बटुकनाथ की विद्वता

पंडित बटुकनाथ जी का पूरा नाम बटुकनाथ चतुर्वेदी है। उन्हीं का कहना है कि चतुर्वेदी का अर्थ होता है चारों वेदों के ज्ञाता। लेकिन मुझे तो वह एक भी वेद के ज्ञाता नजर नहीं आते, अन्यथा वह कबीर दास जी की तरह ‘बरसे कम्बल भीगे पानी वाली उल्टी वाणी में न बोलते।
एक दिन बड़े सबेरे ही घर पहुंच गये और कहने लगे, ‘परदेसी जी, अब तो स्कूल-कालेजों में पढ़ाई का स्तर इतना गिर गया है कि हाई स्कूल, इण्टर पास बच्चों की कौन कहे, अरे! बी. ए., एम. ए. पास लड़के भी सही-सही आवेदन-पत्र नहीं लिख सकते।

मैंने मन में सोचा, भला यह भी कोई सोचने का विषय है। अब हम सब इक्कीसवीं सदी में चल रहे हैं, तब पंडित बटुकनाथ जी की ऐसी पोंगापंथी बातों का भला क्या औचित्य है। बच्चों को आवेदन-पत्र लिखने की ही क्या आवश्यकता है। अब, जबकि प्रारम्भ से लेकर अन्त तक उनकी सारी पढ़ाई उनके पिताश्री को ही करनी होती है, यहां तक कि उनकी परीक्षाएं भी उनके पिताश्री ही देते हैं, तो यह भी कार्य सम्पादित करने में उन्हें क्या परेशानी हो सकती है। रही बात नौकरी की, तो आजकल नौकरी कोई मात्र आवेदन-पत्र देने से मिलती नहीं वह तो पइसा पिलाने पर ही उपलब्ध होती है- उसकी भी व्यवस्था आवेदन-कर्ता के पिताश्री को ही करनी होती है। फिर कलयुगी बच्चे पढ़ाई-लिखाई की ऐसी छोटी-छोटी बातों पर अपना समय क्यों बर्बाद करें, जबकि सारी समृद्धि और संस्कृति को सेल्युलॉइड के माध्यम से दर्शाने पर लोग तुले हैं, अगर आप युवाओं के ज्ञान को परखना ही चाहें तो फिल्म और टी. वी. से जुड़े प्रश्नों को पूछिये, आप दंग रह जाएंगे देखकर कि कितनी पटुता से वे सौ फीसदी सही उत्तर देते हैं। यह बात पूरे भरोसे के साथ कह रहा हूं। फिर भी यकीन नहीं आ रहा हो तो अपने साहबजादों और साहबजादियों से कभी ऐसे सवाल करके देख लीजिए।

यह सच है कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान पंडित बटुकनाथ जी को गांधी जी को नजदीक से देखने और परखने का मौका मिला था, लेकिन आजादी के बाद हमारे कार्यालयों में गांधी जी की एक हाथ में लाठी लिये तथा दूसरे हाथ का पंजा दिखाते हुए चित्र का दर्शन उन्हें नहीं हुआ, अन्यथा वह इस तरह की बातें न करते। आज आप किसी भी कार्यालय में पहुंच जाएं, वहां के कर्मचारी गांधी जी का यही चित्र दिखाते हुए इस बात की ओर इंगित कर देंगे-देखिए गांधी जी भी कह रहे हैं कि पहले पांच दीजिए फिर कार्यवाही प्रारम्भ हो। गांधी जी के चित्र की इस मुद्रा का गूढ़ार्थ तो सामान्य लोग तक समझ गये हैं पर हमारे पंडित बटुकनाथ जी हैं कि गीता का रहस्य समझाते फिर रहे हैं। लेकिन गांधी जी के पंजे का अर्थ नहीं समझ सके हैं।

मुझे तो कभी-कभी पंडित बटुकनाथ जी की विद्वता पर ही तरस आने लगता है। पता नहीं किस ज्ञान के आधार पर उन्हें आज के समाज में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार ही दिखायी दे रहा है। मेरी दृष्टि को तो ऐसा कहीं कुछ नजर नहीं आता। अगर कोई आप के बाल-बच्चों को मिठाई खाने के लिए कहीं कुछ देता है तो आप न लें, यह भी उचित नहीं श्रद्धा से जो कोई कुछ दे, उसे स्वीकार करना हमारी भारतीय परम्परा है। हम लाख पश्चिमी सभ्यता की नकल करें अभी हम लोग इतने बेगैरत नहीं हुए हैं कि अपनी संस्कृति को एकदम ही भूल जाएं। कुछ-न-कुछ तो शेष सभी के पास सुरक्षित है ही। अब आप ही देखिये कि पंडित बटुकनाथ की अकल कितनी घिस-पिट गयी है। हमारे वरिष्ठ या कनिष्ठ अधिकारियों या नेताओं की लड़की या लड़के की शादी या उनके पप्पू या गुड़िया के बर्थ-डे के अवसर पर कोई कुछ देता है तो पंडित जी की दृष्टि में यह सब रिश्वतखोरी लगती है। वाकई पंडित बटुकनाथ जी की उल्टी वाणी का रहस्य मेरे जैसे मोटी अकल के आदमी की समझ के बाहर है, इसलिए मेरी धारणा है कि ऐसे व्यक्ति भले ही पूज्यनीय हों, पर उनकी सीख पर चलने से किसी को भी धक्के-ही-धक्के खाने पड़ सकते हैं और लड्डू-ही-लड्डू वे खाते रहेंगे जो पंडित बटुकनाथ चतुर्वेदी जैसे सिरफिरों की बातें मानते हैं।

मुझे तो कभी-कभी पंडित बटुकनाथ जी की विद्वता पर ही तरस आने लगता है। पता नहीं किस ज्ञान के आधार पर उन्हें आज के समाज में रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार ही दिखायी दे रहा है। मेरी दृष्टि को तो ऐसा कहीं कुछ नजर नहीं आता। अगर कोई आप के बाल-बच्चों को मिठाई खाने के लिए कहीं कुछ देता है तो आप न लें, यह भी उचित नहीं श्रद्धा से जो कोई कुछ दे, उसे स्वीकार करना हमारी भारतीय परम्परा है। हम लाख पश्चिमी सभ्यता की नकल करें अभी हम लोग इतने बेगैरत नहीं हुए हैं कि अपनी संस्कृति को एकदम ही भूल जाएं। कुछ-न-कुछ तो शेष सभी के पास सुरक्षित है ही। अब आप ही देखिये कि पंडित बटुकनाथ की अकल कितनी घिस-पिट गयी है।
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