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उत्तर प्रदेश में बनेंगे नए राजनीतिक समीकरण

उत्तर प्रदेश में बनेंगे नए राजनीतिक समीकरण

by कृष्ण्मोहन झा
in जुलाई-२०१६, राजनीति
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अगले वर्ष हो रहे उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों की भाजपा ने युद्ध स्तर पर तैयारी आरंभ कर दी है। नीतिश कुमार सपा, रालोद, जदयू तथा कांग्रेस के महागठबंधन का प्रयोग दोहराना चाहते हैं। कांग्रेस को तो किसी न किसी का पिछलग्गू होकर अपनी लाज बचानी होगी। सपा का अकेले दम पर चुनाव लडऩे का दंभ काम नहीं आएगा। बसपा पुनः सत्ता के सपने देख रही है। इससे स्पष्ट है कि चुनाव के पूर्व कई चौंकाने वाले राजनीतिक समीकरण सामने आ सकते हैं।

उत्तर प्रदेश विधान सभा के अगले साल होने जा रहे चुनावों में अपनी शानदार जीत सुनिश्चित करने के इरादे से जिन दलों ने अभी से युद्ध स्तरीय तैयारियां प्रारंभ कर दी हैं उनमें भारतीय जनता पार्टी को अग्रणी माना जा सकता है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष पद की कमान केशव प्रसाद मोर्य को सौंप कर पार्टी ने दो माह पहले ही यह संदेश दे दिया था कि दलितों और पिछड़ी जातियों के वोटों पर उसकी विशेष नज़र है। भाजपा इस हकीकत से वाकिफ हो चुकी है कि उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर विकास कार्य कराए जाने के बावजूद अगले चुनावों में सपा सरकार को ‘एंटी इन्कबैंसी’ की वजह से जनता का कोपभाजन बनाना पड़ सकता है और उसका सीधा लाभ बहुजन समाज पार्टी को ही मिलने की संभावनाएं बलवती हो उठी हैंं, जिसने 2007 के चुनावों में ‘चढ़ गुण्डन की छाती पर, मुहर लगाओं हाथी पर’ का नारा देकर सत्ता पर कब्जा कर लिया था। इस समय भी उत्तर प्रदेश में वही हालात हैं। अपराधी तत्वों को नियंत्रित कर पाने में अखिलेश यादव की सरकार बुरी तरह असफल सिद्ध हुई है और सरकार के पास इतना समय भी शेष नहीं बचा है कि राज्य में बिगड़ती कानून व्यवस्था पर अपनी पकड़ मजबूत बनाकर जनता का भरोसा जीत सके।

राज्य की पूर्व मुख्यमंत्री और बसपा सुप्रीमो मायावती यह तय मान कर चल रही हैं कि अगले विधान सभा चुनावों के बाद राज्य में सत्ता की बागडोर उनके पास ही आने वाली है। इसलिए भाजपा भी बसपा के वोट बैंक मेें सेंध लगाने की कोशिशों में जुट गई है। पिछले दिनों प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी के लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी के अंतर्गत एक गांव में एक दलित परिवार के घर पर भाजपाध्यक्ष अमित शाह का भोजन करना भी भाजपा की चुनवाी तैयारियों का ही एक हिस्सा आप मान सकते हैं। सपा सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव, बसपा सुप्रीमो मायावती या कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल भले ही दलित परिवार के घर अमित शाह के भोजन करने की घटना को एक नाटक करार दे, परंतु खुद को दलितों और पिछड़ी जातियों का सब से बड़ा हमदर्द बताने के लिए ऐसी घटनाएं भारतीय राजनीति में इतनी आम हो चुकी हैं कि इनसे कोई भी दल जनता को भरमाने में सफल नहीं हो सकता। जनता को नाटक और हकीकत में भेद करने की समझ आ चुकी है।

भारतीय जनता पार्टी के लिए उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव इसलिए विशेष मायने रखते हैं क्योंकि 2014 के लोकसभा चुनावों में उसने राज्य की 80 में से 73 लोकसभा सीटों पर कब्जा करके इतिहास रच दिया था। उस समय अमित शाह भाजपा के उत्तर प्रदेश प्रभारी थे और राज्य में भाजपा की प्रचंड विजय का श्रेय अमित शाह की अद्भुत रणनीतिक क्षमता को दिया गया था। उक्त लोकसभा चुनावों के बाद ही अमित शाह को भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की कमान सौंपी गई थी। उत्तर प्रदेश विधान सभा के आगामी चुनावों में दरअसल अमित शाह के रणनीतिक कौशल का भी इम्तहान होना है इसलिए अमित शाह ने उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों के लिए अभी से अपनी रणनीति तय करना शुरू कर दिया है। उत्तर प्रदेश विधान सभा देश की सब से बड़ी विधान सभा है। इस नाते हर दल के लिए इस राज्य में अपनी जीत विशेष मायने रखती है। समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी का तो मुख्य जनाधार उत्तर प्रदेश में ही फैला हुआ है। यहीं स्थिति राष्ट्रीय लोकदल की भी है जो पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट बहुल क्षेत्रों तक सीमित जनाधार के बल पर ही अपना अस्तित्व बचाए हुए है और उसके अध्यक्ष चौधरी अजीत सिंह ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपने जनाधार की शक्ति के सहारे ही अब तक विभिन्न दलों की सरकारों में पद प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है। वे कांग्रेस, भाजपा, सपा सभी के साथ तालमेल कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों के अगले साल होने जा रहे चुनावों के पूर्व वे किस दल के साथ तालमेल कर लेंगे यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। उनकी चर्चा सपा के साथ भी चल रही है और जदयू के साथ भी। सपा और जदयू में से किसी एक मेें विलय का विकल्प भी उन्होंने खुला रखा है। यूं तो उत्तर प्रदेश में सपा अभी तक यह दावा करती चली आ रही है कि वह अकेले दम पर आगामी विधान सभा चुनाव लड़ेगी परंतु एन्टी एन्कम्बैंसी फैक्टर के कारण उसे मतदाताओं के कोपभाजन बनने की आशंका भी सताने लगी है इसलिए वह रालोद से चुनावी तालमेल करने पर भी विचार कर सकती है। उधर रालोद ने भाजपा की तरफ से भी निमंत्रण मिलने की उम्मीद लगा रखी है। दरअसल रालोद पर अब सपा और भाजपा यह दवाब बना रही है कि वह उनमें विलय के लिए तैयार हो जाए। अजीत सिंह यह अच्छी तरह समझ चुके हैं कि अपना राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए उन्हें समझौता तो करना ही पड़ेगा इसलिए वे उसी दल के साथ जाएंगे जहां वे अधिकतम राजनीतिक लाभ लेने में सफल हो सके। अजीत सिंह को अपने बेटे जयंत सिंह के राजनीतिक पुनर्वास की चिंता भी सता रही है जो गत लोकसभा चुनावों में मथुरा से भाजपा प्रत्याशी हेमा मालिनी के हाथों पराजित हो गए थे।

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों के पूर्व कई चौंकाने वाले राजनीतिक समीकरण सामने आ सकते हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार यह चाहते हैं कि बिहार के महागठबंधन का प्रयोग उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में भी दोहराया जाए और इसमें सपा, रालोद, जदयू तथा कांग्रेस की भागीदारी हो। कांग्रेस की स्थिति यह है कि वह केवल दूसरे दलों के साथ समझौता करके ही उत्तर प्रदेश में अपनी लाज बचा सकती है। जदयू को भी किसी महागठबंधन में शामिल होने का विकल्प ही चुनना पड़ेगा और गठबंधन केवल सपा के नेतृत्व में ही बन सकता है। सपा भी इस हकीकत से वाकिफ हो चुकी है कि अकेले दम पर चुनाव लडऩे का दंभ उसे भारी पड़ सकता है।

भारतीय जनता पार्टी भले ही यह सपना संजोए बैठी हो कि उत्तर प्रदेश विधान सभा के अगले साल होने जा रहे चुनावों में वह सुविधाजनक बहुमत हासिल करके सरकार बनाने मेें कामयाब हो जाएगी, परंतु उसे यह भी अहसास है कि ऐसी उम्मीद पालना अति आत्म विश्वास भी साबित हो सकता है। दरअसल इस समय राज्य में सबसे बुलन्द हौसलें किसी पार्टी के हैं तो वह बहुजन समाज पार्टी ही है। उत्तर प्रदेश में भाजपा के पास ऐसा कोई चेहरा नहीं है जिसे वह भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट कर सके। ऐसी स्थिति में पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह को राजस्थान के राज्यपाल पद से मुक्त करके वह भावी मुख्यमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने के विकल्प पर भी विचार कर सकती है। कल्याण सिंह के सामने अगर ऐसा कोई प्रस्ताव लाया जाता है तो उसे कल्याण सिंह सहर्ष स्वीकार कर सकते हैं। कल्याण सिंह दलित और पिछड़ी जातियों के बीच खासे लोकप्रिय रहे हैं।

राजनीति तो संभावनाओं का खेल है। यहां कोई स्थायी शत्रु या स्थायी मित्र नहीं होता। इस संभावना से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि अपनी पूरी ताकत लगा देने के बावजूद अगले साल अगर भाजपा बहुमत पाने में सफल न हो तो बसपा के साथ मिल कर सरकार बनाने का विकल्प चुन ले। बसपा के साथ भाजपा पहले भी सत्ता में भागीदारी कर चुकी है हालांकि भाजपा को उस समय कुछ कटु अनुभव भी हुए थे लेकिन अगर भाजपा महाराष्ट्र में शिवसेना के साथ और जम्मू- कश्मीर में पीपुल्स डेमोके्रटिक पार्टी के साथ सत्ता में भागीदारी कर सकती है तो उत्तर प्रदेश में वह बसपा के साथ सरकार बनाने का अवसर नहीं गंवाना चाहेगी।
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