नवीन वैश्विक परिवेश में भारत का वर्चस्व, उसकी अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा को बढ़ाने एवं राष्ट्रीय हितों की पूर्ति सहायक सिद्ध हो रहा है। यही कारण है कि यूक्रेन पर आक्रमण को लेकर रूस और अमेरीका सहित पश्चिमी देश भारत को अपने अपने पाले में लाने के निरन्तर प्रयास में लगे हुए हैं। परिणामस्वरूप भारतीय राजनय के लिए दोनों पक्षों के बीच समीकरण संतुलित करना दिनोदिन चुनौतीपूर्ण बनता जा रहा है।
जैसा कि सर्वविदित है कि रूस और पश्चिमी देशों के बीच तनातनी में भारत ने अपना रुख तटस्थ रखा है। अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में संभवतया पहली बार ऐसा हुआ है, जब विश्व की प्रमुख शक्तियां भारत के समर्थन को पाने के लिए एक अहम एवं महत्वपूर्ण कदम मान रही हैं। यही कारण है कि अगले कुछ दिनों में रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लोवरोव और ब्रिटेन की विदेश मंत्री एजिलाबेथ टूस भारत के दौरे पर आ रहे हैं दोनों का उद्देश्य भारत को अपने पक्ष में करने के लिए मनवाना है।
उल्लेखनीय है कि दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की इस यात्रा के दौरान द्विपक्षीय वार्ता में रूस-यूक्रेन के युद्ध का मुद्दा ही सबसे महत्वपूर्ण रहने की आस लगायी जा रही है। भारत ने अभी तक सम्पूर्ण घटनाक्रम में अपने राष्ट्रीय हितों का विशेष रूप से ध्यान रखत हुए तटस्थ रहने की नीति अपना रखी है। ब्रिटेन अभी रूस के विरुद्ध लामबन्दी में जुटे अमेरिका का सबसे मुखर सहयोगी देश है, जो स्वयं भी रूस पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध लगा चुका है। अनुमान लगाया जा रहा है कि वह भारतीय राजनेताओं के समक्ष रूस सम्बन्धी नीति को लेकर पश्चिमी देशों के इरादों को भी स्पष्ट करेगी। वास्तव में भारत के बढ़ते प्रभाव के कारण ही दुनिया के शक्तिशाली देश भी अब अपने पक्ष में करने के लिए लालायित हो रहे हैं।
वास्तव में भारत के लिए यूरेशिया भी हिन्द प्रशान्त क्षेत्र की भांति सामरिक एवं सामयिक दृष्टि से महत्वपूर्ण एवं संवेदनशील क्षेत्र है। यही कारण है कि दोनों क्षेत्रों में अपने हितों की रक्षा व सुरक्षा हेतु भारत बिना मुखर हुए प्रयत्नरत बना हुआ है। जैसा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और महासभा में मतदान के दौरान किसी प्रकार की सहभागिता भारत ने नहीं की। भारत ने इस प्रकार जहां रूस के प्रति अपनी मौन सहमति व्यक्त की, वहीं दूसरे ओर अमेरिकी नेतृत्व वाले चतुर्भुज सुरक्षा संवाद (क्वाड) की शिखर वार्ता में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सक्रिय सहभागिता की। ऐसी खींचतान की स्थिति में अपना संतुलन स्थापित रखते हुए भारत के बढ़ते वर्चस्व का ही एक उदाहरण है। इस कठिन दौर की एक कारगर विदेश नीति भी कहा जा सकता है। नवीन वैश्विक व्यवस्था में अब भारत ने अपना एक अहम स्थान बना लिया है।
भारत व आस्ट्रेलिया के बीच ऐतिहासिक शिखर सम्मेलन में आपसी व्यापक रणनीतिक समझदारी का निर्णय किया गया तथा यह भी तय हुआ कि दोनों देशों के बीच प्रति वर्ष वार्षिक शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जायेगा। उसमें दोनों देशों ने आर्थिक, व्यापारिक, रक्षा व सुरक्षा, शिक्षा एवं शोध, विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी आदि में आपसी सहयोग पर विशेष बल दिया जायेगा। इससे स्पष्ट रूप से आभास हो रहा है कि अब भारत विश्व मंच पर अपनी महत्ता स्थापित करने के साथ ही अपने हितों की रक्षा के प्रति भी कटिबद्ध है। आस्ट्रेलिया तीसरा ऐसा देश होगा जिसके साथ भारत का संस्थागत वार्षिक शिखर सम्मेलन होगा। भारतीय बुनियादी ढांचे के विकास में आस्ट्रेलियाई निवेश को आकर्षित करने में हमारी रुचि के कारण यह विशेष महत्वपूर्ण है। आस्ट्रेलिया के लिए सेवाओं के निर्यात का भारत अब तीसरा सबसे बड़ा केन्द्र बन चुका है। अभी तक दोनों देशों के बीच 24.3 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार रहा।
आस्ट्रेलिया के व्यापार, पर्यटन व निवेश मंत्री डैन टेहन ने कहा – ‘‘भारत के साथ हमारी सहभागिता बेहद अहम है, क्योंकि हम दोनों देश मजबूत, सतत् आर्थिक विकास और अधिक सुरक्षित व विविध व्यापार तथा निवेश एवं आपूर्ति हेतु लगातार प्रयासरत हैं। हमारी सरकार भारत की आर्थिक रणनीति और इसके महत्वकांक्षी लक्ष्यों के लिए प्रतिबद्ध है। हमारा लक्ष्य 2035 तक भारत को शीर्ष तीन बाजारों मे सम्मिलित करना और एशिया में तीसरा सबसे बड़ा गंतव्य बनाना है। जहां आस्ट्रेलिया के अलावा भी दूसरे देशों का निवेश शामिल हो। इससे स्पष्ट संकेत मिलता है कि निवेश के एक आकर्षण ठिकाने के रूप में उभरता भारत नई वैश्विक व्यवस्था मंे अपना अहम स्थान बना रहा है।’’
भारत व जापान के बीच हाल ही में आर्थिक कारोबारी और ऊर्जा क्षेत्र सहित द्विपक्षीय सम्बन्धों को मजबूत बनाने को लेकर ‘सार्थक’ बातचीत की और दोनों देशों के बीच 6 समझौतों पर हस्ताक्षर किये गये। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और उनके जापानी प्रधानमंत्री फुमियो किशिदा ने संयुक्त रूप से एक बयान में कहा कि भारत-जापान भागीदारी को और गहन करेगा, जोकि न सिर्फ दोनों देशों के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि हिन्द प्रशान्त क्षेत्र और वैश्विक स्तर पर शान्ति, समृद्धि और स्थिरता को प्रोत्साहन देने के लिए भी आवश्यक है। जिस प्रकार से भारत व जापान के बीच कूटनीतिक सम्बन्ध प्रगाढ़ हो रहे हैं, उसी प्रकार से दोनों देशों के बीच आर्थिक सम्बन्ध धीरे-धीरे परवान चढ़ने लगे हैं। भारत में पांच साल में 3.2 लाख करोड़ रुपये का निवेश जापान द्वारा किया जायेगा।
जापान के सहयोग से पूर्वाेत्तर राज्यों में बांस से निर्मित उत्पादों के बाजार को बड़े पैमाने पर विकसित करने को लेकर सहमति बनी, जिससे पूर्वाेत्तर राज्यों के विकास की गति भी तेज होगी। जापान के प्रधानमंत्री किशिदा ने रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण को बेहद गंभीर बताया और भारत व जापान को ‘खुले एवं मुक्त’ हिन्द प्रशान्त के लिए एक साथ मिलकर काम करने का आहवान किया। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि विश्व अभी भी कोरोना और उसके दुष्प्रभावों से जूझ रहा है। वैश्विक अर्थव्यवस्था के पटरी पर लौटने की प्रक्रिया में अभी भी अड़चने आ रही हैं तथा भू राजनीतिक घटनायें भी नित नयी चुनौतियां प्रस्तुत कर रही हैं। हमारे देश ने समर्पित माल ढुलाई (फ्रेट) गलियारा और मुम्बई अहमदाबाद हाई-स्पीड रेल जैसी महत्वकांक्षी परियोजनाओं में जापान का सहयोग उल्लेखनीय रहा है। इसके साथ ही चीन के आक्रामक रवैये पर भी विशेष रूप से हिन्द प्रशान्त क्षेत्र पर दोनों की एक राय भी बनी। दोनों देशों द्वारा क्लीन एनर्जी पार्टनरशिप के तहत भी कई कदम उठाये जायेंगे।
भारत इज़राइल के बीच मजबूत सम्बन्ध भी भारत के बढ़ते प्रभाव का एक बड़ा परिणाम है। इज़राइल और भारत राजनयिक सम्बन्धों की स्थापना के 30 वर्ष पूरे होने की वर्षगांठ के अवसर पर अप्रैल के प्रथम सप्ताह में ही इज़राइल के प्रधानमंत्री नफ्ताली बेनेट भारत का दौरा करेंगे। बेनेट ने कहा कि भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निमंत्रण पर भारत की अपनी प्रथम अधिकारिक यात्रा को लेकर मैं विशेष उत्साहित हूं। इसके साथ ही मिलकर हम दोनों देशों के सम्बन्धों के मामले में नेतृत्व करना जारी रखेंगे। बेनेट ने कहा कि मोदी ने भारत तथा इज़राइल के सम्बन्धों में एक नई शुरूआत की है। इसका एक विशेष रूप से ऐतिहासिक महत्व भी है।
हमारी दो अनोखी संस्कृतियों के बीच सम्बन्ध बहुत गहरा है, जोकि यह आपसी सराहना और सार्थक सहयोगों पर आधारित है। हमारी इस यात्रा का लक्ष्य दोनों देशों के बीच इनोवेशन व प्रौद्योगिकी, सुरक्षा व साइबर तथा कृषि व जलवायु परिवर्तन के क्षेत्रों में सहयोग को बढ़ावा देना है। प्रधानमंत्री बेनेट दो अप्रैल से पांच अप्रैल तक भारत की यात्रा पर रहंेगे। भारत व इज़राइल के आपसी सम्बन्धों को और आगे ले जाने और नये लक्ष्य निर्धारित करने का इससे बेहतर समय कुछ नहीं हो सकता। दुनियां में हो रहे महत्वपूर्ण बदलाव के मद्देनजर दोनों देशों के बीच आपसी सम्बन्धों का महत्व और बढ़ गया है। इसे भी हम भारत के बढ़ते सामर्थ्य का ही एक नमूना कह सकते हैं।
भारत की सुरक्षा तैयारियों और यूक्रेन में जारी युद्ध के सन्दर्भ में मौजूदा वैश्विक परिदृश्य की समीक्षा के लिए सुरक्षा मामलों की मंत्रिमण्डलीय समिति (सी.सी.एस.) की बैठक को सम्बोधित करते हुए भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने स्पष्ट रूप से कहा कि भारत को रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए, ताकि इससे न केवल सुरक्षा को मजबूती मिले, बल्कि अर्थव्यवस्था को भी लाभ हो। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी को सीमावर्ती क्षेत्रों के साथ-साथ समुद्री और हवाई क्षेत्र में भारत की सुरक्षा तैयारी सम्बन्धी प्रगति व विभिन्न पहलुओं की जानकारी दी गयी। भारत ने परमाणु हथियार ले जाने में सक्षम नई पीढ़ी की बोलेस्टिक मिसाइल ‘अग्नि-पी’ तथा ‘प्रलय’ प्रक्षेपास्त्र का सफल परीक्षण किया।
हाल ही में रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन ने भारतीय सेना हेतु सतह से हवा में मार करने वाली मध्यम रेंज की दो मिसाइलों एम.आर.एस.ए.एम. का दो बार सफल परीक्षण किया। यह अत्याधिक क्षमता और तकनीक से लैस इस प्रक्षेपास्त्र की गति 2448 किमी प्रति घण्टा (680 मीटर प्रति सेकेण्ड) है। यह इजराइल की कम्पनी (आई.ए.आई.) के सहयोग से बनी है। अब भारत प्रक्षेपास्त्रों की भांति लड़ाकू विमान, टैंक, पनडुब्बियां तथा रॉकेट आदि बनाने में आत्मनिर्भर होने जा रहा है। वैसे भारत अब लगभग 84 देशों को रक्षा सामग्री और रक्षा उपकरण निर्यात करने में भी सक्षम हो गया है। भारतीय प्रक्षेपास्त्रों की धमक अब दूसरे देशों तक पहुंच गयी है। हाल ही में भारत ने फिलीपीन्स को ब्रह्मोस सुपर सोनिक क्रूज प्रक्षेपास्त्र के एण्टीशिप वैरियण्ट का सौदा हुआ। इसके साथ अनेक देशों ने भी अपनी दिलचस्पी दिखायी है। भारत के रक्षा के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता और निर्यात का एक शुभ संकेत है। भारत में हथियारों के आयात में रूस का हिस्सा भी अब घटकर 46 प्रतिशत ही रह गया है। मेक इन इण्डिया से रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता आयी है। आत्मनिर्भर भारत की अवधारणा ड्रेजर निर्माण में भारत की सबसे बड़ी पहलों में से एक है।
भारत के बढ़ते प्रभाव का एक उदाहरण कोरोना वायरस के ओमीक्रोन स्वरूप से दुनिया में आये संक्रमण के मामले मंे पिछली लहरों के मुकाबले 6 गुना अधिक थे, किन्तु भारत इसके प्रसार को रोकने में कामयाब रहा, जिससे अस्पतालों में कम संख्या में मरीज भर्ती हुए और पहले के मुकाबले कम मौतें हुईं। संक्रमण के वैश्विक मामलों में भारत का योगदान केवल 0.21 प्रतिशत रहा, जबकि अनेक देशों में अभी भी मामले बढ़ रहे हैं, जो पिछली लहरों के मुकाबले अधिक है। भारत में न केवल कम मामले आये, बल्कि निरन्तर प्रयासों से जल्द ही मामलों में गिरावट आनी शुरू हो गयी। भारत अन्य देशों के मुकाबले ओमीक्रोन से अच्छी तरह से निपटा। वास्तव में भारत ने तेजी से टीकाकरण अभियान के साथ ही रोकथाम के प्रभावी उपाय और मामलों की शीघ्र पहचान किये जाने के कारण ही यह सब संभव हुआ। भारत ने टीके की 180 करोड़ से अधिक खुराकें दीं, जो अमेरिका ने 3.2 गुना और फ्रांस से 12.7 गुना अधिक है।
वास्तव में यह भी भारत के बढ़ते सामर्थ्य का शुभ संकेत है। भारत ने वस्तु निर्यात के 400 अरब डॉलर के लक्ष्य को इस वित्त वर्ष के समाप्त होने के 9 दिन पहले ही हासिल करके एक उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है। चालू वित्त वर्ष में भारत का निर्यात 37 प्रतिशत बढ़ा है। वित्त वर्ष 2020-21 में यह 292 अरब डॉलर था। निःसन्देह कोरोना काल की आर्थिक गिरावट के दौरान यह भारत के आत्मनिर्भर होने की ओर एक बड़ी छलांग है। इसे आत्मनिर्भरता का एक बड़ा पड़ाव कहा जा सकता है। इसमें पांच वस्तुओं इंजीनियरिंग उत्पाद, जेम्स तथा ज्वैलरी, पेट्रोलियम उत्पाद, ड्रग एण्ड फार्मा तथा आर्गेनिक व इनआर्गेनिक रसायन यह ब्राण्ड इण्डिया के लिए नये लक्ष्य के साथ नयी यात्रा का भी समय है। यह भी सही है कि पहले खाने का नहीं था अनाज, अब दुनिया करती हम पर नाज। अब हम दुनिया में दुग्ध उत्पादन में एक नम्बर में गेहूं व चावल के उत्पादन में दो नम्बर पर आते हैं।
अन्ततः देश का वैश्विक स्तर पर बढ़ता वर्चस्व उस समय भी देखने को मिला, जब भारत ने यूक्रेन के युद्ध में फंसे अपने नागरिकों को ‘ऑपरेशन गंगा’ के तहत सुरक्षित भारत भूमि मंे लाया गया। भारत के झण्डे द्वारा रूस व यूक्रेन के सैनिकों ने हमारे नागरिकों को पड़ोसी देशों के ठिकाने तक पहुंचाने में सहयोग, समर्थन व सहानुभूमि दिखाकर बीस हजार से अधिक लोगों को सुरक्षित भिजवाया, जिससे दुनिया के देश भी दंग रह गये और भारतीय वर्चस्व का प्रभाव वैश्विक स्तर पर स्पष्ट रूप से देखा गया। यही नहीं चीन के चंगुल में फंसे नेपाल व श्रीलंका भी भारत के साथ अपने सम्बन्धों को प्रगाढ़ बनाने के लिये आतुर है। निःसन्देह यह भारत का यही सामर्थ्य उसकी अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा बढ़ाने एवं राष्ट्रीय हितों की पूर्ति में सहायक सिद्ध हो रहा है।
– डॉ. सुरेन्द्र कुमार मिश्र
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