हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
तोहफा

तोहफा

by डॉ सूर्यबाला
in कहानी, नवंबर -२०१३
0

‘मम्मी!’
कांच के गिलासों में बर्फ डालती शोभा ने आंखें उठायीं तो बबलू फिर खड़ा था, ‘मम्मी, अजू भी जा रहा है।’थकान और निराशा से बोझिल उसकी आवाज रुआंसी हो आयी थी।
‘क्यों? उससे कहो न, थोड़ी देर और रुक जाये।’
‘उसका नौकर उसे लिवाने आया है।’
अजू बबलू का सबसे प्यारा दोस्त था। महीनों पहले से बबलू उसे अपनी बर्थ‡डे की तारीख और तैयारियां बताता आ रहा था कि उसके पापा इस बार उसके बर्थ‡डे पर कितने सारे लोगों को बुला रहे हैं। केक मम्मी का बनाया हुआ नहीं, बल्कि ‘क्रीम किंग’ से आया हुआ होगा। सब तरह की ड्िंक्स‡ लेमन, ऑरेंज, केंपा जितनी चाहो उतनी लो… खूब बड़े-बड़े बलूंस, रिबंस, टॉफियां… केक काटा जाएगा, तो ये सारे बड़े-बड़े गुब्बारे अपने दोस्तों में बांट देगा‡ फिर पटाक-पटाक फोड़ेंगे गुब्बारे सब मिलकर… बड़ा मजा आएगा… पापा-मम्मी डाटेंगे थोड़े ही और खुश होंगे… पापा ने कहा है, तू जितने चाहे, उतने दोस्तों को बुला सकता है। केक काटते हुए सारे दोस्तों को बुला सकता है। केक काटते हुए सारे दोस्तों के साथ फोटो खिंचेंगी।
लेकिन अब ‘मम्मी! अजू भी जा रहा है।’

‘तो?’ शोभा विचलित हो उठी, ‘अच्छा चल, मैं अजू के नौकर से बात करती हूं – क्या कहता है वह।’
‘नहीं, आंटी ने मुझसे भी कहा था कि अजू को सात बजे भेज देना और अब तो आठ बज रहे हैं।’
‘हां ’ शोभा को याद आया, अजू की मम्मी ने उसे भी नोट भेज दिया था कि अजू जाएगा जरूर बबलू के बर्थ डे पर, लेकिन प्लीज उसे जल्दी भेज दीजिएगा। आजकल ज्यादा रात को बच्चे को अकेले भेजना भी परेशानी है। उसने बबलू से कहा, ‘अच्छा बेटा, ऐसा करते हैं तू अजू को अच्छी तरह बिस्किट, वेफर्स, मिठाइयां खिला दे। मैं प्लेट लगाकर देती हूं। सुन-तू भी खा ले, दोनों दोस्त – मैं ड्िंक्स भी देती हूं, फिर उसे जाने दे।’

‘लेकिन अजू पूछ रहा है तू केक कब काटेगा – अब तो सारे दोस्त चले गये।’
बबलू की आंखें पूरी तरह डबडबा आयीं। अनायास शोभा के गले में कुछ अटका था, पर किसी तरह संभलकर बोली, ‘बस थोड़ी देर और बेटे, चड्ढा अंकल को भी आने दे।’और उसने बच्चे का माथा चूमकर सहला दिया।
‘लेकिन, मेरे सारे दोस्त तो एक-एक करके चले गये – सब पूछते थे, तू केक क्यों नहीं काटता, इत्ते सारे लोग तो आ गये?’ और बबलू सम्भलता-सम्भलता भी रो पड़ा।

‘अरे, ऐसे रोते हैं कहीं राजा बेटे!’ शोभा ने दोनों हाथों से उसका सिर अपनी बांहों में समेट लिया, ‘देख, चड्ढा अंकल को कहीं और भी जाना था न, इसी से देर हो रही है। पापा ने उन्हें फोन किया था। उन्होंने कहा – बस थोड़ी देर में आते हैं। जानता है, उन्होंने पापा से कहा था – ‘जरूर – बच्चे के बर्थ डे पर जरूर आऊंगा’ और अब तू उनके आये बिना केक काट देगा तो वे क्या सोचेंगे? उनको बुरा लगेगा न?’
‘मेरे दोस्तों को भी कितना बुरा लग रहा था। सब कह रहे थे – अब हम लोगों की तेरे साथ फोटो भी नहीं खिंचेंगी – हम तो जा रहे हैं।’
‘कोई बात नहीं, तू यहां अंकल के साथ फोटो खिंचा लेना केक काटते हुए।’
‘लेकिन वे जल्दी आ भी तो नहीं रहे।’बबलू खीझ उठा।
‘आएंगे, आते ही होंगे। कहा न, उन्हें कहीं और भी जाना था। जानता है, वे कम्पनी के सबसे बड़े ऑफिसर हैं और उन्हें बुलाया है पापा ने तेरे बर्थ डे में।’
‘मम्मी!’

‘क्या है बेटे?’
‘तो मैं भी अजू के साथ उसके घर चला जाऊं। अब चड्ढा अंकल आ जायें तो मुझे बुलवा लेना।’
‘अरे, तू कैसा बुद्धू है – तेरे घर इतने लोग तेरे बर्थ डे में आये हैं और तू अजू के घर जाने की बात कर रहा है?’
‘फिर मैं क्या करूं? वो सब लोग तो बड़े-‡बड़े हैं और उन लोगों को मैं जानता भी तो नहीं। अकेले मेरा मन भी नहीं लग रहा।’
‘अच्छा, तो तू जाकर कमरे में अपने नये खिलौनों से खेल।’
‘अच्छा!’
‘सुनो!’

‘क्या है?’
‘पता है, क्या टाइम हो रहा है? कब आयेंगे तुम्हारे चड्ढा?’
‘अब क्या बताऊं? बार-बार फोन करना भी अच्छा नहीं लग रहा। कहीं बिगड़ गये तो बस।’
‘तो मैं केक कटवाये देती हूं।’
‘पागल हो गयी हो, क्या सोचेंगे वे?’
‘लेकिन, इतने सारे लोग तो घंटों से बैठे हैं, वे क्या सोचते होंगे, यह भी खयाल किया है?’
‘सोचने दो, जो सोचते हैं। हम कर ही क्या सकते हैं?’
‘और जो सोचने के बाद बार-बार जाने की जल्दी मचा रहे हैं?’
‘तो जाने दो उन्हें।’

‘वाह! यह इतना आसान है क्या? किसी को बुलाकर घण्टों रोके रहो और फिर वैसे ही वापस भेज दो।’
‘तो खिला दो उन्हें, जो खिलाना चाहो-मेरा दिमाग क्यों चाट रही हो?’
‘कैसी बातें कर रहे हो, सबकी अपनी इज्जत होती है। कोई तुम्हारे खाने का भूखा नहीं है। जाते-जाते कहते जायेंगे – मिसेज चंद्रा, टाइम से बुलाना था।’
‘टाइम, क्या मैं जानता था कि…’ मिस्टर चंद्रा बौखला उठे।
‘तुम्हें कौन कह रहा है, पर चड्ढा को तो समझ होनी चाहिए थी। इतनी बड़ी फैक्टरी के ओनर और टाइम तक का सेंस नहीं। नहीं आना था तो कह देते। यह बीच में लटकाये रखना…’
‘धीरे बोलो। तुम्हें बात करने तक का शऊर नहीं। कहीं किसी के कानों तक…’
‘अरे, बाहर जाकर देखो, लोग खुलेआम ताने कस रहे हैं’ – कहीं पीकर झूम रहें होंगे चड्ढा – होश कहां होगा कि कहीं जाना है – अभी मिसेज गुलाटी कह रही थीं –
‘मिसेज गुलाटी से कहो अपना रास्ता नापें।’
‘लेकिन बात केवल मिसेज गुलाटी तक ही तो नहीं, एक के उठते ही सारे जाने लगेंगे।’
‘जाने दो, आई डोंट केयर फॉर एनीबडी।’

लेकिन कहने के साथ उन्हें खुद भी होश आ गया। इतना आसान है क्या? सबका चला जाना मजाक है क्या? और कहीं सचमुच ही सारे-के सारे मेहमान चले जाएंगे तो चड्ढा के आने पर कितना बुरा लगेगा। यह भी तो उनकी कितनी बड़ी बेइज्जती होगी – क्या सोचेंगे वे! नहीं, चड्ढा के आने तक कैसे भी, सबको रोके ही रखना है।
‘तब? तब क्या किया जाये?’ उन्होंने हारी-थकी आवाज में कहा।
‘मैं क्या बताऊं? जाओ? जाकर फिर से किसी तरह फोन पर गिड़गिड़ाओ। मेरा मतलब है, रिक्वेस्ट करो ‘सर, प्लीज…।’
‘जाता हूं। उन्होंने परेशान स्वर में कहा। फिर एकाएक पूछा, बबलू कहां है?’
‘बेड रूम में खेल रहा है। कितनी बार समझाया, कहा, पर कुछ भी नहीं खा रहा। कहता है, केक काटकर तब खाऊंगा। दोपहर बाद से कुछ नहीं खाया। रोया भी कितना!’

‘क्यों?’ ‘उसके सारे दोस्त चले गए इंतजार करते-करते, अन्त में अजू भी।’
‘ओह! उसे समझा दो। जाता हूं, किसी तरह राव के यहां से फोन करने की कोशिश करता हूं।’
‘सुनो, सुनो! बात हो गयी… बात हो गयी है चड्ढा से, बड़े अच्छे मूड में थे, ऐसे बोले जैसे मैं उनका मातहत नहीं, बल्कि यार-दोस्त हूं। बोले – ‘डोंट वरी, बस दस-पन्द्रह मिनट में आ रहा हूं।’उनके घर वाले भी बला के शरीफ-मेरी रिक्वेस्ट पर, जहां चड्ढा गये हैं, वहां का नम्बर बताकार बात करवा दी। मैंने जरा च़ढा भी दिया कि सर! हम लोग आपके लिए परेशान थे कि कहीं रास्ते में कुछ गड़बड़ी… सो खुश हो गये। बड़ी अच्छी तरह बात हो गयी।’

‘बात हो गयी न?’ शोभा बात काटकर तुर्शी बोली, ‘तो अब जाकर बाहर बैठे मेहमानों से भी बात कर लो। कोई-कोई तो उठ चुके हैं।’
‘अरे, तो तुम क्या करती रहीं? कहना था, जरा देर..़ ।’
‘प्लीज … बस एक बार कह दिया। मुझे जितना कुछ कहना था कह चुकी। अब मैं कुछ नहीं कह सकती। तुम्हें जाकर जो कुछ, जैसे कहना हो कहो।’

‘ठीक है। तुमसे कुछ नहीं हो सकता। मैं ही जाता हूं। तुम जरा जल्दी से स्कॉच की दो बोतलें भेजो, जो कभी-कभार खास मौकों के लिए रखी हैं – भेज सकती हो या वह भी नहीं। देखूं कैसे नहीं रुकते हैं लोग? इतनी बड़ी कम्पनी के डायरेक्टर आ रहे हैं हमारे यहां, असल में तो लोग यही सोच-समझकर दिल-ही-दिल में जले-भुने जा रहे हैं। एक-एक पैग स्कॉच जाएगी तो सारी रात बैठे रहेंगे।’
‘आ गये, आ गये, अरे शोभा, किधर गयी? इधर आओ न, मिस्टर चड्ढा आ गये भई!’
‘हैलो सर!’

‘हैलो-हैलो!’
चारों ओर अजीब सी सरसराहट भरी उत्तेजना फैल गयी। चड्ढा आ गये – आ गये चड्ढा, आइए सर, आइए!
‘हो-हो-हो-हो … सॉरी फॉर लेट।’
‘नहीं सर, कोई बात नहीं। ऐसी कोई खास देर नहीं हुई। आप आइए – मिलिए मिस्टर सो एंड सो… मिससे … सो…हो…हो…हो…।’
‘हो-हो-हो… तो चलो।’
‘जी… जी… सर!’

‘व्हेयर इज द चाइल्ड?’ चड्ढा किसी तरह दिमाग की लगाम खींचते हुए बोले।
मिस्टर चंद्रा ने जल्दी से शोभा को इशारा किया, ‘सुनो, बबलू किधर
गया? बबलू को बुलाओ।’
शोभा ने धीमी फुसफुसाहट में जवाब दिया, ‘सो गया रोते-रोते।’
मिस्टर चंद्रा और धीमे से फुसफुसाहट, तो खड़ी क्या हो, जल्दी से जगाकर, आंखें धुलाकर ले आओ। अच्छी तरह से समझा देना ‘हैलो सर’ कह के शेकहैण्ड करे। उनींदा होगा, बता-सिखाकर लाना।’
‘बबलू, बबलू बेटे उठ! देख, चड्ढा अंकल आ गये। चल, चलकर केक काट। उठ, उठ जा बेटे!’
बबलू की सोई उदास पलकें थोड़ी खुलीं। उसने हैरानी से चारों तरफ देखा और करवट बदलकर फिर गहरी नींद में सो गया। शोभा ने फिर से आंखें धुलवायी, जगाया और तब उसे धीरे-धीरे सोने से पहले का सारा माहौल याद आने लगा-एक-एक कर आशीष, अमित, बंटू और अंत में अजू का भी इंतजार कर-करके निराश होकर चले जाना।

नींद और भूख से चिड़चिड़ी आंखों में एक अभियान जागा, ‘मैं नहीं काटता केक।’
‘अरे, नहीं बेटे, ऐसे नहीं कहते। सब लोग तेरा इंतजार कर रहे हैं। चड्ढा अंकल तुझे बुला रहे हैं न, चल, जल्दी चल!’
जिद, भूख और कच्ची नींद की चिड़चिड़ाहट चड्ढा अंकल के नाम से ही चरपरा गयी। वह अड़कर चिल्ला उठा, ‘नहीं-नहीं, मुझे नहीं काटना केक -वेक, मेरे सारे दोस्त जो चले गये।’
‘मान जा बेटे! सब लोग क्या सोचेगें? देख, तू नहीं काटेगा तो पापा की कितनी इंसल्ट होगी। कितना दौड़े हैं पापा तेरे बर्थ डे के लिए! कितनी चीज लाये… ऐं?’

बबलू की आंखों में सचमुच सुबह से शाम तक भाग-दौड़ करते पसीने-पसीने होते पापा का थका-हारा चेहरा साकार हो उठा। हां, पापा बहुत थके! उसी के लिए तो? बाल-मन पसीज गया। चुपचाप मम्मी के साथ हो लिया।
मम्मी ने ही किसी तरह उसका हाथ पकड़कर केक कटवाया। तालियां बज गयीं – ‘हैप्पी बर्थ-डे!’
उसने चारों ओर देखा – न अजू, न बंटी, अजनबी-अनजान चेहरे। मन फिर मसोस उठा।
साहब को जल्दी थी। ड्ाइवर पहले ही बता गया था। मिस्टर चंद्रा ने जल्दी से काजू, केक, वेफर्स से भरी प्लेट उनके सामने कर दी – ‘लीजिए सर!’
बबलू वैसा ही खड़ा रहा।

साहब झूमते से खड़े थे। बबलू की ओर इशारा करके बोले, ‘सो, व्हाट इस योर नोम सनी?’
‘नाम-नाम बता दो बबलू अपना।’
बबलू चुप खड़ा रहा।
साहब पास आये – ‘कम, आइ विल गिव यू द बर्थ किस।’और अपने होंठ उन्होंने बबलू के चेहरे से सटा दिए। सिगरेट और शराब का तेज भभका उठा और बबलू ने चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया। मिस्टर चंद्रा परेशान हो उठे।
‘हो-हो-हो… तुम तो छोरियों की तरह शरमाता है। ऐं?’
और साहब ने लड़खड़ाती जुबान से एक गंदा पार्टी जोक सुना डाला। भीतर का ठहाका बबलू को अपनी बर्थ-डे का सबसे बड़ा उपहास लगा। लगा, सब उस पर हंस रहे हैं।

‘ओ.के., गुडबॉय!’ साहब के हाथ बबलू की तरफ बढ़े थे
लेकिन बबलू ने हाथ नहीं बढ़ाया।
‘बबलू, शेकहैण्ड करो साहब से।
बबलू वैसा ही बुत खड़ा रहा, घुन्ना-सा।
‘बबलू’ आवाज में आदेश की सख्ती और कड़क थी।
लेकिन बबलू तो जैसे पत्थर बन गया था। नशे में धुत्त साहब के हाथ वैसे ही बढ़े थे।
‘अरे, तुम हाथ मिलाना भी नई जानता?’
‘बबलू’ मिस्टर चंद्रा आंखें तरेरकर कड़के थे।
लेकिन बबलू के हाथ और भिंच गये थे। वह खड़ा था, वैसा ही पत्थर-सा अविचल।
‘बबलू!’

मिस्टर चंद्रा लगभग चीखे थे और एक भरपूर थप्पड़ उसके बायें गाल पर पड़ा था। बबलू दर्द से बिलबिलाकर लड़खड़ाया था। शोभा की दबी चीख़ निकली थी और वह उसे गोद में चिपकाये तेजी से अन्दर कमरे की ओर चली गयी थी।
बाहर कार की तरफ जाते हुए चड्ढा के साथ-साथ मिस्टर चंद्रा का गिड़गिड़ाता स्वर घिसटता चला जा रहा था, ‘सॉरी सर, वेरी सॉरी सर, आइ एम रियली सॉरी!’

चड्ढा लोंदे की तरह कार की पिछली सीट पर लु़ढक गये थे। नशे में धुत्त उन्हें पहले भी कुछ सुनायी नहीं दिया था।
अन्दर कमरे में बिस्तर पर लेटे बबलू की समूची देह रह-रहकर हिचक उठती थी। शोभा भीगे मुलामय कपड़े से उसके गाल धोती, थपकती जा रही थी। थोड़ी देर बाद हिचकियां थमने पर उसने बायां हाथ लाकर धीरे-धीरे अपने गालों को छुआ। फिर बहुत धीमी, लगभग अशक्त आवाज में शोभा से बोला, ‘मम्मी, कल मुझे स्कूल मत भेजना।’

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: arthindi vivekhindi vivek magazineinspirationlifelovemotivationquotesreadingstorywriting

डॉ सूर्यबाला

Next Post
रसोईघर में इमली की तलाश

रसोईघर में इमली की तलाश

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0