हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result

खिलता कमल

by गंगाधर ढोबले
in पर्यावरण विशेषांक -२०१७, राजनीति
0

देश में ४ फरवरी से लेकर ८ मार्च तक लोकतंत्र तक सब से बड़ा उत्सव होने जा रहा है। सब से बड़ा उत्सव इसलिए कि देश के लगभग २० फीसदी मतदाता पांच राज्यों में हो रहे इन विधान सभा चुनावों में अपने प्रतिनिधि चुनेंगे। मतदाताओं की संख्या कुल १६.८ करोड़ होगी। कुल ६९० सीटें हैं। मतदान केंद्रों की संख्या १ लाख ८५ हजार ३८ होगी। इसका अर्थ यह कि पाकिस्तान की कुल जनसंख्या से भी अधिक भारत के ये मतदाता होंगे। इससे इस चुनाव का महत्व और उसकी विशालता का अनुमान लगाया जा सकता है।
जिन राज्यों में ये चुनाव होने हैं उनमें हैं उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, मणिपुर और गोवा। मतदान की तारीखें देखें- उत्तर प्रदेश ११ फरवरी से ८ मार्च, पंजाब ४ फरवरी, उत्तराखंड १५ फरवरी, मणिपुर ४ व ८ मार्च, गोवा ४ फरवरी। इनमें से पंजाब, उत्तराखंड व गोवा में एक ही चरण में मतदान होगा, जबकि मणिपुर में दो चरणों में तथा उत्तर प्रदेश में ७ चरणों में। सीटों का क्रम इस प्रकार है- उत्तर प्रदेश ४०३ सीटें,

पंजाब ११७ सीटें, उत्तराखंड ७० सीटें, मणिपुर ६० सीटें एवं गोवा ४० सीटें। कुल ६९० सीटें। सभी सीटों की मतगणना ११ मार्च को होगी।
इन चुनावों में सब से बड़ा मुद्दा क्या होगा? क्या नोटबंदी केंद्र में सत्तारूढ़ दल भाजपा के लिए ‘लिटमस टेस्ट’ होगी? क्या भाजपा जीतेगी? क्या यह एक तरह से केंद्र की नोटबंदी पर जनमत आजमाने जैसा होगा? क्या चुनाव के फैसले को भाजपा के जनाधार से जोड़ा जाएगा? या कि क्या जातीय समीकरण, धार्मिक धु्रवीकरण या चुनावी जोड़तोड़ मुख्य भूमिका निभाएंगे? चूंकि ये राज्यों के चुनाव हैं इसलिए स्थानीय मुद्दे हावी रहेंगे या फिर केंद्र सरकार के कामकाज पर यह जनमत माना जाएगा? ऐसे कई प्रश्न हैं जिनका उत्तर यह चुनाव देगा। इसलिए देश की राजनीति की दशा और दिशा बदलने में ये चुनाव बहुत बड़ी भूमिका निभाएंगे। परिणामतः राज्यसभा में भी दलों के बलाबल पर प्रभाव पड़ेगा। याने, केंद्र की राजनीति इससे अछूती नहीं रहेगी।
इन पांचों राज्यों के चुनावों पर परदे के पीछे और परदे के आगे हो रही उठापठक पर गौर करें, पृष्ठभूमि पर नजर डालें या कि हाल में विभिन्न राज्यों में हुए उपचुनावों और स्थानीय निकाय चुनावों के परिणामों को देखें तो ऐसा नहीं लगता कि नोटबंदी कोई बड़ा मुद्दा होगा। अब तक भाजपा और उसके सहयोगी दल नोटबंदी को गरीबों और आम आदमी के पक्ष में हुआ निर्णय साबित करने में सफल हुए हैं। नोटबंदी के विरोध में विपक्ष ने आकाश-पाताल एक कर रखा था, लेकिन उनके हमले भाजपा व सहयोगी दल लौटाने में काफी सफल हो चुके हैं। इस स्थिति में नोटबंदी का मुद्दा अवश्य उछलेगा, किंतु उसकी धार भोथरी हो चुकी होगी। अतः चुनाव भले राज्यों के हो, लेकिन केंद्र भी इससे कम प्रभावित नहीं होगा।
आइये जरा राज्यों की वर्तमान स्थिति पर गौर करें-
उत्तर प्रदेश
उत्तर प्रदेश सब से बड़ा राज्य है, जहां ४०३ सीटें हैं। वहां दंगल अब तिकोन में सीमित हो गया लगता है। इसका एक कोण अखिलेश की समाजवादी पार्टी और कांग्रेस, दूसरा कोण भाजपा और तीसरा कोण मायावती की बहुजन समाज पार्टी। इस पर चर्चा करने के पूर्व चुनाव आयोग के १६ जनवरी के ऐतिहासिक निर्णय पर गौर करना होगा। यह निर्णय ऐतिहासिक इसलिए है क्योंकि पहली बार किसी झगडालू पार्टी का चुनाव चिह्न या झंडा फ्रीज नहीं हुआ है। लिहाजा, इस निर्णय ने चौसर का खेल ही बदल दिया है।
चुनाव आयोग ने सपा में गुटबाजी को पार्टी में फूट नहीं माना और समर्थकों की संख्या के आधार परी बेटाजी अर्थात अखिलेश को ही असली सपा मान लिया। इस तरह नेताजी अर्थात मुलायम पहली लड़ाई हार गए। इस पर नेताजी क्या दांव मारेंगे, इसका इन पंक्तियों के लिखने तक खुलासा नहीं हुआ था। उनके सामने दो विकल्प दीखते हैं- एक, बेटाजी की विरासत स्वीकार लें या दो, स्वतंत्र रूप अपने गुर्गे लड़वाएं और बेटाजी को भितरघात करवा कर मुश्किल में डाल दें। ये गुर्गे बेटाजी के उम्मीदवारों को नुकसान पहुंचा सकते हैं। समय इतना कम रह गया है कि अब नई पार्टी बनाना या अपनी पुरानी पार्टी भारतीय लोकदल को पुनर्जीवित कर मैदान में उतरना मुश्किल लगता है। वैसे भी नेताजी के समधी लालू यादव ने कहा है कि बेटाजी की विरासत स्वीकार कर लें। लेकिन, नेताजी हमेशा बेभरोसे के आदमी रहे हैं और उनके दांव समझने में देर लगती है।
बहरहाल, अखिलेश ताकतवर है, यह साबित हो चुका है। उनकी पत्नी डिंपल और सोनियाजी की पुत्री प्रियंका में परदे के पीछे बहुत पहले गठबंधन का समझौता हो चुका है। अतः सपा के सब से बड़े वोट बैंक मुसलमानों में टूटफूट कम होगी और मायावती का मुसलमानों को अधिक सीटें देने का दांव विफल हो जाएगा। दलितों से अधिक अन्यों को उम्मीदवारी देने से बसपा के लोग ही मायावती से नाराज हैं। इसका खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ सकता है। इस तरह दलित वोटों में फूट जिस तरफ अधिक झुकेगी उस तरफ पलड़ा भारी हो सकता है।
इस तरह मुसलमानों का ध्रुवीकरण हो जाए और दलितों में टूटफूट हो जाए तो भाजपा अपने प्रतिबद्ध वोटों के साथ इसका लाभ उठाने की स्थिति में है। सपा भले एक पार्टी रह गई हो, लेकिन शिवपाल यादव, अमर सिंह और मुलायम की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता यूं ही चुप बैठ जाएंगे यह मानना गलत होगा। मुलायम के घर में ‘सौतन-डाह’ पहले से ही चल रहा है। अखिलेश नेताजी की पहली पत्नी मालती देवी के बेटे हैं। साधना कभी नहीं चाहेगी कि नेताजी की विरासत उसके सौतेले पुत्र के हाथ लगे। वह तो अपने पुत्र प्रतीक के लिए शतरंज बिछाते रहती हैं और नेताजी के कान भरती हैं। खैर, सौतन-डाह को यूं ही नजरअंदाज न करने के इरादे से यह लिखा है। चुनाव के अन्य गणित अन्य लेखों में हैं ही, इसलिए इसकी यहां दुबारा चर्चा करने की आवश्यकता नहीं है।
पंजाब
अब पड़ोसी पंजाब की ओर चलते हैं। वहां अकाली दल और भाजपा के गठबंधकी सरकार चल रही है। कुल ११७ सीटों में से अकाली दल के पास ५६ और भाजपा के पास १२ सीटें इस तरह गठबंधन के पास कुल ६८ सीटें हैं। कांग्रेस ४६ सीटों के साथ दूसरे नंबर की पार्टी है। वोटों के प्रतिशत पर गौर करें तो अकाली ३५% और भाजपा ७% इस तरह गठबंधन के पास ४२% जनमत है। अकेले कांग्रेस के पास ४०% जनमत है। इस तरह अकेले बलबूते कांग्रेस सब से बड़ी पार्टी है। भाजपा के नवजोत सिंह सिद्धू के कांग्रेसवासी होने के पीछे यही गणित है। अरविंद केजरीवाल के मैदान में कूदने का राज भी यही है। उन्हें लगता है कि कांग्रेस के कमजोर नेतृत्व के कारण उनकी झोली काट कर कुछ वोट हथियाए जा सकते हैं। सत्तारूढ़ होने से अकालियों को कुछ हानि भी हो सकती है इसका लाभ उन्हें मिल सकता है। इस तरह अकाली-भाजपा गठबंधन, कांग्रेस और केजरीवाल की पार्टी ‘आप’ इस तरह त्रिकोणी संघर्ष हो सकता है।
अकाली दल पिछले दस साल से सत्ता में है। वह विकास के साथ ‘अकाली पंथ’ कार्ड खेल रहा है और विपक्षी कांग्रेस व आप को

‘सिख-विरोधी एवं पंजाब विरोधी’ करार दे रहा है। लेकिन उसके मूल वोटबैंक में सेंध लग चुकी है। उसके ६ विधायक कांग्रेसवासी हो गए हैं। ड्रग माफिया पंजाब की दुखती रग है और कांग्रेस ने अकाली दल के एक वरिष्ठ मंत्री का माफिया से नाता जोड़ कर हल्ला मचा रखा है।
अकाली दल की सहयोगी भाजपा को समझौते में कुल ११७ में से २३ सीटें ही मिली हैं। बाकी सीटें अकाली दल खुद लड़ रहा है। भाजपा वहां बहुत सतर्कता से काम कर रही है। नोटबंदी के बाद हुए चंडीगढ़ महापालिका चुनाव में उसे भारी सफलता मिली है। इससे संकेत मिलता है कि भाजपा की सीटों में अवश्य इजाफा होगा।
कांग्रेस तो सत्ताविरोधी वोटों का लाभ उठाने में लगी है। कैप्टन अमरिंदर सिंह के नियंत्रण में तैयारी चल रही है। वे पहले मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं; परंतु कांग्रेस ने उन्हें मुख्यमंत्री के रूप में पेश करने से परहेज रखा है। सिद्धू की ‘एंट्री’ को इसी परिप्रेक्ष्य में देखा जा रहा है। ‘आप’ स्वयं को महज दिल्ली की पार्टी के लेबल से मुक्त करने और अपना जुझारूपन कायम होने को साबित करने के लिए ही मैदान में दिखती है।
उत्तराखंड
७० सीटों वाले उत्तराखंड में कांग्रेस की लगभग अल्पमत की सरकार चल रही है। कांग्रेस के १० और भाजपा के दो विधायक या तो इस्तीफा दे चुके हैं या अपात्र घोषित हो चुके हैं। वर्तमान में विधान सभा अध्यक्ष को मिला कर सदस्य संख्या ५८ रह गई है। कांग्रेस व भाजपा के पास फिलहाल प्रत्येकी २६ सीटें हैं। बसपा के पास २, यूकेडीपी के पास १ और निर्दलीय ३ है। बसपा एवं निर्दलियों के सहयोग से मुख्यमंत्री हरिश रावत सरकार चला रहे हैं। वहां दलबदल के बाद रावत सरकार चली गई थी, लेकिन तिकडम के बाद वह फिर सत्तारूढ़ हो चुकी है।
कांग्रेस वहां संकट में दिखाई देती है। २०१३ में आई आपदा से निपटने में सरकार की नाकामी बहुत बड़ा मुद्दा है। दूसरा मुद्दा यह कि मुख्यमंत्री रावत स्वयं भ्रष्टाचार के मामले में सीबीआई जांच का सामना कर रहे हैं। भाजपा में उसके कुछ पूर्व मुख्यमंत्री अपनी-अपनी अभिलाषाओं के साथ मैदान में हैं, लेकिन खास बात यह कि फिलहाल सभी एक होकर लड़ रहे हैं। भाजपा जीतती है तो बी.सी.खंडूरी और रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ दावेदार होंगे, लेकिन जो सूचनाएं मिल रही हैं उससे संकेत मिलता है कि अंत में खंडूरी ही सर्वमान्य उम्मीदवार होंगे। याद रहे कि पिछले वर्ष मई में विजय बहुगुणा ८ विधायकों के साथ कांग्रेस से दलबदल कर भाजपा में शामिल हो गए थे। वे भी अपनी दावेदारी को उत्सुक हैं और उनकी अवहेलना नहीं की जा सकती। उत्तराखंड के एक और कांग्रेसी मंत्री यशपाल आर्य, उनके पुत्र संजीव और विधायक केदार सिंह भाजपा में आ गए हैं और पहली ही सूची में उन्हें पार्टी की उम्मीदवारी भी मिल चुकी है।
राज्य में पार्टियों के मताधार को लेकर २०१२ में हुए चुनावों को देखना होगा। उसमें कांग्रेस और भाजपा का मताधार क्रमशः ३४ और ३३ प्रतिशत था याने दोनों में महज १% का अंतर। सीटों के बारे में ही यही स्थिति थी। कांग्रेस को ३२ और भाजपा को ३१ याने दोनों में मात्र एक सीट का अंतर था। वर्तमान माहौल और पिछले पांच वर्षों के राजनीतिक घटनाक्रमों पर ध्यान दें तो यहां भाजपा को बेहतर अवसर दिखाई देते हैं।
गोवा
अब पश्चिम में गोवा की ओर बढ़ते हैं।
४० सीटों वाली गोवा विधान सभा में फिलहाल २१ सीटें भाजपा के पास, ९ सीटें कांग्रेस के पास, ३ सीटें मगोपा के पास, २ सीटें जीवीपी के पास हैं तथा ५ निर्दलीय हैं। भाजपा का ३५%, कांग्रेस का ३१%, मगोपा का ७% तथा शेष अन्य का जनाधार है। पिछले चुनाव में मगोपा भाजपा के साथ थी। दोनों को मिला दिया जाए तो जनाधार ४२% होता है। इस बार मगोपा साथ नहीं है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के एक प्रमुख पूर्व अधिकारी सुभाष वेलिंगकर ने बगावत का झंडा खड़ा किया है और गोवा सुरक्षा मंच के नाम से अपनी पृथक पार्टी बना ली है। इस पार्टी का मगोपा के साथ चुनाव गठबंधन भी हो गया है। केंद्रीय रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर और वेलिंगकार के बीच मनमुटाव का यह परिणाम है। परंतु, संघ परिवार में इस तरह की अनबन का कोई विशेष प्रभाव नहीं होता, यह इतिहास है। दूसरी ओर कांग्रेस संकटों का सामना कर रही है। उसके पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत भ्रष्टाचार के एक मामले में मुख्य आरोपी हैं। केजरीवाल भी हाथपैर मारने को उतारू हैं। इस तरह पूरी स्थिति पर विचार करें तो दिखाई देगा कि भाजपा ही पुनः गोवा में सब से बड़ी पार्टी के रूप में उभरेगी; क्योंकि उसका कोई सशक्त प्रतिद्वंद्वी ही मैदान में दिखाई नहीं देता।
मणिपुर
अब चलें पश्चिम से सीधे पूरब की ओर।
पूर्वोत्तर का यह राज्य कांग्रेस का गढ़ रहा है। बहुसंख्य मैतेई अर्थात हिंदू समाज है, लेकिन राजनीति में कांग्रेस ही हावी रही है। वहां मुख्य मुद्दा नगालैण्ड के साथ उसका सीमा विवाद है। नगा लोग मणिपुर के नगा बहुल इलाके अपने राज्य में शामिल करना चाहते हैं, जिसका मणिपुरी कड़ा विरोध कर रहे हैं। इसी कारण नगा लोग नगालैण्ड से मणिपुर में आने वाले राजमार्ग को रोक कर आर्थिक नाकाबंदी करते हैं। चुनावों में यहां यह मुद्दा है। मणिपुरी विद्रोही संगठन इसका लाभ उठाने से नहीं चूकते। इसे जो रोकेगा उसकी सरकार, यह वहां का गणित है।
मणिपुर विधान सभा ६० सीटों की है। कांग्रेस के पास वर्तमान में ४८ सीटें हैं। १ भाजपा के पास व १ एलजेपी के पास है। २०१२ के चुनाव में कांग्रेस को ४२ सीटें मिली थीं। बाद में तृणमूल, राकांपा व एमएससीपी का उसमें विलय हो गया था। इस बार के चुनाव के पूर्व कांग्रेस के ५, नगा पीपुल्स फ्रंट ४ और भाजपा का एक विधायक अपनी पार्टी छोड़ चुके हैं। कांग्रेस के ओ.ईबोबी सिंह वहां ताकतवर मुख्यमंत्री हैं। लेकिन, हाल में उनके दाहिने हाथ एन.बीरेन सिंह भाजपा में शामिल हो चुके हैं। मानवाधिकारी आंदोलनकारी इरोम शर्मिला छानू ने १६ साल पुराना अपना अनशन छोड़ कर अब राजनीति में कूद पड़ी हैं। उन्होंने पीपुल्स रीसर्जन्स एण्ड जस्टिस एलायंस नाम से अपनी पार्टी बनाई है। इन सब के बावजूद कांग्रेस का पलडा भारी दिखाई देता है।
कुल मिला कर उत्तर से लेकर पश्चिम के राज्यों तक कमल खिलता दिखाई दे रहा है, लेकिन पूरब के राज्य में कांग्रेस का बोलबाला रहेगा। यह किसी ज्योतिषी की भविष्यवाणी नहीं है, वर्तमान राजनीति एवं आंकड़ों का गणित इस बात का संकेत दे रहे हैं। चुनाव के कोई एक माह पूर्व यह चित्र था, लेकिन राजनीति चंचल नारी है, चित्र में हेरफेर भी हो सकता है, यह भी ध्यान में रखना चाहिए।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinepolitics as usualpolitics dailypolitics lifepolitics nationpolitics newspolitics nowpolitics today

गंगाधर ढोबले

Next Post

जन सहयोग से सूखा लातूर ‘जलयुक्त’ बना

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0