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अभूतपूर्व वैश्विक सहायता

अभूतपूर्व वैश्विक सहायता

by अवधेश कुमार
in जून २०२१, विशेष, सामाजिक
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भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों और द्विपक्षीय संबंधों में जिस तरह की भूमिका निभाई है उसका विश्व समुदाय पर सकारात्मक असर है। भारत का सम्मान है और उसके प्रति सद्भावना भी। वास्तव में कठिन समय में हमारी अपनी हैसियत, साख, सम्मान और हमारे प्रति अंतरराष्ट्रीय सद्भावना आसानी से दिखाई देती परंतु उस पर भी यदि एक बड़ी फौज दिन रात नकारात्मकता फैलाने में लगी हो तो इसका भी असर होता ही है।

निस्संदेह, कोरोना की दूसरी लहर भीषण है, किंतु जिस तरह विश्व समुदाय ने भारत के लिए खुले दिल से सहयोग और सहायता का हाथ बढ़ाया है वह भी अभूतपूर्व है। आपदाओं में वैश्विक सहायता पर काम करने वालों का मानना है कि इस तरह का सहयोग इसके पहले किसी एक देश को नहीं मिला था। सुनामी के समय अवश्य आपातकाल की तरह अमेरिका एवं कुछ पश्चिमी देशों ने सहायता अभियान चलाए थे लेकिन इस तरह कभी एक देश के लिए ऐसी स्थिति नहीं देखी गई। भारत तक जल्दी आवश्यक सहायता सामग्रियां पहुंचे इसके लिए सैन्य संसाधनों का इस्तेमाल किया जा रहा है। अभी तक 40 से ज्यादा देशों से सहायता सामग्रियां भारत पहुंच चुकीं हैं। इनमें अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रेलिया, आयरलैंड, बेल्जियम, रोमानिया, लक्समबर्ग, सिंगापुर, पुर्तगाल, स्वीडन, न्यूजीलैंड, कुवैत, मॉरीशस, संयुक्त अरब अमीरात, बहरीन, कतर, सऊदी अरब, कुवैत आदि देश शामिल हैं। यहां तक कि सुदूर गुयाना जैसे देशों से भी सहायता आ रही है। लेकिन जिनको अपने देश की सरकार और उसकी नीतियों में केवल दोष ही ढूंढना है उन्हें कुछ नहीं कहा जा सकता है। जिन लोगों को हर हाल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को विफल साबित करना है उनके लिए इन बातों के कोई मायने नहीं कि आखिर ये सारे देश इस तरह अभूतपूर्व तरीके से भारत के साथ क्यों खड़े हुए हैं। इन्हें इससे भी कोई लेना-देना नहीं कि भारत ने किसी भी देश से सहायता मांगी नहीं है। अमेरिका से भी टीके के कच्चे माल, उपकरण तथा दवाइयां खरीदने के लिए भारत ने बात की और उसके तहत भी चीजें आने लगीं हैं। सभी देश और संस्थाएं अपनी ओर से ऐसा कर रहीं हैं। इसका मतलब कुछ तो भारत की वैश्विक छवि और इसका प्रभाव है।

जो सामग्रियां आ रहीं हैं उनमें ऑक्सीजन उत्पादक संयंत्र, ऑक्सीजन सांद्रक, छोटे और बड़े ऑक्सीजन सिलेंडर के अलावा कोरोना मरीजों के लिए आवश्यक औषधियों में रेमडेसिविर, टोसिलिज़ुमैब, फेवीपिरवीर, कोरोनावीर आदि हैं। उदाहरण के लिए पहली बार में ही 2000 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स और 500 ऑक्सीजन सिलेंडर सहित ऑक्सीजन बनाने वाले उपकरणों की एक बहुत बड़ी खेप अमेरिका से आई जिसकी दो करोड़ 80 लाख लीटर ऑक्सीजन बनाने की क्षमता है। इन पंक्तियों के लिखे जाने तक भारत को चार हज़ार ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स,10 हज़ार ऑक्सीजन सिलेंडर और 17 ऑक्सीजन क्रायोजेनिक टैंकर मिल रहे हैं, जिन्हेें करीब दो सप्ताह पहले ही थाईलैंड और सिंगापुर जैसे देशों से भारतीय वायु सेना ला चुकी थी। अमेरिकी दवा बनाने वाली कंपनी गिलियड साइंसेज़ ने भारत को रेमडेसिविर दवा की साढ़े चार लाख खुराक देने की पेशकश की। इसके अलावा रूस सहित कुछ अन्य देश फैवीपिराविर दवा की तीन लाख खुराक भेज रहे हैं। जर्मनी और स्विटजरलैंड भारत को टोसीलिज़ुमाब दवा भेज रहे हैं। अमेरिका के रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्रों ने भी स्थानीय रूप से ऑक्सीजन सिलेंडर ख़रीदे हैं जिन्हें भारत भेजा जा रहा है। दस लाख रैपिड डायग्नोस्टिक टेस्टिंग किट भारत भेजे जा रहे हैं। यह टेस्ट 15 मिनट से कम समय में विश्वसनीय परिणाम देते हैं। एंटीवायरल ड्रग रेमेडेसिविर की 20 हज़ार खुराकों की पहली किश्त भेजी जा चुकी है। ब्रिटेन ने आरंभ में कुल 495 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स, 120 नॉन इनवेसिव वेंटिलेटर और 20 मैनुअल वेंटिलेटर सहित आपूर्ति के नौ एयरलाइन कंटेनर लोड भेजे। अभी ऑक्सीजन बनाने की तीन ईकाइयां उत्तरी आयरलैंड से भेजी जाएंगी। ये ऑक्सीजन इकाइयां प्रति मिनट 500 लीटर ऑक्सीजन का उत्पादन करने में सक्षम हैं और एक समय पर 50 लोगों के उपयोग के लिए पर्याप्त हैं। अब तक ब्रिटेन से भेजे गए 46.6 लीटर क्षमता वाले 1350 आक्सीजन सिलेंडर्स भारत पहुंच गए हैं। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि हम एक मित्र और भागीदार के रूप में भारत के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चल रहे हैं। फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भारत के लिए एक फेसबुक पोस्ट लिखा। इसमें उन्होंने कहा कि फ्रांस भारत को मेडिकल उपकरण, वेंटिलेटर, ऑक्सीजन और आठ ऑक्सीजन जेनरेटर भेजेगा। उन्होंने कहा कि हर जेनरेटर वातावरण की हवा से ऑक्सीजन का उत्पादन करके एक अस्पताल को 10 साल तक के लिए आत्मनिर्भर बना सकता है। मैक्रों ने यह भी कहा कि हम जिस महामारी से गुज़र रहे हैं कोई इससे अछूता नहीं है। हम जानते हैं कि भारत एक मुश्किल दौर से गुज़र रहा है। फ्रांस और भारत हमेशा एकजुट रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि उनके मंत्रालयों के विभाग कड़ी मेहनत कर रहे हैं और फ्रांसीसी कंपनियां भी मदद पहुंचाने के लिए लामबंद हो रही हैं। भारत में रूस के राजदूत निकोले कुदाशेव के अनुसार रूस से दो तत्काल उड़ानें भारत में 20 टन के भार का मेडिकल कार्गो लेकर आ चुकी हैं। इन सामानों में ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर, वेंटिलेशन उपकरण, बेडसाइड मॉनिटर, कोरोनाविर सहित अन्य दवाएं और अन्य ज़रूरी मेडिकल सामान है। ऑस्ट्रेलिया ने आरंभ में 509 वेंटिलेटर, दस लाख सर्जिकल मास्क पांच लाख पी.2 और एन.95 मास्क, एक लाख सर्जिकल गाउन, एक लाख गॉगल्स, एक लाख जोड़े दस्ताने और 20 हज़ार फेस शील्ड भारत भेजे हैं। इसने 100 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स भी जुटाकर भारत भेजने का ऐलान किया था। स्वयं महामारी से जूझने वाले स्पेन ने भी 10 आक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स और 141 वेंटिलेटर्स भेजे हैं। मिस्त्र से 300 आक्सीजन सिलेंडर्स, 50 कॉन्सेंट्रेटस,20 वेंटिलेटर्स और 8000 रेमडेसिविर भारत आए हैं। इंडोनेशिया से 1400 सिलेंडर की खेप भी पहुंच चुकी है।

इसकी सूची काफी लंबी है। सच कहें तो भारत को मदद देने की वैश्विक मुहिम व्यापक हो चुकी है। किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि भारत के लिए विश्व समुदाय इस तरह दिल खोलकर साथ देने आएगा। भारत के अंदर मोदी विरोधियों तथा बाहर भारत विरोधियों के कलेजे पर इससे सांप लोट रहे हैं। आखिर इसके उदाहरण कम ही होंगे जब सहायता के लिए एक देश दूसरे देश को आवश्यक सहयोग कर रहे हैं जिससे आसानी से सामग्रियां पहुंच सके। उदाहरण के लिए फ्रांस ने खाड़ी स्थित अपने देश की एक गैस निर्माता कंपनी से दो क्रायोजेनिक टैंकर भारत को पहुंचाने की इच्छा जताई तो कतर ने उसे तत्काल स्वीकृति दी। ये टैंकर भारतीय नौसेना के द्वारा मुंबई पहुंचा दिए गए हैं। फ्रांस के राजदूत एमान्यूएल लेनेन ने कहा है कि इस तरह के और टैंकर जल्द ही भारत आएंगे। इस तरह का यह अकेला उदाहरण नहीं है। इजरायल के नई दिल्ली स्थित राजदूत रॉन मलक्का ने कहा कि भारत के साथ अपने संबंधों को देखते हुए उनकी सरकार ने एक टास्क फोर्स गठित किया है ताकि भारत को तेजी से मदद पहुंचाई जा सके। इजरायल की कई निजी कंपनियां, एनजीओ और वहां की आम जनता भारत को मदद देने लिए आगे आई हैं। इसे लिखे जाने तक इजरायल की मदद का चौथा जहाज भारत पहुंच चुका था। इसमें 60 टन चिकित्सा सामग्री तीन आक्सीजन जेनरेटर्स 710 आक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स व 420 वेंटिलेटर्स हैं।

यह भी जानना आवश्यक है कि केवल देश और संस्थाएं ही भारत की सहायता नहीं कर रहीं, अनेक देशों के नागरिक तथा विश्व भर के भारतवंशी भी इस समय हरसंभव योगदान करने के लिए आगे आ रहे हैं। जापान, इजरायल के स्थानीय नागरिक सामग्रियां भेज रहे हैं। कई यूरोपीय देशों में स्थानीय एनजीओ की कोशिशों से काफी बड़े पैमाने पर चिकित्सा सामग्री जुटाई जा रही है, जो धीरे-धीरे भारत पहुंचने लगी हैं। विदेशी नागरिक अपने पैसे से आक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स खरीद कर भारतीय मिशनों को भेज रहे हैं। सउदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, कतर जैसे खाड़ी के क्षेत्र में रहने वाले प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजे गए आक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स की पहली खेप पहुंच चुकी है। खाड़ी में रहने वाले केरल के प्रवासी भारतीयों ने अपने राज्य में स्वास्थ्य सलाह से लेकर वित्तीय और कई प्रकार के सहयोग का अभियान चलाया हुआ है। ब्रिटेन और अमेरिका में भारतीय मूल के डॉक्टरों ने भी आनलाइन मेडिकल परामर्श मुफ्त में देने का अभियान चलाया हुआ है। सिंगापुर में रहने वाले भारतीयों ने वहां की सरकार के माध्यम से बड़ी खेप भारत भेजी है। सिंगापुर से 10 मई को आठ बड़े क्रायोजेनिक टैंकर विशाखापट्टनम स्थित भारतीय नौसेना के पत्तन पर आया। यह भारत को की गई क्रायोजेनिक टैंकर्स की तब तक की सबसे बड़ी आपूर्ति थी।

लेकिन इसके समानांतर दूसरा दृश्य देखिए। देसी-विदेशी मीडिया का एक धड़ा, एनजीओ, एनजीओ एक्टिविस्ट अपने व्यापक संपर्कों का प्रयोग कर कई प्रकार का दुष्प्रचार कर रहे हैं। मसलन, विदेशी सहायता सामग्रियां तो वहां जरुरतमंदों तक पहुंच ही नहीं रही, सामग्रियां कहां जा रहीं हैं किसी को नहीं पता, आने वाली सामग्रियां तो सप्ताह-सप्ताह भर हवाई अड्डों पर ही पड़ी रहती हैं आदि-आदि। हेल्थकेयर ़फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष़ डा. हर्ष महाजन का वक्तव्य बीबीसी वेबसाइट पर उपलब्ध है। वे कह रहे हैं कि मदद कहां बांटी जा रही है, इस बारे में अभी तक कोई सूचना नहीं है। हेल्थकेयर ़फेडरेशन ऑफ़ इंडिया देश के कुछ सबसे बड़े अस्पतालों का प्रतिनिधित्व करता है। महाजन कहते हैं कि ऐसा लगता है कि लोगों को इस बारे में कुछ पता ही नहीं है। मैंने दो-तीन जगह इस बारे में पता करने की कोशिश लेकिन नाकाम रहा। ऑक्स़फैम इंडिया के प्रोग्राम एंड एडवोकेसी के डायरेक्टर पंकज आनंद का बयान भी बीबीसी पर उपलब्ध है। वे कहते हैं कि मुझे नहीं लगता कि किसी को इस बारे में जानकारी है कि यह मदद आख़िर जा कहां रही है। किसी भी वेबसाइट पर ऐसा कोई ट्रैकर मौजूद नहीं है, जो आपका इसका पता दे सके। ऐसे आपको सैंकड़ों बयान मिल जाएंगे जिससे आपके अंदर यह तस्वीर बनेगी कि कोहराम से परेशान होते हुए भी भारत सरकार इतनी गैर जिम्मेदार है कि वह इनका वितरण तक नहीं कर रही या गोपनीय तरीके से इनका दुरुपयोग कर रही है। कल्पना करिए, कोई देश इनकी बातों से प्रभावित हो जाए तो फिर उसका तेवर ही बदल जाएगा। ये उन देशों के अंदर ऐसी धारणा बनाने की हरसंभव कोशिशें भी कर रहे हैं। अमेरिकी विदेश मंत्रालय की एक ब्रीफ़िंग में भी यह मुद्दा उठाया गया। एक पत्रकार ने पूछा कि भारत को भेजे जा रहे अमेरिकी करदाताओं के पैसे की जवाबदेही कौन लेगा? क्या अमेरिकी सरकार यह पता कर रही है कि भारत को भेजी जा रही यह मेडिकल मदद कहां जा रही है? यह बात अलग है कि उन्हें टका सा जवाब मिला। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने कहा कि हम आपको यक़ीन दिलाना चाहते हैं कि अमेरिका इस संकट के दौरान अपने साझेदार भारत का ख्याल रहने के लिए प्रतिबद्ध है। बीबीसी के एक संवाददाता ने इस मुद्दे पर ब्रिटेन के फ़ॉरेन कॉमनवेल्थ एंड डेवलपमेंट ऑफ़िस एफसीडीओ तक से बात कर ली। उसने पूछा कि क्या उसके पास इस बात की कोई जानकारी है कि ब्रिटेन की ओर से भेजे गए 1000 वेंटिलेंटर्स समेत तमाम मेडिकल मदद भारत में कहां बांटी गई? यहां भी जवाब उसी तरह। फ़ॉरन कॉमनवेल्थ एंड डेवलपमेंट ऑफिस ने कहा कि भारत को भेजे जा रहे मेडिकल उपकरणों को यथासंभव कारगर तरी़के से पहुंचाने के लिए ब्रिटेन इंडियन रेड क्रॉस और भारत सरकार के साथ काम करता आ रहा है। यह भारत सरकार तय करेगी कि ब्रिटेन की ओर से दी जा रही मेडिकल मदद कहां भेजी जाएगी और इसे बांटे जाने की प्रक्रिया क्या होगी।

ये दो उदाहरण यह समझने के लिए पर्याप्त हैं कि एक ओर महाआपदा से जूझते देश में जिससे जितना बन पड़ रहा है, कर रहा है और दूसरी ओर किसी तरह भारत के खिलाफ माहौल बनाने के कुत्सित प्रयास हो रहे हैं। केंद्र सरकार को इस कारण सफाई देनी पड़ी। स्वास्थ्य मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि आपूर्तियों को उसने सुचारू और व्यवस्थित तरी़के से बांटना शुरू कर दिया है। हवाई अड्डे से इन सामानों की क्लीयरिंग और उन्हें सही जगह पर पहुंचाने के लिए रात-दिन काम किया जा रहा है। यह सही है। जो जानकारी है उसके अनुसार सरकार ने सामग्रियों के आने के पूर्व से ही इसकी तैयारी कर दी थी। सीमाशुल्क विभाग को त्वरित गति से क्लियरेंस देने, कार्गों से सामग्रियों को तेजी से बाहर निकालने आदि के लिए एक पूरी टीम बन गई। स्वास्थ्य मंत्रालय ने 26 अप्रैल से वितरण की तैयारी शुरू कर दी थी। मदद कैसे बांटी जाए इसके लिए स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसिजर यानी एसओपी 2 मई को जारी की गई। वैसे चाहे मदद कहीं से आए उसे वितरण तक लाने के लिए पहले से तय प्रक्रियाएं हैं जिनमें कई मंत्रालय और एजेंसियों को शामिल होना पड़ता है। राहत सामग्री वाला विमान भारत पहुंचते ही इंडियन रेड क्रॉस सोसाइटी के हाथ आ जाता है। सीमाशुल्क विभाग से क्लियरेंस मिलने के बाद मदद की यह खेप एक दूसरी एजेंसी एचएलएल लाइफ़केयर के हवाले की जाती है। यह एजेंसी इस सामान को अपने ज़िम्मे लेकर इसे देश भर में भेजती है। कहां, कितनी, किस रुप में आपूर्ति करनी है इसका हिसाब लगाकर सारी सामग्रियों को खोलकर उनकी नए सिरे से गंतव्य स्थानों के लिए पैकिंग करना होता है। ऐसा तो है नहीं कि जैसे एक जगह हवाई अड्डे पर सामग्रियां पहुंचीं वैसे ही उसे दूसरी जगह भेज दिया गया। सामान कई देशों से आ रहे हैं और उनकी मात्रा भी अलग-अलग हैं। वो एक बार में आतीं भी नही। अलग-अलग समय में अलग-अलग संख्या में आती है। कई बार तो सामग्रियां उनके साथ आई सूची से भी मेल नहीं खातीं। तो उनको दोबारा देखना पड़ता है। इन सबके होते हुए भी सामग्रियां सब जगह व्यवस्थित तरीके से पहुंच रहीं है। हमें दुष्प्रचारकों के आरोपों पर ध्यान देने की आवश्यकता नहीं है। इसी बीबीसी को कोरोनो से सबसे ज़्यादा घिरे राज्यों में से एक पंजाब के एक अधिकारी ने 12 मई को कहा कि राज्य को 100 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स और जीवनरक्षक दवा रेमेडेसिविर की 2500 डोज़ मिली है। हॉन्गकॉन्ग से विमान से 1088 ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स लाए गए थे। इनमें से 738 दिल्ली में रखे गए और बाक़ी 350 मुंबई भेज दिए गए।

वास्तव में यह समझने की आवश्यकता है कि भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों और द्विपक्षीय संबंधों में जिस तरह की भूमिका निभाई है उसका विश्व समुदाय पर सकारात्मक असर है। भारत का सम्मान है और इसके प्रति सद्भावना भी। आखिर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बिडेन ने कहा भी कि कठिन समय में भारत ने हमारी सहायता की और अब हमारी बारी है। इजरायल के राजदूत का यही बयान है कि महामारी के आरंभ में जब हमें जरुरत थी भारत आगे आया तो इस समय हम अपने दोस्त के लिए केवल अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहे हैं। वास्तव में कठिन समय में हमारी अपनी हैसियत, साख, सम्मान और हमारे प्रति अंतरराष्ट्रीय सद्भावना आसानी से दिखाई देती। उसमें भी यदि एक बड़ी फौज दिन रात नकारात्मकता फैलाने में लगी हो तो इसका भी असर होता ही है। भारत को बिना मांगे इतने सारे देशों और अनेक देशों के नागरिकों द्वारा व्यापक पैमाने पर सहयोग तथा इसके संबंध में दिए गए बयान इस बात के प्रमाण हैं भारत का सम्मान और साख विश्व स्तर पर कायम है।

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