समुद्र मंथन का निर्णायक बिहार

गैर कांग्रेसवाद के नारे का स्रोत रहे बिहार की भूमि राजेंद्र प्रसाद, जेपी, कर्पूरी ठाकुर व लोहिया की विचारधारा की भूमि रही है; अतः स्वाभाविक ही है कि बिहार कांग्रेस मुक्त भारत के भाजपाई अभिमान में अंतिम कील ठोकने हेतु कोई कसर नहीं छोड़ेगा। …समुद्र मंथन की मथनी बना बिहार में ही है; अतः बिहार का चुनाव भी विष-अमृत का फैसला कर देगा।

हिंदू वेदों में देव-दानवों के मध्य समुद्र मंथन उल्लेखनीय व चर्चा, उद्धहरणों में आने वाला प्रसंग है। इस समुद्र मंथन में जिस पर्वत का मथनी के रूप में प्रयोग हुआ था वह पर्वत मंदागिरी बिहार में ही स्थित है। लोकतंत्र का मंथन निर्वाचन से पूर्ण होता है। भारत में राज्यों में चुनाव चलते रहते हैं तथा इनका परिणाम राष्ट्रव्यापी राजनीति पर थोड़ा बहुत स्वाभाविक तौर पर पड़ता ही है; किन्तु समुद्र मंथन की मथनी जैसे पर्वत मंदागिरी को अपने आंचल में समेटे हुए बिहार की भूमि पर होने वाला यह विधान सभा चुनाव सामान्य नहीं है। बिहार के इस चुनाव की मथनी लोकतंत्र की सीमाओं के अनुरूप मंदागिरी के आसपास ही चल रही है; किन्तु इसका प्रभाव सम्पूर्ण भारत राष्ट्र पर पड़ने वाला है।

बिहार का यह आसन्न विधान सभा चुनाव पूरे भारत की राजनीति को न केवल गरमाए हुए है अपितु इससे आने वाले लोकसभा चुनाव के पूर्व के लगभग चार वर्षों का रोडमैप भी निर्धारित होनें वाला है। सुखद यह है कि बिहार की चैतन्य और जागृत प्रजा इस महत्वपूर्ण तथ्य से भली भांति परिचित है। बिहार की जनता नें जातिगत गणित से ऊपर उठ कर मतदान करने की जो बुद्धिमत्ता, साहस और परम्परा विपरीत आचरण करके गत लोकसभा चुनाव में जिस प्रकार का चैतन्य मानस का परिचय दिया था वह इस विधान सभा चुनाव में भी पूर्ववत दिखाई देगा इसके संकेत स्पष्ट देखे जा सकते हैं। बिहार से मिल रहे इन जाति आधारित राजनीति के विरोधी संकेतों से सम्पूर्ण राष्ट्र बिहार को आदर से देखता दिखाई पड़ रहा है। यद्दपि राजनैतिक दल अब भी बिहार को जातिगत समीकरणों से ही तौलते-आंकते दिखाई पड़ रहें हैं किन्तु ऐसा करने वाले और इस आधार पर चुनावी रणनीति करने वाले धराशायी हो जाएंगे ऐसा स्पष्तः लगने लगा है।

बिहार की 243 विधान सभा सीटों पर हो रहे इस चुनाव में यूं तो सभी ताल ठोकते नजर आ रहे हैं, किन्तु चुनाव भाजपा नीत गठबंधन राजग और लालू नीतीश के महाविलय के मध्य ही सिमट गया है। बिहार के मुख्यमंत्री पद के घोषित प्रत्याशी नीतीश कुमार के कथन चन्दन भुजंग की कथा से लेकर, लालू द्वारा, नीतीश से हाथ मिलाने के समय, यह कह जाने की कथा कि भाजपा को सत्ता से बाहर रखने के लिए जहर भी पी लेंगे जैसे दृष्टांत इस महाविलय के अंतर्तत्व अर्थात सत्ता लोलुपता को भलीभांति उजागर करने में सक्षम घटनाएं हैं। बिहार की जनता इन दोनों वाक्यों को अपने मानस में बैठा चुकी है और ये दो वाक्य बिहार के आने वाले चालीस दिनों के महासमर के बोधिवाक्य बनकर निर्णायक भूमिका निभाएंगे यह भी तय है।
कहना अनावश्यक है कि महाविलय के नेता और मुखिया मुलायम सिंह के ही महाविलय से अलग हो जाने के बाद और कांग्रेस के छोड़ पकड़ के सांप छछून्दरी खेल से परेशान लालू नितीश के लिए भाजपा और साथियों में होने वाला सीटों के बंटवारे का विवाद ही अंतिम बाधा था। प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के महा पैकेजों की घोषणाओं से संकट में फंस गए लालू नितीश टकटकी लगाए बैठे थे कि सीटों के बंटवारे को लेकर रामविलास पासवान, जीतनराम मांझी और भाजपा में संघर्ष हो और वह इसका लाभ उठाए किन्तु ऐसा कुछ हो न पाया!! और इस पर तुर्रा यह रहा कि राजग में सम्मिलित राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेतृत्व उपेंद्र कुशवाह ने सीटों को लेकर निर्णय भाजपा पर छोड़ दिया है।

सीटों के बंटवारे को लेकर लालू नितीश और महाविलय की आशा व्यर्थ भी नहीं थी। राजग में आपसी असामंजस्य के विभिन्न समाचार आ रहे थे। विशेषतः पासवान-मांझी की परस्पर प्रतिस्पर्धा और मांझी की महत्वाकांक्षा के स्वर बड़ी बाधा बन रहे थे। ये समाचार भाजपा के लिए चिंताजनक थे तो महाविलय के लिए आशा की अंतिम किरण के रूप में उभर कर आ रहे थे। अगस्त माह के बीतते-बीतते सीटों के बंटवारे को लेकर राजग के सभी सहयोगी दल भाजपा के विरुद्ध लगभग बिगुल ही बजा चुके थे!! धमकियां, अल्टीमेटम, आंखें दिखाने-तरेरने का वातावरण बनने लगा था।

लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रामविलास पासवान, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा, जीतनराम मांझी के संघर्ष से भाजपा के माथे पर बल पड़ गए थे। किन्तु सितम्बर प्रारम्भ होते होते भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व अमित शाह और भाजपा के बिहार प्रभारी भूपेन्द्र यादव ने ऐसा मंथन किया कि मंदागिरी की मथनी से देवों हेतु अमृत निकालने का स्पष्ट परिदृश्य दिखने लगा!!!

राजग के सभी साथी दलों नें लिखित तौर पर भाजपा नेतृत्व को यह वचन दिया कि सीटों का भाजपाई बंटवारा उन्हें स्वीकार्य होगा। बिहार जैसे चुनावी दंगल वाले राज्य में इस प्रकार का सामंजस्य निश्चित ही विचित्र-अनोखा था, किन्तु यह सत्य था जिसे बिहार और शेष भारत की प्रजा ने देखा और देख रही है। बिहार में विघ्नसंतोषी जब सदन के बाहर राजग में सीटों के बंटवारे को लेकर सर फुटौवल के समाचार की प्रतीक्षा कर रहे थे, तब गत दिनों राजग के चारों घटक दलों नें संग-संग बाहर आकर घोषणा की कि सीटों के बंटवारे को लेकर वे संतुष्ट हैं और सीटों की लड़ाई तो थी ही नहीं!!! बिहार की राजनीति में चर्चित और केन्द्रीय चेहरा बन चुके जीतनराम मांझी ने तो कहा कि हमने भाजपा को बिना शर्त समर्थन दिया है, अतः सीटों के बंटवारे पर विवाद का प्रश्न ही कहां हैं? इस प्रकार जो सर्वसम्मत निर्णय बिहार की जनता जनार्दन के सम्मुख राजग ने प्रस्तुत किया उसके अनुसार राज्य की 243 सीटों में भाजपा खुद 160 सीटों पर चुनाव लड़ेगी, रामविलास पासवान के नेतृत्व में लोजपा 40, उपेंद्र कुशवाहा के नेतृत्व में रालोसपा 23 व पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी के नेतृत्व में हिंदुस्तान आवाम मोर्चा (हम) 20 सीटों पर चुनावी समर में उतरेगी। मांझी की पार्टी ‘हम’ के पांच नेता भाजपा के चुनाव चिह्न पर भी मैदान में उतरे हैं। साथी नेताओं को संतुष्ट करने हेतु भाजपा को अपने हिस्से की कुछ सीटें कम करनी पड़ी हैं।

स्वाभाविक ही सभी को संतुष्ट करने की इस कवायद में भाजपा अध्यक्ष अमित भाई शाह को अतीव श्रम करना पड़ा किन्तु यह स्वाभाविक भी था। परिणाम सुखद आए यह भी अपेक्षित ही था। सर्वाधिक दिक्कत राजग के नए साथी जीतनराम मांझी को मनाने में हुई किन्तु जिस प्रकार के सुखद, सामंजस्यपूर्ण और सौहार्द्र के परिणाम आए हैं उनसे संघर्ष का श्रम छोटा ही दीखता है। भाजपा ने बड़े स्पष्ट कहा कि राजग प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगा और मोदी मुख्य प्रचारक होंगे। गैर कांग्रेसवाद के नारे का स्रोत रहे बिहार की भूमि राजेंद्र प्रसाद, जेपी, कर्पूरी ठाकुर व लोहिया की विचारधारा की भूमि रही है अतः स्वाभाविक ही है कि बिहार कांग्रेस मुक्त भारत के भाजपाई अभिमान में अंतिम कील ठोकने हेतु कोई कसर नहीं छोड़ेगा। वस्तुतः नीतीश भाजपा से लड़ ही नहीं पाएंगे ऐसा लगने लगा है क्योंकि वे जंगलराज के प्रतीक पुरुष लालू यादव के संग खड़े हो गए हैं। 12 लाख करोड़ के घोटालों और अन्य कई स्कैंडल्स के नायक लालू के साथ वे रक्षात्मक संघर्ष करेंगे यह तो तय था किन्तु चुनाव के प्रारम्भिक दौर में ही यह परिदृश्य दिख जाएगा इसकी आशा तो कम ही थी!!

 

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