सौंदर्य, कला व प्रतिभा की प्रतिमूर्ति मधुबाला

जब भी हम कभी बीते समय की फिल्मी नायिकाओं की सुंदरता की बात करते हैं, तब बरबस ही मधुबाला का नाम आ जाता है। मधुबाला का आकर्षक मनभावन चेहरा, बोलती आंखें, नैन नक्श, जैसे दर्शकों के दिलों दिमाग में छा सा जाता था। उस दौर में हर प्रेमी अपनी प्रेमिका में मधुबाला का ही अक्स देखा करता था।

हमारे फिल्म जगत में खूबसूरत नायिकाओं की सुदीर्घ परंपरा रही है। सुंदर नायिकाओं की इस श्रृंखला में महज नाक से एक ओर सांस खींच कर भावाभिव्यक्ति देनेवाली नरगिस, भावप्रवण वैजयंतीमाला, गरिमामय सौंदर्य की प्रतिमूर्ति वहीदा रहमान, गोलमटोल त्रावणकोर बहनें पद्मिनी, रागिनी और जयललिता, मोहक मुस्कान और आंखों से संवाद कह जाने वाली नूतन, तीखे नाक-नक्श और तीखी आवाज वाली सायरा बानो, चेहरे से उम्र का पता न लग पाने वाली ड्रीम गर्ल हेमा मालिनी, पश्चिमी रंग ढंग में पली-बढ़ी आधुनिक जीनत अमान और परवीन बाबी हैं। वहीं स्निग्ध सौंदर्य से परिपूर्ण श्रीदेवी व जयाप्रदा, मीनाक्षी शेषाद्री, जूही चावला, सुंदरी ऐश्वर्या रॉय बच्चन, विद्या बालन, करीना कपूर, केटरीना कैफ, आलिया भट्ट आदि ने सशक्त अभिनय व अपने रूप, सौंदर्य, कला से हिंदी सिनेमा को समृद्ध किया है।

सौंदर्य के बहुविध प्रतिमानों को अभिव्यक्त करने वाली इन तारिकाओं के बीच मधुबाला एक ऐसा नाम है, जिसके रूप-सौंदर्य ने न सिर्फ तत्कालीन युवा व प्रौढ़ पीढ़ी को बल्कि इससे बाद की प्रत्येक पीढ़ी को भी प्रभावित और आकर्षित किया। मधुबाला ने सुंदरता का ऐसा मुहावरा गढ़ा कि उनके बाद सत्तर के दशक की अभिनेत्री सोना (कच्चे धागे) और अस्सी व नब्बे के दशक की लोकप्रिय अभिनेत्री माधुरी को जब पहली बार रूपहले परदे पर उतारा गया, तो यही कहा गया कि एक और मधुबाला का उदय हुआ है।

मधुबाला के इस सौंदर्य का इतना ज्यादा जिक्र होने का एक कारण यह भी था कि वे अपने से पूर्ववती और समकालीन नायिकाओं से न सिर्फ ज्यादा सुंदर थीं, बल्कि अभिनय में भी वे किसी नायिका से उन्नीस नहीं पड़ती थीं। चाहे वह ‘दुलारी’ में नायक भारत भूषण के ‘सुहानी रात ढल चुकी, न जाने तुम कब आओगे’ गीत के सामने बीत रही निशा में प्रेमी को बेकल करती प्रेमिका हो, चाहे ‘महल’ की ‘आएगा आने वाला गीत’ गाने वाली रहस्यमयी नायिका हो, या दिलीप कुमार के संग ‘तराना’ में ‘सीने में सुलगते हैं अरमान’ में दर्द की अभिव्यक्ति को सिसकियों से बयां करने वाली अफसुर्द प्रेमिका हो, मधुबाला ने दर्द को हमेशा शिद्दत से प्रस्तुत किया। ऐसा नहीं कि मधुबाला हमेशा दर्द में डूबी हुई भूमिकाएं ही अदा कर सकती थीं। उन्होंने हल्की-फुल्की कॉमेडी फिल्मों को भी अपनी अद्भुत प्रतिभा से खूब समृद्ध किया। ‘चलती का नाम गाड़ी’ में अचानक रात को किशोर कुमार का उनके बेडरूम में घुसकर फ्रीज में से केले निकाल कर खाता हुआ देख, घबरा कर कौन है चिल्लाना और फिर किशोर द्वारा अपने पांच रुपये बारह आने की वसूली के लिए तकाजा करने पर खिलखिला पड़ना ‘हाफ टिकट’ में ‘मुन्ना’ बने किशोर को बच्चे की तरह सहलाना ‘हावड़ा ब्रिज’ में क्लब में ‘आइए मेहरबान’ गीत में आंखें टिमटिमाना, ‘काला पानी’ में ‘अच्छा जी मैं हारी चलो मान जाओ ना’ गीत में देव आनंद से भी कहीं ज्यादा इतराना जैसे ऐसे कई प्रसंग हैं, जो मधुबाला का हमारे सामने एक अलग ही रूप प्रस्तुत करते हैं।

मधुबाला अभिनय के मामले में कितनी गंभीर थीं, इसे सिर्फ ‘मुग़ल-ए-आज़म’ की एक घटना से समझा जा सकता है। वस्तुतः जब इस फिल्म की शूटिंग शुरू हुई थी, तब फिल्म के नायक दिलीप कुमार और नायिका मधुबाला का प्यार परवान चढ़ रहा था। सलीम-अनारकली की ‘उस ऑन द स्क्रीन’ और ‘ऑफ द स्क्रीन’ केमिस्ट्री के संग-संग ‘मुग़ल-ए-आज़म’ की शूटिंग बड़े आराम से चल रही थी। किन्तु नेह और रचनात्मकता का यह साझा सफर कुछ अरसे ही जारी रह सका। फिल्म इंडस्ट्री के इस सबसे खूबसूरत युगल को दुनिया वालों की नजर लग गई। मधुबाला के पिता अताउल्लाह खान के कारण दिलीप-मधुबाला के रास्ते अलग हुए और इसी के साथ फिल्म की शूटिंग की रफ्तार और भी कम हो गई। इसी बीच मधुबाला बीमार हो गईं। शूटिंग बार-बार स्थगित करनी पड़ी। फिल्म का वह दृश्य भी आया, जब अनारकली को चालीस-चालीस किलो की बेड़ियां पहनकर शूटिंग करनी थी। मधुबाला बीमार थीं। किसी ने सुझाव दिया रबर की बेड़ियों से शूटिंग कर दी जाए। लेकिन उस बीमारी में भी मधुबाला नहीं हारी। वह उन्हीं वजनी बेड़ियों के संग शूटिंग करती रही, दिलीप भी प्रोफेशनल मुस्कान देते रहे और शॉट खत्म होने के बाद एक दूसरे से मुंह फेरते रहे। मधुबाला भीतर और बाहर का दर्द दबाने के बाद कमरे में जाकर वाकई मुहब्बत की उस झूठी कहानी पर जोर-जोर रोती। यह था मधुबाला का अपने काम के प्रति समर्पण।

यूं तो मधुबाला के साथ काम करने वाले नायकों और निर्देशकों द्वारा उनकी तारीफ करते हुए हमने कई बार देखा है, लेकिन लीक से हटकर बात बताई अपने दौर के संगीतकार ओ. पी नैयर ने। एक बार रेडियो पर साक्षात्कार में उनसे पूछा गया कि आपने इतने सारे कलाकारों के साथ हिट संगीत दिया, लेकिन सबसे ज्यादा आत्मतुष्टि आपको किस कलाकार के लिए संगीत देने में मिली, तो तुरंत उनका जवाब था मधुबाला। उनका कहना था कि मधुबाला का व्यक्तित्व ही ऐसा था कि उनके लिए जब उन्होंने ‘मिस्टर एंड मिसेस फिफ्टी फाइव’ (जाने कहां मेरा जिगर गया जी), ‘फागुन’ (इक परदेसी मेरा दिल ले गया), ‘हावड़ा ब्रिज’ (ये क्या कर डाला तूने दिल मेरा खो गया), ‘जाली नोट’ (गुस्ताख नजर चेहरे से हटा) और ‘दो उस्ताद’ (नज़रों के तीर मारे कस, कस, कस, एक नहीं दो नहीं आठ, नौ, दस) जैसी फिल्मों में गीत बनाए, मधुबाला ने अपनी मोहक मुस्कान और मस्ती में डूब कर किए गए अभिनय से उन्हें स्मरणीय बना दिया।

मधुबाला के बारे में इससे बड़ी बात क्या होगी कि रचनाकारों ने उनकी फिल्मों, उन पर फिल्माए गए तरानों को तो सराहा ही, उन पर कविताएं भी लिखीं।

कहना न होगा, हिंदी सिनेमा के उद्भव से लेकर अब तक के एक सौ दस साल से भी पुराने इतिहास में यदि किसी एक ऐसी अभिनेत्री का नाम जिसके पास रूप था, सौंदर्य था, अभिनय प्रतिभा थी, काम के प्रति समर्पण था, दर्द को मुस्कुरा कर सहन करने की शक्ति थी, जिसने अपनी मेधा और जिजीविषा से छोटी उम्र में सबसे ज्यादा लंबा सफर तय कर लिया, तो सिर्फ और सिर्फ मधुबाला का नाम आएगा।

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