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अबकी बार ट्रंप सरकार

अबकी बार ट्रंप सरकार

by सरोज त्रिपाठी
in दिसंबर २०१६, राजनीति
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रिपब्लिकन उम्मीदवार डोनाल्ड ट्रंप मीडिया की सभी भविष्यवाणियों को गलत साबित करते हुए अमेरिका के ४५वें राष्ट्रपति चुन लिए गए। उन्होंने न केवल अपनी प्रतिद्वंदी हिलेरी क्लिंटन को भारी अंतर से पराजित किया, बल्कि संसद के दोनों सदनों में अपनी पार्टी का बहुमत भी सुनिश्चित कर लिया। ट्रंप अमेरिका के सब से ज्यादा उम्र वाले राष्ट्रपति होंगे। वे ७० साल के हैं। उनसे पहले डोनाल्ड रेगन ६९ साल के थे। ६० वर्षों में यह पहली बार है कि अमेरिका को ऐसा राष्ट्रपति मिला है, जो कभी कांग्रेस का सदस्य नहीं रहा और न ही किसी राज्य का गवर्नर रहा। वे महज १८ महीने पहले राजनीति में आए थे; लेकिन उन्होंने अमेरिका के इतिहास में पहली महिला राष्ट्रपति बनने का सपना रेख रही हिलेरी क्लिंटन को जोरदार झटका दे दिया। ट्रंप ने इलेक्ट्रोरीयल कॉलेज के २८९ मत हासिल किए, जबकि हिलेरी को २१८ मत मिले। उम्मीदवार को जीत के लिए ५३८ में से २७० वोटों की दरकार होती है।

ट्रंप के लिए एक समय राष्ट्रपति बनना दूर की कौड़ी समझा जा रहा था। प्रायमरी चुनाओं से बड़ी जीत के बावजूद महिलाओं और एमिग्रेशन (आप्रवासन) पर उनके बयानों के कारण उनकी ही पार्टी के कई नेताओं ने उन्हें समर्थन देने से इनकार कर दिया था। विशेषज्ञों का मानना है कि एफबीआई के ६९ वर्षीय हिलेरी के खिलाफ ई-मेल मामले में जांच करने के ऐलान ने वोटरों का रुख ट्रंप की ओर मोड़ दिया। हालांकि एफबीआई ने हिलेरी को चुनाव से ठीक पहले क्लीन चिट दे दी लेकिन तब तक शायद देर हो चुकी थी। दरअसल ट्रंप आर्थिक मंदी के बाद से अनेक रूपों में जाहिर हो रही अमेरिकी लोकतंत्र की असफलता की उपज हैं। उन्हें हाल के वर्षों में अमेरिकी महानता में आयी दरकन का सीधा फायदा मिला है। बतौर बिजनेसमैन  उन्होंने एक नजर मे ताड़ लिया था कि अमेरिकी समाज आज कैसी बेचैनी से गुजर रहा है। अपनी बदजुबानी के जरिये उन्होंने सतह की हलचलों को व्यक्त करना शुरु कर दिया। हिलेरी की परिष्कृत भाषा लोगों को उस तरह आकर्षित नहीं कर पाई। शायद अमेरिकी जनता महान आदर्शों की बात करने वालों के खोखलेपन से उकता गई थी। उसने ट्रंप पर यह सोच कर एक दांव खेला है कि शायद यह मुंहफट इंसान लोगों को रोजी-रोजगार देने की दिशा में सचमुच कुछ कर जाए। संभवता पहली बार अमेरिका की मेनस्ट्रीम मीडिया ने चुनाव में किसी एक उम्मीदवार का न सिर्फ समर्थन किया, बल्कि उसके पक्ष में वोट करने की अपील तक की। सीएनएन, न्यूयॉर्क टाइम्स और वाशिंगटन पोस्ट ने हिलेरी के पक्ष में वोट करने की अपील की और ट्रंप को राष्ट्रपति पद के लिए अनुपयुक्त बताया। अमेरिका के इतिहास में शायद पहली बार ओपिनियन पोल गलत साबित हुए। एक रिपोर्ट के मुताबिक ९५ प्रतिशत ओपिनियन पोल हिलेरी की जीत का अनुमान व्यक्त कर रहे थे। अमेरिकी मीडिया ट्रंप की लोकप्रियता का आकलन करने में पूरी तरह नाकामयाब रहा।

अमेरिकी चुनाव में ऐसा पहली बार देखा गया कि राष्ट्रपति पद के उम्मीदवारों के बीच स्तरहीन बहस हुई। हिलेरी ने ट्रंप पर अहंकारी, नस्लवादी और महिला

 

विरोधी होने के आरोप लगाए। ट्रंप हिलेरी के निजी जीवन, यहां तक कि उनके पति और स्वयं उनके यौन जीवन को चर्चा में लाते रहे।

१४ जून १९४६ को न्यूयॉर्क मे जन्मे ट्रंप ‘द ट्रंप’ ऑर्गनायजेशन के चेयरमैन और प्रेसीडेंट हैं। यह कंपनी रियल इस्टेट वेंचर्स के रूप में काम करती है। ट्रंप ने दुनिया भर में बड़े पैमाने पर ऑफिस टॉवर, होटल, कैसिनो, गोल्फ कोर्स, और अन्य बै्रडेंड फैसिलिटीज खड़ी की है। भारत में भी उनका व्यावसायिक हित है, जिनका केंद्र महाराष्ट्र, खासकर मुंबई और पुणे हैं। १९६८ में उन्होंने पेन्सिलवॉनिया यूनिवर्सिटी के वार्टन स्कूल से इकोनॉमिक में स्नातक की डिग्री हासिल की। १९७१ में उन्होंने अपने पिता फे्रड ट्रंप की रियल इस्टेट और कंस्ट्रक्शन फर्म का काम संभाला तथा उसे नित नई उंचाइयां प्रदान कीं। फोर्ब्स ने ट्रंप को २०१६ में दुनिया भर के रइसों में २३४ स्थान पर और अमेरिकी रईसों मे १५६ वें स्थान पर रखा है।

ट्रंप अपने बेलाग अंदाज के लिए दुनिया भर में चर्चा का विषय बने हुए हैं। उनकी टिप्पणियां उन्हें अपने समर्थकों के बीच चर्चित बनाती हैं, जबकि उनके विरोधियों को इससे उन पर हमला करने का मौका मिल जाता है। यह ट्रंप के ही बूते की बात है कि अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की तल्ख टिप्पणियों के बावजूद उनके तेवरों में जरा भी नरमी नहीं झलकी और वे अंत तक उसी अंदाज में विस्फोटक बयानबाजी करते रहे। वे वर्तमान अमेरिकी समाज के उस हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो बहुत ज्यादा सोच-समझ कर टिप्पणी करने में विश्वास नहीं करता।

ट्रंप के चुनाव अभियान में तमाम विवाद भी जुड़े, जिसमें २००५ की एक ऑडियो रिकॉर्डिंग सबसे चर्चित रही, जिसमें ट्रंप को यह कहते हुए सुना गया कि उन्होंने महिलाओं को जबरदस्ती अपनी तरफ खींचा और उन्हें चूमा। अपनी साख पर चोट पहुंचता देख ट्रंप ने अपने कृत्य के लिए माफी भी मांगी। एक विवादित बयान में ट्रंप ने कहा था कि मुसलमानों को अमेरिका में नहीं आने देना चाहिए। कैलिफोर्निया के सैन बर्नाडिनो में हुए आतंकी हमले के बाद उन्होंने कहा था कि वे चाहते हैं कि मुसलमानों का आना तब तक प्रतिबंधित हो, जब तक हम इस समस्या का समाधान नहीं खोज लेते। उनके इस बयान के बाद ब्रिटिश संसद में उनके ब्रिटेन आने पर रोक लगाने की पेशकश की गई। उन्होंने यह बयान भी दिया कि ड्रग्ज के धंधे को रोकने के लिए वे मैक्सिको बॉर्डर पर दीवार खड़ी करवा देंगे। ट्रंप का मानना है कि ग्लोबल वार्मिग जैसा कुछ नहीं हो रहा है, बल्कि यह सिर्फ मौसम के मामूली बदलाओं के इर्द-गिर्द की जाने वाली बकवास है। उनका कहना है कि साफ हवा पानी जरूरी है, लेकिन जलवायु परिवर्तन जैसी बातें बिजनेस पर बेवजह रोक लगाने वाले वैज्ञानिकों के चोंचले हैं।

वैसे ट्रंप के बारे में एक और गौर करने लायक बात यह है कि रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमिर पुतिन से उनकी करीबी बताई जाती है। जिस तरह आज सीरिया, युक्रेन में अमेरिकी तथा रूसी सैन्य हित एक-दूसरे से टकरा रहे हैं, उसे देखते हुए किसी भी पल एक छोटी सी चिंगारी किसी बड़े आग्निकांड का रूप ले सकती है, इसे देखते हुए ट्रंप और पुतिन की नजदिकी दुनिया के लिए बड़ी राहत की बात है। दोनों नेता आपसी समझ का फायदा उठाते हुए टकराव टालने वाला कोई फॉर्मूला ज्यादा आसानी से निकाल सकते हैं। चूंकि ट्रंप ने चुनाव अभियान के दौरान बार-बार कहा कि उनका जोर दुनिया भर में नाक घुसडते रहने के बजाय घरेलू मामलों पर ध्यान केंद्रित करने पर रहेगा, इसलिए उम्मीद की जा सकती है कि आने वाले वक्त में अमेरिका विभिन्न अंतररारष्ट्रीय मामलों में अनावश्यक हस्तक्षेप नहीं करेगा। वैश्विक मामलों में अमेरिकी हित इस कदर समाहित हैं कि इन्हें पूरी तरह भुला देना किसी भी अमेरिकी राष्ट्रपति के लिए संभव नहीं है, लेकिन यदि दखलंदाजी की अमेरिकी प्रवृत्ति में कमी आती है तो यह भी कोई छोटी बात नहीं होगी।

जहां तक भारत और अमेरिका के आपसी रिश्तों की बात है, ट्रंप ने अब तक भारत के प्रति अपना सकारात्मक रुख ही रखा है। पाकिस्तान को आतंक के मोर्चे पर घसीटने में ट्रंप आक्रामक रुख अपना सकते हैं। अब तक अमेरिका की नीति इस मुद्दे पर कमोबेश तटस्थ या बीचबचाव करने तक सीमित रही हैं। ट्रंप के कार्यकाल में पाकिस्तान से निपटने में भारत को अमेरिका का खुल कर साथ मिलने की संभावना है, क्योंकि ट्रंप ने जिस तरह के आक्रामक बयान दिए हैं उनसे भारत को उम्मीद जगी है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर भारत को पाकिस्तान को अलग-थलग करने में अमेरिका का खुल कर साथ मिलने की भी संभावना दिखती है।

चुनाव प्रचार के दौरान जिस तरह ट्रंप ने अमेरिकी युवाओं को रोजगार देने की बात कही और बाहरी लोगों को, जो अमेरिकियों का जॉब छीन रहे हैं उन पर हमला किया उससे यह आशंका है कि भारतीयों की नौकरियों पर कुछ असर पड़ सकता है। फिर भी यह बहुत बड़ा असर नहीं होगा। जानकारों का कहना है कि सिलिकॉन वैली की इमेज इतनी अच्छी है कि अमेरिका को भी विशेषज्ञों की जरूरत है। अत: भारत ज्यादा प्रभावित नहीं होगा। ट्रंप खुद एक कामयाब बिजनेसमैन हैं, इसलिए उनसे यह उम्मीद स्वाभाविक है कि वे ठोस हितों से संचालित होंगे।

मो.: ९१६७३८३०२५

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