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बाबरी ढांचे के विध्वंस की कहानी…

बाबरी ढांचे के विध्वंस की कहानी…

by हिंदी विवेक
in राजनीति, विशेष, सामाजिक
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6 दिसंबर 1992 के दिन सूर्य की लालिमा कुछ अलग ही नजर आ रही थी शायद उन्हें भी इस बात का आभास हो गया था कि आज का दिन इतिहास के सुनहरे पन्नों में लिखा जाने वाला है। अयोध्या में उगते सूर्य के साथ ही भीड़ बढ़ने लगी थी और देखते ही देखते सूर्य से ज्यादा लोगों में गर्मी देखने को मिलने लगी। यह गर्मी ढांचे को गिराने को लेकर थी और एक समय ऐसा भी आया जब लोगों ने ढांचे को अपने कब्जे में ले लिया और उसके सबसे ऊपरी गुंबद पर चढ़ गये। गुंबद पर चढ़े लोगों के हाथों में कुदाल, बल्लम, छैनी-हथौड़ा सहित कई हथियार थे जिसके पास नहीं थे उन्होंने अपने हाथ को ही हथियार बना लिया और देखते ही देखते ढांचे को जमीदोज कर दिया। 
6 दिसंबर 1992 को लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी और विनय कटियार विवादित स्थल के पास कारसेवकों को संबोधित कर रहे थे। इससे पहले लालकृष्ण आडवाणी और विनय कटियार की एक मुलाकात हुई थी जिसके बाद यह सभी लोग विवादित स्थल की तरफ रवाना हुए थे। उमा भारती भी सुरक्षाबलों से बचते हुए विवादित स्थल पर पहुंच गई थी हालांकि उन्होंने अपने सिर के बाल कटा लिए थे जिससे उन्हें आसानी से पहचाना ना जा सके। इस कार्यक्रम को ध्यान में रखते हुए फैजाबाद जिला प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था चाकचौबंद रखी थी लेकिन लगातार बढ़ती भीड़ ने उस दिन एक अलग ही इतिहास रच दिया और उस इतिहास को पूरा किया गया मोदी के शासनकाल में जब सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर के पक्ष में फैसला सुनाया और अब अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण जारी है। 
बाबरी विध्वंस को 29 साल बीत गए लेकिन एक विशेष समुदाय अभी भी उसकी बात करता रहता है। 6 दिसंबर 1992 को ऐसा कुछ होगा इसकी किसी को भी आशंका नहीं थी लेकिन देखते ही देखते वर्तमान को इतिहास में बदल दिया गया। बाबरी विध्वंस के दौरान ऐसा लगा कि कोई आंधी आ गयी हो और लाखों लोग उस आंधी में भाग रहे हों लेकिन भीड़ से जय श्री राम, रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे और एक धक्का और दो बाबरी ढांचा तोड़ दो…. जैसी आवाजें आ रही थी…. इन आवाजों को सुनने वाले लोगों का कहना है कि उस भीड़ को एक अलग ही जुनून सवार था लेकिन जब यह आंधी खत्म हुई तो वहां कुछ बदला नजर आया, विवादित ढांचा अब गायब हो चूका था लोगों ने उसकी ईंट भी वहां नहीं छोड़ी। यह सब होने में करीब 3 से 4 घंटे का समय लगा और देखते ही देखते ढांचा जमींदोज हो गया। 
विवादित ढांचा गिराए जाने से पहले उसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में चल रही थी और सुप्रीम कोर्ट की तरफ से यह कहा गया था कि अयोध्या में किसी भी तरह का निर्माण नहीं होगा साथ ही राज्य सरकार की तरफ से शांति बनाए रखने का आश्वासन भी दिया गया था। केंद्र में नरसिंह राव की सरकार थी जबकि उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे। इस घटना के बाद कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था और केंद्र सरकार की तरफ से उत्तर प्रदेश सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था।
 
राम मंदिर की लड़ाई अलग अलग कोर्ट में करीब 27 सालों तक चली और अब ज्यादातर लोगों को यह लगने लगा था कि इसका फैसला कभी नहीं आयेगा। अयोध्या में मंदिर की लड़ाई लड़ने वाले कई लोग दुनिया से भी जा चुके थे। कुछ राजनीतिक दल मंदिर के विरोध में आवाज भी उठा चुके थे और ऐसा महसूस करना चाहते थे कि अब अयोध्या में मंदिर निर्माण कभी नहीं होगा लेकिन 9 नवंबर 2019 को देश की सर्वोच्च न्यायलय ने रामलला के पक्ष में अपना फैसला सुनाया। इस फैसले के बाद देश में फिर से दिवाली मनाई गयी। 

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