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नारीशक्ती भी है भारी

नारीशक्ती भी है भारी

by महेश अटाले
in महिला, मार्च २०१३, सामाजिक
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आज अपने राष्ट्र में, जिसकी आधारभूत शक्तीदेवता और स्वतंत्रता की देवी भी महिला रूप है, उसके सामने ही महिलाओं पर अत्याचार हो रहे हैं। दूसरी बडी स्त्रीदेवता, न्यायदेवता भी महिला ही है पर अंधी है। महिला आरक्षण के बावजूद आज अपने देश की बागडोर पुरुषों के ही हाथ है और यही एक कारण है कि महिलाओं पर अत्याचार करनेवालों को कडी सजा देने मेंं हम लोग पीछे हैं।

अपने देश के इतिहास में कई महिलाओं ने अपना योगदान दिया है। झांसी की रानी से लेकर कॅप्टन लक्ष्मीजी तक। आज भी कई महिलाएं पुलिस दल से लेकर सेना तक में अपना योगदान देती हैं। महिलाशक्ति का यह प्रदर्शन महान है, किंतु अपनी इस पुरुषप्रधान संस्कृती के कारण आज भी महिला हर क्षेत्र में चाहकर भी अपना योगदान नहीं दे सकती। कभी घर से उसे विरोध होता है तो कभी समाज से।
हम सब की यह जिम्मेंदारी है की इस विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत महिला शक्ति को समाज के सामने पूरे आदर व सम्मान के साथ लायें। उन्हें सम्मानित करके आनेवाली पीढ़ियों को प्रोत्साहित करें।

आज महिला उच्चशिक्षित है। हर एक विषय में वह आगे आ रही है। भले ही अंतरिक्ष में जानेवाले पहले भारतीय राजेश शर्मा हैं,िर्िंकंतु उनके बाद अमेरिका की ओर से कल्पना चावला और सुनिता विल्यम्स ने भारतीय नारी की शान पूरे विश्व में बढ़ायी है।

विश्व में संशोधन की दुनिया में कई महिलाओं का योगदान रहा है। मादाम (मेंरी) क्युरी ने अपने अथक प्रयासों से दो बार नोबेल पुरस्कार प्राप्त किया। यह बात बहुत कम लोग जानते है की मेंरी की बेटी आयरीन क्युरी को भी 1936 में रसायनशास्त्र का नोबेल पुरस्कार प्राप्त हुआ था। फ्रान्सोइस बॅरे सिन्युसी नामक नोबेल पुरस्कार प्राप्त फ्रेंच विदुषी ने आज पुरी दुनिया को हिला देनेवाले एच.आय.वी. विषाणु की खोज की थी।

डॉ. आनंदी गोपाल जोशी भारत की सर्वप्रथम महिला डॉक्टर बनी। आज भी कई भारतीय महिलाएं संशोधन क्षेत्र में कार्यरत है। नासा की डॉ.अनिता सेनगुप्ता, इस्त्रो की टी. के. अनुराधा और बलारमाथी, डी.आर.डी.ओ. की डॉ. टेसी थॉमस तथा अमरिकी भारतीय वैज्ञानिक चंदा झवेरी इत्यादि कई महिलाएं अपना योगदान दे रहीं हैं।

इन मुख्य संशोधकों के अलावा कई भारतीय नारियां संशोधनों के क्षेत्र में बहुत कार्य कर रही हैं।
सी.एस.आय.आर. स्थित नौजवान संशोधिका प्रियंका शर्मा आज देश की जानीमानी संशोधक मानी जाती है। चंडीगढ़ की रहनेवाली प्रियंका ने प्लॅस्टिक बायोचिप एक लेक्ट्रोकेमिकल सेन्सर नामक छोटे से साधन का निर्माण किया है जिसके द्वारा परिसर में रहनेवाले कम मात्रा में भी घातक होनेवाले जानलेवा रसायनों का कम समय और मूल्य में परीक्षण हो सकता है। टी. आर 35 नामक राष्ट्रीय अनुसंधानकों की सूचि में पिछले साल सिर्फ एक ही महिला इन्होव्हेटर का नामांकन हुआ था और वो थी प्रियंका शर्मा।

मायक्रोसॉफ्ट संशोधन केन्द्र में कार्यरत भारत की संशोधक 31 वर्षीय इंद्राणी मेंधी ने एक अलग आविष्कार किया है। भारत में कई सारी भाषाएं हैं और उनकी लीपि अलग-अलग है। साथ ही यहां आज भी निरक्षरता है। इन निरक्षर लोगो को संगणक से जोडने के लिये इंद्राणी ने लीपी विरहित माध्यम (टेक्स्ट फ्री युजर इन्टरफेज) का निर्माण किया है। इस माध्यम से कोई भी निरक्षित व्यक्ति संगणक का प्रयोग करना सीख सकता है।

इसी मायक्रोसॉफ्ट संशोधन केंद्र में भारत की ही और एक संशोधक 29 वर्षीय ऐश्वर्या लक्ष्मी रतन ने भी एक नया अविष्कार किया है। आज कागज और कलम की संकल्पना भी इतिहास बनेगी यह स्थिती आ गयी है। संगणक आज अपने जीवन का अविभाज्य घटक बन गया है,परंतु इन संगणकों की भी अपनी मर्यादा है। कागज पर कलम से लिखने की अनुभूती तो अलग ही है और भारत में विभिन्न भाषाओं को संगणक के साथ जोड़ना आसान काम भी नहीं है। इन सभी मुश्किलों का एक आसान सा हल ऐश्वर्या ने निकाला है।

उन्होने कागज और संगणक का जुगाड बनया है। उपभोक्ता को केवल कागज के उपर कलम से (बॉलपेन) लिखना है। यह कागजवाला पॅड संगणकीय पॅड (डिजीटल प्लेट) के उपर रख दिया जाता है। उपभोक्ता जो कागज पर लिखेगा, वही सब उस डीजीटल पॅड पर आ जायेगा। जैसे हम एक कागज के पीछे कार्बन रखकर दुसरी प्रति निर्माण कर लेते हैं। इस जुगाड की एक और विशेषता यह है कि एक कागज खतम होने के साथ ही, जब वह निकाल दिया जाता है तभी अपने आप संगणक ने जो कुछ जमा किया है, साथ में लगे ध्वनिप्रक्षेपक द्वारा सुनाया जाता है।
आय.आय.टी भारत की जानीमानी संशोधन संस्था है। आय. आय. टी. कानपुर की छात्रा कु.शानु शर्मा ने एक अनोखा इनोव्हेशन किया है। विकलांगों के लिये बनायी गयी कुर्सी तो हर किसी ने देखी है। उसे ‘व्हीलचेअर’ कहते है। 17 वे दशक में खोजी गई यह ‘व्हीलचेअर’ विकलांगों के लिये बहुत महत्वपूर्ण है, किंतु इस व्हीलचेअर की सबसे बडी कमी यह है की सीढ़ियों पर या असमतल जमीन पर चढ़ने या उतरने का काम यह नहीं कर सकती।

शानु ने इस व्हीलचेअर के पहियों के साथ एक अलग 3 खांचेवाला अंग्रेजी वाय आकार का पहिया और हँडल जोड दिया। इस पहियों से ‘व्हीलचेअर’ पूरी सुरक्षा के साथ विकलांग के ही नियंत्रण में सिढ़ी से निचे आ सकती है। और थोडे से अभ्यास के साथ ‘व्हीलचेअर’ उस सिढ़ी या चढ़ाव के ऊपर भी जा सकती है।

लक्ष्मी नायर अमरिका में रहनेवाली एक अनिवासी भारतीय महिला हैं। मांस पेशियों के पुनर्निर्माण में माहिर लक्ष्मीजी ने हाल ही में घुटने में स्थित अ‍ॅन्टीरिअर क्रुशीएट लिगामेंट के पुननिर्माण को संभव किया है। इसी आविष्कार के कारण उन्हें सन 2011 के अंतरराष्ट्रीय इनोव्हेटर वुमन ऑफ द इयर का सम्मान प्राप्त हुआ है।

आय. आय. टी. मुंबई की नीना ग्लीडा और शीतल पाटील ने उनके सहकारी संदिप के साथ मिलकर एक अलग जुगाड का निर्माण किया है। आतंकवादी हमलों में सबसे ज्यादा नुकसान करनेवाली वस्तु होती है बम। टी.एन.टी., आर.डी.एक्स आदि कई नामों से आज हम परिचित है। यह विस्फोटक रखनेवाले अतंकवादी सामान्य नागरिको जैसे ही रहते है और भीडवाले सार्वजनिक इलाकों में ही छुपाते है। इन विस्फोटकों को अगर उसी समय पहचाना जाय, तो बहुत सारे हादसे रोके जा सकते हैं, किंतु इन्हें पहचानना ही सबसे बडी मुश्किल है। आज इनकी पहचान के लिये या तो प्रशिक्षित कुत्तों की सहायता ली जाती है या अत्याधुनिक साधन इस्तीमाल होते है। इन दोनो मामलो में आर्थिक कारण से सभी जगह पर इनका इस्तेमाल नहीं हो सकता।

नीना और शीतल ने यह सोचकर एक बहुत ही कम दामोंवाला स्फोटक पहचान साधन का निर्माण किया है। केवल एक मोबाईल जितना छोटा यह उपकरण इन स्फोटकों से निर्मित वायु को पहचान लेता है। कुत्ते भी इसी के द्वारा विस्फोटक ढ़ूंढ़ सकते हैं। केवल 9 वोल्ट विद्युत शक्ति पर चलनेवाला यह साधन आज उपलब्ध साधनों के सिर्फ 5 प्रतिशत कम कीमत में बनाया जा सकता है।
ये सब प्रतिकात्मक हैं जो तमाम नारीयों का प्रतिनिधित्व करती हैं। देश की रक्षा करनेवाले नौजवानों की तरह ही इन संशोधकों को हमें सच्चे दिल से प्रणाम करना चाहीये।

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