मानव ने अपनी सुविधा के लिए इंटरनेट का आविष्कार किया है। इसके आधार पर नित्य नूतन आविष्कार हो रहे हैं परंतु अगर मनुष्य इसकी मर्यादा भूलकर स्वयं को उसके अधीन कर दे तो निश्चित ही समस्या का सामना करेगा। इंटरनेट के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने या कुछ देर के मनोरंजन तक उसे सीमित कर दें, उसे अपने ऊपर हावी न होने दें, क्योंकि बात केवल एक क्लिक की है जो या तो हमारे ज्ञान में वृद्धि करेगी या हमें उस्तरा थामने वाला बंदर बनायेगी।
आज से लगभग तीन दशक पहले तक आम भारतीय आदमी के जीवन की आधारभूत आवश्यकताएं रोटी, कपड़ा और मकान तक सीमित हुआ करती थीं। किसी समस्या के आने से पूर्व तक लोगों को अपनी समस्याएं ही बड़ी लगती थीं। उनको इन तकनीकी समस्याओं से अधिक लेना देना नहीं होता था क्योंकि उनका जीवन कम्प्यूटर और उससे भी अधिक इंटरनेट पर आश्रित नहीं था। उस समय अगर लोगों से कहा जाता कि बिना ड्राइवर के कार चलाई जा सकती है, विदेश में बैठे व्यक्ति को देखा जा सकता है, उससे रोज बात भी की जा सकती है और यही नहीं ड्रोन के द्वारा किसी दूसरे देश पर हमला भी किया जा सकता है। ये बातें उन लोगों के लिए किसी काल्पनिक कथा से कम नहीं होती थी। भविष्य में ऐसा हो सकता है कि इस पर वे विश्वास तो कर लेते परंतु वे स्वयं ऐसा देख सकेंगे इस पर वे विश्वास नहीं करते मगर आज तकनीकी प्रगति की गति देखकर वे सभी लोग मान भी चुके हैं और स्वयं अपना भी चुके हैं।
इंटरनेट का प्रभाव हमारे जीवन पर इतनी गहराई तक हो गया है कि सुबह आंख खुलने से लेकर पुन: रात को सोने तक हम जाने अनजाने कितनी बार इंटरनेट का प्रयोग करते हैं? दूर बैठे किसी प्रिय व्यक्ति का जन्मदिन है, तो उसे वीडियो कॉल कर लिया, घर पर खाना बनाने में अड़चन है, तो स्विगी या जोमैटो से ऑर्डर कर लिया, किराना, सब्जी-भाजी ऑनलाइन मंगा ली, कहीं बाहर जाना है, तो ओला-ऊबर या अन्य कोई टैक्सी बुक कर ली। ये सारी बातें आज इंटरनेट के कारण इतनी आसान हो गई है कि बच्चे भी सहजता से कर लेते हैं। हमारे मनोरंजन का सारा भार भी इंटरनेट ने ही उठा रखा है। कार्टून भी इंटरनेट पर देखे जाते हैं, नए व्यंजन की रेसिपी भी इंटरनेट से सीखी जाती है और संत महात्माओं के प्रवचन भी इंटरनेट से सुने जाते हैं। आज अगर घर पर कोई मेहमान आता है, तो चाय-पानी के साथ-साथ वाई-फाई का पासवर्ड भी पूछता है। व्यक्ति की मूलभूत आवश्यकताओं में रोटी, कपड़ा, मकान के साथ-साथ इंटरनेट भी जुड़ गया है। साथ ही इंटरनेट बाकी तीनों चीजों से सस्ता भी है।
इंटरनेट का बढ़ रहा बोलबाला
आज अगर किसी से कहा जाए कि एक दिन इंटरनेट नहीं चलेगा तो तुरंत माथे पर बल पड़ जाते हैं। विदेशों में हुए कुछ सर्वेक्षणों के निष्कर्ष ऐसे हैं कि इंटरनेट न होने पर लोग अपने आपको समाज से कटा हुआ अनुभव करने लगते हैं। सर्वेक्षण में कॉलेज में पढ़ने वाले विद्यार्थियों का कहना है कि वे अगर अधिक समय तक ऑफलाइन रहते हैं, तो उनका सामाजिक जीवन प्रभावित होता है। उनके माता-पिता को चिंता होने लगती है। यहां तक कि उनके दोस्त समझते हैं कि कहीं उनके साथ कुछ बुरा तो नहीं हुआ। व्यवसायियों का कहना है कि लंबे समय तक इंटरनेट न होने के कारण व्यवसाय पर अत्यधिक परिणाम होता है क्योंकि आजकल लगभग सभी लेन-देन इंटरनेट के आधार पर ही हो रहे हैं। आईटी प्रोफेशनल्स का तो सारा दारोमदार ही इंटरनेट पर है। अत: इंटरनेट न होना किसी अत्यावश्यक वस्तु के न होने जैसा ही बन चुका है, जिसे केवल आपातकालीन स्थिति में ही अनदेखा किया जा सकता है।
सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथ इंटरनेट ने मानवीय जीवन को कई तरह से प्रभावित किया है। आपको याद होगा कि हम सभी को बचपन में विज्ञान पर निबंध लिखने के लिए कहा जाता था, जिसमें हम विज्ञान के लाभ और हानि की चर्चा करते थे। उसी तरह इंटरनेट के लाभ-हानि की चर्चा भी करनी होगी। यह सही है कि इंटरनेट ने हमारी जीवनशैली को आसान बनाया है, उसे गतिमानता प्रदान की है परंतु मानवीय संवेदनाओं से सम्बंधित कुछ ऐसी कठिनाइयां भी खड़ी की हैं, जिन्होंने न केवल व्यक्तिगत बल्कि सामाजिक व्यवस्थाओं को भी परिवर्तित कर दिया है।
इंटरनेट के साथ सावधानी जरुरी
इंटरनेट से लाभ-हानि की यदि चर्चा करनी हो, तो पहली बात यह ध्यान रखनी होगी कि यह मानव निर्मित है इसलिए इसके दुष्परिणामों का ठीकरा मानव किसी और के सिर पर नहीं फोड़ सकता। ध्यान से देखिए इंटरनेट से होने वाले दुष्परिणामों के कारण इन दोनों सूत्रों में ही हैं, ‘अति सर्वत्र वर्जयेत’ और ‘नजर हटी दुर्घटना घटी।’ अर्थात इंटरनेट का उपयोग अगर आवश्यकता से अधिक हो गया तो भी हानि होना तय है और अगर इंटरनेट का उपयोग करते समय सावधानी न रखी गई तो भी हानि होना तय है।
आजकल सबसे बड़ा आरोप यह लगता है कि युवा पीढ़ी को इंटरनेट की लत लग गई है। हालांकि यह लत केवल युवा पीढ़ी को नहीं लगी है परंतु यह सही है कि लोगों को लत लगी जरूर है। एक कमरे में बैठे चार लोगों के पास अगर मोबाइल और इंटरनेट है, तो कुछ देर बात करने के पश्चात वे सभी अपने-अपने मोबाइल में घुसे दिखाई देते हैं। ये भी हो सकता है कि वे चारों मिलकर चैट ही कर रहे हो पर व्यक्त होने के लिए उन्हें आभासी अधिक सरल लगता है। मनोरंजन किसे पसंद नहीं है? सभी लोग चाहते हैं कि दिनभर की व्यस्त दिनचर्या के बाद कुछ मनोरंजन हो जाए परंतु चौबीसों घंटे न्यूनतम मूल्य पर इंटरनेट की उपलब्धता ने इस मनोरंजन का समय भी चौबीस घंटों का कर दिया है। फेसबुक वीडियो हो, यूट्यूब हो, टीवी चैनल हो या ओटीटी प्लेटफॉर्म हो, हर माध्यम से चौबीसों घंटे मनोरंजन परोसा जाता रहता है। यह कुछ कम नहीं था कि अब रमी, लूडो जैसे खेल जो एक साथ बैठकर खेले जाते थे, वो भी ऑनलाइन उपलब्ध हो रहे हैं। इसे एक प्रकार का अधिकृत जुआ भी कहा जा सकता है। बैठे बिठाए बिना मेहनत किए पैसे कमाने के चक्कर में लोग अपना बहुमूल्य समय और पैसे दोनों गंवा रहे हैं। अत: इंटरनेट उपलब्ध है इसलिए उसपर कितना समय किस लिए खर्च करना है, यह मापना आवश्यक है।
इंसान का विवेक है जरूरी
इंटरनेट ने सारे विश्व को छोटे से प्लेटफॉर्म पर खड़ा कर दिया है। सोशल माध्यमों में डाला गया छोटा-सा समाचार तुरंत पूरी दुनिया में फैल जाता है। कुछ लोग इसका सकारात्मक तरीके से उपयोग करते हैं, कुछ नकारात्मक तरीके से और कुछ लोग आपराधिक प्रवृत्ति से भी। फेसबुक से फोटो निकालकर, फेक अकाउंट बनाकर अपराध करने वालों के समाचार आए दिन सुनाई देते हैं। अपराध नियंत्रण कानून और इन अपराधों को रोकने वाले लोगों तक जब तक बात पहुंचती तब तक खेल खत्म हो चुका होता है। बिलों का भुगतान, बैंकिंग से सम्बंधित अन्य काम भी इंटरनेट के द्वारा आसान हो गए हैं। आरबीआई तथा अन्य बैंकों को ग्राहकों को जागृत करने के लिए विज्ञापन दिखाने पड़ते हैं कि अपना पासवर्ड किसी को भी न बताएं क्योंकि कई लोग यह गलती करते हैं और अपनी सारी जमा पूंजी खो बैठते हैं।
मानव ने अपनी सुविधा के लिए इंटरनेट का आविष्कार किया है। इसके आधार पर नित्य नूतन आविष्कार हो रहे हैं परंतु अगर मनुष्य इसकी मर्यादा भूलकर स्वयं को उसके अधीन कर दे तो निश्चित ही समस्या का सामना करेगा। इंटरनेट के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने या कुछ देर के मनोरंजन तक उसे सीमित कर दें, उसे अपने ऊपर हावी न होने दें क्योंकि बात केवल एक क्लिक की है, जो या तो हमारे ज्ञान में वृद्धि करेगी या हमें उस्तरा थामने वाला बंदर बनाएगी।