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स्वतन्त्रता का मूल्य जानें : अपने दायित्व पहचानें

स्वतन्त्रता का मूल्य जानें : अपने दायित्व पहचानें

by लता अग्रवाल
in ट्रेंडींग, विशेष, सामाजिक
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नि:संदेह भारतीय संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीन संस्कृति है किन्तु तमाम गुलामियों की पीड़ाओं को झेलने के बाद १५ अगस्त १९४७ को भारत एक आजाद राष्ट्र के रूप में विश्व फलक पर उभरा| जिन्होंने गुलामी के दंश को सहा है उनके लिए यह आजादी किसी उत्सव से कम न थी| १९११ में रविन्द्र नाथ टैगोर द्वारा रचित गान ‘जन-गण-मन को १९५० में राष्ट्र गान के रूप में स्वीकृति मिली| देश के लिए संविधान की रचना की गई … कुल मिलाकर भारत को भारतवासियों के अनुकूल बनाने का प्रयास उन स्वतन्त्रता सेनानियों का रहा जिन्होंने देश को आजाद करने की जंग में हिस्सा लिया और जो इस आजादी के तिरंगे को लहराते देख पाए| किन्तु आज सवाल यह गहराया है कि वह पीढ़ी जिसने ‘गुलामी क्या होती है कभी जाना ही नहीं’ और देश की बागडोर जिनके हाथों हैं उन भावी युवाओं की नजर में आजादी का कितना महत्व है … उसी पर स्वतंत्र भारत का भविष्य निर्भर है | हम गर्व से कह सकते हैं कि भारत के घर-घर में प्रतिभाएँ पल रही हैं आवश्यकता है तो बस उन प्रतिभाओं की योग्यता को व्यवहारिक रूप मिले| हमें इतिहास को एक बार पलटकर देखने की आवश्यकता है, आवश्यकता है हम जाने कि चीनी नागरिक हेन सांग जब ज्ञान की तलाश में भारत आए तो उन्हें नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्व विद्यालय मिले, कोलम्बस ने भारत को व्यापार के लिए चुना,  फ़्रांसीसियों ने भारत में आकर अपनी कालोनियां बसाई |

मेरा कहने का आशय यह है कि भारत जो कभी विदेशों के आकर्षण का केंद्र था क्या आज वह स्थिति है ? सम्भवत: नहीं| अपितु इसके विरुध्द स्थितियां निर्मित हो गई हैं| शिक्षा से लेकर रोजगार तक हम पराश्रित  हो गये हैं, क्यों …? यही चिन्तन का विषय है| हमने अपना आत्मविश्वास, अपना स्वाभिमान, अपना सत्व अपना देशीपन खो दिया है| आज महज १५ अगस्त / 26 जनवरी को तिरंगा लहराना, कुछ भाषणबाजी, आसमान में  कबूतर उड़ा लिए, बहुत हुआ तो शहीदों को स्मरण कर लिया| लो मन गई आजादी| क्या इसीलिए उन जाबांजों ने लड़ाई के दौरान अपना परिवार छोड़ स्वयं को भारत माँ पर न्योछावर किया था …? नहीं| राष्ट्र सर्वोपरी होता है, उसके मान से भी हमारा सम्मान जीवित रहता है| प्रतिभाओं का विदेश पलायन, रिश्तों में बढ़ते फासले, संस्कृति का क्षरण, संस्कारों का हनन … क्या यही है आजादी का महत्व ? अगर हमारा यही रूख रहा तो कोई आश्चर्य नहीं होगा कि निकट भविष्य में भारत में घरों की अपेक्षा वृध्द आश्रम और अनाथ आश्रम ही अधिक दिखाई दें|

निर्णय हमें लेना हैं कि हम कैसे भारत की संरचना चाहते हैं| शांति और लोकमंगल हमारी संस्कृति का आधार रहा है, उदारता, सहिष्णुता हमारा व्यवहार रहा है तथा सुख-समृध्दि इसका प्रभाव रहा है| यूँ ही नहीं कहा –‘कुछ बात तो है, हस्ती मिटती नहीं हमारी’| देश के लिए क़ुरबानी देते हुए हमारे पूर्वजों का यह भाव रहा था – ‘हे मेरे भारत के नौनिहानों तुम्हारे कल के लिए हम अपना आज कुर्बान करते हैं|’ हमें उनकी कुर्बानी का सम्मान करना होगा| आत्ममूल्यांकन करना होगा, देश के प्रति हम अपने दायित्व का कितनी गम्भीरता से निर्वाह कर रहे हैं| माँ के दूध का और जन्मभूमि की माटी कर्ज है हम पर जिससे उऋण हुए बिना मोक्ष नहीं| अत: अपने तन-मन-धन से राष्ट्र को समर्पित रहें जो करें ईमानदारी के साथ करें| राष्ट्र के विकास में कुछ हमारा भी योगदान हो जाए तो यकीन मानिए ये जीवन धन्य हो जाए| तो चलो फिर से खुद को जगाते हैं, आजादी मनाते हैं|

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Tags: independence dayindian cultureindian politics newsliberalnational anthempolitics

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