हिंदी विवेक
  • Login
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
No Result
View All Result
हिंदी विवेक
No Result
View All Result

कश्मीरघाटी की जनसांख्यिकी और उसका राजनैतिक प्रभाव

by डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री
in मार्च २०१७, राजनीति, सामाजिक
0

कश्मीर घाटी जम्मू-कश्मीर प्रदेश का भौगोलिक लिहाज़ से सब से छोटा संभाग है। लेकिन जनसांख्यिकी के लिहाज़ से इस घाटी में बसे लोगों में बहुत विविधताएं हैं। यही कारण है कि इसका जनसांख्यिकी अध्ययन अत्यंत रुचिकर कहा जाता है। मोटे तौर पर कश्मीर घाटी में रहने वाले लोगों को निम्न समूहों में रखा जा सकता हैः-

कश्मीरीः कश्मीरी समुदाय को भी आगे उपविभाजित किया जा सकता है।
कश्मीरी मुसलमान
कश्मीरी मुसलमान की शतप्रतिशत संख्या हिन्दुओं से मतान्तरित है, कश्मीर घाटी में रहने वाले कश्मीरी मूलत हिन्दू थे, जो अनेकों देवी देवताओं में आस्था रखते थे। कश्मीर का शैव मत दर्शन त्रिक दर्शन के नाम से पूरे देश में चर्चित था। एक समय ऐसा भी आया जब महात्मा बुद्ध का जीवन और उनका उपदेश समस्त कश्मीर घाटी में गूंजता था। लेकिन घाटी में इस्लाम के प्रवेश ने
यहां के सांस्कृतिक जीवन को चक्रवात बना
दिया। लगभग चौदह सौ साल पहले अरब के मरुस्थलों में जिस इस्लाम ने जन्म लिया उसने देखते- देखते पूरे अरब, ईरान और मध्य एशिया को अपनी चपेट में ले लिया। यह ठीक है अरब, ईरान और मध्य एशिया के लोगों ने अपनी आस्था और सांस्कृतिक पहचान की रक्षा के लिए सख़्त मुक़ाबला किया लेकिन अंततः जीत इस्लाम मताबलम्बियों, जिन्हें अब तक मुसलमान कहा जाने लगा था, की ही हुई। उसके बाद कश्मीर घाटी भी इसकी चपेट में आ गई। घाटी में कश्मीरियों को इस्लाम में मतान्तरित करने हेतु इस्लाम के सूफ़ियों और जिहादियों, दोनों ने ही अपनी-अपनी भूमिका निभाई।
कश्मीरी हिन्दू
कश्मीर घाटी में जो हिन्दू विदेशी इस्लाम मताबलम्वियों के शासन में भी मतान्तरित नहीं हुए, ऐसे कुछ लाख कश्मीरी हिन्दू अभी भी घाटी में बचे हुए हैं। ये देश भर में कश्मीरी पंडितों के नाम से जाने जाते हैं। लेकिन १९८० के बाद घाटी में इस्लामी आतंकवाद फैलने पर इनमें से अधिकांश कश्मीरी हिन्दुओं को घाटी से निकाल दिया। निष्कासित कश्मीरी हिन्दू देश के अन्य भागों में जाकर बस गए। लेकिन एक लाख के लगभग कश्मीरी हिन्दू अभी भी घाटी के अलग अलग हिस्सों में रहते हैं।
कश्मीरी सिक्ख
विदेशी मुग़ल-अफ़ग़ान शासकों के ख़िलाफ़ छेड़े गए मुक्ति अभियान में पश्चिमोत्तर भारत में पहली रणनीति मध्यकालीन भारतीय दशगुरु परम्परा के नवम् गुरु श्री तेगबहादुर जी के जीवन काल में बनी जब शिवालिक की उपत्यकाओं में आनंदपुर नामक स्थान पर कश्मीर घाटी से वहां की स्थिति का वर्णन करने के लिए लोग आए। नवम् गुरु श्री तेगबहादुर जी से इस सम्बंधी लम्बी मंत्रणाएं हुईं। बाबर से आरंभ हुए मुग़ल वंश के छटे बादशाह औरंगज़ेब ने कश्मीर घाटी पर भी क़ब्ज़ा कर लिया था। पंजाब तो उसके क़ब्ज़े में था ही। प्रश्न केवल राजनैतिक ग़ुलामी का नहीं था। औरंगज़ेब देश भर में मतान्तरण अभियान चला रहा था और बलपूर्वक लोगों को अपना पंथ या सम्प्रदाय छोड़ कर इस्लाम की शरण में आने के लिए विवश कर रहा था। इन्हीं परिस्थितियों में पंजाब और कश्मीर के लोगों ने मुक़ाबले के सामूहिक प्रयास प्रारंभ किए जिनका नेतृत्व दश गुरु परम्परा ने किया। उस काल में जो कश्मीरी ख़ालसा पंथ में दीक्षित हुए, वे कश्मीरी सिक्ख कहलाते हैं। बाद में जब महाराजा रणजीत सिंह ने जम्मू के डोगरों के साथ मिल कर कश्मीर घाटी को अफगानों से मुक्त करवा लिया तब भी पंजाब के कुछ सिक्ख कश्मीर घाटी में बस गए थे। लेकिन पिछली शताब्दी के अंतिम दशकों में जब कश्मीर घाटी में इस्लामी आतंक का दौर शुरू हुआ तो लगभग चार लाख हिन्दू सिखों को कश्मीर घाटी छोड़ कर देश के अन्य हिस्सों में जाना पड़ा।
अरब व ईरानी
कश्मीर घाटी में एक समुदाय अरब और ईरानी लोगों का भी है। अरब लोग घाटी में सीधे भी आए और ज़्यादा संख्या में ईरान से होते हुए भी आए। दरअसल जब अरबों ने ईरान पर क़ब्ज़ा कर लिया तो बहुत से अरब ईरान में भी आ बसे। इन्होंने ईरान में इस्लाम के प्रचार प्रसार में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बाद में जब तैमूरलंग ने ईरान पर हमला किया तो बहुत से अरब ईरान से भाग कर कश्मीर घाटी में आ बसे। कश्मीरियों ने इन्हें शरण दी। इन शरणार्थी अरबों ने भी घाटी के लोगों को इस्लाम में मतान्तरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। घाटी में अरब समुदाय के इन लोगों की पहचान बहुत सरल है। अरब के ये लोग अपने नाम के आगे या पीछे सैयद शब्द का उपयोग करते हैं, जो इनकी जनजाति का द्योतक है। बहुत से अरब अपने नाम के साथ, ईरान के उस शहर या गांव का नाम भी लिखते हैं, जहां से उनके पूर्वज कश्मीर घाटी में आए थे। मसलन गिलानी, हमदानी, करमानी, खुरासानी इत्यादि।
कश्मीर घाटी के लोगों ने अरब मूल के इन शरणार्थियों को शरण दी लेकिन इन्होंने कश्मीरियों पर आधिपत्य ज़माने के प्रयास शुरू से ही शुरू कर दिए थे। इन्होंने कश्मीरियों पर अपना नेतृत्व थोपने की कोशिश की। यह प्रयास राजनैतिक और सांस्कृतिक/मज़हबी दोनों क्षेत्रों में हुआ। यही कारण है कि घाटी की बड़ी मस्जिदों में मौलवी/वाईज/मीरवाइज़ मोटे तौर पर अरबी मूल के ही हैं। राजनैतिक क्षेत्र में भी यह परम्परा लम्बे समय से चली आ रही है। दरअसल घाटी में अरब मूल का मजहबी नेतृत्व, अरबी मूल के राजनैतिक नेतृत्व को मज़हबी धरातल पर सहायता प्रदान करता है। ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। यह ठीक है कि आम कश्मीरी ने अरबी मूल के राजनैतिक नेतृत्व को कभी मन से स्वीकार नहीं किया। यही कारण है कि बीच-बीच में कश्मीरी नेतृत्व अपने-आप को स्थापित करने का प्रयास करता रहता है।
अफ़ग़ानिस्तान के पठान
कश्मीर घाटी में अफ़ग़ानिस्तान से आए हुए पठानों अथवा पश्तूनों की संख्या एक लाख के लगभग है। ये पठान अफ़ग़ानिस्तान के उन हमलावरों के साथ कश्मीर घाटी में आए थे जिन्होंने कश्मीर को जीत कर वहां लम्बे अरसे तक राज स्थापित किया। कश्मीर घाटी १७५० में अफगानों के क़ब्ज़े में आ गई थी। बाद में १८१९ में महाराजा रणजीत सिंह ने उन अफ़ग़ान शासकों से कश्मीर घाटी को मुक्त करवा लिया लेकिन कुछ पठान कश्मीर में ही बस गए। आज उनकी संख्या लगभग एक लाख तक पहुंच गई है। इनमें से कुछ पठान तो अभी भी अपनी भाषा पश्तों का प्रयोग करते हैं; लेकिन ज्यादातर ने कश्मीरी भाषा सीख ली है और उसी का प्रयोग करते हैं। कुपवाडा ज़िला के दो गांवों ढक्की और चकनोट में तो सभी पश्तों में ही बोलते हैं। दूरदर्शन का कौशुर चैनल पश्तूनों के लिए कुछ समय के लिए पश्तो भाषा में भी कार्यक्रम प्रसारित करता है ।
पठान मुख्य तौर पर घाटी के दक्षिण-पश्चिम में बसे हुए हैं। अनेक स्थानों पर ये पठान अपनी सामाजिक समस्याओं निराकरण अभी भी जिरगा बुला कर आपसी मतभेदों को सुलझा लेते हैं । शुरू में पठानों में विवाह भी अपने समुदाय में ही होता था लेकिन अब एक तो इनकी सीमित संख्या और दूसरे शिक्षा के प्रचार प्रसार के कारण कश्मीरियों से भी विवाह होने लगे हैं। पठानों में खान अब्दुल ग़फ़्फ़ार खान अभी भी नायक का दर्जा रखते हैं। बच्चा खान या बादशाह खान के नाम से प्रसिद्ध, उनकी तस्वीरें घाटी के पश्तूनों के घरों में टंगी रहती हैं। कूकीखेल अफ्रीदी, युसफजई, सादोजई, आचकजई कबीलों के पठान/पश्तून कश्मीर घाटी में मुख्य हैं। इन पठानों के वंशजों की जड़ें चाहे अफ़ग़ानिस्तान की जनजातियों में हैं लेकिन लम्बे अरसे में उनकी स्थानीय जड़ें भी मज़बूत हुई हैं। ये पठान अब भारत को ही अपना घर मानते हैं। घाटी में शताब्दियों से रहने के बावजूद इन्होंने अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक जनजातीय पहचान बरक़रार रखी है ।
मध्य एशिया के लोग
जम्मू-कश्मीर की सीमा मध्य एशिया के देशों से लगती है। दरअसल मध्य एशिया के लोगों का भारत में आने का एक रास्ता कश्मीर घाटी से होकर ही जाता था। रेशम मार्ग भारत को मध्य एशिया के देशों के साथ जोड़ता है। मध्य एशिया की अनेक जनजातियों के लोग मसलन उज्बेक, कजाक, ताजिक, किर्गीज, उईगर, इत्यादि समय-समय पर कश्मीर घाटी में आकर बसते रहे हैं। मध्य एशिया के इन लोगों की संख्या भले बहुत ज़्यादा नहीं है, लेकिन उन्होंने अपनी विशिष्ट क़बीलाई पहचान बनाई हुई है।
रेशम मार्ग मध्य एशिया को भारत से जोड़ता था, इसलिए स्वभाविक था कि मध्य एशिया के कुछ लोग कश्मीर घाटी में भी बसते। कश्मीर के कुछ लोग जो शताब्दियों से तिब्बत में जाकर बस गए थे और वहीं के नागरिक हो गए थे (उनको तिब्बत में खाचे कहा जाता था) वे भी १९५९ में तिब्बत पर चीन का क़ब्ज़ा हो जाने के बाद कश्मीर घाटी में आ गए। जम्मू-कश्मीर सरकार ने उनके इस्लाम मताबलम्बी होने के कारण उनको राज्य का स्थायी निवासी मान लिया और उनको घाटी में बसाया। जम्मू-कश्मीर संविधान के स्थायी निवासी होने के प्रावधानों के चलते सरकार के इस निर्णय का विरोध भी हुआ लेकिन राज्य सरकार अपने निर्णय पर अटल रही।
जनजाति समुदाय
कश्मीर में गुज्जर बकरबालों की संख्या अनंतनाग व बारामुला व कुपवाडा ज़िलों में सीमित है। २०११ की जनसंख्या के अनुसार कश्मीर घाटी की कुल जनसंख्या लगभग सत्तर लाख है। इसमें लगभग पांच लाख की संख्या जनजाति के लोगों की है। इस प्रकार घाटी में सात प्रतिशत जनजाति की संख्या है। इसमें ९९ प्रतिशत लोग गुज्जर हैं। थोड़ी बहुत संख्या बल्ती, बेड़ा, बोटो, ब्रोकपा, ड्रोकपा, दरद, शिना, चांगपा, पुरीपा, मोनपा, गद्दी और सिप्पी जनजाति के लोगों की भी है।
गुज्जर-बकरबाल यद्यपि कश्मीरी भाषा भी बोलते समझते हैं लेकिन उनकी अपनी भाषा गोजरी है जो राजस्थानी भाषा से मिलती जुलती है। कश्मीर घाटी में गुज्जर लोग राजस्थान से ही आए हैं। अन्य जनजातियों की भी अपनी अपनी भाषाएं हैं। इन भाषाओं का कश्मीरी भाषा से कोई सम्बंध नहीं है। गुज्जरों समेत इन सभी जनजातियों की अपनी संस्कृति है। इन जातियों ने कुछ सीमा तक अपना परम्परागत सांस्कृतिक परिवेश सुरक्षित रखा हुआ है। इन जनजातियों ने बहुत-सी चीज़ें इस्लाम से भी ग्रहण कर ली हैं। ईश्वर की आराधना के लिए अधिकांश जनजातियां नमाज़ पद्धति अपनाने लगी हैं। गुज्जरों ने अपने नाम भी इस्लामी तर्ज़ पर रखने शुरू कर दिए हैं। लेकिन गुज्जर-बकरबाल अपने गोत्र और वंश परम्परा को अभी भी संभाले हुए हैं। कश्मीर घाटी के गुज्जर कश्मीरियों से शादी विवाह सम्बंध स्थापित नहीं करते। इसके विपरीत वे जम्मू संभाग के गुज्जरों से विवाह सम्बंध बना लेते हैं।
अन्य समुदाय
इनके अतिरिक्त कश्मीर घाटी में अवैध रूप से बड़ी संख्या में बांग्लादेशी, म्यांमार के रोहंगिया मुसलमान भी बसे हुए हैं।
कुल मिला कर कहा जा सकता है कि कश्मीर घाटी के कश्मीरियों, जिनमें हिन्दू, मुसलमान और सिक्ख तीनों शामिल हैं, की वंश परम्परा किसी न किसी रूप में सुरक्षित है और वर्तमान पीढ़ी भी उसको सुरक्षित रखने के प्रयासों में लगी रहती है। कश्मीरियों के गोत्र (चाहे वे हिन्दू, मुसलमान या सिक्ख हों) उनको उनकी वंश परम्परा से जोड़े रखते हैं। लेकिन कश्मीर घाटी में बसे विदेशी अरबों, मध्य एशियाई लोगों और अफगानों के लिए अपने पूर्वजों के देश में वंश परम्परा से जुड़े रहना संभव नहीं था। लेकिन वे नामों व कबीले के नाम से उस परम्परा से कुछ सीमा तक जुड़े रहते हैं। कश्मीर घाटी में बसे गुज्जर इत्यादि जनजाति के लोगों की वंश परम्परा राजस्थान के गुज्जरों से जुड़ती है। इसलिए इनके गोत्र एक समान हैं। अखिल भारतीय गुज्जर परिषद जैसी संस्थाओं के माध्यम से कश्मीर घाटी के गुज्जर अपनी पुरातन विरासत से जुड़े हुए हैं।

Share this:

  • Twitter
  • Facebook
  • LinkedIn
  • Telegram
  • WhatsApp
Tags: hindi vivekhindi vivek magazinepolitics as usualpolitics dailypolitics lifepolitics nationpolitics newspolitics nowpolitics today

डॉ. कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

Next Post

अब कैसे हो कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास?

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

हिंदी विवेक पंजीयन : यहां आप हिंदी विवेक पत्रिका का पंजीयन शुल्क ऑनलाइन अदा कर सकते हैं..

Facebook Youtube Instagram

समाचार

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लोकसभा चुनाव

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

लाइफ स्टाइल

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

ज्योतिष

  • मुख्य खबरे
  • मुख्य खबरे
  • राष्ट्रीय
  • राष्ट्रीय
  • क्राइम
  • क्राइम

Copyright 2024, hindivivek.com

Facebook X-twitter Instagram Youtube Whatsapp
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वाक
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण
  • Privacy Policy
  • Terms and Conditions
  • Disclaimer
  • Shipping Policy
  • Refund and Cancellation Policy

copyright @ hindivivek.org by Hindustan Prakashan Sanstha

Welcome Back!

Login to your account below

Forgotten Password?

Retrieve your password

Please enter your username or email address to reset your password.

Log In

Add New Playlist

No Result
View All Result
  • परिचय
  • संपादकीय
  • पूर्वांक
  • ग्रंथ
  • पुस्तक
  • संघ
  • देश-विदेश
  • पर्यावरण
  • संपर्क
  • पंजीकरण

© 2024, Vivek Samuh - All Rights Reserved

0