हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
स्त्री और चुनौती  एक-दूसरे का पर्याय है

स्त्री और चुनौती एक-दूसरे का पर्याय है

by रचना प्रियदर्शिनी
in महिला, मार्च २०२१, विशेष
0

इस वर्ष का अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च को है। इस वर्ष की थीम है- स्त्री और चुनौतियां। पिछले लगभग सौ सालों में महिलाओं ने संघर्षरत रह कर अपने अधिकार हासिल किए हैं। भारत में ऐसी महिलाएं भी हैं, जिन्होंने लीक से हट कर उपलब्धियां हासिल की हैं।

अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस असल में एक मज़दूर आंदोलन से उपजा है, जिसे बाद में संयुक्त राष्ट्र ने सालाना आयोजन की मान्यता दी। विधिवत रूप से इस दिन को मनाने की शुरुआत आज से 112 वर्ष पहले यानी साल 1908 में हुई थी, जब अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में करीब 15 हजार महिलाएं निश्चित काम के कम घंटों, बेहतर तनख्वाह और वोटिंग के अधिकार की मांग को लेकर सड़कों पर प्रदर्शन के लिए उतरी थीं। महिलाओं द्वारा किए गए इस विरोध प्रदर्शन के एक साल बाद, अमेरिका की सोशलिस्ट पार्टी ने पहले राष्ट्रीय महिला दिवस को मनाने की घोषणा की थी।

महिला दिवस को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मनाने का प्रस्ताव वर्ष 1910 में क्लारा जेटकिन नामक एक महिला ने रखा था। क्लारा उस वक्त यूरोपीय देश डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगेन में कामकाजी महिलाओं की अंतरराष्ट्रीय कांफ्रेंस में शिरकत कर रही थीं। कॉन्फ्रेंस में उस वक्त 100 महिलाएं मौजूद थीं, जो 17 अलग-अलग देशों से आई थीं। इन सभी महिलाओं ने सर्वसम्मति से क्लारा के इस प्रस्ताव को मंजूर कर लिया। इस तरह,  वर्ष 1911 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चार देशों- ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विटजरलैंड में महिला दिवस मनाया गया। हालांकि उस वक्त तक इसे मनाने के लिए कोई दिन निश्चित नहीं था।

वर्ष 1917 में प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान रूस की महिलाओं ने तंग आकर खाना और शांति (ब्रेड एंड पीस) के लिए विरोध प्रदर्शन किया। यह विरोध इतना संगठित था कि सम्राट निकोलस को अपना पद छोड़ना पड़ा। इस घटना के बाद रूस की महिलाओं को वोट देने का अधिकार भी मिला। रूसी महिलाओं ने जिस दिन इस हड़ताल कि शुरुआत की थी, वह दिन 28 फरवरी था और ग्रेगेरियन कैलेंडर में यह दिन 8 मार्च था। तभी से 8 मार्च को अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस मनाया जाने लगा।

वर्ष 1975 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा इस दिवस को औपचारिक मान्यता दिए जाने के बाद से इसे विश्व भर में मनाया जाने लगा। वर्ष 1996 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस को एक थीम के तहत मनाया गया था और तब से प्रतिवर्ष यूएन द्वारा इस दिन को मनाने के लिए एक थीम निर्धारित की जाती है।

भ्रूण बनने से लेकर मृत्यु की दहलीज तक झेलती हैं चुनौती

इस साल अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस का थीम है- Choose To Challenge यानी ऐसी महिलाएं, जिन्होंने अपने जीवन में चुनौतियों से लड़ने की ठानी है। अगर थोड़ी गहराई से गौर करें, तो मां के गर्भ में एक बीज के रूप में अंकुरित होने से लेकर पैदा होने और फिर मृत्यु होने तक महिलाओं को हर कदम पर कई तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हर कदम पर अपने अस्तित्व को कायम रखने के लिए लड़ना पड़ता है। खुद की पहचान साबित करने के लिए तमाम तरह की विपरीत परिस्थितियों से जूझना पड़ता है। हर बात पर लड़कों से तुलना किए जाने का दंश झेलना पड़ता है। बावजूद इन सबके लड़की है कि हार मानती ही नहीं। बड़ी कठजीव प्राणी होती हैं ये। बड़ी ही जीवट प्रकृति वाली। अगर ठान लिया कि फलां काम करना है, तो बस करना है।

बीमार पिता का सहारा बनीं यूपी की नाई बहनें

उत्तर प्रदेश के कुशीनगर जिले में पडरौना क्षेत्र के कसया विकास प्रखंड का गांव है- बनवारी टोला। वहां के निवासी ध्रुव नारायण गांव में गुमटी लगा नाई का काम किया करते थे। उसी कमाई से उन्होंने चार बेटियों के हाथ पीले कर दिए। अब दो छोटी बेटियों (13 साल की ज्योति और 11 साल की नेहा) की जिम्मेदारी ही बची थी। सब ठीक चल रहा था कि अचानक साल 2014 में ध्रुव नारायण को लकवा मार गया। हाथ-पैर ने काम करना बंद कर दिया। कुछ ही रोज में दुकान बंद हो गई।

उस वक्त तक दोनों लड़कियां स्कूल में पढ़ती थीं। ऐसे में ज्योति ने पिता की बंद पड़ी दुकान को खोला। निश्चित रूप से यह काम सामाजिक मानकों के अनुरूप नहीं था, क्योंकि नाईगिरी को अब तक ’पुरुषों का पेशा’ के तौर पर ही देखा जाता था, लेकिन वे क्या करतीं? उनके पास और कोई विकल्प भी तो नहीं था। पिछले छह सालों में दोनों बहनों ने पिता की गुमटीनुमा दुकान को सैलून की शक्ल दे दी है और अपने परिवार को भंवर से उबार लिया है। आज लोग इन्हें हैरत से देखते हैं स्वाभाविक भी है। अब तक लोगों ने जवान लड़कियों को नाई का काम करते हुए कभी देखा नहीं था न!

लॉ के साथ कॉमर्स ग्रेजुएट हैं देश की पहली महिला ट्रक ड्राइवर

ट्रक का नाम सुनते ही हमारी आंखों के सामने रफ-टफ पुरुष ड्राइवर का चेहरा उभर आता है। ट्रक ड्राइवर के तौर पर एक महिला की कल्पना करना हमारे लिए बेहद मुश्किल था, पर अब ऐसा नहीं है। यूपी में जन्मी और महाराष्ट्र में पली-बढ़ी 51 वर्षीय योगिता रघुवंशी ने इस भ्रांति को तोड़ दिया है। वह बिना किसी परेशानी के 10 पहियों वाली और 73 टन वजनी मल्टी एक्सल ट्रक से लेकर 14 पहियों और 30 टन वजन वाले कार्गो ट्रक को भी बेहद कुशलतापूर्वक चला लेती हैं। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि गत 17 वर्षों में अपने ट्रक से देश के कोने-कोने का सफर करने वाली योगिता बरकतुल्लाह यूनिवर्सिटी से लॉ तथा कॉमर्स में ग्रेजुएट हैं। उनके पास ब्यूटीशियन का प्रमाणपत्र भी है। इसके अलावा वह लॉयर्स एंड जुरिस्ट्स में भी जॉब कर चुकी हैं। वह हिंदी, अंग्रेजी, गुजराती, मराठी के साथ-साथ तेलुगू भी काफी अच्छी तरह बोल लेती हैं।

वर्ष 2003 में पति और भाई की अचानक हुई मौत के बाद अपने बच्चों- यशिका तथा यश्विन के परवरिश की पूरी जिम्मेदारी उन पर आ गई। योगिता की मानें, तो ”उस वक्त मुझ पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था। अगर मैं अपनी वकालत की प्रैक्टिस करती, तो मुझे किसी भी सीनियर वकील के साथ काम करने पर उतने पैसे नहीं मिलते कि मैं अपने दोनों बच्चों का बेहतर भरण-पोषण कर सकूं। इस जॉब में मुझे हर दिन 2 से 3 हजार रुपये मिल जाते हैं, जिससे मैं अपने बच्चों को बेहतर परवरिश देने में सक्षम हूं। साथ ही, मेरे ड्राइविंग और अलग-अलग राज्यों की यात्रा का मेरा शौक भी पूरा हो जाता है।”

देश की पहली राजमिस्त्री हैं झारखंड की सुनीता

महिलाएं बतौर राजमिस्त्री भी पुरुषों के एकाधिकार क्षेत्र में सशक्त हस्तक्षेप करने लगी हैं। उदयपुरा (झारखंड) की सुनीता देवी बताती हैं कि दो साल पहले उनके गांव में स्वयं सहायता समूह को स्वच्छ भारत मिशन के तहत एक सौ शौचालय निर्माण कराने का काम सौंपा गया था। राजमिस्त्री नहीं मिलने पर उन्होंने खुद कर्णी-सुत्ता संभाला और राजमिस्त्री बन गईं। वह बताती हैं कि अब तक वह लगभग डेढ़ हजार महिलाओं को राजमिस्री बना चुकी हैं। अब तो उन सभी महिलाओं को अच्छी कमाई के कारण अपने काम में खूब मजा आ रहा है। सुनीता देवी राजमिस्त्री ही नहीं, बल्कि उन्होंने अपने गांव के सभी तीन सौ घरों के लोगों को स्वच्छता मिशन के दायरे में ला दिया है। उन्होंने पूरे गांव को खुले में शौच से मुक्त करा दिया है। शुरू में इस कार्य के लिए उनको न केवल लोगों के ताने-उलाहने सुनने पड़े बल्कि अन्य तरह की भी दिक्कतों का सामना करना पड़ा। शुरू में उनको अकुशल राजमिस्री की मान्यता मिली थी, आज उनके अलावा अन्य डेढ़ हजार महिलाएं भी इस काम की मान्यता प्राप्त कर चुकी हैं। दो वर्ष पूर्व अंतराष्ट्रीय महिला दिवस पर सुनीता को उनके सतत प्रयासों के लिए राष्ट्रपति ने पुरस्कृत किया। सुनीता के जज्बे को देख गांव की महिलाओं को प्रेरणा मिली।\

साल 2021 की थीम Choose To Challenge का प्रमुख उद्देश्य

  • डिजिटल उन्नति को सेलिब्रेट करना और तकनीक के माध्यम से महिलाओं को नवोत्पाद निर्माण में दक्ष बनाना।

  •  खिलाड़ी महिलाओं की उपलब्धियों का जश्न मनाना और उन्हें प्राप्त होनेवाली समान आय, स्पॉन्सरशिप और दृश्यता  के लिए उनकी सराहना करना।

  •  वैसी कार्य संस्कृति का निर्माण करना, जहां महिलाओं के कैरियर समृद्ध व संपोषित हो सके और उनकी उपलब्धियों का जश्न मनाना।

  •  महिलाओं को बिना किसी पूर्वाग्रह और बाधा के उनके    लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में प्रोत्साहित करने और  आगे बढ़ाने वाले क्रियाकलापों को बढ़ावा देना।

  •  सशक्त पदों पर काबिज महिलाओं को अपने स्वास्थ्य से संबंधित बेहतर निर्णय लेने में सहायता करना।

  •  महिलाओं के रचनात्मक कार्यों को सेलिब्रेट करना और   वाणिज्यिक परियोजनाओं तथा कार्यभारों हेतु दृश्यता को     उन्नत बनाना।

दहेज प्रथा को जड़ से खत्म करना चाहतीं हैं पलक

पश्चिम चंपारण के बगहा एक प्रखंड के कोल्हुआ चौतरवा की मुखिया पलक भारती एक बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखती हैं। वह कई सालों से दहेज के खिलाफ अभियान चला रही हैं। एक महिला होने के नाते सरिता दहेज प्रथा के दर्द को बखूबी समझती हैं। अपनी बड़ी बहन का रिश्ता तय होने में इसे बेहद करीब से महसूस भी किया। तभी उन्होंने संकल्प लिया कि उनके जीवन का एक ही विकल्प होगा -दहेजरहित शादी। अपनी शादी भी ऐसी ही की और कई अन्य दहेजरहित शादियां भी करा चुकी हैं।

ससुराल में भी दहेज के खिलाफ मुहिम जारी रही। महिलाओं के बीच जाती और उन्हें दहेज व बाल विवाह के खिलाफ संघर्ष के लिए प्रेरित करती। कई बार विरोध का सामना करना पड़ता, लेकिन हार नहीं मानी। कई लोग जागरूक होकर दहेज विरोधी अभियान में शामिल हुए।

दुनिया का बोझ अपने सिर पर उठानेवाली मंजू कुली

अब तक रेलवे स्टेशन पर आपने पुरुषों को ही कुली के रूप में बोझा उठाते हुए देखा होगा, लेकिन अब महिलाएं ने भी इस क्षेत्र में आगे आ रही हैं। जयपुर निवासी मंजू देवी देश की पहली महिला कुली है।

मंजू देवी अपने घर में अकेली कमानेवाली महिला हैं। पति महादेव की मौत के बाद वह अपने बच्चों की परवरिश करने के लिए मजबूरीवश यह काम कर रही हैं। बच्चों के लिए उन्होंने कुली बनने का फैसला लिया। मंजू की मानें, तो न तो उन्हें इस काम से शर्म आती है और न ही पैसेंजर के वजनी सामान उठाने में उन्हें कोई तकलीफ महसूस होती है। उनके पति भी कुली थे, उनका बिल्ला नंबर-15 लेकर काम करना शुरू कर दिया। पति की मौत के बाद उनके तीनों बच्चे बेसहारा हो गए थे। ऐसे वक्त में मंजू ने हार मानने के बजाय पति की जगह खुद कुली का काम करने की ठानी। वह रोजाना पुरुष कुलियों के साथ बैठ कर यात्रियों का इंतजार करती हैं। हर कोई उन्हें कुली के रूप में देख कर हैरान रह जाता हैं। सभी कुली उनकी काफी मदद करते हैं। वर्ष 2018 में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के हाथों सम्मानित होनेवाली देश की कुल 112 महिलाओं में मंजू का नाम भी शामिल था। मंजू की दुखभरी आपबीती सुन कर राष्ट्रपति भी भावुक हो गये थे।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazineselectivespecialsubective

रचना प्रियदर्शिनी

Next Post
स्विटजरलैंड में महिलाओं के बुर्का पहनने पर लगा प्रतिबंध

स्विटजरलैंड में महिलाओं के बुर्का पहनने पर लगा प्रतिबंध

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0