नेशनल एसोशिएसन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विसेज कंपनीज यानी नैसकाम के एक सर्वे के अनुसार 75 फीसदी टेक्निकल स्नातक नौकरी के लायक नहीं हैं। आईटी इंडस्ट्री इन इंजीनियरों को भर्ती करने के बाद ट्रेनिंग पर करीब एक अरब डॉलर खर्च करते हैं। इंडस्ट्री को उसकी जरुरत के हिसाब से इंजीनियरिंग ग्रेजुएट नहीं मिल पा रहें है । डिग्री और स्किल के बीच फासला बहुत बढ़ गया है । इतनी बड़ी मात्रा में पढ़े लिखे इंजीनियरिंग बेरोजगारों की संख्या देश की अर्थव्यवस्था और सामजिक स्थिरता के लिए भी ठीक नहीं है ।
पिछले दिनों विभिन्न तकनीकी नौकरियों की सैलरी की सर्वे करने वाली कंपनी टीमलीज ने एक रिपोर्ट में बताया कि देश में इलेक्ट्रिशियन फिटर और प्लंबर की मांग बहुत ज्यादा है और जबकि इंजीनियर्स की माँग बहुत कम और आपूर्ति बहुत ज्यादा है । टीमलीज के सर्वे के अनुसार बारहवीं पास इलेक्ट्रिशियन की औसत सैलरी 11300 रुपये प्रति माह है, जबकि डिग्री वाले इंजीनियर की औसत सैलरी 14800 रुपये प्रति माह यानी 3500 रुपये ज्यादा है। पिछले छह साल में इलेक्ट्रिशियन प्लंबर, टेक्निशियन का वेतन बढ़ा है। जबकि आईटी इंजीनियरों की एंट्री लेवल तनख्वाह लगभग उतनी ही है। रिपोर्ट के अनुसार दस साल पहले जब आईटी का बूम हुआ था तब काफी मांग थी। जबकि पिछले 10 सालों में माँग में बढ़ोत्तरी नहीं हुई है जबकि माँग के मुकाबले कई गुना ज्यादा इन्जीनियरिंग ग्रेजुएट निकल रहें है । हर साल देश में 15 लाख इंजीनियर बनते है लेकिन उनमें से सिर्फ 4 लाख को ही नौकरी मिल पाती है बाकी सभी बेरोजगारी का दंश झलने को मजबूर है ।
लगातार बेरोजगारी बढ़ने की वजह से इंजीनियरिंग कालेजों में बड़े पैमाने पर सीटें खाली रहने लगी है । तकनीकी शिक्षा में देश के अधिकांश राज्यों में 60 से 70 प्रतिशत तक सीटें खाली है । इसने भारत में उच्च शिक्षा की शर्मनाक तस्वीर पेश की है । यह आंकड़ा चिंता बढ़ाने वाला भी है, क्योंकि स्थिति साल दर साल खराब ही होती जा रही है । एक तरफ प्रधानमंत्री देश के लिए ‘मेक इन इंडिया “की बात कर रहें है वही दूसरी तरफ देश में तकनीकी और उच्च शिक्षा के हालात बद्तर स्तिथि में है । ये हालात साल दर साल खराब होते जा रहें है । आज हमारे शैक्षिक कोर्स 20 साल पुराने है इसलिए इंडस्ट्री के हिसाब से छात्रों को अपडेटेड थ्योरी नहीं मिल पाती । इसी वजह से आज इंजीनियरिंग स्नातक के लिए नौकरी पाना सबसे बड़ा चुनौतीपूर्ण कार्य होता जा रहा है । अभी स्तिथि यह है कि सारा ध्यान थ्योरी सब्जेक्ट पर है,उन्हें रटकर पास करने में ही छात्र अपनी इति श्री समझते है । इंडस्ट्री और इंस्टीट्यूटस के मध्य एक कॉमन प्लेटफार्म स्थापित करने की दिशा में सरकारी और निजी दोनों के प्रयास जरूरी है ।
एस्पायरिंग माइंड्स की एक रिपोर्ट के अनुसार 20 प्रतिशत से भी कम इंजीनियर आईटी क्षेत्र में नौकरी के लायक हैं। 8 प्रतिशत से भी कम इंजीनियर कोर इंजीनियरिंग के लायक हैं। इतनी बड़ी मात्रा में पढ़े दृलिखे इंजीनियरिंग बेरोजगारों की संख्या देश की अर्थव्यवस्था और सामजिक स्थिरता के लिए भी ठीक नहीं है । एस्पायरिंग माइंड्स ने अपनी रिपोर्ट में यह भी लिखा है कि देश में युवा बेरोजगारों की बढ़ती फौज अर्थव्यवस्था की कुशलता और सामाजिक स्थिरता के हिसाब से भी अच्छा नहीं है । देश में तकनीकी शिक्षा के क्षेत्र में पढ़ाई लिखाई की गुणवत्ता बहुत अच्छी नहीं है। अधिकांश कालेजों में शिक्षण का स्तर और प्रशिक्षण की व्यवस्था ठीक नहीं है । देश में इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर और टेक्निशियन की मांग बढ़ रही है तो उसका लाभ कैसे उठाया जा सकता है।
क्या हमारे पास ऐसी कोई योजना है, ऐसा कोई सेंटर हैं जो ऐसी नौकरियों के लिए कम पैसे में प्रशिक्षण दे सकें। ज्यादातर लोग तो अपने अनुभव से सीख कर ही नौकरी पाते हैं वो भी अस्थायी। जबकि प्रशिक्षण की बहुत आवश्यकता है ,इस दिशा में सरकार को पहल करनी पड़ेगी । अब वक्त आ गया है कि हम यह सोचें कि क्या हमारे पास क्वालिटी इंजीनियर हैं। चीन के कुल छात्रों का 34 प्रतिशत इंजीनियरिंग की पढ़ाई करता है जबकि भारत में कुल छात्रों का मात्र 6 प्रतिशत। इंजीनियरिंग में इतने कम एनरोलमेंट के बाद भी देश में क्वालिटी इंजीनियर इंजीनियरों की संख्या बहुत कम है । कुलमिलाकर तकनीकी शिक्षा के हालात बहुत खराब है और इस पर तत्काल ध्यान देने की जरुरत है ।
पिछले दिनों एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि युवाओं में प्रतिभा का विकास होना चाहिए । उन्होंने डिग्री के बजाय योग्यता को महत्त्व देते हुए कहा था कि छात्रों को स्किल डेवलपमेंट पर ध्यान देना होगा । आज देश में बड़ी संख्या में इंजीनियर पढ़ लिख कर निकल रहें है लेकिन उनमे “स्किल” की बहुत बड़ी कमी है इसी वजह से लाखों इंजीनियर हर साल बेरोजगारी का दंश झेल रहें है । इंडस्ट्री की जरुरत के हिसाब से उन्हें काम नहीं आता ।सच्चाई यह है कि आज डिग्री के बजाय हुनर की जरुरत है । शैक्षणिक स्तर पर स्किल डेवलपमेंट के मामले में जर्मनी का मॉडल पूरी दुनियाँ में प्रसिद्ध है .जर्मनी में में डुअल सिस्टम चलता है। वहां के हाई स्कूल के आधे से ज्यादा छात्र 344 कारोबार में से किसी एक में ट्रेनिंग लेते हैं। चाहे वो चमड़े का काम हो या डेंटल टेक्निशियन का। इसके लिए वहाँ छात्रों को सरकार से महीने में 900 डॉलर के करीब ट्रेनिंग भत्ता भी मिलता है।
जर्मनी में स्किल डेवलपमेंट के कोर्स मजदूर संघ और कंपनियां बनाती है । वहां का चेंबर्स और कामर्स एंड इंडस्ट्रीज परीक्षा का आयोजन करता है। स्पेन ब्रिटेन से लेकर भारत तक सब जर्मनी के इस स्किल डेवलपमेंट का मॉडल अपनाना चाहते हैं। पिछली यूपीए सरकार ने 2009 में जर्मनी के साथ स्किल डेवलपमेंट को लेकर कार्यक्रम भी बनाए थे ।लेकिन सरकारी लालफीताशाही के दौर में देश भर में उनका ठीक से क्रियान्वयन नहीं हो पाया । केंद्र सरकार को शैक्षणिक कोर्सेस के साथ साथ स्किल डेवलपमेंट्स के कार्यक्रमों पर विशेष ध्यान देना होगा और इन्हें पूरे देश में एक साथ चलाने होने तभी इसके सकारात्मक परिणाम निकल सकते है । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मेक इन इंडिया का सपना तभी पूरा हो पायेगा जब देश के युवा हुनरमंद होंगे और वो डिग्री के बजाय हुनर को प्राथमिकता देंगे ।