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रामदेव पर निशाना साध खुद की गलतियां छिपाने में लगी हॉस्पिटल लॉबी

रामदेव पर निशाना साध खुद की गलतियां छिपाने में लगी हॉस्पिटल लॉबी

by हिंदी विवेक
in ट्रेंडींग, राजनीति, विशेष, सामाजिक
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योगगुरु रामदेव और डाक्टरों के बीच एक बड़ी बहस छिड़ी हुई है या फिर यह कहें कि आयुर्वेद और ऐलोपेथ के बीच एक बड़ी जंग छिड़ी हुई है और दोनों ही पक्ष एक दूसरे को कमजोर साबित करने का दावा कर रहे है लेकिन आखिर यह कौन निश्चित करे कि आयुर्वेद बड़ा है या फिर ऐलोपैथ। दोनों की अपनी अपनी मान्यता है और दोनों ही अपनी अपनी जगह सही भी हैं लेकिन आप अगर इनके इतिहास में जाएं तो आयुर्वेद ही सबसे पुराना है। ऐलोपैथ का पहले कभी कोई नाम नहीं था। समय के साथ साथ विज्ञान ने तरक्की की और ऐलोपैथ लगातार हमारे बीच बढ़ता गया। ऐलोपैथ के दुष्परिणाम भी है और यह सभी को पता है लेकिन यह बिल्कुल ही कम समय में इलाज कर देता है इसलिए ना चाहते हुए भी सभी इसकी तरफ बढ़ते चले जा रहे है।

उधर बाबा रामदेव ने ऐलोपैथ और डाक्टरों के खिलाफ बयान देकर माहौल को गरम कर दिया है जिसके बाद से उनकी आलोचना शुरु हो गयी है। तमाम समाचार चैनल बाबा को कटघरे में खड़ा कर रहे है। हालांकि योगगुरु रामदेव ने जो कहा वह सही है लेकिन उनका कहने का तरीका गलत है उन्हें ऐलोपैथ, डाक्टरों और हेल्थ स्टाफ के खिलाफ नहीं बोलना चाहिए था क्योंकि डाक्टर्स तो अपनी नौकरी कर रहे है और लोगों की जान बचा रहे है। इस पूरे मामले में दवा बनाने वाली कंपनी और हॉस्पिटल मालिक जिम्मेदार है, लोगों की ईमानदारी की कमाई को इन लोगों ने दो महीनों में चट कर दिया। इसमें डाक्टर्स, या स्वास्थ्य कर्मचारियों का कोई दोष नहीं है वह तो सिर्फ अपनी नौकरी कर रहे है और लोगों की जान बचा रहे है। बाबा रामदेव की आलोचना इसलिए भी हुई क्योंकि इनके बयान से कई लोगों की भावना आहत हुई है।

कोरोना काल में एक सवाल जरुर उठता है कि आखिर लाखो लोगों की मौत का जिम्मेदार कौन है हास्पिटल, दवा या फिर डाक्टर? यह सवाल किसी भी हास्पिटल से नहीं पूछा जाता है। डाक्टर क्या इलाज करते है वह भी किसी को पता नहीं होता है, किस दवा का क्या साइड इफेक्ट है यह भी किसी को नहीं पता होता है। कोरोना से अभी तक 3 लाख से अधिक लोगों की मौत हास्पिटल में हो चुकी है तो आखिरकार इसका जवाबदार कौन होगा। करीब एक साल से जो लूट चल रही है उसका भी किसी के पास कोई जवाब नहीं है। बाबा रामदेव को इसलिए भी निशाना बनाया जा रहा है क्योकि इसकी आड़ में बाकी सब बातें भी दब जायेगी और अस्पतालों से कोई सवाल नहीं करेगा। कोरोना मरीज से आईसीयू के नाम पर एक दिन का लाखों रुपये लिया गया और बाद में मरीज को पैक कर उसे डेडबॉडी बता दिया गया लेकिन कोई अस्पतालों से सवाल नहीं कर सका।

देश के प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि आपदा को अवसर में बदले जिसे हॉस्पिटल व दवा कंपनियों ने यह बखूबी निभाया और खूब कमाई की। हमें डाक्टरों का दोष नहीं देना चाहिए क्योंकि वह तो सिर्फ अस्पताल की पॉलिसी के अनुसार अपनी नौकरी करते है इस दौरान उनकी जान भी जोखिम में होती है। पीड़ित के गुस्से का शिकार भी डाक्टर्स को होना पड़ता है। डाक्टर को यह पता होता है कि कई दवाएं जो मरीज को दी जाती है वह किसी काम की नहीं होती बल्कि वह मौत का कारण भी बन जाती है लेकिन हास्पिटल पॉलिसी उन्हे यह सब ना बताने को मजबूर करती है। यह सभी को पता है कि कोरोना की कोई दवा नहीं है फिर भी डाक्टरों ने लाखों की दवा चला दी आखिर वह किस चीज की दवा चला रहे थे।

कोरोना काल में डाक्टर लॉबी ने अपने बयानों को कई बार बदला लेकिन उनसे कोई सवाल नहीं कर रहा है। कोरोना की शुरुआत हुई तब हाइड्रोक्सी क्लोरो क्वीन (Hydroxychloroquine) को कोरोना के लिए रामबाण बताया गया लेकिन जब दुनिया में इसकी कमी होने लगी तब उसे बेअसर बता कर रिजेक्ट कर दिया गया। सेनेटाइजर (Sanitizer) को भी कोरोना से लड़ने में असरदार बताया गया लेकिन मरीजों पर इसका असर तो नहीं दिखा लेकिनसेनेटाइजर बनाने वाली कंपनियों ने कोरोड़ों का बिजनेस जरुर कर लिया। अब तो सेनेटाइजर के दुष्परिणाम भी सामने आने लगे है। प्लाजमा थैरेपी को भी बहुत प्रभावी बताया गया लोगों से प्लाज्मा डोनेशन करने को कहा गया लेकिन कुछ समय पहले उसे भी बंद कर दिया गया। रेमडेसिवर (Remdesivir) इंजेक्शन की जितनी काला बाजारी हुई उतनी शायद किसी भी दवा की नहीं हुई। करीब हजार रुपये का आने वाला यह इजेक्शन 30 हजार तक में बिका है। हम डाक्टरों से यह सवाल करते है कि आखिर समय समय पर उन्होने अपने ही बयान और दवा क्यों बदली। क्या इस तरह के बयान सिर्फ कुंछ फार्मा कंपनियों को लाभ पहुंचाने के लिए तो नहीं दिये गये थे। इसलिए इनसे भी सवाल करना जरुरी है।

बाबा रामदेव के बयान से कुछ लोग आहत हुए जिसके बाद उन्होने मांफी भी मांग ली लेकिन ऐलोपैथ के कुछ डाक्टरों के बयान ने तो हद ही पार कर दी लेकिन उनसे कोई मांफी मांगने को भी नहीं कहता है। आईएमए (Indian Medical Association) के अध्यक्ष डाक्टर जे ए जयलाल ने कहा था कि कोरोना काल में ईसाई धर्मांतरण का एजेंडा चलना चाहिए उन्होने आयुर्वेद को ईसाई धर्म के खिलाफ बताया है क्या इसके लिए इन्हे मांफी नहीं मागनी चाहिए? डाक्टर जयलाल का यह भी दावा है कि वह आईएमए के अध्यक्ष जीजस की क्रिपा से बना है और ऐलोपैथ की दवा का असर सिर्फ ईसाई लोगों पर ही ठीक से होगा अगर आप हिन्दू, मुसलमान, सिख या अन्य धर्म के हैं तो आप के लिए ऐलोपैथ की दवा ठीक साबित नहीं होगी। अब ऐस बयान के लिए इनके खिलाफ कोई आवाज कब उठाएगा और यह देश के करोड़ो हिन्दूओं से कब मांफी मांगेंगे।

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