकिस्तान के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध थे। अब फिर से वहां तालिबान की सरकार होगी, जिसके पाकिस्तान के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध होगे। पाकिस्तान का पश्चिमी मोर्चा अर्थात अफगान मोर्चा जब कुछ शांत होगा, तो वह अफगान के तालिबानियों और जिहादियों को भारत की ओर मोड़ सकता है। भारत में हिंसक कार्रवाहियों के बावजूद अमेरिका पाकिस्तान का बाल भी बांका नही कर सकता। नाटों भी पाकिस्तान के विरोध में कोई कार्रवाही नहीं करेगा, बल्कि वह भारत को ही संयम बरतने का उपदेश देता रहेगा। ऐसा क्यों होगा? इस प्रश्न का उत्तर इसमें छिपा है कि पाकिस्तान का निर्माण क्यों हुआ।

पाकिस्तान का निर्माण किसने किया? इस प्रश्न का उत्तर देनेवाली अनेक किताबें आज तक लिखी जा चुकी हैं। कोई इसका श्रेय मोहम्मद अली जिना को देता है, कोई पं. जवाहरलाल नेहरु को, तो कोई महात्मा गांधी को। शेषराव मोरे ने 700 पन्नों का एक ग्रंथ लिखा है, जिसका शीर्षक है ‘ कांग्रेस और गांधी ने अखंड़ भारत को क्यों नकार दिया?’ वे इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि हिंदुओं के हित के लिये कांग्रेस और गांधी जी ने अखंड़ भारत को नकार दिया। नरेन्द्र सिंह सरीला ने बंटवारे पर ‘द अनटोल्ड़ स्टोरी आफ इंड़ियाज पार्टिशन’ नामक एक बहुत अच्छी किताब लिखी है। उन्होने असली कागज-पत्रों का अध्ययन करके यह निष्कर्ष दिया कि अंग्रेजों ने अपने फायदे के लिये सभी दांव-पेंचों का इस्तेमाल करके पाकिस्तान का निर्माण किया और जिन्ना तथा मुस्लिम लीग का इस कार्य के लिये उपयोग किया गया।

उनकी भू-सामरिक दांव पेंचों से युक्त विचार शैली कैसी थी? दूसरे महायुद्ध के दौरान पेट्रोलियम तेलों का महत्व बढ़ने लगा, जिसका मध्य पूर्व के अरब देशों में भंड़ार है। वैश्विक स्तर पर स्वयं को स्थापित रखने के लिये किसी भी राष्ट्र के पास थल सेना और वायु सेना के साथ-साथ समुद्र और तेल भंड़ारों पर अधिपत्य होना आवश्यक है। उसके पास ऐसे बंदरगाहों का होना भी जरूरी है जो युद्ध पोतों की समुचित व्यवस्था कर सके और बारह महीने उपयोग में लाये जा सकें। दूसरे महायुद्ध के बाद रूस एक महाशक्ति के रूप में उभरा। रूस के पास ऊष्ण कटिबंध के ऐसे बंदरगाह नहीं है जिन्हे बारह महीने उपयोग किया जा सके। अंग्रेजों को बहुत पहले से यह अंदाजा था कि रूस आज या कल इन बंदरगाहों को हासिल करने के लिये अफगानिस्तान पर हमला करेगा और वहां से वह या तो ईरान में प्रवेश करेगा या बलूचिस्तान में। रूस पर अंकुश रखने के लिये और तेलों के भंड़ार के अपने संबंधों को सुरक्षित रखने के लिये इंग्लैंड़-अमेरिका को भूमि की आवश्यकता थी। भारत जब स्वतंत्र हो रहा था, तो उसक नेतृत्व करने वाले नेता अपने ही स्वप्नों में खोये हुये थे। देश की शांति की फिक्र छोड़कर वे वैश्विक शांति के पीछे भाग रहे थे।उनमें बादशाहतवाद को खतम करने की होड़ लगी थी। इंग्लैंड़ और अमेरिका समझ चुके थे कि उन्हें भारत का कोई उपयोग नहीं होनेवाला अत: उन्होंने एक व्यूह रचा कि पाकिस्तान के रूप में एक नये देश का निर्माण किया जाये, जिस पर सदैव उनका नियंत्रण रहे। इस प्रकार पाकिस्तान का जन्म हुआ।

दूरदर्शिता

अब तक पाठक यह जान चुके होंगे कि इंग्लैंड़ और अमेरिका की यह व्यूह रचना कितनी दूरदर्शी थी। सन् 1979 में अफगानिस्तान में रूस की सेना ने प्रवेश किया। इस सेना को रूस में रोके रखना जरूरी था। अमेरिका ने इसके लिये पाकिस्तान का उपयोग एक अड्डे के रूप में किया। अफगान युद्ध शुरू होने के पूर्व ही अमेरिका ने पाकिस्तान और अन्य देशों के साथ मिलकर ‘सिंटों’ नामक संगठन बनाया जिसका उद्देश्य था रूस को रोकना। उसने पाकिस्तान के पेशावर अड्डे से रूस की जासूसी करने के लिये हवाई जहाज भेजने शुरू किये। उसके लिये यू-2 नामक हवाई जहाई निर्माण किये गये। 1961 में ऐसा एक हवाई जहाज रूस ने मार गिराया और उसके पायलट पॉवेल को गिरफ्तार कर लिया। अफगानिस्तान में रूस प्रवेश के बाद उससे लड़ने के लिये अमेरिका ने पाकिस्तान में जिहादी निर्माण करने के कारखाने शुरू कर दिये। यह युद्ध दस साल तक चला। इसमें रूस की हार हुई और उसके साथ ही साथ रूस के साम्राज्य का अंत हुआ।

इन दस सालों में पाकिस्तान के पास अत्यधिक मात्रा में शस्त्र उपलब्ध हो गये। अमेरिका ने पाकिस्तान पर पानी की तरह पैसा बहाया और उसे अत्याधुनिक शस्त्र मुहैया कराये। पाकिस्तान के विषय में कहा जाता है कि तीन ‘अ’ उसे चला रहे हैं- अमेरिका, अल्ला और आर्मी। अमेरिका और आर्मी यह फैसला करता है कि पाकिस्तान का शासक कौन होगा। अल्ला का अर्थ है इस्लाम। इस्लाम का कैसे उपयोग किया जाये इसका फैसला अमेरिका और पाकिस्तान के शासक करते हैं। पहले अफगान युद्ध के बाद पाकिस्तान में मुल्ला-मौलवी प्रबल हो गये। इन मुल्लाओं और मौलवियों ने आत्मघाती जिहादी निर्माण करने के स्वतंत्र कारखाने शुरू कर दिये, जिसकी मार रूस के साथ-साथ भारत पर भी पड़ी।

रूस के अंत के बाद भी अफगानिस्तान और पाकिस्तान का महत्व कम नहीं हुआ। 9/11 को अमेरिका पर हुए हमले के बाद अफगानिस्तान में अमेरिका का युद्ध शुरू हुआ। इस युद्ध के लिये भी उन्होंने पाकिस्तान का उपयोग अड्डे के रूप में किया। पहले की तरह ही एक बड़ी कीमत अमेरिका ने पाकिस्तान को चुकाई। पानी की तरह पैसा बहाया और अत्याधुनिक शस्त्र दिये।

हिन्दुद्वेष

जिन्ना ने हिन्दुद्वेष को पाकिस्तान का आधार बनाया। सभी शासनकर्ताओं ने इस हिन्दुद्वेष को जीवित रखा है। पाकिस्तानी सैनिक पुंछ में दो सैनिकों को मारकर और एक का सिर काटकर अपने साथ ले गये, क्योंकि वे काफिर हैं। मुंबई हमले में हिंदुओ को मारा गया, क्योंकि वे काफिर है। इस तरह के हिन्दुद्वेष को पाकिस्तान कभी नहीं छोड़ेगा। अब अफगानिस्तान मुक्त हो जायेगा। अफगानिस्तान के संदर्भ में भी पाकिस्तान के राजनेताओं के विचार समझना आवश्यक हैं। पाकिस्तान का रवैया कुछ ऐसा है कि वह हमेशा के लिये अफगानिस्तान पर अपना अधिकार चाहता है। वहां राजनेता एक शब्द उपयोग करते हैं ‘स्ट्रेटेजिक ड़ेफ्थ’। इसका अर्थ है कि पाकिस्तान द्वारा नियंत्रित अफगानिस्तान का प्रयोग भारत से युद्ध होने की स्थिति में अड्डे के रूप में प्रयोग किया जा सकता है। अब पाकिस्तान के तालिबानी ही अफगान में शासन चलायेंगे। वे दो कारणों से पाकिस्तान की मदद करेंगे। पहला तो यह कि वे पाकिस्तानियों के धर्मबंधु हैं और दूसरा यह कि पाकिस्तान ने उनकी मदद की है।

पाकिस्तान अपने स्वभावानुसार भारत के विरुद्ध अर्थात हिन्दुओं के विरुद्ध सदैव प्रयत्नशील रहेगा। इस संघर्ष में अमेरिका और इंग्लैंड़ का कोई स्वार्थ नहीं होगा। पाकिस्तानी आतंकवादियों के हमले में अगर हिंदू या सिख मरेंगे उससे तो अमेरिका को कोई लेना-देना नहीं होगा, परंतु अगर भारत ने पाकिस्तान के विरोध में आक्रमक भूमिका अपनाई और पाकिस्तान के अस्तित्व को धोका नजर आया, तो अमेरिका शांत नहीं रहेगा। अमेरिका भारत के विरुद्ध कार्रवाही करेगा। मध्य पूर्व पर अंकुश रखने के लिये उसे पाकिस्तान की भूमि की आवश्यकता भविष्य में भी जरूर होगी। अत: वह पाकिस्तान को आर्थिक मदद करता रहेगा। शस्त्र उपलब्ध करवाता रहेगा और भारत को संयम रहने की नसीहत देता रहेगा।

गले का सांप

पाकिस्तान अमेरिका के गले में पड़े सांप के समान है। सांप को मारने के लिये गले को भी जख्म देना पड़ता है। आज भारत में उतनी ताकत नहीं है। परंतु किसी दूसरे मार्ग से यह किया जा सकता है। राजनीति में सदैव शस्त्र शक्ति का ही उपयोग होता है, ऐसा नहीं है। कभी-कभी बुद्धि का भी प्रयोग करना पड़ता है। हमारे देश के इतिहास में राजनैतिक बुद्धि वैभव के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण श्रीकृष्ण हैं। श्रीकृष्ण ने अपने से बलवान शत्रु को न सिर्फ परास्त किया वरन, उनका वध भी किया। जरासंघ और मुचकुंद को श्रीकृष्ण ने बुद्धि के बल पर ही मारा। इसके बाद के काल में आचार्य चाणक्य ने अपनी बुद्धि के सामर्थ्य से देश के शत्रुओं को परास्त किया। छत्रपति शिवाजी ने भी बुद्धि के बल से ही प्रबल शत्रुओं को झुकाया। इस आधार पर अमेरिका से लड़ना कोई मुश्किल बात नहीं होनी चाहिये।

हिंदुहित की राजनीति

इसके लिये एक आवश्यकता है और वह है हिन्दुओं के हितों की रक्षा करनेवाले समर्पित नेता की। पाकिस्तान की दृष्टि में जो भारत में रहता है, वह हिन्दु है। हमने ही अपनी अज्ञानता में इसे धर्मवाचक बना रखा है। हिंदु शब्द में सिख, जैन, बौद्ध और भारत के सभी उपसाना पंथ आते हैं। इन सब का सामयिक हित अपने अस्तित्व की रक्षा करने में है। प्रत्येक व्यक्ति को अपना उपासना पंथ प्रिय होता है। इस पंथ को आगे बढ़ाने के लिये और उसे जीवित रखने के लिये व्यक्ति का जीवित रहना आवश्यक है। पाकिस्तान का संकल्प है कि वह हमें जीवित नहीं छोड़ेगा। अमेरिका का संकल्प है कि उसे पाकिस्तान को जीवित रखना है। अत: हमें संकल्प लेना होगा कि हमें जीवित रहना है और अपनी सभी विविधताओं के साथ जीवित रहना है। एक तरह से यह संकल्प संघर्ष के रूप में होना चाहिये, जिसे लड़ने के लिये एक बुद्धिमान और शक्तिशाली राजनेता की आवश्यकता है।

इस तरह का नेता आकाश से अवतरित नहीं होता। वह जनता को अपने में से ही निर्माण करना पड़ता है, इसलिये हम क्या हैं, हम क्या सोचते हैं, हमारा आदर्श कौन है,इत्यादि बातों का विचार प्रत्येक व्यक्ति को करना चाहिये। सन 1947 में हमने किसका नेतृत्व स्वीकारा और किसे नकारा, इसका भी विचार किया जाना चाहिये। 1947 की पीढ़ी ने जिस नेतृत्व को चुना उसने आज हमारे अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। यही भूल अगर हमने दोहराई, तो इसका मूल्य हमें तो चुकाना ही होगा और हमारे बच्चों, पोतों और आनेवाली कई पीढ़ियों को भी चुकाना पड़ेगा। अमेरिका का स्वार्थ उसकी आर्थिक व्यवस्था से जुड़ा हुआ है। ऐसे में कोई भी समझदार और राष्ट्रहित की चिंता करनेवाला नेता उसके पतन के लिये प्रयत्नशील होगा, क्योंकि अमेरिका के रहते पाकिस्तान को हाथ लगाना मुश्किल है, परंतु अमेरिका को संकट में देखते ही हमारे प्रधानमंत्री ऐसे निर्णय लेते हैं जिनमें अमेरिका का हित हो। परमाणु समझौता उन्होंने अमेरिका के हित में किया था और खुदरा व्यापार में एफड़ीआई का निर्णय भी। इस तरह का नेतृत्व अगर देश को मिला, तो वह निर्णायक लड़ाई नहीं लड़ सकता। यह युद्ध दीर्घकालीन है जिसे संयम से लड़ना होगा तथा सावधानीपूर्वक कदम बढ़ाने होंगे। बाहरी तौर पर भले ही इसका रणक्षेत्र भारत-पाक सीमा लग रहा हों, परंतु यह लड़ाई अंतरराष्ट्रीय क्षेत्र पर लड़नी है। लंदन, वाशिंग्टन, पेरिस, यूरोप इसके रणक्षेत्र है। अब ऐसे समूह की आवश्यकता है जो भारत के हित के बारे में सोचता हो। आज भारत में जो छोटे-छोटे राजनैतिक दल हैं, उनके नेता है और जो उनके विषय हैं वे इस आवश्यकता को पूरा नहीं कर सकते। अंत में मूल बात यह है कि जब तक हमें समझ नहीं आती और अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये हम प्रयत्नशील नहीं होत,े हम अपना हित नहीं साध सकते। क्या हम इस दिशा में अपने कदम उठानेवाले हैं?

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinepolitics as usualpolitics dailypolitics lifepolitics nationpolitics newspolitics nowpolitics today

रमेश पतंगे

Next Post
पर्यावरण मित्र- रोहा इंडस्ट्रियल असोसिएशन

पर्यावरण मित्र- रोहा इंडस्ट्रियल असोसिएशन

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0