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राष्ट्रहित से समझौता नहीं…- मा. निर्मल सिंह उप-मुख्यमंत्री, जम्मू-कश्मीर

by अमोल पेडणेकर
in मार्च २०१७, राजनीति, साक्षात्कार
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कश्मीर को सदैव भारत के लिए एक समस्या के रूप में ही देखा गया है। स्वतंत्रता के बाद से अभी तक वहां के हालात दिन प्रतिदिन बिगड़ते ही दिखाई देते हैं। मुख्य धारा की मीडिया भी वहां की आतंकवादी गतिविधियों को ही दिखाती है। परंतु वहां पर राज्य सरकार द्वारा कई विकास कार्य भी किये जा रहे हैं। कश्मीर से सम्बंधित विविध विषयों पर उप मुख्यमंत्री निर्मल सिंह जी से हुई विस्तृत चर्चा के प्रमुख अंश

एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चलेंगे’इस वैचारिक उद्घोषणा को लेकर डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अपना बलिदान दिया, इन विचारों में किस तरह का गौरवपूर्ण भाव है उसे स्पष्ट कीजिए?
यह मात्र वैचारिक उद्घोषणा ही नहीं है इसे लेकर जम्मू-कश्मीर के राष्ट्रवादी समाज ने १९५३ में प्रजा परिषद और डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी के नेतृत्व में आंदोलन किया था। इस आंदोलन के दौरान हीरानगर, सुन्दरबनी, ज्यौड़ियां और रामबन में कार्यकर्ताओं ने जम्मू-कश्मीर में तिरंगा फहराते हुए सीने पर गोलियां खाई थीं। डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने भी अपना बलिदान दिया था। पूर्व प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और उस समय के नेशनल कांफ्रेंस के नेता शेख अब्दुल्ला के बीच दोस्ती का खमियाजा आज तक जम्मू-कश्मीर की जनता भुगत रही है। हालांकि पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के कार्यकाल के बाद अब प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में केन्द्र में सरकार के गठन के बाद और जम्मू-कश्मीर में भाजपा के गठबंधन सरकार में शामिल होने के बाद जाहिर तौर पर राज्य में राष्ट्रवादी ताकतों का मनोबल बढ़ा है। आज भी किसी न किसी रूप में संघर्ष जारी है। इतना स्पष्ट है कि भाजपा किसी भी सूरत में सरकार में रहते हुए या सरकार से बाहर राष्ट्रहित में किसी प्रकार का कोई समझौता नहीं करेगी।
कश्मीर घाटी से निकाले गए कश्मीरी हिन्दुओं के पुनर्वास के मसले पर मतभेद हैं। इस मतभेद को हल करने के लिए आपने कौन से निर्णय लिए हैं।
कश्मीरी विस्थापित हिन्दुओं के घाटी में पुर्नवास के लिए राज्य की मौजूदा सरकार वचनवद्ध है। इस सिलसिले में कश्मीरी विस्थापित हिन्दुओं के लिए तीन हजार पदों का सृजन कश्मीर घाटी में रोजगार के लिए प्रधान मंत्री पुर्नवास पैकेज के तहत किया गया है। घाटी में सरकारी नौकरी करने वाले कश्मीरी पंडित विस्थापितों के लिए अलग से रहने की व्यवस्था की गई है। कश्मीरी विस्थापित परिवारों को प्रति माह मिलने वाली राहत राशि में बढ़ोत्तरी की गई है। आतंकी बुरहान वानी के मारे जाने के बाद कश्मीर घाटी में लगभग ४ महीनों तक अशांति व हिंसक प्रदर्शनों का दौर चला, इस दौरान किसी भी कश्मीरी हिन्दू विस्थापित कर्मचारी का बाल भी बांका नहीं होने दिया गया।

जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक, सामाजिक व ऐतिहासिक धरोहर के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त कीजिए?
जम्मू-कश्मीर देश के स्वतंत्र होने से पूर्व डोगरा शासित राज्य था। १९४७ में देश के विभाजन के समय उस समय के महाराजा हरिसिंह ने जम्मू-कश्मीर का विलय भारत के साथ किया था। यह विलय पूर्ण व संवैधानिक है। इस पर किसी प्रकार का प्रश्न चिह्न नहीं लगाया जा सकता। जम्मू-कश्मीर राज्य तीन संभागों में बंटा हुआ है जिनमें जम्मू, कश्मीर व लद्दाख शमिल हैं। तीनों संभागों की अपनी-अपनी भौगोलिक स्थितियां व संस्कृति है। कुछ लोग केवल कश्मीर को ही पूरा राज्य मानते हैं जबकि कश्मीर संभाग तो पूरे राज्य का एक तिहाई भाग भी नहीं है। क्षेत्रफल के हिसाब से सबसे बड़ा संभाग लद्दाख, इसके बाद जम्मू और फिर कश्मीर तीसरे नम्बर पर है।

भाजपा-पीडीपी का बेमेल गठजोड़ है, इस प्रकार की चुनाव पूर्व सम्पूर्ण देश की राय थी, आज कौन सी स्थिति है?
आप इसे जो भी संज्ञा दें, असल में यह गठजोड़ देश की लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत जम्मू-कश्मीर में हुए विधान सभा चुनाव का परिणाम है। कश्मीर में जनमत ने पीडीपी को प्राथमिकता दी और जम्मू संभाग में भाजपा को। भाजपा और पीडीपी ने जनादेश का सम्मान करते हुए सरकार बनाई ताकि लोगों की अपेक्षाओं को पूरा किया जा सके। इसमें किसी को संदेह नहीं होना चाहिए कि भाजपा ने सरकार बनाने के लिए अपनी मूल विचारधारा को छोड़ दिया। पीडीपी के साथ भाजपा का गठबंधन पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व में गहन विचार-विमर्श के बाद २०१५ में किया था और इसमें एजेंडा ऑफ एलायंस को आधार बनाया गया जिसे बनाने में तीन महीनों का समय लगा।
पीडीपी के साथ भाजपा का गठबंधन वैचारिक अथवा राजनैतिक नहीं है। यह गठबंधन गवर्नेस के आधार पर है जिसका उद्देश्य राज्य का विकास व प्रगति के साथ जम्मू-कश्मीर के राष्ट्रवादी समाज और विचारधारा को और अधिक मजबूती प्रदान करना है। पीडीपी-भाजपा की राज्य में सरकार बनने के बाद जम्मू और लद्दाख के साथ दशकों से हो रहे भेदभाव को खत्म करने की प्रक्रिया भी शुरू हुई है। पिछले सात दशकों से न्याय का इंतजार कर रहे पाक अधिकृत कश्मीर के शरणार्थियों की मांगों को पूरा किया गया है। प्रति परिवार को पांच लाख रूपए की आर्थिक मदद देने की प्रक्रिया शुरू की गई है। आज तक राज्य में किसी भी सरकार ने इस राष्ट्रवादी वर्ग की सुध नहीं ली थी।

भाजपा-पीडीपी की सरकार बनने से भाजपा को सत्ता का सुख मिल रहा है पर क्या भाजपा की प्रखर राष्ट्रवादी भूमिका बरकरार रही है?
भाजपा के लिए देश सर्वोपरि है, पार्टी बाद में और अपने-आप अंत में। लिहाजा भाजपा का सत्ता में आने का लक्ष्य सत्ता का सुख हासिल करना नहीं है। हमारे प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी जी भी इसे लाल किले की प्राचीर से अपने-आप को देश का प्रधान सेवक बता कर स्पष्ट कर चुके हैं। जहां तक भाजपा की राष्ट्रवादी भूमिका का सवाल है इस पर समझौता करने का सवाल ही पैदा नहीं होता।

नोटबंदी के बाद कश्मीर के हालात क्या हैं?
हवाला के जरिए चलने वाले आतंकवाद की कमर टूटी है। आतंकी व उनके समर्थक हताश हैं। नकली करंसी इस्तेमाल पर रोक लगी है। नकली करंसी के दम पर कश्मीर में युवाओं को आतंकवाद में झोंकने की आतंकी संगठनों की योजनाओं पर भी पानी फिरा है। इस फैसले से जम्मू-कश्मीर का आम समाज खुश है।

प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी का कश्मीर समस्या के प्रति दृष्टिकोण किस प्रकार का है? कश्मीर विकास हेतु केन्द्र सरकार से कौन से संकेत मिल रहे हैं?
पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बाद मौजूदा प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने ही जम्मू-कश्मीर के विकास को प्राथमिकता दी है। राज्य में विकास के लिए प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने ८० हजार करोड़ रूपए का पैकेज दिया है। प्रधान मंत्री ने इस पैकेज को देते समय स्पष्ट कर दिया था कि यह एक शुरूआत है। केन्द्र में प्रधान मंत्री मोदी के नेतृत्व में सरकार बनने के बाद केन्द्रीय प्रायोजित विकास परियोजनाओं पर तेजी आई है। पहली बार जम्मू संभाग धार्मिक पर्यटन के केन्द्र के अलावा शिक्षा क्षेत्र का भी गढ़ बनने लगा है। जम्मू में आईआईटी, आईआईएम, आईआईएमसी, एम्स, एक कलस्टर यूनिवर्सिटी की स्थापना इसके प्रमाण हैं। लद्दाख को बराबर उसका हक मिलने लगा है और कश्मीर से भी कोई भेदभाव नहीं हो रहा है।

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