मालेगांव बम धमाके के बाद हिन्दू आतंकवाद जैसे शब्दों का जन्म हुआ था हालांकि यह राजनीति से प्रेरित था। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के आरोपों के अनुसार सबसे पहले शरद पवार ने भगवा आतंकवाद जैसे शब्द का इस्तेमाल किया था। इससे पहले कांग्रेस की तरफ से भी हिन्दू आतंकवाद जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है हालांकि अभी तक कोई भी दल या जांच एजेंसी यह साबित नहीं कर सकी है कि किसी हिन्दू ने किसी आतंकी घटना को अंजाम दिया हो। राजनीतिक विचारधारा में मतभेद होना सामान्य बात है लेकिन किसी घटना को जबदस्ती भगवा आतंकवाद का चोला पहनाना पूरी तरह से गलत है। मालेगांव धमाके में कांग्रेस की तरफ से ऐसा करने का प्रयास किया गया और उसके लिए जांच एजेंसियों का गलत इस्तेमाल भी किया गया।
वर्ष 2008 का मालेगांव बम धमाका जिसमें 39 लोगों की मौत हुई थी जबकि 125 से अधिक लोग घायल हुए थे। इस घटना के बाद जांच एजेंसी एटीएस (ATS) ने इसमें सीमी (SIMI) का हाथ बताया लेकिन बाद में इस धमाके की जांच में एनआईए को भी शामिल कर लिया गया और फिर बाद में जो रिपोर्ट आयी उसमें एक हिन्दू संगठन को इस हमले का जिम्मेदार बताया गया। इस घटना का विरोध शुरु से हो रहा था लेकिन जांच एजेंसियों के पास गवाह थे जो इस बात को मान रहे थे कि इस धमाके को हिन्दू संगठन द्वारा अंजाम दिया गया है। जांच एजेंसियों ने गवाह को कोर्ट में पेश किया जहां एक के बाद एक गवाह इस बात से मुकरने लगे कि धमाके में हिन्दू संगठन का हाथ था। इस केस का अंतिम गवाह भी 28 दिसंबर 2021 को यह कहते हुए अपनी गवाही बदल दी कि उससे जबरदस्ती हिन्दू संगठन का नाम लेने के लिए कहा गया था। गवाह ने कोर्ट में कहा कि उसे जबरन योगी आदित्यनाथ, आरएसएस के पदाधिकारी इंद्रेश कुमार सहित भाजपा के चार हिन्दू नेताओं का नाम लेने को कहा गया था।
भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस के बीच आपसी मतभेद जरूर है। कांग्रेस को हिन्दू विरोधी पार्टी कहना भी गलत नहीं होगा क्योंकि कांग्रेस की विचारधारा हमेशा से हिन्दुओं के खिलाफ ही रही है। कांग्रेस की तरफ से ही पहली बार हिन्दू आतंकवाद का नाम दुनिया में सामने आया। मुंबई ताज हमले को भी हिन्दू आतंकवादी हमला साबित करने का प्रयास किया गया था लेकिन कसाब की गिरफ्तारी ने सब कुछ बिगाड़ दिया। मालेगांव के आखिरी गवाह ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि कांग्रेस की विचारधारा हिन्दुओं के खिलाफ है। मालेगांव बम धमाके के दौरान केंद्र और महाराष्ट्र में कांग्रेस की सरकार थी। वहीं इस सच्चाई के सामने आने के बाद से आरएसएस और बीजेपी की तरफ से भारी विरोध जारी है और यह मांग की जा रही है कि कांग्रेस इस पर माफी मांगे।