हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
वनस्पति विज्ञान में ‘फादर ऑफ़ बॉटनी’ भारत के ऋषि पराशर

वनस्पति विज्ञान में ‘फादर ऑफ़ बॉटनी’ भारत के ऋषि पराशर

by हिंदी विवेक
in अध्यात्म, विज्ञान, विशेष, संस्कृति
0

विश्व भर में वनस्पति विज्ञान के जनक के रूप में जिनका सम्मान के साथ नाम लिया जाता है वह ग्रीस के प्रसिद्ध दार्शनिक एवं प्रकृतिवादी ”थिओफ्रैस्टस” हैं। जबकि अब इस संबंध में आया शोध बता रहा है कि विश्व में यदि सबसे पहले पादपों की पहचान कहीं हुई तो वह भारत है। यहां इसके लिए ”पराशर ऋषि” ने प्रमाणिक ग्रंथ लिखा है जिनमें तमाम पादपों की पहचान, जड़, तने को लेकर बहुत ही सूक्ष्म तरीके से की गई है। इस नए शोध के आधार पर कहना होगा कि भारत ही वह पहला देश है जिसे ‘वनस्पति शास्त्र’ का पितामह देश और ऋषि पराशर को ऐसे वैज्ञानिक के रूप में गिना जाएगा, जिन्होंने सबसे पहले ”वनस्पति विज्ञान” को लिपिबद्ध करने का काम किया है। इसलिए यदि किसी को कहा जाएगा ”फादर ऑफ़ बॉटनी” तो वे ऋषि पराशर ही हैं।

पादपों से दुनिया को सबसे पहले परिचित करानेवाला ग्रंथ है ‘वृक्ष आयुर्वेद’ दरअसल, ईसा पूर्व 372 में एरेसस में जन्में थिओफ्रैस्टस के अब तक प्राप्त वनस्पति विज्ञान संबंधी दो निबंधों के आधार पर पूरी दुनिया में यह स्थापित कर दिया गया कि वे ही सर्वप्रथम ”वनस्पति विज्ञान” से दुनिया को परिचित करनेवाले वैज्ञानिक हैं, जबकि वर्तमान में ‘वृक्ष आयुर्वेद’ को लेकर निकाली गई काल गणना के बाद अब यह स्पष्ट हो गया है कि युरोप के इस दार्शनिक को ”वनस्पति शास्त्र” का जनक होने का श्रेय देना गलत होगा। वास्तविकता में उनसे छह हजार साल पूर्व ”ऋषि पराशर” ने इस ग्रंथ को लिखकर यह सिद्ध कर दिया था कि भारत के लिए यह विषय नया नहीं है। महाभारत काल से पहले की है ऋषि पराशर की उपस्थिति ऋषि पराशर के बारे में एतिहासिक संदर्भों में कहें तो वे महर्षि वसिष्ठ के पौत्र हैं।

महाभारत ग्रंथ को इतिहासकार अपनी काल गणना के अनुसार ईसा से कम से कम पांच हजार साल पुराना बताते हैं, यहां पराशर शर-शय्या पर पड़े भीष्म से मिलने गये थे। इतना ही नहीं तो पौराणिक आख्यानों में आया है कि परीक्षित के प्रायोपवेश के समय उपस्थित कई ऋषि-मुनियों में वे भी थे। उन्हें छब्बीसवें द्वापर के व्यास के रूप में भी मान्यता दी गई। यहां गौर करनेवाली बात यह है कि द्वापर का काल महाभारत से भी पूर्व का काल खण्ड है, हालांकि यह अब भी शोध का विषय है कि कैसे पहले मनुष्य सैकड़ों वर्ष जीवित रह लेता था। इसी प्रकार से जनमेजय के सर्पयज्ञ में उपस्थित होना भी उनका भारतीय वांग्मय में पाया गया है । इस तरह हुआ ”ऋषि पाराशर” को ‘फादर ऑफ़ बॉटनी’ स्थापित करने का प्रयास शोध की दृष्टि से विश्व धरोहर केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान जहां हजारों की संख्या में दुर्लभ और विलुप्त जाति के विदेशी पक्षी पाए जाते हैं की बायोडायवर्सिटी खासकर मिट्टी को लेकर वन एवं पर्यावरण मंत्रालय भारत सरकार में अनुसंधानकर्ता रहते हुए शोध करनेवाली डॉ. निवेदिता शर्मा ने अपने एतिहासिक संदर्भों के अध्ययन के आधार पर व बॉटनी के अब तक के हुए अध्ययनों के निष्कर्ष के तहत सबसे पहले आज यह स्थापित करने का प्रयास किया है कि वनस्पति विज्ञान का पितामह होने का श्रेय किसी को दिया जाना चाहिए तो वह ”ऋषि पराशर” हैं। ”वृक्ष आयुर्वेद” में है वनस्पति विज्ञान के कई रहस्यों की चर्चा अपनी बात को पुख्ता करने के लिए वे वृक्ष आयुर्वेद के उदाहरण के साथ उनके लिखे अन्य ग्रंथों के बारे में भी बताती हैं। वे कहती हैं कि इस एक ग्रंथ में ही किसी बीज के पौधे बनने से लेकर पेड़ बनने तक संपूर्णता के साथ वैज्ञानिक विवेचन दिया गया है, वह विस्मयकारी है।

इस ”वृक्ष आयुर्वेद” पुस्तक के छह भाग हैं- (पहला) बीजोत्पत्ति काण्ड (दूसरा) वानस्पत्य काण्ड (तीसरा) गुल्म काण्ड (चौथा)वनस्पति काण्ड (पांचवां) विरुध वल्ली काण्ड (छटवां) चिकित्सा काण्ड। इस ग्रंथ के प्रथम भाग बीजोत्पत्ति काण्ड में आठ अध्याय हैं जिनमें बीज के वृक्ष बनने तक की गाथा का वैज्ञानिक पद्धति से विवेचन किया गया है। इसका प्रथम अध्याय है बीजोत्पत्ति सूत्राध्याय, इसमें महर्षि पराशर कहते हैं- पहले पानी जेली जैसे पदार्थ को ग्रहण कर न्यूक्लियस बनता है और फिर वह धीरे-धीरे पृथ्वी से ऊर्जा और पोषक तत्व ग्रहण करता है। फिर उसका बीज के रूप में विकास होता है और आगे चलकर कठोर बनकर वृक्ष का रूप धारण करता है। दूसरे अध्याय भूमि वर्गाध्याय में पृथ्वी का उल्लेख है। इसमें मिट्टी के प्रकार, गुण आदि का विस्तृत वर्णन है। तीसरा अध्याय वन वर्गाध्याय का है। इसमें 14 प्रकार के वनों का उल्लेख है। चौथा अध्याय वृक्षांग सूत्राध्याय (फिजियॉलाजी) का है। इसमें प्रकाश संश्लेषण यानी फोटो सिंथेसिस की क्रिया के बारे में विस्तार से बताया गया है। अब तक नहीं हुआ ”वृक्ष आयुर्वेद” जैसा कार्य किसी अन्य पादप वैज्ञानिक से इसी प्रकार से इस पूरे ग्रंथ में कई प्रकार के पौधों एवं जड़ी बूटियों का विस्तार से उसके मूल स्वभाव एवं उसके गुण धर्म के साथ वर्णन मिलता है। डॉ. निवेदिता कहती हैं कि यह अकेला ही ग्रंथ यह बताने के लिए पर्याप्त है कि इससे आच्छा कार्य आज तक भी किसी ने दुनिया भर में वनस्पति वैज्ञानिक ने नहीं किया है। अलग-अलग पौधों पर एक साथ काम जितना कि अकेले इस ग्रंथ में ”ऋषि पराशर” करते दिखाई देते हैं,वह अद्भुत है। इसलिए वे ही ‘फादर ऑफ़ बॉटनी’ हैं ना कि ग्रीस के प्रसिद्ध वैज्ञानिक एवं प्रकृतिवादी थिओफ्रैस्टस।

अमेरिकन वैज्ञानिकों ने की है अपनी पुस्तक में पराशर की चर्चा, शोध पर किया है आश्चर्य व्यक्त डॉ. निवेदिता शर्मा यहां एक पुस्तक का संदर्भ भी देती हैं । संयुक्त राज्य अमेरिका के अल्बर्ट अर्नेस्ट, रेडफोर्ड और बेन डब्ल्यू. स्मिथ द्वारा पुस्तक वस्कुलर प्लान्ट सिस्टमेटिक्स (Vascular Plant Systematics) जिसका कि पहला संस्करण वर्ष 1972 में प्रकाशित हुआ, उसमें वे भी इस ”वृक्ष आयुर्वेद” का उल्लेख करते हुए लिखा गया है, ‘प्राचीन भारत ने संभवतः ईसाई युग की शुरुआत से पहले एक बहुत ही रोचक एवं गहरा वनस्पति कार्य का किया जाना पाया गया है। (पुस्तक कितनी पुरानी है, ये नहीं कहा जा सकता) इसका श्रेय पराशर नामक एक लेखक को दिया जाता है। यह मूल रूप से एक वनस्पति विज्ञान की पाठ्यपुस्तक है जिसमें आकारिकी, वर्गीकरण और पौधों के वितरण की विस्तृत चर्चा की गई है। रूपात्मक सामग्री को तुलनात्मक रूप से बहुत विस्तार से प्रस्तुत किया जाता है, जिससे आधुनिक पाठक को यह संदेह होता है कि लेखक के पास किसी प्रकार का सूक्ष्मदर्शी (माइक्रोस्कोप) या एक अच्छा हैंड-लेंस जरूर रहा होगा, क्योंकि जिस तरह से इस पुस्तक में पौधों का वर्णन है, वह बिना आधुनिक माइक्रोस्कोप या बड़े लेंस के बिना संभव ही नहीं है’ । यानी कि इस बात से यह भी पता चलता है कि प्राचीन भारत में सूक्ष्मदर्शी जैसे यंत्र थे, लेंस भी रहे हैं, जिनसे कि किसी भी चीज की गहराई तक का आसानी से पता लगा लिया जाता था। काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी वनस्पति विज्ञान विभाग ने भी कहा ये सही स्थापना है आगे उनकी कही बातों की पुष्टि करते दिखाई दिए काशी हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी वनस्पति विज्ञान विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. एनके दुबे । उन्होंने कहा कि एतिहासिक संदर्भों में देखें तो यह सही स्थापना है, थियोफेस्टस ‘फादर ऑफ़ बॉटनी’ नहीं हैं बल्कि वनस्पति विज्ञान में पादपों का सही तरह से सबसे पहले वर्गीकरण किसी ने किया है तो वह भारतीय ”ऋषि पराशर” हैं।

लैटिन भाषा के कारण ये श्रेय गया युरोप को उन्होंने कहा कि 16वीं, 17 वीं और 18वीं इन तीन शताब्दियों में जब आधुनिक चिकित्सा विज्ञान का उदय हो रहा था, उस समय युरोप के विद्वानों ने सबसे अधिक लैटिन प्राचीन भारोपीय भाषा के ग्रंथों को पढ़ा, हमारे संस्कृत में लिखे ग्रंथों को इस बीच ना तो उस दृष्टि से देखा गया और ना ही यह भाषा आमजन की भाषा में कहीं रही, इसलिए भी लैटिन ऊपर आ गई और उसका प्रभाव व उसमें लिखे लेखकों का असर पूरे विश्व में वैज्ञानिकों के बीच दिखाई देने लगा। लम्बे समय से हो रहा है भारत को दबाने का प्रयास वे कहते हैं कि यह सच है कि हर क्षेत्र में लम्बे समय से भारत को दबाने का प्रयास ही किया गया है। यहां भी हमें वही दिखाई देता है। थियोफेस्टस के बारे में भी बॉटनी को लेकर यही है कि वनस्पति विज्ञान से जुड़े वैज्ञानिक उन्हें ही बार-बार अपने अध्ययन के साथ जोड़ते रहे इसलिए वे दुनिया के लिए ‘फादर ऑफ़ बॉटनी’ हो गए। जबकि पराशर ऋषि का लिखा हुआ वृक्ष आयुर्वेद ग्रंथ, चरक संहिता और सुश्रुत संहिता से भी पुराना है इसलिए वे ही आज ना केवल भारत के संदर्भ में बल्कि वैश्विक पटल पर ”फादर ऑफ़ बॉटनी” हैं। प्रो. एनके दुबे साथ में यह भी जोड़ते हैं कि भारत में इन्हें पढ़ाने का आरंभ आज से वनस्पति विज्ञान के क्षेत्र में कर दिया जाए। यह वृक्ष आयुर्वेद ग्रंथ हजारों वर्ष पूर्व की भारतीय प्रज्ञा की गौरवमयी गाथा कहता है।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: father of botanyheritagehindi vivekhindi vivek magazineindian heritagemaharshi parasharsaptrishivriksh ayurved

हिंदी विवेक

Next Post
कंगना रनौत: 1947 के बाद कांग्रेस ने बढ़ाया अंग्रेजी शासन

कंगना रनौत: 1947 के बाद कांग्रेस ने बढ़ाया अंग्रेजी शासन

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0