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तबादला

तबादला

by राजेश विक्रांत
in मनोरंजन, साहित्य, हास्य विशेषांक-मई २०१८
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“तारीफ़ करने पर भी तबादला मिलता है और लताड़ने पर भी इसे पाया जा सकता है। जो लोग ईमानदारी को ही सर्वोपरि मानने की मूढ़ता में लीन रहते हैं उनका तबादला ज्यादा होता है।”

सच पूछा जाए तो तबादला ही वह कारण है जिसकी वजह से मैं प्रमोशन से दूर रहा। दरअसल, प्रमोशन के तुरंत बाद तबादले का आगमन होता है। दफ्तरों के लिए यह सराहनीय सा शुभ कर्म हो सकता है पर तबादलाग्रस्त के लिए यह कालाहांडी और युगांडा में पोस्टिंग का सुख देने वाला होता है। मैंने आज तक किसी महामना को तबादला होने पर शायद ही आनंदित देखा हो। हां, अगर  तबादला करवाया जाए तो तबादले मलाईदार भी हो जाते हैं।

मेरी राय में बदला से कम खतरनाक नहीं होता तबादला। वैसे देखा जाए तो यह वस्तुतः बड़े अफसर की बुद्धि, इच्छा और सनक पर निर्भर होता है। अफसर से यह भी याद आया कि यह जीव कई कामों के लिए जाना जाता है। उसमें अधीनस्थों को डांटना, फटकारना, फाइलों पर सांप की तरह कुंडली मार कर बैठ जाना, फाइल रूपी दुल्हन का खरीदार खोजना, सोमरस, निंदा स्तुति, नींद, आराम, षड्यंत्र, लल्लो चप्पो के साथ किसी का तबादला करवाना या खुद तबादले की दशा को प्राप्त होना शामिल है।

हकीकत में साहित्यकार विभूति नारायण राय की किताब और भोजपुरी एक्टर पवन सिंह की फिल्म ‘तबादला’ से ज्यादा रोचक होता है असली तबादला। यह सरकार की सनक दिखाता है और सत्ता की खनक भी। अफसर हो या कर्मचारी सभी को बराबर यह प्रसाद के रूप में प्राप्त होता है। सरकार इस बारे में किसी से कोई भेदभाव नहीं करती। सभी को तबादले, स्थानांतरण और ट्रांसफर का आनंद मुहैया कराती है। आई ए एस, आई पी एस, डॉक्टर, कांस्टेबल, इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर, डी एस पी, शिक्षक, पंचायत सचिव, बेसिक शिक्षा अधिकारी आदि कोई भी, कभी भी, कहीं भी तबादला दशा को प्राप्त हो सकता है। जो चाहता है उसका तो होता ही है जो नहीं चाहता उसका भी तबादला हो जाता है। फिर आप करते रहिए तबादले के खिलाफ अपील, निवेदन, फुसफुसाहटें, आवेदन, कानाफूसियां, बतकहियां, खिलाफत, चुगलियां, विरोध आदि आदि। कुछ फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि तबादले की प्रक्रिया तो संपन्न हो चुकी होती है।

तारीफ़ करने पर भी तबादला मिलता है और लताड़ने पर भी इसे पाया जा सकता है। जो लोग ईमानदारी को ही सर्वोपरि मानने की मूढ़ता में लीन रहते हैं उनका तबादला ज्यादा होता है। पिछले साल एक कलेक्टर ने सराहना करके तबादला प्राप्त किया था। दरअसल, उन्होंने फेसबुक में देश के पहले प्रधान मंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की तारीफ की थी! बस फिर क्या था। सरकार ने अपना चिर परिचित हथियार निकाला और तत्काल उनका तबादला कर दिया गया।

यूपी की एक पुलिस अधिकारी ने शहर में ट्रैफिक नियमों को तोड़ने के आरोप में कुछ नेताओं या नेतानुमा महानुभावों को लताड़ लगा कर इधर जुर्माना किया उधर उनका तबादला कर दिया गया। सरकार ने इसमें कोई न कोताही की, न तो देर लगाई। तुरंत का दान महा कल्याण। यह तो सरकार का परम कर्तव्य है।

यूपी में तैनात डीएसपी श्रेष्ठा ठाकुर, मध्यप्रदेश में तैनात तहसीलदार अमिता सिंह तोमर और कर्नाटक में तैनात डीआइजी जेल डी रूपा, इन तीनों लोगों में समानता क्या है। इस सवाल का जवाब बेहद सीधा सा है, तीनों महिलाएं और प्रशासनिक अधिकारी हैं। लेकिन एक ऐसा शब्द भी है जो इन तीनों लोगों से जुड़ा हुआ है और वह है तबादला। कर्नाटक सरकार ने डी रूपा का तबादला यातायात विभाग में महज इसलिए कर दिया क्योंकि उन्होंने बेंगलुरु सेंट्रल जेल में अन्नाद्रमुक की नेता शशिकला को मिलने वाली सुविधा का खुलासा किया था।

अदला-बदली शब्द युग्म से निकला है फेरबदल, बदलाव, बदलना, बदली और फिर तबादला। सरकार न्यायपूर्ण बदलाव को तबादला कहती है पर हकीकत में तबादला न्याय, अन्याय, खुशामद, चाहत, इच्छा, अनिच्छा, स्वेच्छा, पुरस्कार, दंड आदि की बेमेल खिचड़ी होता है। तबादला नामक क्रिया, प्रतिक्रिया या कार्यवाही को सरकार स्वच्छ व पारदर्शी प्रशासन के लिए रामबाण मानती है। इसे प्रगति की दवा, विकास का कैप्सूल, तरक्की की टॉनिक, कल्याण की सुई, हित की टैबलेट, भी माना जाता है। कुछ दिलजले कहते हैं कि किसी अफसर को खुश करने का तरीका मेहनत, लगन, ईमानदारी, कार्यकुशलता, कर्तव्यनिष्ठा और मधुर व्यवहार है। मैं कहता हूं कि यह लंबा और कांटों भरा रास्ता है। अफसर का तबादला उसकी मनचाही जगह पर करवा दो। अफसर परम खुश हो जाएगा। किसी अफसर से बदला लेना है तो और कुछ न करो, बस उसका तबादला गड़चिरोली करवा दो।

हालांकि तबादला जीवन की तरह क्षणभंगुर होता है। इसलिए तबादले किए जाते हैं, रोके जाते हैं, रद्द होते हैं, निरस्त होते हैं। तबादलों की सूचियां बनती हैं, बिगड़ती हैं, बदलती भी हैं।

कोई खुशकिस्मत तो तबादले को थोक के भाव में भी पाता है। एक सीनियर आईएएस तो अब इस मामले में कमोबेश किंवदंती ही बन चुके हैं, क्योंकि 23-24 साल के करिअर में उनके 45 तबादले हुए। एक अन्य पुलिस अधिकारी इस मामले में इतने खुशकिस्मत हैं कि वे अपने 24 साल के करिअर में 24 तबादलों का आनंद उठा चुके हैं। सच में तबादले ही इन अधिकारियों की कर्मठता के साथ अकर्मण्यता के भी प्रमाणपत्र बन गए हैं।

तबादला ही सरकार का विजन है, एजेंडा है, योजना है, व्यवस्था है, इंतजाम है, इनाम है, दंड है। तबादला ही सरकार का सच है, कार्यक्रम है, ख़ुशी है, भरोसा है, कार्यान्वयन है और प्रोत्साहन है। तबादला नामक औजार से सरकार बंदरबाट भी करती है और बालू की भीत भी उठाती है। जो जैसा समझे वैसा आनंद तबादले में खोज सकता है।

 

 

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