हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result
तबादला

तबादला

by सुशीलकुमार फुल्ल
in कहानी, ग्रामोदय दीपावली विशेषांक २०१६, साहित्य
0

मंत्री बांके बिहारी का दरबार सजा हुआ था।
दरअसल जब भी मंत्री जी अपने घर आते, तो इलाके के सब अफसरान उनकी अर्दल में हाजिर होते। और जो अनुपस्थित होते, उनका बाकायदा नोटिस लिया जाता। उनका निजी सहायक तुरन्त फोन करता और मंत्री जी खरी-खोटी सुना देते। इसलिए ज्यादातर लोग आते ही थे और यदि न भी आते तो वे इसकी सूचना पहले ही दे देते।
मैं भी पहुंच गया था। हालांकि मैंने अभी मंत्री जी के शहर में ज्वाइनिंग रिपोर्ट नहीं दी थी, परन्तु बांके बिहारी मुझे जानते पहचानते थे।
देखते ही बोले-आइए, आइए भाटिया जी। आप आ गए तो इलाके में बिजली की समस्या भी दूर हो जाएगी। यहां तो बुरा हाल ही रहता है। दो एस.डीओज को सस्पेंड करवा चुका हूं लेकिन कोई फर्क ही नहीं पड़ता। सरकार बदलते ही फिर सिर पर आ बैठते हैं।
‘सर, आप क्या कहते हैं? आप तो बीस साल से मंत्री हैं। ’ मैंने अविश्वास से कहा।
‘भाटिया जी, मैं तुम्हें इतना बुद्धू नहीं समझता था। सरकार बदलने का मतलब है मंत्रालय में परिवर्तन। ये एम्पलाईज मंत्रियों को पटाने में बड़े दक्ष होते हैं। ’ फिर कुछ सोच कर कहा- तुम ने घर तो ले लिया है?
‘जी, पंडित ओंकार कृष्ण जी के काम्प्लेक्स में एक दो कमरे का सेट ले लिया है। ’
‘बहुत बढ़िया है वह एरिया। पंडित जी भी बहुत अच्छे हैं। बस बन्दरों से बचना। मंदिर नजदीक होने की वजह से वहां बन्दर ही बन्दर हैं। ’ उन्होंने आत्मीयता घोलते हुए कहा।
मैं मंत्री जी के शब्दों से अभिभूत हो गया। मैंने कहा- सर, अब आपकी छत्र-छाया में आ गया हूं, इसलिए निश्चिंत हूं।
‘कब शिफट कर रहे हो?’
‘जी परसों। ’
‘परसों तो बड़ी दूर है। आज ही शिफ्ट कर लो। ’ बांके बिहारी ने आवाज में मिश्री घोलते हुए कहा।
‘जी। ’
मंत्री जी और लोगों की समस्याएं सुनने लगे। और मैं एक कोने में दुबक कर बैठ गया तथा दरबार के खत्म होने का इन्तजार करने लगा।
***
हर प्रदेश की अपनी-अपनी विचित्रता होती है। मैदानों में दूरियां जल्दी तय हो जाती हैं। इसलिए लोग तबादले के लिए ज्यादा चिंतित नहीं होते लेकिन पहाड़ में सब जगह सहजता से नहीं रहा जा सकता। और फिर मैं तो मैदान से आया था।
जब मैं नौकरी ज्वाइन करने आया तो चकरा गया। घुमावदार सड़कें। लगा बस अब गिरी कि तब गिरी। खाइयों को देख कर डर लगा। मन में ख्याल आया कि यहां आ कर गलती की। नौकरी मैदान की ही अच्छी। आने जाने में आसानी। बस से जाओ या रेल से। यहां तो बस ही उपलब्ध थी। फिर कहीं मन में विचार कौंधा कि राजस्थान जैसे प्रदेश में भी दूरियां बहुत हैं। छ: छ: घंटे के बाद कोई बड़ा स्टेशन आता है। मुझे नौकरी तो बीकानेर में भी मिल गई थी परन्तु मैंने इसलिए ज्वाइन नहीं की क्योंकि मुझे रोपड़ से बीकानेर बहुत दूर लगा। और दूसरे मन में तपती रेत का भय, भले ही काल्पनिक रहा हो।
यह संयोग ही था कि मुझे गाड़ी में एक ऐसा यात्री मिल गया था, जो राजस्थान के एक स्कूल में टीचर था। जिज्ञासावश मैंने उस से पूछा-आप हर रोज गाड़ी से स्कूल जाते हैं? घर से कब चलते हो?
‘मैं सुबह तीन बजे गाड़ी पकड़ता हूं। आपने देखा तो था। साढ़े आठ बजे अपने स्थान पर पहुंचूंगा। और स्कूल के बाद फिर घर के लिए चल पड़ता हूं। रात नौ बजे के आसपास घर पहुंचता हूं। घर तो बस रैन बसेरा है। ’ वह बोला था।
‘आप तबादला क्यों नहीं करवा लेते। यह तो बड़ा मुश्किल काम लगता है। ’
‘शहरों में तो राजनेताओं या अफसरों की बीवियां ही लगती हैं। या फिर उनके रिश्तेदार लगते हैं। बिना सिफारिश तो तबादला मुश्किल है। या फिर किसी मध्यस्थ को पटाना पड़ता है और इसके लिए कीमत भी चुकानी पड़ती है। ’
‘अच्छा। हर जगह एक सा ही प्रचलन हो गया है। मनी मेक्स द मेयर गो। ’ मैंने उससे सहानुभूति दिखाते हुए कहा था।
अब मुझे लगा कि यह तो सार्वभौमिक समस्या है। बिना पैसे कुछ होता ही नहीं है। काले धन में बड़ी शक्ति है। अब तो साधु-बाबा लोग भी काले धन को बाहर से लाने और उसे राष्ट्रीय सम्पति घोषित करने की बात कर रहे हैं। लेकिन जो धन बाबाओं के मठों से मिल रहा है, उसे क्या कहें? क्या वह जनता की सम्पति नहीं है या फिर काले धन का ही दूसरा रूप है? मन में बार बार यही कौंधता है। फिर कभी यह भी विचार आता है कि बाबाओं के बारे में ऐसा सोचना पाप है। वे तो हमें भक्ति का रास्ता दिखाते हैं। मैं भी किन बातों में बहक गया। महान विचारक बनने की कोशिश करुंगा, तो बाबा रामदेव वाला ही हाल न हो। अपने योग प्रचार प्रसार में लगा हुआ था और दुनिया भर में मान्यता मिलने लगी थी। परन्तु काले धन के फेर में व्यर्थ ही अनशन पर बैठ गए और पुलिस ने आधी रात को उठा कर जंगलों में छोड़ दिया। फुदको जितना फुदकना है। राजा में असीमित शक्ति होती है।
मेरे मन के किसी कोने में व्यंग्यात्मक हंसी का फव्वारा फूट पड़ा। सत्ता कितनी कांइयां होती है।
***
नौकरी ज्वाइन किए हुए अभी एक महीना भी नहीं हुआ था कि मेरा तबादला हो गया। आर्डर आए, तो मेरा रोना निकल गया। अभी ढंग से एडजस्ट भी न हो पाया था कि बदली हो गई। मेरे एक साथी न सुझाया कि मैं विधायक से मिल लूं।
मैं विधायक महोदय के दरबार में जा उपस्थित हुआ। कोई दो घंटे के बाद मेरा नम्बर आया। उन्होंने ही कहा- आप नए लगते हैं। पहले कभी देखा नहीं आपको। कहिए क्या समस्या है?
‘सर, मुझे नौकरी ज्वाइन किए हुए अभी एक मास भी नहीं हुआ, और मेरी बदली हो गई। ’
‘तो इस में क्या गलत हुआ? एक सप्ताह आप को आए हो गया और मेरे पास अब आ रहे हो?’ फिर कड़क आवाज में कहा- तुम्हारे आर्डर तो मैंने ही करवाए हैं। मेरे विधान सभा क्षेत्र में मेरी इच्छा के आदमी लगेंगे। और तुम तो पता नहीं कहां से आ गए। किसकी सिफारिश थी?
‘सर, मेरी तो कोई सिफारिश ही नहीं थी। मैरिट से आ गया। ’
‘एकदम सफेद झूठ। जाओ मैरिट से रुकवा लो ट्रांसफर। ’ विधायक ने अपनी सता का अहसास करवाया।
मैं नमस्कार कर वापिस अपने कमरे में आ गया था एकदम निराश। मैं तो शाम से सब को बताता कि देखो यह प्रदेश कितना अच्छा है कि यहां बिना सिफारिश भी नौकरी मिल जाती है। लेकिन विधायक के तेवर देख कर कुछ और ही महसूस हुआ।
अगले ही दिन सामान बांधा और रिलीव होकर नए स्थान के लिए प्रस्थान कर गया। यह दूरस्थ दुर्गम स्थान था लेकिन क्या किया जा सकता था।
मैं नौकरी ज्वाइन करने नए स्थान पर पहुंचा तो देखा कि जो व्यक्ति वहां पहले से लगा था, वह कोई बारह साल से वही था और अब भी वहां से हिलना नहीं चाहता था। लोग कहते थे कि उसने दो शादियां कर ली थीं। पहले वाली बीवी पीछे गांव में रहती थी और स्थानीय बीवी उस का तबादला ही नहीं होने देती थी। मुझे देखते ही जैम्बो ने कहा- ओह आप आ गए?
‘तबादला हुआ है, तो आना तो पड़ेगा ही। जहां सरकार भेजेगी, वहां चला जाऊंगा। ’
‘तो सामान मत खोलना। तुम्हारी अगली बदली हो गई है। ’
‘कहां?’
‘सौ किलोमीटर आगे। कोई ज्यादा दूर नहीं। बड़ी अच्छी जगह है। भजन कीर्तन करते रहना। समय कट जाएगा। ’ कह कर वह हंसा।
मैं सिर पकड़ कर बैठ गया। मन हुआ कि तुरन्त त्याग पत्र दे दूं लेकिन बार-बार नौकरियां छोड़ने के कारण घर के सभी लोग मुझ से दुखी थे। सो अब तो जहां भी विभाग भेजेगा, वहां जाना ही पड़ेगा।
मैं डोडरा क्वार पहुंच गया था, चीनी बार्डर के नजदीक। मुझे लगा मैं दुनिया से कट गया था। बस पहाड़ों को देखते रहना। कामकाज तो नाम-मात्र का था। बिजली कभी जाती नहीं थी। जनसंख्या बहुत ही कम। समस्याएं भी कम। एक लिहाज से तो वह बहुत खुश था। कोई माथापच्ची नहीं, कोई झगड़ा नहीं।
कई कई दिन अखबार ही नहीं आता था। चलो खबरों के झंझट से बचे। देव लोक में सभी देवतावत हो जाते हैं। कोई उल्टा-पुल्टा विचार नहीं। एकदम सात्विक जीवन-शैली।
***
वर्षों बीत गए। कोई बदली नहीं। वेतन भी दो गुना मिलता था लेकिन एक बेचैनी सी लगी रहती। मैं बर्फ की सिल्ली बनता जा रहा था। भावनाएं जमने लगी थीं। उदासीनता थी। जीवन के प्रति वीतराग सा उफनने लगा था। शायद यह सब इसलिए क्यों कि मैं सक्रिय समाज से कट गया था। बस विभाग का एक ऐसा पुर्जा हो गया था, जिसे फालतू की चीज समझ कर स्टोर में रख दिया जाता है।
बारह साल बाद मेरे भाग्य ने करवट खाई। एक दिन अचानक एक युवक आकर खड़ा हो गया। बोला-सर, मैंने सुना है आप बारह साल से इसी स्टेशन पर हैं। आप तो बोर हो गए होंगे। यहां न आदमी, न आदमी की जात।
‘अब तो आदत बन गई है। लेकिन आप इतनी हमदर्दी क्यों दिखा रहे हैं?’
‘वास्तव में इस हमदर्दी के पीछे मेरा स्वार्थ भी छिपा है। मैं इस क्षेत्र के लोगों की जीवन शैली पर एक किताब लिखना चाहता हूं। इस लिए यहां आना चाहता हूं। आप जाना चाहेंगे यहां से? आप जहां जाना चाहेंगे, मैं वहीं आप की बदली करवा दूंगा। ’ उसने बड़े विश्वस्त स्वर में कहा।
‘कहीं करवा दें चण्डीगढ़ के आसपास। ’ मैंने ऐसे ही हवा में तीर छोड़ा। मैं जानता था कि बहुत से लोग हिमाचल के बार्डर वाले शहरों में पोस्टिंग करवा लेते थे और हर रोज चण्डीगढ़ तक अप डाउन कर लेते थे।
‘अगले हफ्ते ही लो आर्डर। ’
संयोग भी क्या चीज है। इतने वर्षों तक मैं तबादले के लिए तरसता रहा और अब अचानक ऐसा बढ़िया आफर। उसकी वही जाने। कभी-कभी हम व्यर्थ में ही परेशानी हो जाते हैं। सच ही है समय सबका आता है। हां, देर सवेर हो सकती है।
***
मैं नालागढ़ आ गया था। वह सच में ही एक सप्ताह के अन्दर मेरे आर्डर ले आया था। मैं बेहद खुश था लेकिन मेरी खुशी जल्दी ही निराशा में बदल गई।
मैं अपनी ज्वाइनिंग रिपोर्ट देने पहुंचा तो पता चला कि वहां तो पहले से कोई व्यक्ति कार्यरत था। आश्चर्य से मैंने पूछा-अरे, यदि पहले से यहां कोई है, तो मेरे आर्डर कैसे हो गए?
‘शायद तुम नहीं जानते कि जो व्यक्ति डोडरा क्वार गया है, वह तो यहां सरप्लस था। फिर भी तुम्हें तो प्रसन्न होना चाहिए क्यों कि दुर्गम इलाके से तो निकल आए। अब कहीं और करवा लो आर्डर। ’ वह हसां।
मैं समझ नहीं पाया कि वह मेरा हमदर्द था या मेरा मज़ाक उड़ाने वाला। जीवन में कई बार ऐसी परिस्थितियां आती हैं कि कुछ समझ ही नहीं आता। मेरे लिए नौकरी का नाम ही तबादला हो गया था। मैंने पहली बार मंत्री जी का दरबार देखा था और हैरान था कि तबादले के लिए क्या क्या होता है।
एक कमरे से महिला निकल रही थी और दूसरे दरवाजे से मंत्री। बाहर बैठी जनता इंतजार करती और मंत्री जी कभी अन्दर जाते और कभी बाहर आते। सब अपनी अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। एक संशय लटका हुआ था। काम करवाना है, तो कुछ तो लुटाना ही पड़ेगा। नलागढ़ भी पीछे छूट गया था।
***
बहुत बाद में पता चला कि तबादले के लिए मैं व्यर्थ ही भटकता रहा। बदलू राम से जब चाहो तबादला करवा लो। दरअसल उसने बदलियों का ठेका ले रखा था।
वह खास आदमी था। वहीं सब दान दक्षिणा जमा होती। और इसका कुछ हिस्सा पार्टी फण्ड में चला जाता और कुछ प्रतिशत अलग-अलग जगह बंट जाता। ऐसा लोगों का कहना था। इसे बदलू एंटरी फी कहता। और कोई पूछता भी न। बदलियों का एक डर सा बना रहता।
फिर किसी ने कहा-अरे, बदलू तो एक प्रतीक है कामकाज के ढंग का। न तो उसे भ्रष्ट कहा जा सकता है और न ही रिश्वतखोर। एक ढर्रा है बस। चाहो तो उसे फैसिलिटेटर कह लो लेकिन दलाल कहना अन्याय होगा।
मैं इन तर्कों से अभिभूत हो गया। इंसान भी क्या-क्या बहाने बना लेता है। अपनी बात को जस्टीफाई करने के लिए।
***
मैं बांके बिहारी जी के क्षेत्र में बड़े गर्व से ज्वाइन करने गया, तो जो व्यक्ति वहां पहले से था-बोला-मंत्री जी ने अपना इरादा बदल लिया है और मुझे कहा है कि मैं रिलीव न होऊं। मेरे काम को देखते हुए उन्होंने मुझे यहीं रहने को कहा है।
अभी परसों ही मंत्री जी ने मुझे कहा था कि जल्दी शिफ्ट कर लो और रात रात में ही सब कुछ बदल गया।
मेरे सामने अंधेरा छा गया। लगा मंत्री के कमरे में ठहाके लग रहे थे और में बाहर उदास खड़ा था, कहीं और जाने के इन्तजार में।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: arthindi vivekhindi vivek magazineinspirationlifelovemotivationquotesreadingstorywriting

सुशीलकुमार फुल्ल

Next Post
 परिक्रमा यात्रा में  दिखा आत्मीय  ‘भारत’

 परिक्रमा यात्रा में  दिखा आत्मीय ‘भारत’

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0