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हिन्दू धार्मिक नेताओं का एकजुट होना जरुरी

हिन्दू धार्मिक नेताओं का एकजुट होना जरुरी

by पंकज जयस्वाल
in दिसंबर २०२१, विशेष, संस्कृति, सामाजिक
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बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ जो कुछ भी हुआ वह कोई मामूली घटना नहीं थी। जब इस्कॉन ने विरोध की तारीख और समय के बारे में विस्तार से सब कुछ घोषित किया, तो क्या सभी धार्मिक नेताओं, मठाधिपती, अखाड़ा प्रमुख आदि सभी की यह जिम्मेदारी नहीं थी कि वे आगे आएं और बांग्लादेश में हिन्दू अल्पसंख्यकों के साथ खड़े हो जाएं?

सनातन धर्म की महानता उसके अनुयायियों को दी गई स्वतंत्रता में है। यह प्रत्येक अनुयायी को किसी भी मार्ग, पूजा पद्धति या भगवान को चुनने की अनुमति देता है। आमतौर पर अन्य धर्मों में आवश्यक किसी भी दिनचर्या, पंथ या प्रथाओं का पालन करने के लिए कुछ नियम बाध्य है। हालांकि कई हिन्दू धार्मिक नेता और संगठन इस स्वतंत्रता को हल्के में लेते हैं। सनातन धर्म का लक्ष्य पर्यावरण का पोषण करके, राष्ट्र को आध्यात्मिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से विकसित करके समाज में सभी के लिए जीवन को बेहतर बनाना है। सनातन धर्म पूरे विश्व को एक परिवार के रूप में मानता है, जबकि 200 से अधिक बार आक्रमण सहने के बावजूद, सनातन धर्म द्वारा किसी भी धर्म या देश को नष्ट करने के लिए कभी भी विचार या कार्य नहीं किया है। इस महान धर्म पर बार-बार हमला किया गया है। इन विनाशकारी घटनाओं के क्या कारण हो सकते हैं?

अगर हम इस्लाम और ईसाई धर्म की प्रवृत्ति को देखें, तो उनके धर्मों के खिलाफ छोटी-छोटी घटनाएं भी दुनिया भर में व्यापक आंदोलन, निंदा और कुछ मामलों में हिंसा का कारण बनती हैं। उनके धार्मिक नेता, संगठन और अनुयायी एकता में बेजोड़ हैं जबकि हिन्दू नेताओं, संगठनों और अनुयायियों के बीच एकता की कमी है। प्रत्येक धार्मिक नेता अनुयायियों और प्रथाओं की अपनी दुनिया बनाने की इच्छा रखता है। यह संकीर्ण मानसिकता सनातन धर्म और उसकी दीर्घकालिक व्यवहार्यता के लिए वास्तविक खतरा है।

बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदुओं के खिलाफ जो कुछ भी हुआ वह कोई मामूली घटना नहीं थी, लेकिन मानवीय संगठनों ने चुप रहने में विश्वास किया। वे अन्य धर्मों के लिए बिना सच को जाने उसे बड़ा और अहम मुद्दा बनाकर विश्व मंच पर लाते है। हिन्दुओं के प्रति यह रवैया हिन्दू धर्मगुरुओं के बीच एकता की कमी के मूल में है। जब इस्कॉन ने विरोध की तारीख और समय के बारे में विस्तार से सब कुछ घोषित किया, तो क्या सभी धार्मिक नेताओं, मठाधिपती, अखाड़ा प्रमुख आदि सभी की यह जिम्मेदारी नहीं थी कि वे आगे आएं और बांग्लादेश में हिन्दू अल्पसंख्यकों के साथ खड़े हो जाएं और दुनिया को अपनी ताकत दिखाएं?

जब चरमपंथी और आतंकवादी देखते हैं कि हम विभाजित और कमजोर हैं, तो वे हमें नुकसान पहुंचाने के लिए अधिक बल का उपयोग करते हैं। यही कारण है कि हम बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान में बहुत कम संख्या में रह गए हैं।

धर्म, समाज और देश के लिए एक व्यापक दृष्टि रखने के बजाय, हिन्दू धार्मिक नेताओं ने अपनी दृष्टि को केवल अपने संगठन तक सीमित कर लिया है और वे मानते हैं कि उनकी अनुष्ठान प्रथाएं अन्य सभी से श्रेष्ठ हैं इसलिए उन्हें अन्य समान संगठनों व उनके नेताओं के साथ सहयोग करने की आवश्यकता नहीं है। हमारे धर्मगुरुओं को रामदास स्वामी के जैसे सोचना और कार्य करना चाहिए, जिन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज को एक महान योद्धा और राजा बनाया। उन्होंने मुगल क्रूरता और आक्रमण के खिलाफ बहादुरी से लड़ाई लड़ी। उन्होंने समग्र रूप से समाज से आक्रमणकारियों को बाहर निकालने के लिए सभी को लामबंद किया व अन्याय व लूटपाट करने वालों पर कड़ा प्रहार किया। उन्होंने धर्म परिवर्तन को रोक दिया और सनातन धर्म को विनाश से बचाया।

भगवान कृष्ण के विशाल ज्ञान ने कौरवों के अधर्म के खिलाफ लड़ाई में अर्जुन की सहायता की। स्वामी विवेकानंद को संत रामकृष्ण परमहंस से महारत हासिल हुई थी। महान स्वामी ने सनातन धर्म के संदेश और ज्ञान को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर फैलाया, जिसके परिणामस्वरूप एक सकारात्मक लहर और सनातन धर्म की ठोस नींव पड़ी। आचार्य चाणक्य ने चंद्रगुप्त मौर्य नाम के एक गरीब लड़के को मगध की गद्दी पर बैठाया। राज्य को सामाजिक और आर्थिक रूप से खुशहाल और स्वस्थ बनाने के लिए, महान चंद्रगुप्त ने उस समय के क्रूर राजा धनानंद को हरा दिया।

दुर्भाग्य से हमारे पास इस समय में ऐसे महान धार्मिक नेताओं की कमी है, जो देश के कानूनों और विनियमों का पालन करते हुए सही ज्ञान, इरादे और शक्ति के साथ समाज और देश की सेवा करने के लिए अपने अनुयायियों को विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करें। यदि कोई राष्ट्र अपने लोगों और सीमाओं को दुश्मनों से बचाना चाहता है, तो ऐसा करने का एकमात्र तरीका शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, आर्थिक और सबसे महत्त्वपूर्ण धार्मिक रूप से एकजुट होना है। अपने दुश्मनों में भय पैदा करके ही हम हिंसा का सहारा लिए बिना अपने लोगों की रक्षा करने और शांति बनाए रखने में सक्षम होंगे। कमजोर व्यक्ति योग्यतम की उत्तरजीविता (सर्वाइवल ऑफ) की अवधारणा को नहीं समझ सकते हैं। नतीजतन, हिंदू धर्मगुरुओं और संगठनों की एकता सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए। यह न केवल दुनिया भर के हिंदुओं को सुरक्षित करने में मदद करेगा, बल्कि हमारे समाज और राष्ट्र को और अधिक ऊंचाइयों पर ले जाएगा। यह कई सामाजिक बुराइयों और मुद्दों के खिलाफ लड़ाई में मदद करेगा, सरकार को समाज और देश के लाभ के लिए आवश्यक कार्यवाही करने में सहायक होगा।

केवल हिन्दू धर्म के संतों की एकता के माध्यम से नशीली दवाओं के खतरे, धर्म परिवर्तन, भ्रष्टाचार, छेड़छाड़ और बलात्कार, सामाजिक अशांति, मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों, गरीबी और पर्यावरण संरक्षण जैसे मुद्दों को पर मुखर हुआ जा सकता है और उन्हें हल किया जा सकता है। सभी धर्मों और जातियों के सभी नागरिकों के लाभ के लिए, इन सामाजिक मुद्दों को हल करने के लिए एकजुट संत, महंत और संगठन, सरकार और न्यायिक प्रणाली के साथ सहयोग कर सकते हैं।

कुछ कानूनों के बिना, हमारे देश का विकास बाधित है और सामाजिक असंतुलन और अशांति बढ़ रही है। जनसंख्या नियंत्रण विधेयक, समान नागरिक संहिता, मंदिर स्वतंत्रता, शिक्षा प्रणाली में एकरूपता, सख्त भ्रष्टाचार विरोधी कानून, भ्रष्ट और कामचोर अधिकारियों और राजनेताओं के खिलाफ सख्त कानून, एनआरसी, धर्मांतरण विरोधी कानून, किसान बिल और एक राष्ट्र, एक वोट, समाज की बेहतरी और देश के विकास के लिए महत्त्वपूर्ण हैं। यह तभी संभव है जब हिन्दू साधु संत एकजुट हों। एकजुट हिन्दू धार्मिक नेता विभिन्न धर्मों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देंगे और शांति का राज होगा। विकास इंजन में तेजी आएगी और दुनिया भर के लोगों का नजरिया बदलेगा। भारत की तरफ सकारात्मकता का भाव और सनातन धर्म के प्रति आकर्षित होंगे। जब हिन्दू एक हो जाते हैं, तो सबकी जीत होती है। जब हिन्दू बंटते हैं, तो नुकसान सिर्फ हिन्दू का ही होता है।

समय आ गया है कि हमारे धर्मगुरुओं और संगठनों को अपने एजेंडे को अलग रखकर वैश्विक ताकत का प्रदर्शन करने के लिए एकजुट होना चाहिए ताकि सभी की सुरक्षा सुनिश्चित हो सके। छत्रपति शिवाजी महाराज, चंद्रगुप्त मौर्य, स्वामी विवेकानंद और महान योद्धा अर्जुन जैसे पराक्रमी, नीतिवान और देशहित में काम करने वाले नेताओं को विकसित करने के लिए हर संगठन और धार्मिक नेता को काम करना चाहिए। हमें यह ध्यान रखने की जरूरत है कि हर सरकार संविधान से बंधी होती है इसलिए उनकी सीमित भूमिका होती है। यह धार्मिक और आध्यात्मिक गुरुओं और लोगों की एकता है जो समाज और देश में भारी बदलाव लाने के लिए मील का पत्थर साबित होती है।

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