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अप्रिय विवाद का पटाक्षेप

अप्रिय विवाद का पटाक्षेप

by कृष्ण्मोहन झा
in कृषि, ट्रेंडींग, राजनीति, सामाजिक
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मोदी सरकार ने लगभग डेढ़ वर्ष पूर्व किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए तीन ऐतिहासिक कृषि कानून बनाए थे जिसका एकमात्र उद्देश्य कृषि के क्षेत्र में क्रांतिकारी सुधारों का मार्ग प्रशस्त करना था लेकिन इन कानूनों को लेकर शुरू से ही अप्रिय विवादों का सिलसिला प्रारंभ हो गया जो अनेक दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं का कारण भी बना। आखिरकार सरकार को भरे मन से इन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का फैसला करने के लिए विवश होना पड़ा। प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने सरकार के फैसले की घोषणा राष्ट्र के नाम अपने एक संबोधन में की। प्रधान मंत्री के संबोधन से स्पष्ट है कि 2022 तक देश के किसानों की आय दुगनी करने के लिए कृत-संकल्प सरकार के प्रधान मंत्री के लिए इन ऐतिहासिक कृषि कानूनों की वापसी का फैसला करना आसान नहीं था।

प्रधान मंत्री मोदी ने जब यह कहा कि सरकार किसानों और विशेष कर छोटे किसानों के कल्याण के लिए, कृषि जगत के हित में, देश के हित में, गांव गरीब के उज्जवल भविष्य के लिए, पूरी सत्य निष्ठा से, किसानों के प्रति समर्पण भाव से, नेकनीयत से ये कानून लेकर आई थी लेकिन शायद हमारी तपस्या में ही कुछ कमी रह गई इसीलिए हम इन कृषि कानूनों से होने वाले लाभ किसानों को नहीं समझा पाए। तब उनकी मुखमुद्रा देखकर यह समझना कठिन नहीं था कि उन्हें इन तीन क्रांतिकारी कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करते समय कितनी पीडा हो रही है। लेकिन प्रधान मंत्री ने एक अप्रिय विवाद का सुखद पटाक्षेप करने की पुनीत भावना से प्रेरित होकर उक्त तीनों कानूनों को वापिस लेकर अपनी विशाल हृदयता से सभी आंदोलनकारी किसानों का दिल जीत लिया। इसमें दो राय नहीं हो सकती कि इस तरह के फैसले के लिए जिस नैतिक साहस की आवश्यकता होती है वह नरेंद्र मोदी के ही बूते की बात थी।

प्रधान मंत्री ने आंदोलनकारी किसानों को तीनों कृषि कानूनों को रद्द करने के लिए आवश्यक संवैधानिक प्रक्रिया संसद के शीतकालीन सत्र में पूर्ण करने का भरोसा दिलाते हुए उनसे अब अपने-अपने  घरों को लौट जाने की जो मार्मिक अपील की है वह इस बात की परिचायक है कि वे अब अतीत की कटुता को भुला कर नयी शुरुआत करने के पक्षधर हैं। आंदोलनकारी किसानों के प्रतिनिधियों ने यद्यपि प्रधान मंत्री की मार्मिक अपील पर फैसला अभी तक कोई सकारात्मक रुख प्रदर्शित नहीं किया है परंतु प्रधान मंत्री की विशाल हृदयता को देखते हुए अब आंदोलनकारी किसानों से भी यही अपेक्षा स्वाभाविक है। प्रधान मंत्री मोदी ने अपने संबोधन में  देश के किसानों को आश्वस्त किया है कि कृषि कानूनों को वापस लेने के बावजूद कृषि सुधारों की प्रक्रिया अबाध गति से चलती रहेगी। प्रधान मंत्री ने एम एस पी से जुड़े मुद्दों के समाधान के लिए एक समिति गठित करने की घोषणा की।

गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने कृषि सुधारों के नए युग की शुरूआत करने की मंशा से गत वर्ष तीन ऐतिहासिक कृषि कानून बनाए थे, परंतु इन कृषि कानूनों के कई  प्रावधानों के विरुद्ध किसान संगठनों ने आंदोलन प्रारंभ कर दिया। किसानों की आपत्ति यह थी कि इन कानूनों के लागू होने के बाद जहां एक ओर किसानों को उनके उत्पाद का उचित मूल्य नहीं मिलेगा वहीं दूसरी ओर इन कानूनों से असली फायदा कारपोरेट घरानों और कंपनियों को होगा। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का कहना है कि इन तीनों कानूनों से किसानों को बहुत सारे फायदे होना थे, परंतु मुझे दुख है कि हम कुछ किसानों को इसका लाभ नहीं समझा पाए। इस यात्रा में अनेक किसान संगठनों, अर्थशास्त्रियों और कृषि वैज्ञानिकों ने हमारा साथ दिया, उनके प्रति मैं आभारी हूं। उल्लेखनीय है कि सरकार ने यद्यपि  इन कानूनों पर सहमति बनने तक उन पर अमल को स्थगित कर दिया था परन्तु किसान संगठनों के नेता उन्हें रद्द करने की मांग पर अडे रहे।

इसमें दो राय नहीं हो सकती कि उक्त तीनों कानूनों का विरोध मात्र दो तीन राज्यों के किसानों द्वारा ही किया जा रहा था। इसके बावजूद नए कृषि कानूनों को लेकर उनके मन में व्याप्त आशंकाओं को दूर करने के लिए सरकार ने आंदोलनकारी किसानों के प्रतिनिधियों के साथ अनेक बार बातचीत भी की ताकि किसानों को तीनों कृषि कानूनों से होने वाले लाभों से अवगत कराया जा सके परन्तु आंदोलनकारी किसान उक्त तीनों कानूनों को वापस लिए जाने की अपनी मांग छोड़ने के लिए तैयार नहीं हुए और लगातार डेढ़ वर्षों तक गतिरोध की स्थिति बनी रही। अंततः प्रधान मंत्री मोदी ने राष्ट्र के व्यापक हित को ध्यान में रखते हुए उक्त तीनों कानूनों को वापस लेने की घोषणा की। यह घोषणा उन्होंने बाकायदा राष्ट्र के नाम संदेश में की और गुरु नानक जयंती के पुनीत अवसर पर यह घोषणा कर के यह संदेश दिया कि वे गुरु नानक देव के बताए मार्ग पर चलने के लिए कृत-संकल्प हैं।

प्रधान मंत्री ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए संसद के आगामी सत्र में आवश्यक कानूनी प्रक्रिया पूरी करने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता व्यक्त करते हुए आंदोलनकारी किसानों से अपने घरों को लौट जाने की मार्मिक अपील की है उसमें संशय की कोई गुंजाइश नहीं है। अतः अब आंदोलनकारी किसानों का भी यह फर्ज बनता है कि वे प्रधान मंत्री के वचन पर भरोसा कर अपने अपने घरों को लौट कर पहले की तरह पूरी तन्मयता के साथ खेती किसानी के काम में जुट जाएं। अतीत की सारी कटुता भुला कर नयी शुरुआत करने की जो पहल प्रधान मंत्री मोदी ने की है उसके लिए उनकी भूरि-भूरि प्रशंसा की जानी चाहिए। देश के जो विपक्षी दल केंद्र सरकार के इस फैसले को अपनी जीत के रूप में देख रहे हैं उन्हें प्रधान मंत्री के इस नैतिक साहस और विशाल हृदयता की सराहना करते हुए उनके प्रति आभार व्यक्त करने की सौजन्यता प्रदर्शित करना चाहिए। यह सही है कि विपक्षी दलों को  किसानों की जायज मांगों का समर्थन करने के प्रजातांत्रिक अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता परंतु अपने राजनीतिक हित साधने की मंशा से किसानों को आंदोलन जारी रखने के लिए उकसाना कदापि उचित नहीं माना जा सकता।

प्रधान मंत्री मोदी का यह साहसिक फैसला भले ही राजनीतिक नफा-नुकसान की भावना से प्रेरित न हो परंतु भाजपा को इसका राजनीतिक लाभ मिलना तय है। भाजपा के जिन सहयोगी दलों ने नए कृषि कानूनों के विरोध में भाजपा से नाता तोड लिया था, वे अब पुनः भाजपा के साथ आ सकते हैं। ऐसे दलों में पंजाब के अकाली दल का नाम प्रमुखता से लिया जा सकता है, जिसने इस वर्ष इन कृषि कानूनों के विरोध में राजग से नाता तोड़कर पंजाब में अपना राजनीतिक हित साधना चाहा था। दरअसल कृषि कानूनों के मुद्दे पर राजग से नाता तोड़कर अकाली दल की असली मंशा यह थी कि वह खुद को पंजाब के किसानों का सबसे बड़ा हितैषी साबित कर सके। अब जबकि प्रधान मंत्री मोदी ने नए कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी है तब अकाली दल को भाजपा से पुनः मित्रता करने में कोई दिक्कत होने का प्रश्न ही उपस्थित नहीं होता। 

इसके साथ ही भाजपा को पंजाब के पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की नवगठित पार्टी का साथ मिलने की संभावनाएं भी बलवती हो गई हैं। अमरिंदर सिंह ने प्रधान मंत्री के इस फैसले का स्वागत करते हुए इसे गुरु पर्व पर पंजाब को प्रधान मंत्री का बड़ा तोहफा निरूपित किया है। पंजाब के बाद उत्तर प्रदेश दूसरा राज्य है जहां नए कृषि कानूनों को किसान विरोधी बताकर विपक्षी राजनीतिक दल आगामी विधानसभा चुनावों में  इसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की तैयारियों में  जोर-शोर से जुटे हुए थे परंतु प्रधान मंत्री मोदी ने कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा करके जो विशाल हृदयता दिखाई उसने विपक्षी दलों को भौंचक्का कर दिया है। उत्तर प्रदेश, पंजाब सहित जिन राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं वहां विपक्षी दलों के सामने धर्म संकट यह है कि विपक्षी दल प्रधान मंत्री के साहसिक फैसले के लिए उन्हें बधाई देने की स्थिति में भी नहीं रह गए हैं। इसीलिए केंद्र गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी प्रतिक्रिया में कहा है कि प्रधान मंत्री ने नए कृषि कानूनों की वापसी की घोषणा कर बेहतरीन स्टेट्समैनशिप दिखाई है।

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