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    कश्मीरी युवा नई दिशा की ओर

    कश्मीरी युवा नई दिशा की ओर

by चंदन आनंद
in अगस्त २०१८, युवा, राजनीति, सामाजिक
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जम्मू-कश्मीर जैसे महत्वपूर्ण राज्य में राज्य से संबंधित विषयों पर विपरीत विचार और दृष्टिकोण रखने वाले दो राजनीतिक दलों की गठबंधन की सरकार अंततः 3 वर्षों  बाद टूट गई। गठबंधन में साथी रही भाजपा ने गठबंधन से बाहर निकलने का फैसला पिछले माह लिया। सरकार से समर्थन वापस लेने के कई कारण भाजपा ने बताए, जिनमें से देश की अखण्डता और सुरक्षा सबसे ऊपर थी। इन 3 वर्षों में भी वैसे जहां तक देश की सुरक्षा की बात थी तो सामरिक दृष्टि से केन्द्र सरकार और भारतीय सुरक्षा बलों ने कोई ढील जम्मू-कश्मीर राज्य में नहीं बरती। लेकिन फिर भी जहां तक राज्य के भीतर विशेषकर कश्मीर घाटी में कानून व्यवस्था और अराजक तत्वों से निपटने का सवाल था तो राज्य में मुख्यमंत्री रहीं महबूबा मुफ्ती हमेशा से ही असमंजस की स्थिति में रहीं। न तो वह उनका साथ खुलकर दे पा रही थीं जिन्होंने उन्हें सत्ता सौंपी और न ही अपने गठबंधन साथी का। इसी अस्पष्टता और अनिर्णय की स्थिति के चलते हालात बदतर होते गए। नतीजतन कानून व्यवस्था और प्रशासनिक विषमता दोनों ने ही आम जनता का विश्वास तोड़ा और पूरे राज्य में विशेषकर युवाओं में एक निराशावादी दृष्टिकोण के प्रादुर्भाव का कारण बना।

वर्षों से राज्य का युवा अपने अस्तित्व और भविष्य को लेकर बिलकुल एक असमंजस की स्थिति में है। राज्य के एक क्षेत्र एवं वर्ग विशेष के युवाओं को पूरे राज्य के युवा बताने का एक षड्यंत्र कईं वर्षों से स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मीडिया कर रहा है। उससे पूरे राज्य के युवा की छवि धूमिल हुई है और इसी छवि के कारण देश के अन्य हिस्सों में उसे नकारात्मक द़ृष्टि से देखा जाता है। राज्य के युवाओं की अपनी समस्याएं हैं, जो कि हर राज्य में होती हैं, उन पर ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक है। गठबंधन तोड़ने के कारणों में भाजपा ने एक कारण जम्मू और लद्दाख संभाग की उपेक्षा भी बताया। यहां यह बताना जरूरी है कि राज्य के कुल क्षेत्रफल में सबसे बड़ा क्षेत्र लद्दाख है और जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़ा क्षेत्र जम्मू है।

यह राज्य के विकास कार्यों और अन्य संसाधनों के आवंटन में कोई नई बात नहीं है कि जम्मू और लद्दाख की उपेक्षा की गई हो। ऐसा शेख अब्दुल्ला के गद्दी संभालने के बाद से चला आ रहा है। लेकिन इसमें भी सबसे ज्यादा उपेक्षा यदि किसी की हुई तो वह इन दोनों क्षेत्रों के युवाओं की। राज्य में राष्ट्रवाद और देशभक्ति की अलख जगाए रखने वाले और समय आने पर उसे साबित करने वाले इन दोनों संभागों के युवाओं की निरंतर उपेक्षा सरकारों द्वारा की गई। चाहे वह पहले की सरकारें रही हों या इस बार भाजपा-पीडीपी गठबंधन की। इन दोनों संभागों के युवाओं को राज्य सरकार की नौकरियों में भरती हमेशा से न के बराबर रही, चाहे वह किसी भी स्तर की नौकरी क्यों न हो। भाजपा को सत्ता तक पहुंचाने वाले इन संभागों के युवाओं को नौकरियों और संसाधनों के आवंटन में इस बार भी निराशा ही हाथ लगी। अब चूंकि राज्यपाल शासन है और सत्ता एक तरह से केन्द्र के हाथ है तो जम्मू और लद्दाख संभाग के युवाओं की इस शिकायत की ओर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।

इसके साथ राज्य के जम्मू संभाग का युवा अन्य कईं दिक्कतों से जूझ रहा है। जिनमें से सबसे महत्वपूर्ण युवाओं के संपूर्ण विकास के लिए एक शांत और सुरक्षित वातावरण का होना है। जम्मू में हज़ारों की संख्या में रह रहे अवैध रोहिंग्या घुसपैठिए राज्य की आंतरिक शांति और सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा हैं। पीडीपी के साथ गठबंधन के चलते इन अवैध घुसपैठियों को निकालने का जो काम केन्द्र की सरकार पहले नहीं कर पाई, उसे अब जल्द से जल्द करना चाहिए। इसके साथ ही अघोषित रूप से शराणार्थियों की राजधानी माने जाने वाले जम्मू संभाग में इन शरणार्थियों में भी लाखों की मात्रा में युवा हैं। वर्षों से हो रही इनकी उपेक्षा और मानवाधिकारों के हनन को लेकर इनमें भी राज्यपाल शासन लगने से आशा जगी है। जहां एक तरफ पिछले सत्तर वर्षों से यह लोग बिना अधिकारों के राज्य में रह रहे हैं, वहीं इसके विरोध में यह शरणार्थी कहीं शिकायत भी नहीं कर सकते क्योंकि उनका यह उत्पीड़न भारतीय संविधान के अनुच्छेद 35ए के कारण संविधान की आड़ में ही हो रहा है। पिछली पीढ़ियां तो इन शोषणों को सहन कर गईं पर अब इन युवाओं के मानवाधिकारों और उज्ज्वल भविष्य के लिए कड़े कदम उठाने का समय है, जिसके लिए इससे अच्छा अवसर नहीं मिलेगा।

हालांकि भाजपा-पीडीपी गठबंधन की सरकार ने गत वर्ष पश्चिमी पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को ‘नेटिविटि प्रमाणपत्रफ देकर केन्द्रीय सुरक्षा बलों की भर्ती के लिए रास्ते तो खोल दिए लेकिन राज्य में नौकरी और अधिकारों के लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। वहीं लद्दाख में पर्यटन, सौर ऊर्जा और वायु ऊर्जा के उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। वहां के युवाओं को इससे संबंधित रोजगार उपलब्ध कराकर न केवल उनकी शिकायतों को दूर किया जा सकता है, बल्कि राज्य के साथ-साथ देश के विकास में भी यह अहम भूमिका निभा सकता है। वर्षों से उपेक्षित लद्दाख और वहां के युवाओं को भी मुख्यधारा में लाने का काम राज्यपाल शासन में बखूबी किया जा सकता है।

कश्मीर घाटी और वहां के युवाओं की बात करना भी यहां आवश्यक है। जम्मू-कश्मीर का युवा बताकर जिन युवाओं को देश और विश्व के सामने परोसा जाता है, वे वास्तव में केवल कश्मीर घाटी के कुछ जिलों के ही युवा हैं। ऐसे अराजक तत्वों को प्रतिनिधि बनाकर परोसने से सबसे ज्यादा क्षति यदि किसी क्षेत्र के युवाओं की होती है तो वह भी कश्मीर घाटी का युवा ही है। कश्मीर के कुछ जिलों के कुछ सैंकड़ा युवाओं के कारण पूरे देश एवं राज्य के अन्य हिस्सों में भी कश्मीरी युवाओं की नकारात्मक छवि बनती है। वास्तव में कश्मीर का युवा भी इस अराजकता से तंग आ चुका है और अपने विकास की राह तलाश रहा है। वह अब अलगाववादियों और अराजक तत्वों की बातों में नहीं आता। उसे समझ में आ गया है कि वर्षों की इस अराजकता से उसकी शिक्षा और उज्ज्वल भविष्य को कितना नुकसान हुआ है।

राज्यपाल शासन लगने के बाद से पत्थरबाजों, अलगाववादियों और अराजक तत्वों से उसी सख्ती से व्यवहार किया जा रहा है जिसकी उचित कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यकता है। यदि यह पहले कर दिया होता तो कश्मीर के युवा को भी अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए अनुकूल वातावरण मिलता। कश्मीर के युवा को शांत और सुरक्षित वातावरण देने के लिए आतंकवाद के खिलाफ भी भारतीय सेना की कार्रवाई में वृद्धि हुई है। जहां एक तरफ स्थानीय युवाओं का आतंकवाद और अलगाववाद से मोहभंग हो रहा है वहीं किसी भी आतंकवादी के मारे जाने के बाद उसकी लाश को स्थानीय लोगों को सौंपने की नीति को भी बदलना चाहिए, जो युवाओं को कहीं न कहीं फिर उत्तेजित और भावुक कर सुरक्षा बलों के बलिदान और योगदान को कम करती है।

कश्मीरी युवा अलगाववादियों के पैंतरों को अब भली-भांति समझता है। जहां एक तरफ सभी अलगाववादियों और राष्ट्रविरोधियों के खुद के बच्चे तो विदेशों में शिक्षा हासिल कर सुकून का जीवन व्यतीत कर रहे हैं, वहीं अराजक तत्वों के हाथों में पत्थर पकड़ाकर अबोध कश्मीरी युवाओं के भविष्य को निरंतर अंधकार में ढकेला गया है। भारतीय सुरक्षा बलों में भर्ती होने का भी उत्साह वहां के युवाओं में देखा जा रहा है। जिससे बौखला कर गत वर्ष कश्मीर के लेफ्टिनेंट उमर फयाज, और हाल ही में पुंछ के औरंगजेब सरीखे कई भारतीय जवानों को मारकर आतंकवादियों ने कश्मीरी युवाओं के मन में दहशत का माहौल पैदा करने का प्रयास किया है। लेकिन पाकिस्तान और उसके तैयार किए आतंकवादियों के मनसूबों को तब धक्का लगता है, जब हाल ही में कश्मीर में भारतीय सेना की भरती में हजारों की संख्या में कश्मीरी युवा शामिल होते हैं और पुत्र के बलिदान के बाद औरंगजेब के पिता कहते हैं कि मेरा बेटा तो देश के लिए बलिदान हो गया लेकिन आप अपने बच्चों को सेना में भेजना बंद न करें।

कश्मीर के युवाओं के उज्ज्वल भविष्य के लिए अराजक तत्वों एवं आतंकवादियों के साथ ‘शठे शाठयं समाचरेत’ की नीति से निपटने की आवश्यकता है। पढ़ने वाले युवाओं को सही राह दिखाने के लिए प्रशासन और समाज भी इसमें अहम भूमिका निभा सकते हैं। कश्मीर के बच्चों और युवाओं को अपनी संस्कृति, पूर्वर्जों, लोक कलाओं, संगीत और खेलों से जोड़ने की आवश्यकता है। पारिवारिक और प्रशासनिक स्तर पर ऐसे प्रयास होने चाहिए। वहीं स्कूली स्तर पर एनसीसी, एनएसएस, खेल, कला और संगीत एक अहम भूमिका निभा सकते हैं। कश्मीरी युवा को शिक्षा के साथ-साथ ज्यादा से ज्यादा इन गतिविधियों की ओर लगाना चाहिए। राज्यपाल शासन पूरे राज्य के युवाओं के लिए एक उम्मीदें लेकर आया है। इस अवसर को भुनाकर राज्य के युवाओं की शिकायतों को दूर कर उनके उज्ज्वल भविष्य के लिए हर संभव प्रयास करना चाहिए।

 

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