अनेक भाषाओं में फिल्म का निर्माण और अनेक धर्म, भाषा, पंथ और जातियों का हिंदी फिल्मों में सहभाग यही हमारे फिल्म उद्योग की खासियत है। हमारे फिल्म उद्योग की सौ सालों की यात्रा में मराठी, बंगाली, कन्नड़, तमिल, तेलगु, मलयालम, भोजपुरी, अंग्रेजी, पंजाबी, गुजराती जैसी प्रमुख भाषाओं के साथ ही तुलु, कोंकणी, सिंधी जैसी बोली भाषाओं में भी फिल्मों का निर्माण हो रहा है। पूरी दुनिया में भारत ही एक ऐसा देश होगा जहां इतनी भाषाओं में फिल्मों का निर्माण होता है। हमारं फिल्म उद्योग की यही तो विशेषता है। साथ ही हमारेे फिल्म उद्योग में हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सभी धर्मों के कलाकार, तंत्रज्ञ, कर्मचारी, निर्माता, निर्देशक, वितरक आदि का सहभाग होता है। किसी भी जाति या धर्म के प्रति मन में बुरा भाव न रखते हुए सभी लोग हंसी ख़ुशी एकसाथ काम करते हैं और इस व्यवसाय का विकास कर रहे हैं। यह अत्यंत महत्वपूर्ण है।
अन्यों की तरह सिंधी भाषियों का योगदान भी फिल्म उद्योग के लिए महत्वपूर्ण है।
आज फिल्म उद्योग के शीर्ष निर्माताओं पर ध्यान दिया जाये तो वासु भगनानी और टिप्स कंपनी के मालिक तौरानी बंधुओं का नाम अपने आप सामने आ जाता है। ये लोग सिंधीभाषी हैं। वासु भगनानी ने हीरो नंबर वन, जोड़ी नंबर वन, रहना है तेरे दिल में जैसी कई सुपर हिट फ़िल्में दी हैं और इस कारोबार में अपने पैर जमा लिए हैं। किसी उद्योग की नीति-रणनीति को समझ कर अपने कार्य का विस्तार करना ही सिंधी उद्योगपतियों की विशेषता है। अतः वे हिंदी फिल्म उद्योग में भी अपना स्थान बनाने में सफल हुए। वासु भगनानी ने अपने बेटे जैकी को भी कुछ समय बाद बतौर हीरो फिल्म उद्योग में उतरा। उसके लिए भगनानी ने ’फालतू’ नामक फिल्म बनाई।अब जैकी भगनानी के रूप में हिंदी फिल्म उद्योग को एक सिंधी हीरो भी मिल गया है।
तौरानी बंधुओं ने भी इस क्षेत्र में अपनी पकड़ बना ली है। उन्होंने लगभग तीस वर्ष पहले टिप्स म्यूजिक कम्पनी की स्थापना की तब दक्षिण मुंबई के ग्रांट रोड में ड्रीमलैंड थिएटर के पास उनका कार्यालय हुआ करता था। पहले उन्होंने मराठी भाषा के गीत और रीमिक्स गानों के कैसेट बनाना शुरू किया। मराठी कोली गीतों का ’कोली नंबर वन’ नमक एल्बम भी उन्होंने तैयार किया।
वे यह अच्छी तरह से समझ गए थे कि व्यापार में अपने पैर ज़माने के लिए बाजार में चलनेवाले सिक्कों का उपयोग करना ही होगा। सिंधियों ने व्यापार में अपना अस्तित्व टिकाये रखने के लिए ऐसी कई चालें चलीं, जो उनके व्यापार की दृष्टि से आवश्यक थीं। तौरानी बंधुओं ने अपने व्यापार का विस्तार करते समय दो बातों का ध्यान रखा। पहला, मुंबई के ओशिवरा क्षेत्र में एक भव्य कार्यालय खोला। हिंदी फिल्म उद्योग के लगभग सभी काम यहीं से होने के कारण उनका यह कदम सही रहा। इसके साथ ही उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी अपने कदम बढ़ाये और ’धड़कन’जैसी फिल्मो का निर्माण किया। तौरानी बंधुओं- रमेश और कुमार में से कुमार तौरानी के बेटे गिरीश ने सन 2013 में अभिनय के क्षेत्र में कदम रखा। इसके लिए तौरानी बंधुओं ने प्रभुदेवा को निर्देशन की कमान देकर ’रमैया बतावैया’ का निर्माण किया। श्रुति हासन इस फिल्म की नायिका थी।
हिंदी फिल्म उद्योग के और कुछ सिंधी मान्यवरों में गोविन्द निहलानी, जिन्होंने अर्धसत्य, देव जैसी बहुचर्चित फिल्मों का निर्माण किया; जी. पी. सिप्पी ने ब्रह्मचारी, अंदाज, सीता और गीता के बाद शोले जैसी फिल्म का निर्माण करके इतिहास रच दिया।
रमेश सिप्पी शोले के निर्देशक के रूप में जाने जाते हैं। इसके अलावा ‘शान’, ‘शक्ति’, ‘सागर’ जैसी बहुचर्चित फिल्मों और बुनियाद जैसी महामालिका का निर्माण किया। बबीता (आज की पीढ़ी के लिहाज से करीना और करिश्मा की मां अर्थात रणधीर कपूर की पत्नी) कपूर खानदान की बहू। वह ‘राज’ फिल्म के माध्यम से अभिनय क्षेत्र में आई। ‘डोली’ ‘फर्ज’ ‘कब, क्यूं और कहां’, ‘कल, आज और कल’, ‘हसीना मान जायेगी’, ‘जीत’ आदि महत्वपूर्ण फिल्में कीं। साधना को मुख्यत: अपनी केशसज्जा और नेत्रकटाक्ष के कारण जाना गया। ‘वो कौन थी’, ‘मेरा साया’, ‘अनीता’ ‘राजकुमार’, ‘वक्त’, ‘एक मुसाफिर एक हसीना’ ‘इश्क पर जोर नहीं’ आदि उनकीे लोकप्रिय फिल्में थीं। उन्होंने ‘गीता मेरा नाम’ नामक फिल्म का निर्देशन भी किया। जूही चावला ने मिस इंडिया का पुरस्कार जीता और ‘सल्तनत’ नामक फिल्म के द्वारा फिल्म उद्योग में प्रवेश किया। ‘कयामत से कयामत तक’, ‘इश्क’ ‘लव लव लव’, ‘डर’, ‘फिर भी दिल है हिंदुस्तानी’, ‘स्वर्ग’, आदि मशहूर फिल्मों में अभिनय किया। असरानी ने हास्य कलाकार के रूप में अपनी पहचान कायम की। ‘शोले’, ‘अनहोनी’, ‘चुपके चुपके’ इत्यादि फिल्मों में अभिनय के बाद ‘चला मुरारी हीरो बनने’ फिल्म से निर्देशन भी प्रारंभ किया। ‘हम नहीं सुधरेंगे’, ‘सलाम मेमसाब’, ‘दिल ही तो है’ जैसी हिंदी फिल्मों के साथ ही कुछ गुजराती फिल्मों का भी निर्देशन किया। इनके अलावा किट्टू गिडवानी, शीला सजवानी आदि जैसे और भी कुछ कलाकार हैं जिन्होंने इस क्षेत्र में कार्य किया है। खासकर जबसे टीवी चैनलों पर महासीरियल, गेम शो, और रियलिटी शो का जोर बढ़ा है, तब से कई छोटे-बडे सिंधी कलाकारों को अवसर मिला है।
सिंधी भाषा में भी बीच-बीच में कुछ फिल्मों का निर्माण होता रहता है। इन फिल्मों को सिंधी भाषा प्रेमी अपनी भाषा की फिल्मों के रूप में अच्छा प्रतिसाद भी देते हैं।
सन 1954 में ‘रायच’ नामक सिंधी फिल्म बनी। अतु लालवानी उसके निर्माता और दीपक आशा उसके निर्देशक थे। शांति शाम चंदानी व पी। मणी इस फिल्म में प्रमुख भूमिका में थे। पटकथा राम पंजवानी की थी और घुलो सी रानी ने संगीत दिया था।
सन 1973 में ‘अन्जा ता मान नीधरी अभियान’ नामक सिंधी फिल्म आई। राम तारासिंघानी ने इसका निर्माण किया था। दीपक आशा और जी. धनवानी ने संयुक्त रूेप से इसका निर्देशन किया था। इस फिल्म में अजीज बेदी चंद्रा और कान मोहन की मुख्य भूमिका थी। यह सिंधी भाषा की एक हास्य फिल्म थी। इसके अलावा सिंधू- ए जे किनारे, हाजमलो भगत कंवर राम अबाना, शाल शील नाजामन इत्यादि सिंधी फिल्में प्रदर्शित हुईं।
इस सब पर गौर करने के बाद यह कहा जा सकता है कि भारतीय फिल्म जगत के इतिहास में सिंधी भाषी लोगों एवं सिंधी फिल्मों का भी महत्वपूर्ण स्थान है।
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