
बाजीराव का बचपन से ही घुड़सवारी, तीरंदाजी, तलवार और भाला चलाने में बहुत मन लगता था क्योंकि इनके पिता पेशवा थे तो इन्हे यह सब करने के लिए आसानी से मिल जाता था। इसलिए बहुत कम आयु में ही बाजीराव ने यह सब सीख लिया इसके साथ ही पिता जी के साथ रहते रहते दरबारी रीति रिवाज को भी जल्द ही अपना लिया था। करीब 20 वर्ष की आयु तक बाजीराव काफी कुछ सीख चुके थे और अचानक से एक दिन उनके पिता की मृत्यु हो गयी जिसके बाद उन्हें छत्रपति शाहूजी महाराज का पेशवा बना दिया गया।

पेशवा बनने के बाद बाजीराव ने बहुत लड़ाइयां लड़ी लेकिन कभी हार नहीं हुई इसलिए इन्हें अपराजित हिन्दू सेनानी सम्राट भी कहा जाने लगा। इनका व्यक्तित्व, रणकौशल, अदम्य साहस और युद्ध कौशल इतना मजबूत था कि लोग इनकी तुलना शिवाजी से करने लगे थे। युद्ध कौशल जैसे घोड़े पर बैठ कर भाला फेंकना, तलवार चलाना इनके लिए बहुत ही आसान था जबकि सामने वाला दुश्मन परास्त हो जाता था।
बाजीराव ने जब पेशवा का पद संभाला तब समय बहुत ही कठिनाइयों वाला था देश में मुगलों का आतंक अपने चरम पर था। हिन्दू देवस्थानों को तोड़ना, जबरन कन्वर्जन कराना और महिलाओं पर अत्याचार करने की कोई सीमा नहीं थी लेकिन पेशवा बाजीराव ने अपनी सूझ-बूझ और तलवार के बल पर उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक विजय पताका फहरा दी। मुगलों के अभिमान को बाजीराव ने तोड़ा और उन्हे शिकस्त दी। ऐसा कहा जाने लगा था कि बाजीराव शिवाजी के ही अवतार हैं क्योंकि उनकी सूझबूझ और ताकत का दुश्मनों ने भी लोहा मान लिया था।
बाजीराव द्वारा विजयी युद्ध
मुबारिज खां 1724
निजामउलमुल्क 1728
मुहम्मद खां बंगश 1729
त्रिंबक राव 1731
निजाम दिल्ली 1737
नासीरजंग 1739