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फिल्मी बरसात

फिल्मी बरसात

by दिलीप ठाकुर
in जुलाई -२०१३, फिल्म, सामाजिक
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फिल्म वालों को बरसात का मौसम गर्मी और ठण्ड से अधिक प्रिय है। फिल्म के नामों जैसे- बरसात, बारिश, बरसात की एक रात, बिन बादल बरसात इत्यादि से लेकर फिल्मी गानों जैसे- भीगी‡भीगी रातों में, बरसात में हमसे मिले तुम आदि गानों तक बहुत बारिश होती रही है। यह भी कहा जा सकता है कि बारिश ने हिंदी फिल्मों को ‘ग्लैमर’ दिया।

कभी‡कभी किसी फिल्म की पटकथा का आधार ही बरसात होती है। उदाहरणार्थ चमेली। अचानक बारिश होने के कारण एक समझदार व्यक्ति (राहुल बोस) बस स्टॉप का सहारा लेता है और उस बारिश से बचने के लिए शरीर बेचने वाली एक लड़की (करीना कपूर) उसी बस स्टॉप पर खड़ी होती है । बारिश के कारण उन दोनों को वहीं खड़े रहने के अलावा कोई रास्ता नहींबचता। उन दोनों के बीच बातचीत शुरू होती है, पहचान बढ़ती है और कहानी आकार लेने लगती है।

इस तरह की बारिश ने कई रंग‡बिरंगी फिल्मोें को जन्म दिया है। जैसे मेला फिल्म में अचानक बारिश शुरू होने के कारण गांव में भगदड़ मच जाती है और दो छोटे बच्चे गुम हो जाते हैं। सच्चा‡झूठा में दो छोटे भाई‡बहन बारिश के पानी में बह जाते हैं। अमर अकबर एंथोनी में भी जब परिवार बिछड़ता है, उस दिन बारिश होती है।

दूसरी ओर बाहर हो रही मूसलाधार बारिश नायक‡नायिका का मन उद्वेलित कर देती है और प्रणय की शुरुवात होती है।
अमोल पालेकर की फिल्म ‘थोड़ा सा रूमानी हो जायें’ में नाना पाटेकर जीवन जीने की आस जगाता है। जीवन जीने के स्वप्न दिखाता है। कहने का तात्पर्य यह है कि हिंदी फिल्मों में केवल बादलों की गड़गड़ाहट,बारिश, नायिका का भीगना इतना ही नहीं दिखाया है। फिल्मों में तो बारिश की इन्द्रधनुषी छटा देखने को मिली है। इसलिए फिल्मों में चित्रित बारिश से दर्शक कभी ऊबे नहीं और ऐसा भी नहीं लगता कि फिल्मों में बारिश का चित्रांकन कभी बन्द होगा।

हिंदी फिल्मों के बारिश गीत तो कई हैं। केवल मुखड़े ही याद किये जाएं तो ये भीगे हुए गीत सामने आ जाते हैं। ‘प्यार हुआ इकरार हुआ है’, ‘डम‡डम डिगा‡डिगा’,‘ हाय रे हाय’, ‘आज रपट जायें तो’, ‘टिप‡टिप बरसा पानी’,‘जिया धड़क‡धड़क जाये’‘इधर चला मैं उधर चला’,‘एक नजर में भी’,‘ताल से ताल मिला’ इत्यादि।

लोगों को बारिश में भीगे नायक‡नायिकाओं को देखने में आनन्द आता है, परन्तु वास्तविकता तो यह है कि चित्रीकरण के समय इन लोगों को बहुत असुविधा महसूस होती है। विशेषत: नायिकाओं को यह पसन्द नहीं है, क्योंकि उन्हें कपड़ों और मेकअप को सम्भालते हुए भीगना पड़ता है और बार‡बार रीटेक करना पड़ता है। अभिनेत्रियों से हुए साक्षात्कार में कई अभिनेत्रियों ने बारिश की शूटिंग को कष्टप्रद बताया है।
हिंदी फिल्म जगत ने लगभग हर सदी की फिल्म में प्रेम व्यक्त करने के लिए बरसात के गीतों का आधार लिया है। कभी‡कभी इन गीतों ने यह भी दिखाया है कि सावन आने का कोई अलग मतलब भी होगा।

फिल्मों में बारिश का उपयोग केवल ‘ग्लैमर’ को बढ़ावा देने के लिए ही नहीं किया गया है। ‘फिर वही रात’, ‘अंधेरा’, ‘परदे के पीछे’ इत्यादि अन्य कई फिल्मों में रहस्यमय वातावरण तैयार करने में भी इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। रामसे बंधु, रामगोपाल वर्मा, विक्रम भट्ट जैसे निर्देशकों ने तो कई फिल्मों में बारिश को एक कैरेक्टर के रूप में प्रस्तुत किया है, इसके लिए उनकी कल्पनाशक्ति की दाद दी जानी चाहिए। कुछ फिल्मों में भारी बारिश के दौरान मारधाड़‡फइटिंग सीन फिल्माये गए हैं। ‘आज का गुण्डाराज’, ‘प्रतिबन्ध’ आदि फिल्मों में यह तय करना मुश्किल लगता है कि मारधाड़ का जोर अधिक है या बारिश का।

एम.एस.सथ्यू की ‘सूखा’ फिल्म की बीसात कुछ अलग थी। इसमें बरसात न होने की वजह से गांव में भीषण सूखा पड़ता है। इस परिस्थिति पर राजनीति शुरू हो जाती है। बिमल रॉय की ‘दो बीघा जमीन’ में बारिश न होने कारण जीने‡मरने की समस्या उत्पन्न होती है। किसान (बलराज साहनी) को शहर में आकर आदमी द्वारा खींचा जाने वाला रिक्शाचलाने की नौबत आ जाती है। उसकी इस दशा को देखकर दर्शकों को उससे स्वाभाविक रूप से सहानुभूति हो जाती है। विजय आनंद के द्वारा निर्देशित‘गाइड’ में भी बरसात न होने के कारण हाहाकार मच जाता है। राजू गाइड इस उद्देश्य से अन्न‡जल का त्याग कर देता है कि भगवान प्रसन्न होकर बारिश करेंगे। आशुतोष गोवारीकर द्वारा निर्देशित ‘लगान’ का किसान भी बरसात के लिए व्याकुल है। बरसात न होने के कारण अंग्रेजों द्वारा लगान माफ करवाने के लिए वह भुवन (आमिर खान) के नेतृत्व में एक क्रिकेट टीम तैयार करता है और अंग्रेजों को पराजित करता है। इन सबका का अर्थ यह है कि फिल्मों ने यह भी दिखाया है कि बरसात न होने के कारण या बरसात की आस लिए जीने के कारण किसानों की क्या दुर्दशा होती है।

हिंदी फिल्मों की इस प्रवृत्ति का विशेष उल्लेख करना होगा कि उसने बरसात और भीगी हुई नायिका, यही समीकरण नहीं रखा। नमक हलाल के गीत में जब स्मिता पाटिल भीगी हुई दिखायी दीं तो कई समीक्षकों ने कहा कि यह उन्हें शोभा नहीं देता।

पुनर्जन्म की कथाओं (मेहबूबा, जनम‡जनम) से लेकर रहस्य कथाओं (राज) तक निरन्तर बारिश हो रही है, परन्तु वास्तविकता में बारिश में शूटिंग करना आसान नहीं होता। हालांकि आधुनिक तकनीकी के कारण यह थोड़ा आसान हो गया है फिर भी शूटिंग के लिए नकली बारिश करनी होती है, तब कैमरा, बिजली आदि की व्यवस्था करनी होती है। एक बात की ओर ध्यान देना आवश्यक होगा कि बरसात में जो फिल्में रिलीज हुईं,अधिकतर कामयाब रहीं। ‘बाबी’, ‘जंजीर’,‘शोले’,‘राम तेरी गंगा मैली’,‘त्रिदेव’,‘गुलामी’,’हम आपके हैं कौन’,‘कोई मिल गया’,‘1942‡ए लव स्टोरी’ इत्यादि कई फिल्में बारिश में रिलीज हुईं। स्कूल -कॉलेज खुलने के दिन, युवा मन,बारिश का मन मोहने वाला वातावरण, त्यौहारों उत्सवों की शुरुवात जैसा सारा माहौल फिल्म की कामयाबी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अर्थात पर्दे की फिल्मी बारिश तो शुभ होती ही है साथ ही बाहर होने वाली बारिश भी शुभ फलदायी होती है। पर्दे की बारिश में सबसे ज्यादा राजेश खन्ना और मुमताज भीगे हैं। यह भी फिल्म इंडस्ट्री की विशेषता है।

ऐसा लगता है कि फिल्मों की यह बारिश गाथा कभी समाप्त न हो, क्योंकि उसमें रोमांस, उत्कटता, डर, नाट्य इत्यादि सारे भाव शामिल हैं। इतना ही नहीं बारिश न होने का दुख और डर भी शामिल है। फिल्मों की बारिश एक आनन्ददायी यात्रा है, बिलकुल प्राकृतिक बारिश जैसी।

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