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बड़े धोखे हैं इस राह पर …

बड़े धोखे हैं इस राह पर …

by हिंदी विवेक
in अगस्त-२०२३, ट्रेंडींग, मनोरंजन, मीडिया, युवा, विशेष, संस्कृति, सामाजिक
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प्यार के नाम पर अकेलापन दूर करने या कहें कि एक्सट्रा मैरिटल अफेयर के लिए बड़ी संख्या में भारत में लोग डेटिंग ऐप्स का उपयोग कर रहे हैं। इससे व्याभिचार को बढ़ावा मिल रहा है, परिणामत: समाज में अवैध सम्बंधों के कारण कुटुंब व्यवस्था में दरार आ रही है। डेटिंग ऐप के दुष्परिणाम स्वरूप ऑनलाइन ठगी, ब्लैकमेलिंग, धोखा, हिंसा, मर्डर जैसे अपराध तेजी से सामने आ रहे हैं।

वर्तमान दौर में रिश्तों की परिभाषा ही बदल गई है। दुनिया हाईटेक हो रही है तो रिश्तों का रूप भी बदल रहा है। पहले के दौर में रिश्तों में प्यार, समर्पण और जिम्मेदारियों का भाव होता था आज रिश्ते वासना भरी स्वार्थ की चाशनी में डूबे हुए हैं।

डेटिंग ऐप पर ऑनलाइन चैटिंग, मीट का ट्रेंड जैसे-जैसे बढ़ता जा रहा है। लोग घण्टों इन ऐप पर समय बिता रहे हैं। ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि आजकल रिश्तों की शुरुआत स्मार्टफोन के जरिए हो रही है। भारत में ऑनलाइन डेटिंग का चलन दिन दुगुना रात चौगुना बढ़ रहा है। लोग इन ऐप्स के जरिए प्यार या यूं कहे जिस्मानी रिश्तें तलाश रहे हैं। कुछ की तलाश पूरी हो रही है जबकि अधिकतर लोग धोखे का शिकार भी हो रहे हैं।

अभी हाल ही के घटनाक्रम को देखें तो ऑनलाइन डेटिंग ऐप्स के जरिए हिन्दू लड़कियों को बरगलाने का मामला सुर्खियों में रहा है। श्रद्धा और आफ़ताब को भला कैसे भूल सकते है? उनके रिश्ते की शुरुआत भी डेटिंग ऐप के ज़रिए ही हुई थी। लेकिन इस रिश्ते की कीमत श्रद्धा को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी।

ऐसे में वर्तमान समय में जिस तरह से लड़कियों को प्रेम के जाल में फंसाकर उनका शारीरिक और मानसिक शोषण किया जा रहा है इससे हर कोई वाकिफ है। बावजूद इसके बड़े पैमाने पर बहकी हुई लड़कियां भ्रम जाल में फंस रही है। ठगी एवं धोखे का शिकार हो रही है। ऑनलाइन डेटिंग ऐप इसमें बड़ी भूमिका निभा रहे हैं।

एक राष्ट्रीय सर्वे के मुताबिक, कोरोना काल के बाद कई शहरों में डेटिंग ऐप का चलन 70 प्रतिशत तेजी से बढ़ा है और जैसे-जैसे इन ऐप का चलन बढ़ता जा रहा है। लड़कियों को शिकार बनाने के मामलों में भी बढ़ोत्तरी हो रही हैं। इसमें डेटिंग ऐप जैसे टिंडर, बंबल, ट्यूली मेडली व वैवाहिक ऐप जीवनसाथी डॉटकॉम, शादी डॉटकॉम और भारत मेट्रोमनी युवाओं के बीच बहुत लोकप्रिय है। एक ओर ये ऐप रिश्तों को जोड़ने का माध्यम बने हैं, तो दूसरी ओर अपराधिक मानसिकता वालों के लिए अपने शिकार तक पहुंचने का आसान जरिया भी बन रहे हैं। कई बार तो देखा गया है कि डेटिंग ऐप के जरिए ऑनलाइन ठगी, ब्लैकमेलिंग के मामले भी तेजी से बढ़े हैं।

पहले डेटिंग ऐप्स का चलन मेट्रो शहरों तक ही सीमित था लेकिन अब ग्रामीण कस्बों में भी ये ऐप्स काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि केवल 18 वर्ष से भी कम उम्र के युवा इन ऐप्स को एक्सेस कर रहे हैं।

एक रिपोर्ट की मानें तो वर्ष 2021 में डेटिंग ऐप्स का वैश्विक मार्केट लगभग 755 करोड़ आंका गया था। वहीं अनुमान है कि 2030 तक यह मार्केट बढ़कर 1,265 करोड़ तक पहुंच जाएगा। वर्तमान समय में दुनियाभर में डेटिंग ऐप्स के 30 करोड़ से ज्यादा यूजर्स हैं जिसमें से 2 करोड़ लोगों ने इन ऐप्स के प्रीमियम सब्सक्रिप्शन लिए हुए हैं। ये लोग पैसा देकर इन ऐप्स का इस्तेमाल कर रहे हैं।

इतना ही नहीं कई बार लड़कियां ‘ब्लाइंड डेट’ का शिकार भी हो जाती हैं। ‘ब्लाइंड डेट’ एक ऐसी डेट होती है। जिसमें युवती या युवक को सामने वाले के बारे में कुछ जानकारी नहीं होती है। ऐसे कपल्स की मुलाकात वास्तविक रूप से किसी ओयो होटल्स या गोपनीय स्थान पर ही पहली बार होती है। इस ब्लाइंड डेट के अपने कई नुकसान हैं। ऐसे में युवतियों को विशेषकर डिजिटल तकनीक के दौर में बहुत फूंक-फूंक ऑनलाइन प्रेम ढूंढने की दिशा में बढ़ना चाहिए, क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि इस राह में धोखे बहुत हैं।

हमारा देश युवाओं का देश है। युवा किसी भी देश के प्रगति की मजबूत नींव होते हैं। लेकिन जब यही युवागलत राह पर चल पड़े तो देश का न केवल आर्थिक बल्कि सांस्कृतिक पतन भी होता है। ऐप ‘ऐनी’ के सर्वेक्षण की मानें तो हमारे देश के युवाओं ने वर्ष 2022 में ऑनलाइन डेटिंग व फ्रेंडशिप ऐप पर विश्व के अन्य देशों की तुलना में सबसे ज्यादा पैसा खर्च किया है।

इन ऐप्स के जरिए ‘प्यार, सेक्स और धोखा’ आम बात हो चली है। डेटिंग, हुकअप्स और वन नाईट स्टैंड जैसे ऐप पर खुले आम वैवाहिक कपल्स एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर कर रहे हैं, जो कि रिश्तों के प्रति विश्वास को खत्म कर रहा है। फ्रांस का एक डेटिंग ऐप ग्लीडिन तो एक्ट्रा मैरिटल डेटिंग ऐप है। इस ऐप के आंकड़े बताते है कि भारत के करीब 20 लाख लोग इस ऐप का इस्तेमाल कर रहे हैं। ग्लीडिन ऐप पर दुनियाभर के यूजर्स में 20 प्रतिशत यूजर्स सिर्फ भारत से हैं, और इनमें से 40 फीसदी महिलाएं हैं। जो अपने रिश्तों में कुछ नयापन लाना चाहती या कहें कि एक्ट्रा मैरिटल अफेयर करना चाहती हैं। ऐसी महिलाओं की औसत उम्र भी केवल 26 वर्ष है जबकि पुरुषों की औसत आयु 30 वर्ष के करीब है।

वर्तमान समय में देश में 3 करोड़ से ज्यादा लोग डेटिंग ऐप्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। इनमें 67 प्रतिशत यूजर्स पुरुष हैं, जबकि 33 प्रतिशत महिला यूजर्स हैं। भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा सब्सक्रिप्शन बाजार है। जिसकी सालाना कमाई 515 करोड़ रुपये की होती है। इनमें 2 करोड़ पेड डेटिंग ऐप सब्सक्राइबर्स हैं। इससे सहज अनुमान लगाया जा सकता है कि डेटिंग ऐप्स का बाजार कितना बड़ा हो चला है, लेकिन इससे मिलने वाला प्रेम एक लड़की के जीवन में कितना ठहराव ला पाता है, यह श्रद्धा और आफ़ताब का केस चीख-चीख़कर गवाही दे रहा है।

आधुनिक दौर में प्यार की न सिर्फ परिभाषा बदली है। प्यार के रंग-ढंग भी बदल गए है। जो प्रेमी प्यार के दावे करते नहीं थकते हैं, जब वही हकीकत का सामना करते हैं तो उनका प्यार आपसी लड़ाई-झगड़ों में परिवर्तित हो जाता है। कई बार तो प्रेमी जोड़े अपराधी तक बन जाते हैं। सोचने वाली बात है कि क्या प्यार इतना हिंसक हो सकता है? जो प्रेमी आपस में एक-दूसरे के ही खून के प्यासे हो जाएं? प्यार समर्पण का नाम है, लेकिन जब शरीर के आकर्षण को ही प्यार समझा जाने लगे, तो फिर परिणाम भी इसी रूप में ही सामने आएंगे। वर्तमान दौर में प्यार सिर्फ जिस्मानी हो चला है, यह कहना बिल्कुल अनुचित नहीं होगा।

पश्चिमी संस्कृति के मोहपाश और आधुनिकता के नाम पर सनातनी संस्कृति को मिटाने का कुचक्र तेजी से पैर पसार रहा है। यदि इसे समय रहते नहीं रोका गया तो हमारी सदियों पुरानी सामाजिक संस्कृति धूमिल हो जाएगी। आधुनिक होना अच्छा है, लेकिन आधुनिकता के नाम पर अमर्यादित होना सही नहीं कहा जा सकता।

भारत संयुक्त परिवारों का देश है। ऐसे में डेटिंग ऐप से शुरू हुआ प्यार और लिव इन रिलेशनशिप जैसे कल्चर की यहां कोई जगह नहीं होनी चाहिए। ऐसे रिलेशनशिप में बढ़ते अपराध ये बताने के लिए काफी है कि अवैध रिश्तें कितने घातक है। श्रद्धा और सरस्वती प्रेम के नाम पर बलि चढ़ाई जा रही हैं। हम आधुनिक होने का दिखावा करके अपने ही घर की बहन-बेटियों को बोटियों में तब्दील होते देख रहें हैं। अब वक्त की नजाकत कह रही है कि हमें रिश्तों के मर्म को समझना होगा।

भारतीय संविधान ने भले ही सबको अपने हिसाब से जीवन जीने की आजादी दी है, लेकिन जिस्मानी रिश्ते बनाना, साथ रहने का दिखावा करना और जब मन भर जाए तो उसके टुकड़े कर देना यह ठीक नहीं है! डेटिंग ऐप से शुरू हुआ प्यार और लिव इन रिलेशनशिप ऐसे कुचक्र है, जो भारतीय कुटुंब व्यवस्था को छिन्न भिन्न कर रहा है। ये डेटिंग ऐप केवल जिस्म की भूख मिटाने भर का माध्यम है।

जिस रिश्ते में बड़ो का आशीर्वाद और परिवार का भाव न हो, वो प्यार तो हरगिज नहीं हो सकता। ऐसे में हमें अपनी बहन-बेटियों को सीख देने की आवश्यकता है कि वो रील नहीं रियल जिंदगी में जिएं। हमारा समाज एक प्रगतिशील समाज है। जहां बदलाव को स्वीकृति देना भी जरूरी है, लेकिन ये बदलाव अगर सभ्यता और संस्कार को प्रभावित करे तो उसे दूध से मक्खी की भांति बाहर करने की आवश्यकता है। इसके अलावा बहन-बेटियों को आभासी दुनिया के भ्रमजाल से मुक्त कराना है और यह तभी संभव है। जब कम उम्र से ही बच्चियों के साथ एक दोस्त की भांति अभिभावक व्यवहार करें साथ ही निजी और व्यवहारिक जीवन के उतार चढ़ाव और अनुभवों को साझा करते हुए उससे सीख लेने की प्रेरणा देते रहें।

                                                                                                                                                                            सोनम लववंशी 

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