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सिंधियों का राजनीति में स्थान

सिंधियों का राजनीति में स्थान

by राधाकृष्ण भागीया
in अगस्त-२०१४, राजनीति
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आजादी! जिसकी हकदार संपूर्ण जनता थी न सिर्फ कांग्रेस। लेकिन कांग्रेस मात्र खुद को ही उसका अधिकारी मान बैठी। वह नई रचना में इतनी व्यस्त हो गई कि निर्वासित सिंधियों की ओर विशेष ध्यान देने का खयाल उसे नहीं आया और न ही कोई सिंधी कांग्रेसी नेता इतना प्रभावी था कि सिंधियों के लिए सरकार पर अपना प्रभाव डाल सके। दूसरी ओर सिंधी हिंदुत्व की विचारधारा की ओर झुकने लगे। जनसंघ में उनकी इज्जत भी होने लगी। उन्हें अच्छे-अच्छे पद दिए जाने लगे। विशेष परिस्थितियों से उत्पन्न कष्टों को भी दूर किया जाने लगा। सबसे अच्छा कदम था मानसिक साथ, जो सिंधियों को संघ परिवार में मिलने लगी। उनके साथ समानता का, अपनत्व का व्यवहार होने लगा। विभाजन के पहले सिंध प्रांत असेम्बली में 60 स्थान थे जिसमें मात्र 20 सिंधी हिंदू थे; लेकिन राज्य मुस्लिम लीग का था। उस समय के कांग्रेसी सिंधी नेता थे आचार्य कृपलानी, डॉ. चौइथराय गिडवाणी, जयराम दास दौलतराम और कुजेठी सिपहमलानी इत्यादि। महात्मा गांधी के कहे अनुसार विभाजन नहीं होगा ऐसा मानने के कारण ये नेता हिंदू सिंधियों के लिए कुछ कर नहीं पाए। अत: सिंधी हिंदुओं का इन पर से पूर्ण विश्वास हट गया। आजाद भारत में जयरामदास दौलतराम को गर्वनर एवं आचार्य कृपलानी को कुछ समय के लिए कांग्रेस अध्यक्ष बनाया गया। कुजेठी सिपहमलानी ने मुंबई में सिंधियों को बसाने में, मकान दिलाने में अच्छा काम किया।

इसकी तुलना में जनसंघ एवं रा. स्व. संघ ने निर्वासित सिंधियों को बहुत सम्मान दिया।
जनसंघ एवं रा. स्व. संघ का मुखपत्र कहलवाने वाले साप्ताहिक ऑर्गनाइजर, जिसमें सारी नीतियां और निर्णय दिए जाने थे, उसके सम्पादन का काम भी केवल मलकानी को दिया गया। यह कितना बड़ा विश्वास था। यह साप्ताहिक विश्व के प्रमुख साप्ताहिकों में से एक माना गया है। हिंद पाञ्चजन्य का भी सह-संपादन श्री लालकृष्ण आडवाणी ने किया।

श्री ठाकुरदास मोटवाणी जिन्हें टंडन कहा जाता था, उन्हें राजस्थान जैसे महत्वपूर्ण प्रांत का प्रांत प्रचारक नियुक्त किया गया। मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है, देश की अर्थ व्यवस्था का केंद्र है, ऐसे मुंबई प्रदेश के जनसंघ के अध्यक्ष झमटमल वाधवाणी थे। महाराष्ट्र में जब पहली भाजपा-शिवसेना गठबंधन की सरकार बनी उसमें जनसंघ का एक ही मंत्री था। वह थे हशू अडवाणी। दादा झमटमल को भी स्टेट फाइनेंस कमेटी का चैयरमेन नियुक्त किया गया।

राजनीति में सबसे ब़डा सम्मान अगर सिंधी समाज के लिए कोई है तो वह है लालकृष्ण आडवाणी का उप प्रधानमंत्री बनना। निश्चित ही यह उनकी महानता और योग्यता के कारण है, लेकिन सिंधी समाज के लिए तो गर्व का विषय है ही। स्व. मलकाणी को पांडिचेरी का गवर्नर पद दिया गया था। नागवाणी को रेलवे बोर्ड में लिया गया था। उपरोक्त उदाहरणों के सिवाय स्व. ईश्वरदास रोहणी को मध्य प्रदेश के स्पीकर का पद दिया गया।

हाल ही मेें जो कुछ राज्यों के चुनाव हुए उससे भी सिद्ध होता है कि कांग्रेस को सिंधी समाज की कोई चिंता नहीं। टिकट देते समय सिंधियों का कोई ख्याल नहीं रखा गया। साथ ही यह भी सिद्ध हुआ कि भाजपा को सिंधियों से प्यार और अपनत्व है। यह नाता है दूध और शक्कर का। दोनों देश और धर्म को समर्पित हैं। श्रीचंद कृपालाणी चितौड़ से सांसद रहे। जेसवाणी, आडवाणी एवं एडवोकेट जेठमलानी भाजपा की ओर से सांसद रहे। इस समय भी कांग्रेस की ओर से एक भी सिंधी विधायक नहीं है, जबकि भाजपा के करीब 8 विधायक हैं।
जेठमलानी को मंत्री बनाया था। प्रोफेसर वासदेव देवनागरी राजस्थान से आए हैं। महाराष्ट्र में सिंधियों के लिए भाजपा की ओर से कुछ करना बाकी है। उम्मीद की जा सकती है कि दोनों पक्ष राष्ट्रहित में सहयोग करते रहेंगे।
प्रांतहीन सिंधियों के लिए जो कुछ जिन्होंने भी किया है, उसके लिए धन्यवाद। लेकिन यह सब बहुत कम है। सभी पक्ष इस ओर ध्यान दें यही अपेक्षा है।
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Tags: hindi vivekhindi vivek magazinepolitics as usualpolitics dailypolitics lifepolitics nationpolitics newspolitics nowpolitics today

राधाकृष्ण भागीया

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