दुनिया चुका रही रुस-यूक्रेन युद्ध की कीमत

रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध का असर अब पूरी दुनिया पर दिखने लगा है और यह असर महंगाई के रूप में नजर आ रहा है। भारत सहित तमाम देशों में महंगाई अपने चरम पर पहुंच गयी है और यह किसी भी सरकार के काबू से बाहर है। वर्ष 2019 से शुरू हुई कोरोना महामारी ने भी अर्थव्यवस्था को तबाह करने में कोई कसर नहीं छोड़ा है हालांकि केस कम होने के साथ साथ अर्थव्यवस्था पटरी पर लौट रही थी कि तभी रूस और यूक्रेन के युद्ध ने फिर से वैश्विक तापमान को बढ़ा दिया। चीन में फिर से शुरू हुए कोविड केस ने विश्व को डर के साये में खड़ा कर दिया है और इन सब का परिणाम यह है कि पेट्रोल, डीजल और गैस के दाम आसमान छू रहे हैं। 

विश्व व्यापार संगठन ने इस साल के लिए अंतरराष्ट्रीय व्यापार में 4.7 प्रतिशत की वृद्धि की बात कही थी लेकिन बिगड़ते हालात को देखते हुए उसमें करीब 1.5 फीसदी घटा दिया जिससे अंतरराष्ट्रीय व्यापार वृद्धि 3 फीसदी पर आ गया। संयुक्त राष्ट्र व्यापार और विकास संगठन ने वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर को 3.6 फीसदी बताया था जिसे बाद में कम कर 2.6 फीसदी कर दिया। मतलब साफ है कि दो देशों के बीच चले युद्ध की वजह से अब इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है क्योंकि युद्ध के हालात में सभी देश खुद को तैयार करने में लग जाते हैं और युद्ध में बड़ी संख्या तेल, गैस और खाद्य पदार्थों का इस्तेमाल किया जाता है ऐसे में कीमतों का बढ़ना स्वाभाविक है। हालांकि भारत सरकार की तरफ से यह दावा किया जा रहा है कि बाकी देशों की तुलना में यहां कीमतों में कम बढ़ोत्तरी हुई है।

विश्व बैंक और आईएमएफ (IMF) की तरफ से भी यह कहा गया है कि रूस-यूक्रेन युद्ध का असर पूरी दुनिया पर पड़ रहा है लेकिन मध्य यूरोप और मध्य, दक्षिण, और दक्षिण पूर्व एशिया के कई देशों पर इसका प्रभाव पड़ रहा है। इस युद्ध की वजह से इन देशों की अर्थव्यवस्था में मंदी छाई हुई है जिसकी वजह से वहां हालात बिगड़ रहे हैं। श्रीलंका भी इसका एक उदाहरण है और बढ़ती महंगाई के बाद ऐसे कयास लगाए जा रहे हैं कि बाकी कुछ देशों में भी श्रीलंका जैसे हालात पैदा हो सकते है।

युद्ध के कारण खाद्य पदार्थों खासकर गेहूं व तेलों की कीमतों में भी उछाल देखा जा रहा है क्योंकि यूक्रेन व रूस गेहूं, मक्का और तेलों का बड़ी मात्रा में निर्यात करते हैं। रूस और यूक्रेन पूरी दुनिया का करीब 30 फीसदी गेंहू निर्यात करते हैं। मध्य पूर्व और उत्तरी पूर्वी अफ्रिका के कई देश पूरी तरह से रूस व यूक्रेन पर निर्भर रहते हैं। अनाज के साथ साथ खाद का भी रूस बड़ा सप्लायर है। नाइट्रोजन, पोटैशियम और फास्फोरस का भी बड़ी मात्रा में रूस निर्यात करता है। रूस द्वारा युद्ध शुरु किए जाने और उस पर पश्चिमी देशों द्वारा प्रतिबंध लगाने के बाद गेंहू, मक्का व तेल के दामों में रिकार्ड तोड़ उछाल दर्ज की गयी है। 

विश्व में बढ़ती मांग की वजह से तेल की कीमतों में बढ़ोत्तरी जारी है ऐसे में युद्ध ने इसमें और भी आग लगा दिया है। फिलहाल कच्चे तेली कीमत 100 डालर प्रति बैरल है लेकिन यह भी आम आदमी की पहुंच से अधिक है। मजबूरी की बात अलग है वरना इस समय दो पहिया वाहन के लोग पेट्रोल की कीमत को सहन नहीं कर सकते हैं। कच्चे तेल और अनाज के दाम में बेतहासा बढ़ोत्तरी का असर दुनिया के अधिकांस देशों पर पड़ रहा है जिससे उत्पाद पर भी इसका असर पड़ रहा है इस महंगाई के कारण लोग उपभोग में कटौती को मजबूर हो रहे है। कुल मिलाकर महंगई बढ़ना किसी भी रूप में अच्छे संकेत नहीं है अगर इस पर समय पर लगाम नहीं लगाई गयी तो इसके आगामी परिणाम अच्छे नहीं होंगे। रूस और यूक्रेन के बीच यह युद्ध नहीं रूका तो आने वाले समय में महंगाई और भी बढ़ सकती है और बाकी देशों के हालात भी श्रीलंका जैसे हो सकते हैं। 

महंगाई की मार तेजी से भारत पर भी पड़ी है और यह रिजर्व बैंक के उपरी स्तर पर पहुंच चुकी है। रिजर्व बैंक को हालात सुधारने के लिए ब्याजदरों में बढ़ोत्तरी करनी होगी लेकिन ऐसा करने से हालात और भी बिगड़ सकते हैं और जनता सड़को पर उतर सकती है। महंगाई की वजह से भारत में औद्यौगिक उत्पादों की मांग, उत्पादन और निवेश में सुस्ती देखने को मिल रही है। वैश्विक व घरेलू संस्थाओं ने पहले ही जीडीपी दर में कटौती कर मंदी के संकेत दे दिए है ऐसे में निवेश भी अब बाजार में बहुत फूंक फूंक कर कदम रख रहे हैं। अब यह महंगाई की मार कब तक रहने वाली है यह सभी के लिए एक बड़ा सवाल है।    

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