मंदिर आस्था से समृद्धि की ओर

मंदिर हमारी सामाजिक-धार्मिक आस्था के केंद्र रहे हैं। सनातन संस्कृति में मंदिर से कई क्रिया-कलाप संपादित होते रहे हैं। बीते दशक में मंदिरों का विश्लेषण किया जाए, तो यह कहने में दिक्कत नहीं है कि मंदिर से हमारी अर्थव्यवस्था को भी बहुत लाभ मिल रहा है।

हाल के दिनों में सनातन को लेकर भले ही राजनीतिक रूप से विमर्श का नया दौर शुरू हुआ हो, लेकिन सच्चाई यह है कि भारतीय संस्कृति में समय सापेक्ष जब सामाजिक सरोकारों को लेकर समेकित विकास को लेकर नई दृष्टि आती है, तो समाज का स्वमेव परिष्करण होता जाता है। इस रूप में हम मंदिरों को लेकर एक नई चेतना और युवा वर्ग का आकर्षण देख रहे हैं। कुछ समय पहले प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की पहल पर काशी में बाबा विश्वनाथ मंदिर का सौंदर्यीकरण हुआ है। पुरातनता के साथ आधुनिकता की ओर कदम बढ़ाती विश्व की सबसे प्राचीनतम नगरी काशी अपनी धरोहरों व सांस्कृतिक मूल्यों के संरक्षण के साथ पर्यटन का बड़ा केंद्र बनती जा रही है। मंदिर और घाटों के लिए प्रसिद्ध यह नगर सरकार के धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने से परंपरा और आधुनिकता को साथ लेकर परिवर्तित हो रहा है। हाल ही में एक रिपोर्ट आई थी, जिसमें कहा गया कि भारत में अब गोवा से अधिक पर्यटक काशी जा रहे हैं। जाहिर है कि इससे काशी के आर्थिक ताने-बाने को काफी लाभ मिला है।

उत्तर प्रदेश राज्य पर्यटन विभाग की वेबसाइट के अनुसार, कोविड महामारी से पहले की तुलना में दस गुना अधिक पर्यटक आ रहे हैं। 2019 में यहां आने वाले पर्यटकों की संख्या करीब 68 लाख थी। कोविड के दौरान 2020 में यह दस लाख से भी कम हो गई थी। 2022 में करीब 7.2 करोड़ पर्यटक वाराणसी पहुंचे। इस वर्ष सावन के ही एक महीने में यह संख्या अब तक एक करोड़ को पार कर गई है।

काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट के सीईओ सुनील वर्मा के अनुसार, दिसंबर 2021 में गलियारे के उद्घाटन के बाद से दस करोड़ पर्यटक मंदिर का दौरा कर चुके हैं। विश्व प्रसिद्ध गंगा आरती, गंगा क्रूज, काशी की सांस्कृतिक-आध्यात्मिक विरासत, गंगा घाटों का सौंदर्य और हिंदू, बौद्ध, जैन, सिख धर्मों की भी तीर्थस्थली होने के साथ विश्वभर के शिवभक्तों का लक्ष्य काशी पहुंचना होता है। काशी विश्वनाथ धाम के पुनर्विकास के बाद शहर में पर्यटकों की संख्या में भारी वृद्धि हुई है। स्थानीय सांसद और देश के प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने मन की बात में कहा था कि वाराणसी में पर्यटकों की संख्या में वृद्धि ‘सांस्कृतिक जागृति’ का परिचायक है। तीर्थयात्रियों के लिए आनंददायक स्थान है। मंदिर के अलावा, अन्य सुविधाएं जोड़ी गई हैं और यह लगभग एक नया शहर जैसा लगता है। स्थानीय लोग उत्साहित हैं और जानते हैं कि यदि वे अपने व्यवसाय को बेहतर बनाने में निवेश करते हैं- चाहे वह नाविक हो, होटल मालिक हो या साड़ी विक्रेता – रिटर्न उम्मीद से बेहतर होगा। जो लोग साइकिल रिक्शा चलाते थे, वे ई-रिक्शा चलाने लगे हैैंं। गंगा घूमने के लिए नाव बेहतरीन जरिया है। नावें लोगों से भरी होती हैं। शहर में होटल कारोबार में भी तेजी देखी जा रही है। बनारस हवाई अड्डे पर सुविधाएं बढ़ाई गई हैं, यात्रियों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है।

आंकड़े बताते हैं कि काशी में हर महीने तकरीबन 20 से 30 लाख पर्यटक पहुंच रहे हैं। यहां पहले ताज जैसा फाइव स्टार होटल था, लेकिन अब अन्य कई होटल बन रहे हैं। छोटे-बड़े मिलाकर 2500 से ज्यादा होटल, गेस्ट हाउस पूरी तरह भरे रहते हैं। आज हर माह में 15 दिन ऐसे भी होते हैं जिसमे काशी के होटलों में रूम नहीं मिलता है। काशी में व्यापार करने वालों के आलावा पर्यटन से जुड़े लोगों की आय में 20 से 65 फीसदी का इजाफा हुआ है। यह बात वर्ष 2022 में डीएवी पीजी कॉलेज की ओर से कराए गए आर्थिक सर्वेक्षण की रिपोर्ट में सामने आई है।

ऐसी ही सुंदर स्थिति मध्य प्रदेश के उज्जैन की है। यूं तो द्वादश ज्योर्तिलिंग में से बाबा महाकाल के दर्शन करने वालों की संख्या काफी रही है। मगर 11 अक्टूबर, 2022 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा महाकाल लोक के उद्घाटन के बाद यहां श्रद्धालुओं की संख्या में काफी वृद्धि हो रही है। भारतीय सिने जगत से भी कई लोग समय-समय पर आ रहे हैं। इसके कारण युवाओं में उज्जैन आने को लेकर नया उत्साह बना है। सिर्फ जुलाई, 2023 में रिकॉर्ड तोड़ 77 लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं ने भगवान महाकाल का आशीर्वाद लिया। लोगों की बढ़ती संख्या जिले की अर्थव्यवस्था के लिए भी काफी अच्छी है। ऐसा होने से होटल, जलपान, परिवहन आदि का व्यवसाय बढ़ रहा है। महाकाल लोक के बाद मध्य प्रदेश में ही ओरछा में श्रीराम राजा लोक की चर्चा भी अभी से हर स्तर पर होने लगी है।

इस बीच, अयोध्या एक अलग दृष्य प्रस्तुत करता है। जहां वाराणसी और उज्जैन वर्तमान में अपनी सार्वजनिक सुविधाओं को उन्नत कर रहे हैं, वहीं अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण के साथ-साथ बुनियादी ढांचे के उन्नयन का काम भी किया जा रहा है, जिसका उद्घाटन अगले साल जनवरी में होने की संभावना है। सच तो यह भी है कि अहमदाबाद में सरदार वल्लभभाई पटेल की विशाल मूर्ति की स्थापना, वाराणसी में भगवान काशी विश्वनाथ कारीडोर का निर्माण, सोमनाथ मंदिर में माता पार्वती के देवस्थान का निर्माण, माता कालिका के मंदिर का पुनरोत्थान, केदारनाथ-बद्रीनाथ का परिसंस्करण करना एवं इसके बाद अभी हाल ही में उज्जैन में श्री महाकाल लोक जैसे स्थल की स्थापना जैसे प्रयास पूरे विश्व में एक नए भारत की तस्वीर पेश करने में सफल रहे हैं। इक्सिगो की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में धार्मिक पर्यटन का चलन बढ़ने की वजह से वाराणसी और पुरी में होटल की बुकिंग अन्य शहरों की तुलना में अधिक रही है। पुरी और वाराणसी में पर्यटक सिर्फ धार्मिक यात्रा ही नहीं बल्कि योग रिट्रीट और आयुर्वेद स्पा का आनंद लेने भी आ रहे हैं।

नेशनल सैंपल सर्वे संगठन के अनुसार, भारत में करीब 5 लाख मंदिर और तीर्थस्थल हैं, जिनकी अर्थव्यवस्था 3 लाख करोड़ रुपए से भी अधिक की है। साथ ही देश में मस्जिदों की संख्या भी करीब 7 लाख और गिरजाघरों की संख्या 35,000 के आसपास है। केंद्र की पूर्व सरकारों की गलत नीतियों के चलते भारत के लगभग 4 लाख मंदिर सरकार के नियंत्रण में हैं तो वहीं एक भी चर्च या मस्जिद पर सरकार का नियंत्रण नहीं है। उत्तराखंड में चार धाम यात्रा में इस बार रिकॉर्ड श्रद्धालु पहुंच रहे हैं। चार धाम यात्रा में केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री धाम शामिल हैं। वर्ष 2022 में अभी तक 41 लाख से ज्यादा श्रद्धालु पहुंच चुके हैं। जबकि, 2019 में यह संख्या लगभग 35 लाख थी। इसी दौरान 15 लाख श्रद्धालु बद्रीनाथ पहुंचे, 14 लाख से ज्यादा यात्री केदारनाथ, 6 लाख से ज्यादा यात्री गंगोत्री और 5 लाख से ज्यादा श्रद्धालु यमुनोत्री पहुंचे हैं।

भारत के धनी मंदिरों की चर्चा अक्सर होती है, लेकिन आखिर धन कुबेर बने मंदिर अपनी आमदनी खर्च कैसे करते हैं? देश के धनी मंदिरों में शामिल सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट आत्महत्या कर चुके किसानों के बच्चों की मदद कर रहा है। साल 2016 से ही मुंबई स्थित सिद्धिविनायक मंदिर ट्रस्ट ने बच्चों की शिक्षा का बीड़ा उठाने की पहल की है। ‘सिद्धिविनायक स्कॉलरशिप स्कीम’ के लिए मंदिर के ट्रस्ट ने एक करोड़ रुपये तय किए हैं। मंदिर की वार्षिक आमदनी 65 करोड़ रुपये के करीब है। मंदिर ट्रस्ट सामाजिक सरोकारों से जुड़ी कई और योजनाएं चला रहा है। शिरडी स्थित साईं बाबा का मंदिर देश के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है. मंदिर की दैनिक आय 60 लाख रुपये से ऊपर है और सालाना आय 300 करोड़ रुपए की सीमा पार कर चुकी है। शिरडी वाले साईं बाबा के दरबार में जितनी दौलत है, उतना ही साईं मंदिर से दान भी किया जाता है। शिरडी साईं बाबा संस्थान अस्पताल, शिक्षा, और अन्य सामाजिक कार्यों में अपनी आय का पचास फीसदी तक खर्च करता है। पटना का प्रसिद्ध हनुमान मंदिर पूरे देश में सामाजिक सरोकारों के लिए जाना जाता है।

एक अनुमान के अनुसार देशभर में 5000 से ज्यादा छोटे-बड़े महत्व के धार्मिक स्थान हैं। दक्षिण भारत के धार्मिक स्थान, विशाल मंदिर परिसर और गजब का स्थापत्य लिए हुए हैं, तो उत्तर के तीर्थों का विकास आमतौर पर पवित्र नदियों के किनारे हुआ। पर्यटन मंत्रालय ने कुछ साल पहले इसके लिए चरणबद्ध विकास योजना तैयार की थी। इसमें 53 धार्मिक स्थानों को वरीयता के आधार पर पहले फेज में विकसित जा रहा है, अगले फेस में 89 जगहों पर काम होगा। इसी के मद्देनजर देश को 7 नए टूरिज्म सर्किट में भी बांटा गया है, ये सर्किट सूफी, बौद्ध, जैन, ईसाई, सिख, हिन्दू और सर्व धर्म के तौर पर विकसित किए जा रहे हैं। पर्यटन मंत्रालय ने प्रसाद नामक एक विशेष योजना को प्रारम्भ किया है। जिसके अंतर्गत 15 राज्यों में धार्मिक स्थलों पर  24 परियोजनाओं के माध्यम से बुनियादी ढांचे को विकसित करने के उद्देश्य से पर्यटन मंत्रालय द्वारा वित्त की व्यवस्था की जाती है। प्रसाद योजना के अंतर्गत रोड, रेल एवं जलमार्ग के माध्यम से परिवहन की व्यवस्था विकसित की जा रही है।

केंद्र सरकार द्वारा देश के 12 शहरों को हृदय योजना के अंतर्गत भारत के विरासत शहरों के तौर पर विकसित किया जा रहा है। ये शहर हैं, अजमेर, अमरावती, अमृतसर, द्वारका, गया, कामाख्या, कांचीपुरम, केदारनाथ, मथुरा, पुरी, वाराणसी एवं वेल्लांकनी। हृदय योजना को लागू करने के बाद से केंद्र सरकार के पर्यटन मंत्रालय ने 6122 करोड़ रुपए की 77 परियोजनाओं को स्वीकृति प्रदान कर दी है।

वर्ष दर वर्ष, भारत में धार्मिक पर्यटन बढ़ने की वजह से होटल उद्योग, यातायात उद्योग, छोटे व्यवसायियों आदि को बहुत फायदा हो रहा है एवं  वर्ष 2028 तक भारत के पर्यटन क्षेत्र में लगभग एक करोड़ रोजगार के नए अवसर निर्मित होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है। करीब दो महीने पहले वाराणसी में 30 देशों के 1600 मंदिर प्रबंधकों का महासम्मेलन हुआ। इसमें सरसंघचालक पू. मोहन भागवत ने कहा था कि हमें गली के छोटे-छोटे मंदिरों की सूची बनानी चाहिए। वहां रोज पूजा हो, सफाई रखी जाए। मिलकर सभी आयोजन करें। संगठित बल साधनों से संपूर्ण करें। अपना-उनका छोड़कर एक साथ आगे आएं। जिसको धर्म का पालन करना है वो धर्म के लिए सजग रहेगा। निष्ठा और श्रद्धा को जागृत करना है। छोटे स्थान पर छोटे से छोटे मंदिर को समृद्ध बनाना है। समय आ गया है, अब देश और संस्कृति के लिए त्याग करें।

                    – सुभाष चंद्र

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